महाभारतम्-12-शांतिपर्व-128
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कृशेन मुनिना वीरद्युम्ननृपंप्रति दुर्लभवस्तुनः कृशतराशायाश्च प्रतिपादनम्।। 1।।
राजोवचा। | 12-128-1x |
वीरद्युम्न इति ख्यातो राजाऽहं दिक्षु विश्रुतः। भूरिद्युम्नं सुतं नष्टमन्वेष्टुं वनमागतः।। | 12-128-1a 12-128-1b |
एकः पुत्रः स विप्राग्र्य बाल एव च सोऽनघः। न दृश्यते वने चास्मिंस्तमन्वेष्टुं चराम्यहम्।। | 12-128-2a 12-128-2b |
ऋषभ उवाच। | 12-128-3x |
इत्युक्ते तेन वचने राज्ञा मुनिरधोमुखः। तूष्णीमेवाभवत्तत्र न च प्रत्युक्तवान्नृपम्।। | 12-128-3a 12-128-3b |
स हि तेन पुरा विप्रो राज्ञा नात्यर्थमानितः। आशाकृतश्च राजेन्द्र तपो दीर्घं समाश्रितः।। | 12-128-4a 12-128-4b |
प्रतिग्रहमहं राज्ञां न करिष्ये कथंचन। अन्येषां चैव वर्णानामिति कृत्वा धियं तदा।। | 12-128-5a 12-128-5b |
आशा हि पुरुषं बालमालापयति तस्थूषी। तामहं व्यपनेष्यामि इति कृत्वा व्यवस्थितः। [वीरद्युम्नस्तु तं भूयः पप्रच्छ मुनिसत्तमम्।।] | 12-128-6a 12-128-6b 12-128-6c |
राजोवाच। | 12-128-7x |
आशायाः किंच वृत्तं वै किंचेह भुवि दुर्लभम्। ब्रवीतु भगवानेतत्त्वं हि धर्मार्थदर्शिवान्।। | 12-128-7a 12-128-7b |
ऋषभ उवाच। | 12-128-8x |
ततः संस्मृत्य तत्सर्वं स्मारयिष्यन्निवाब्रवीत्। राजानं भगवान्विप्रस्ततः कृशतनुस्तदा।। | 12-128-8a 12-128-8b |
ऋषिरुवाच। | 12-128-9x |
कृशत्वेन समं राजन्नाशाया विद्यते नृप। तस्या वै दुर्लभत्वाच्च प्रार्थितः पार्थिवो मया।। | 12-128-9a 12-128-9b |
राजोवाच। | 12-128-10x |
कृशाकृशे मया ब्रह्मन्गृहीते वचनात्तव। दुर्लभत्वं च तस्यैव वेदवाक्यमिवाद्विजे।। | 12-128-10a 12-128-10b |
संशयस्तु महाप्राज्ञ संजातो हृदये मम। तन्मुने मम तत्त्वेन वक्तुमर्हसि पृच्छतः।। | 12-128-11a 12-128-11b |
त्वत्तः कृशतरं किंनु ब्रवीतु भगवानिदम्। यदि गुह्यं न ते विप्र लोके किंचेह दुर्लभम्।। | 12-128-12a 12-128-12b |
कृश उवाच। | 12-128-13x |
दुर्लभोऽप्यथवा नास्ति योऽर्थी धृतिमवाप्नुयात्। स दुर्लभतरस्तात योऽर्थिनं नावमन्यते।। | 12-128-13a 12-128-13b |
सत्कृत्य नोपक्रियते परं शक्त्या यथार्थतः। या सक्ता सर्वभूतेषु साऽऽशा कृशतरी मया।। | 12-128-14a 12-128-14b |
कृतघ्नेषु च या सक्ता नृशंसेष्वलसेषु च। अपकारिषु चासक्ता साऽऽशा कृशतरी मया।। | 12-128-15a 12-128-15b |
एकपुत्रः पिता पुत्रे नष्टे वा प्रोषितेऽपि वा। प्रवृत्तिं यो न जानाति साऽऽशा कृशतरी मता।। | 12-128-16a 12-128-16b |
