महाभारतम्-12-शांतिपर्व-046
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वैशंपायनेन जनमेजयंप्रति भीष्मकृतकृष्णस्तेवराजानुवादपूर्वकं भीष्मस्य शरीरत्यागप्रकारकथनम्।। 1।।
जनमेजय उवाच। | 12-46-1x |
शरतल्पे शयानस्तु भरतानां पितामहः। कथमुत्सृष्टवान्देहं कं च योगमधारयत्।। | 12-46-1a 12-46-1b |
वैशंपायन उवाच। | 12-46-2x |
शृणुष्वावहितो राजञ्शुचिर्भूत्वा समाहितः। भीष्मस्य कुरुशार्दूल देहोत्सर्गं महात्मनः।। | 12-46-2a 12-46-2b |
प्रवृत्तमात्रे त्वयनमुत्तरेण दिवाकरे। `शुक्लपक्षस्य चाष्टभ्यां माघमासस्य पार्थिव।। | 12-46-3a 12-46-3b |
प्राजापत्ये च नक्षत्रे मध्यं प्राप्ते दिवाकरे।' समावेशयदात्मानमात्मत्येव समाहितः।। | 12-46-4a 12-46-4b |
विकीर्णांशुरिवादित्यो भीष्मः शरशतैश्चितः। शुशुभे परया लक्ष्म्या वृतो ब्राह्मणसत्तमैः।। | 12-46-5a 12-46-5b |
व्यासेन देवश्रवसा नारदेन सुरर्षिणा। देवस्थानेन वात्स्येन तथाऽश्मकसुमन्तुना।। | 12-46-6a 12-46-6b |
तथा जैमिनिना चैव पैलेन च महात्मना। शाण्डिल्यदेवलाभ्यां च मैत्रेयेण च धीमता।। | 12-46-7a 12-46-7b |
असितेन वसिष्ठेन कौशिकेन महात्मना। हारितलोमशाभ्यां च तथाऽऽत्रेयेण धीमता।। | 12-46-8a 12-46-8b |
[बृहस्पतिश्च शुक्रश्च च्यवनश्च महामुनिः। सनत्कुमारः कपिलो चाल्मीकिस्तुम्बुरुः कुरुः।। | 12-46-9a 12-46-9b |
मौद्गल्यो भार्गवो रामस्तृणबिन्दुर्महामुनिः। पिप्पलादोऽथ वायुश्च सवर्तः पुलहः कचः।। | 12-46-10a 12-46-10b |
काश्यपश्च पुलस्त्यश्च क्रतुर्दक्षः पराशरः। मरीचिरङ्गिराः काश्यो गौतमो गालवो मुनिः।। | 12-46-11a 12-46-11b |
धौम्यो विभाण्डो माण्डव्योधौम्रः कृष्णानुभौतिकः। उलूकः परमो विप्रो मार्कण्डेयो महामुनिः। भास्करिः पूरणः कृष्णः सूतः परमधार्मिकः।। | 12-46-12a 12-46-12b 12-46-12c |
एतैश्चान्यैर्मुनिगणैर्महाभागैर्महात्मभिः। श्रद्धादमशमोपेतैर्वृतश्चन्द्र इव ग्रहैः।। | 12-46-13a 12-46-13b |
भीष्मस्तु पुरुषव्याघ्रः कर्मणा मनसा गिरा। शरतल्पगतः कृष्णं प्रदध्यौ प्राञ्जलिः शुचिः।। | 12-46-14a 12-46-14b |
स्वरेण हृष्टपुष्टेन तुष्टाव मधुसूदनम्। योगेश्वरं पझनाभं विष्णुं जिष्णुं जगत्पतिम्। `अनादिनिधनं विष्णुमात्मयोनिं सनातनम्।।' | 12-46-15a 12-46-15b 12-46-15c |
कृताञ्जलिपुटो भूत्वा वाग्विदां प्रवरः प्रभुः।। भीष्मः परमधर्मात्मा वासुदेवमथास्तुवत्।। | 12-46-16a 12-46-16b |
भीष्म उवाच। | 12-46-17x |
