महाभारतम्-12-शांतिपर्व-320
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याज्ञवल्क्येन जनकंप्रति साङ्ख्यदर्शनकथनम्।। 1।।
याज्ञवल्क्य उवाच।
न शक्यो निर्गुणस्तात गुणीकर्तुं विशांपते।
गुणवांश्चाप्यगुणवान्यथातत्त्वं निबोध मे।। 12-320-1a
गुणैर्हि गुणवानेव निर्गुणश्चागुणस्तथा।
प्राहुरेवं महात्मानो मुनयस्तत्त्वदर्शिनः।। 12-320-2a
गुणस्वभावस्त्वव्यक्तो गुणानेवाभिवर्तते।
उपयुङ्क्ते च तानेव स चैवाज्ञः स्वभावतः।। 12-320-3a
अव्यक्तस्तु न जानीते पुरुषोऽज्ञः स्वभावतः।
न मत्तः परमोस्तीति नित्यमेवाभिमन्यते।। 12-320-4a
अनेन कारणेनैतदव्यक्तं स्यादचेतनम्।
नित्यत्वाच्चाक्षरत्वाच्च क्षरत्वान्न तदन्यथा।। 12-320-5a
यदाऽज्ञानेन कुर्वीत गुणसर्गं पुनःपुनः।
यदात्मानं न जानीते तदाऽऽत्मापि न मुच्यते।। 12-320-6a
कर्तृत्वाच्चापि सर्गाणां सर्गधर्मा तथोच्यते।
कर्तृत्वाच्चापि योगानां योगधर्मा तथोच्यते।। 12-320-7a
कर्तृत्वात्प्रकृतीनां च तथा प्रकृतिधर्मिता।। 12-320-8a
कर्तृत्वाच्चापि वीजानां बीजधर्मा तथोच्यते।
गुणानां प्रसवत्वाच्च प्रलयत्वात्तथैव च।। 12-320-9a
12-320-9b
`कर्तृत्वात्प्रलयानां तु तथा प्रलयधर्मि च।
कर्तृत्वात्प्रभवाणां च तथा प्रभवधर्मि च।। 12-320-10a
बीजत्वात्प्रकृतित्वाच्च प्रलयत्वात्तथैव च।'
उपेक्षत्वादनन्यत्वादभिमानाच्च केवलम्।। 12-320-11a
मन्यन्ते यतयः सिद्धा अध्यात्मज्ञा गतज्वराः।
अनित्यं नित्यमव्यक्तं व्यक्तमेतद्धि शुश्रुम।। 12-320-12a
अव्यक्तैकत्वमित्याहुर्नानात्वं पुरुषास्तथा।
सर्वभूतदयावन्तः केवलं ज्ञानमास्थिताः।। 12-320-13a
अन्यः स पुरुषोऽव्यक्तस्त्वध्रुवो ध्रुवसंज्ञकः।
यथा मुञ्ज इषीकाणां तथैवैतद्धि जायते।
न चैव मुञ्जसंयोगादिषीका तत्र बुध्यते।।' 12-320-14a
अन्यच्च मशकं विद्यादन्यच्चोदुम्बरं तथा।
च चोदुम्बरसंयोगैर्मशकस्तत्र लिप्यते।। 12-320-15a
अन्य एव तथा मत्स्यस्तदन्यदुदुकं स्मृतम्।
न चोदकस्य स्पर्शेन मत्स्यो लिप्यति सर्वशः।। 12-320-16a
अन्यो ह्यग्निरुखाऽप्यन्या नित्यमेवमवेहि भोः।
न चोपलिप्यते सोऽग्निरुखासंस्पर्शनेन वै।। 12-320-17a
पुष्करं त्वन्यदेवात्र तथाऽन्यदुदकं स्मृतम्।
न चोदकस्य स्पर्शेन लिप्यते तत्र पुष्करम्।। 12-320-18a
एतेषां सहवासं च निवासं चैव नित्यशः।
याथातथ्येन पश्यन्ति न नित्यं प्राकृता जनाः।। 12-320-19a
ये त्वन्यथैव पश्यन्ति न सम्यक्तेषु दर्शनम्।
ते व्यक्तं निरयं घोरं प्रविशन्ति पुनः पुनः।। 12-320-20a
साङ्ख्यदर्शनमेतत्ते परिसङ्ख्यानमुत्तमम्।
एवं हि परिसंख्याय साङ्ख्याः केवलतां गताः।। 12-320-21a
ये त्वन्ये तत्त्वकुशलास्तेषामेतन्निदर्शनम्।
अतः परं प्रवक्ष्यामि योगानामनुदर्शनम्।। 12-320-22a
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि विंशत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 320।।
याज्ञवल्क्य उवाच। | 12-320-1x |
न शक्यो निर्गुणस्तात गुणीकर्तुं विशांपते। गुणवांश्चाप्यगुणवान्यथातत्त्वं निबोध मे।। | 12-320-1a 12-320-1b |
गुणैर्हि गुणवानेव निर्गुणश्चागुणस्तथा। प्राहुरेवं महात्मानो मुनयस्तत्त्वदर्शिनः।। | 12-320-2a 12-320-2b |