प्रसवे चैव नारीणां वृद्धानां पुत्रकारिता। तथा नरेन्द्र धनिनां साऽशा कृशतरी मता।। | 12-128-17a 12-128-17b |
प्रदानकाङ्क्षिणीनां च कन्यानां वयसि स्थिते। श्रुत्वा कथास्तथायुक्ताः साऽऽशा कृशतरी मता।। | 12-128-18a 12-128-18b |
एतच्छ्रुत्वा ततो राजन्स राजा सावरोधनः। संस्पृश्य पादौ शिरसा निपपात द्विजर्षभे।। | 12-128-19a 12-128-19b |
राजोवाच। | 12-128-20x |
प्रसादये त्वां भगवन्पुत्रेणेच्छामि संगमम्। यदेतदुक्तं भवता संप्रति द्विजसत्तम। वृणीष्व च वरान्विप्र यानिच्छसि यथाविधि। अब्रवीच्चैव तद्वाक्यं राजा राजीवलोचनः।। | 12-128-20a 12-128-20b 12-128-20c 12-128-20d |
सत्यमेतत्त्वया विप्र यथोक्तं नान्यथा मृषा।। | 12-128-21a |
ततः प्रहस्य भगवांस्तनुर्धर्मभृतां वरः। पुत्रमस्यानयत्क्षिप्रं तपसा च श्रुतेन च।। | 12-128-22a 12-128-22b |
स समानीय तत्पुत्रं तमुपालभ्य पार्थिवम्। आत्मानं दर्शयामास धर्मं धर्मभृतांवरः।। | 12-128-23a 12-128-23b |
स दर्शयित्वा चात्मानं दिव्यमद्भुतदर्शनम्। विपाप्मा विगतक्रोधश्चचार वनमन्तिकात्।। | 12-128-24a 12-128-24b |
एतदॄष्टं मया राजंस्त्वत्तश्च वचनं श्रुतम्। आशामपनय त्वाशु ततः कृषतरीमिमाम्।। | 12-128-25a 12-128-25b |
भीष्म उवाच। | 12-128-26x |
स तथोक्तस्तदा राजन्नृषभेण महात्मना। सुमित्रोऽपानयत्क्षिप्रमाशां कृशतरीं ततः।। | 12-128-26a 12-128-26b |
एवं त्वमपि कौन्तेय श्रुत्वा वाणीमिमां मम। स्थिरो भव महाराज हिमवानिव निश्चलः।। | 12-128-27a 12-128-27b |
त्वं हि श्रुत्वा च पृष्ट्वा च कृच्छ्रेष्वर्थेषु तेष्विह। श्रुत्वा मम महाराज न संतप्तुमिहार्हसि।। | 12-128-28a 12-128-28b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि अष्टाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 128।। |
12-128-4 आशया कृतः हतः। कृ हिंसायामित्यस्य रूपम्।। 12-128-9 आशायाः आशावतः समं अन्यत् कृशत्वेन समं किमपि नास्ति तस्याः तद्गृहीतार्थस्य।। 12-128-10 कृशाकृशे य आशाजितः स कृशः। येनाशा जिता स पुष्ट इत्यर्थः। तस्यैव आशाविषयस्यैव।। 12-128-14 आदरेणाशां प्रदर्श्य योऽर्थिनं नोपकुरुते तत्र या आशा सा अतिकृशा। मया मत्तः। दीनत्वसंपादकत्व।। 12-128-18 तथायुक्ताः प्रदानं स्थितमिति शब्दयुक्ताः।। 12-128-23 उपालभ्य तत्रापराधं स्थापयित्वा।। 12-128-28 मम मत्तः।।
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