आरिराधयिषुः कृष्णं वाचं जिगदिषामि याम्। तया व्याससमासिन्या प्रीयतां पुरुषोत्तमः।। | 12-46-17a 12-46-17b |
शुचिं शुचिपदं हंसं तत्परं परमेष्ठिनम्। युक्त्वा सर्वात्मनाऽऽत्मानं तं प्रपद्ये प्रजापतिम्।। | 12-46-18a 12-46-18b |
अनाद्यन्तं परं ब्रह्म न देवा नर्षयो विदुः। एकोऽयं वेद भगवान्धाता नारायणो हरिः।। | 12-46-19a 12-46-19b |
नारायणादृषिगणास्तथा सिद्धमहोरगाः। देवा देवर्षयश्चैव यं विदुर्दुःखभेषजम्।। | 12-46-20a 12-46-20b |
देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः। यं न जानन्ति को ह्येष कुतो वा भगवानिति।। | 12-46-21a 12-46-21b |
`यमाहुर्जगतः कोशं यस्मिंश्च निहिताः प्रजाः। यस्मिँल्लोकाः स्फुरन्त्येते जाले शकुनयो यथा।।' | 12-46-22a 12-46-22b |
यस्मिन्विश्वानि भूतानि तिष्ठन्ति च विशन्ति च। गुणभूतानि भूतेशे सूत्रे मणिगणा इव।। | 12-46-23a 12-46-23b |
`यं च विश्वस्य कर्तारं जगतस्तस्थुषां पतिम् वदन्ति जगतोऽध्यक्षमध्यात्मपरिचिन्तकाः।। ' | 12-46-24a 12-46-24b |
यस्मिन्नित्ये तते तन्तौ दृढे स्रगिव तिष्ठति। सदसद्ग्रथितं विश्वं विश्वाङ्गे विश्वकर्मणि।। | 12-46-25a 12-46-25b |
हरिं सहस्रशिरसं सहस्रचरणेक्षणम्। सहस्रबाहुमकुटं सहस्रवदनोज्ज्वलम्।। | 12-46-26a 12-46-26b |
प्राहुर्नारायणं देवं यं विश्वस्य परायणम्। अणीयसामणीयांसं स्थविष्ठं च स्थवीयसाम्। गरीयसां गरिष्ठं च श्रेष्ठं च श्रेयसामपि।। | 12-46-27a 12-46-27b 12-46-27c |
चं वाकेष्वनुवाकेषु निषत्सूपनिषत्सु च। गृणन्ति सत्यकर्माणं सत्यं सत्येषु सामसु।। | 12-46-28a 12-46-28b |
चतुर्भिश्चतुरात्मानं सत्वस्थं सात्वतां पतिम्। यं दिव्यैर्देवमर्चन्ति गुह्यैः परमनामभिः।। | 12-46-29a 12-46-29b |
[यस्मिन्नित्यं तपस्तप्तं यदङ्गेष्वनुतिष्ठति। सर्वात्मा सर्ववित्सर्वः सर्वज्ञः सर्वभावनः।। ] | 12-46-30a 12-46-30b |
यं देवं देवकी देवी वसुदेवादजीजनत्। भौमस्य ब्रह्मणो गुप्त्यै दीप्तमग्निमिवारणिः।। | 12-46-31a 12-46-31b |
यमनन्यो व्यपेताशीरात्मानं वीतकल्मषम्। इष्ट्वानन्त्याय गोविन्दं पश्यत्यात्मानमात्मनि।। | 12-46-32a 12-46-32b |
`अप्रतर्क्यमविज्ञेयं हरिं नारायणं विभुम्।' अतिवाय्विन्द्रकर्माणमतिसूर्याग्नितेजसम्। अतिबुद्धीन्द्रियात्मानं तं प्रपद्ये प्रजापतिम्।। | 12-46-33a 12-46-33b 12-46-33c |
पुराणे पुरुषं प्रोक्तं ब्रह्मप्रोक्तं युगादिषु। क्षये संकर्षणं प्रोक्तं तमुपास्यमुपास्महे।। | 12-46-34a 12-46-34b |
यमेकं बहुधात्मानं प्रादुर्भूतमधोक्षजम्। नान्यभक्ताः क्रियावन्तो यजन्ते सर्वकामदम्।। | 12-46-35a 12-46-35b |