गुणस्वभावस्त्वव्यक्तो गुणानेवाभिवर्तते। उपयुङ्क्ते च तानेव स चैवाज्ञः स्वभावतः।। | 12-320-3a 12-320-3b |
अव्यक्तस्तु न जानीते पुरुषोऽज्ञः स्वभावतः। न मत्तः परमोस्तीति नित्यमेवाभिमन्यते।। | 12-320-4a 12-320-4b |
अनेन कारणेनैतदव्यक्तं स्यादचेतनम्। नित्यत्वाच्चाक्षरत्वाच्च क्षरत्वान्न तदन्यथा।। | 12-320-5a 12-320-5b |
यदाऽज्ञानेन कुर्वीत गुणसर्गं पुनःपुनः। यदात्मानं न जानीते तदाऽऽत्मापि न मुच्यते।। | 12-320-6a 12-320-6b |
कर्तृत्वाच्चापि सर्गाणां सर्गधर्मा तथोच्यते। कर्तृत्वाच्चापि योगानां योगधर्मा तथोच्यते।। | 12-320-7a 12-320-7b |
कर्तृत्वात्प्रकृतीनां च तथा प्रकृतिधर्मिता।। | 12-320-8a |
कर्तृत्वाच्चापि वीजानां बीजधर्मा तथोच्यते। गुणानां प्रसवत्वाच्च प्रलयत्वात्तथैव च।। | 12-320-9a 12-320-9b |
`कर्तृत्वात्प्रलयानां तु तथा प्रलयधर्मि च। कर्तृत्वात्प्रभवाणां च तथा प्रभवधर्मि च।। | 12-320-10a 12-320-10b |
बीजत्वात्प्रकृतित्वाच्च प्रलयत्वात्तथैव च।' उपेक्षत्वादनन्यत्वादभिमानाच्च केवलम्।। | 12-320-11a 12-320-11b |
मन्यन्ते यतयः सिद्धा अध्यात्मज्ञा गतज्वराः। अनित्यं नित्यमव्यक्तं व्यक्तमेतद्धि शुश्रुम।। | 12-320-12a 12-320-12b |
अव्यक्तैकत्वमित्याहुर्नानात्वं पुरुषास्तथा। सर्वभूतदयावन्तः केवलं ज्ञानमास्थिताः।। | 12-320-13a 12-320-13b |
अन्यः स पुरुषोऽव्यक्तस्त्वध्रुवो ध्रुवसंज्ञकः। यथा मुञ्ज इषीकाणां तथैवैतद्धि जायते। `न चैव मुञ्जसंयोगादिषीका तत्र बुध्यते।।' | 12-320-14a 12-320-14b 12-320-14c |
अन्यच्च मशकं विद्यादन्यच्चोदुम्बरं तथा। च चोदुम्बरसंयोगैर्मशकस्तत्र लिप्यते।। | 12-320-15a 12-320-15b |
अन्य एव तथा मत्स्यस्तदन्यदुदुकं स्मृतम्। न चोदकस्य स्पर्शेन मत्स्यो लिप्यति सर्वशः।। | 12-320-16a 12-320-16b |
अन्यो ह्यग्निरुखाऽप्यन्या नित्यमेवमवेहि भोः। न चोपलिप्यते सोऽग्निरुखासंस्पर्शनेन वै।। | 12-320-17a 12-320-17b |
पुष्करं त्वन्यदेवात्र तथाऽन्यदुदकं स्मृतम्। न चोदकस्य स्पर्शेन लिप्यते तत्र पुष्करम्।। | 12-320-18a 12-320-18b |
एतेषां सहवासं च निवासं चैव नित्यशः। याथातथ्येन पश्यन्ति न नित्यं प्राकृता जनाः।। | 12-320-19a 12-320-19b |
ये त्वन्यथैव पश्यन्ति न सम्यक्तेषु दर्शनम्। ते व्यक्तं निरयं घोरं प्रविशन्ति पुनः पुनः।। | 12-320-20a 12-320-20b |
साङ्ख्यदर्शनमेतत्ते परिसङ्ख्यानमुत्तमम्। एवं हि परिसंख्याय साङ्ख्याः केवलतां गताः।। | 12-320-21a 12-320-21b |
ये त्वन्ये तत्त्वकुशलास्तेषामेतन्निदर्शनम्। अतः परं प्रवक्ष्यामि योगानामनुदर्शनम्।। | 12-320-22a 12-320-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि विंशत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 320।। |
12-320-3 गुणाम्नैवातिवर्तत इति झ. पाठः।। 12-320-5 यदज्ञानेन कुरुते निर्गुणः सगुणः पुनरिति ड. पाठः।। 12-320-6 यदज्ञानं न जानीषे तदित्यव्यक्तमुच्यत इति थ. पाठः।। 12-320-7 कर्तृत्वाच्चैव धर्माणामिति ट. पाठः। कर्तृत्वाच्चापि योनीनां योनिधर्मेत्यथोच्यत इति ट. ड. पाठः।। 12-320-17 उखा मृत्पात्रविशेषः।।
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