ऋतमेकाक्षरं ब्रह्म यत्तत्सदसतः परम्। अनादिमध्यपर्यन्तं न देवा नर्षयो विदुः।। | 12-46-36a 12-46-36b |
यं सुरासुरगन्धर्वाः सिद्धा ऋषिमहोरगाः। प्रयता नित्यमर्चन्ति परमं सुखभेषजम्।। | 12-46-37a 12-46-37b |
अनादिनिधनं देवमात्मयोनिं सनातनम्। अप्रेक्ष्यमनभिज्ञेयं हरिं नारायणं प्रभुम्।। | 12-46-38a 12-46-38b |
अथ भीष्मस्तवराजः।। | 12-46-39x |
हिरण्यवर्णं यं गर्भमदितिर्दैत्यनाशनम्। एकं द्वादशधा जज्ञे तस्मै सूर्यात्मने नमः।। | 12-46-39a 12-46-39b |
शुक्ले देवान्पितॄन्कृष्णे तर्पयत्यमृतेन यः। यश्च राजा द्विजातीनां तस्मै सोमात्मने नमः।। | 12-46-40a 12-46-40b |
`हुताशनमुखैर्देवैर्धार्यते सकलं जगत्। हविः प्रथमभोक्ता यस्तस्मै होत्रात्मने नमः।। ' | 12-46-41a 12-46-41b |
महतस्तमसः पारे पुरुषं ह्यतितेजसम्। यं ज्ञात्वा मृत्युमत्येति तस्मै ज्ञेयात्मने नमः।। | 12-46-42a 12-46-42b |
यं बृहन्तं बृहत्युक्थे यमग्नौ यं महाध्वरे। यं विप्रसङ्घा गायन्ति तस्मै वेदात्मने नमः।। | 12-46-43a 12-46-43b |
पादाङ्गं संधिपर्वाणं स्वरव्यञ्जनभूषितम्। यमाहुरक्षरं विप्रास्तस्मै वागात्मने नमः।। | 12-46-44a 12-46-44b |
[यज्ञाङ्गो यो वराहो वै भूत्वा गामुज्जहारह। लोकत्रयहितार्थाय तस्मै वीर्यात्मने नमः।।] | 12-46-45a 12-46-45b |
ऋग्यजुःसामधामानं दशार्धहविराकृतिम्। यं सप्ततन्तुं तन्वन्ति तस्मै यज्ञात्मने नमः।। | 12-46-46a 12-46-46b |
[चतुर्भिश्च चतुर्भिश्च द्वाभ्यां पञ्चभिरेव च। हूयते च पुनर्द्वाभ्यां तस्मै होमात्मने नमः।।] | 12-46-47a 12-46-47b |
यः सुपर्णो यजुर्नाम च्छन्दोगात्रस्त्रिवृच्छिराः। रथन्तरबृहत्पक्षस्तस्मै स्तोत्रात्मने नमः।। | 12-46-48a 12-46-48b |
यः सहस्रसवे सत्रे जज्ञे विश्वसृजामृषिः। हिरण्यपक्षः शकुनिस्तस्मै तार्क्ष्यात्मने नमः।। | 12-46-49a 12-46-49b |
यश्चिनोति सतां सेतुमृतेनामृतयोनिना। धर्मार्थव्यवहाराङ्गैस्तस्मै सत्यात्मने नमः।। | 12-46-50a 12-46-50b |
यं पृथग्धर्मचरणाः पृथग्धर्मफलैषिणः। पृथग्धर्मैः समर्चन्ति तस्मै धर्मात्मने नमः।। | 12-46-51a 12-46-51b |
[यतः सर्वे प्रसूयन्ते ह्यनङ्गात्माङ्गदेहिनः। उन्मादः सर्वभूतानां तस्मै कामात्मने नमः।।] | 12-46-52a 12-46-52b |
यं तं व्यक्तस्थमव्यक्तं विचिन्वन्ति महर्षयः। क्षेत्रे क्षेत्रज्ञमासीनं तस्मै क्षेत्रात्मने नमः।। | 12-46-53a 12-46-53b |
यं दृगात्मानमात्मस्थं वृतं षोडशभिर्गुणैः। प्राहुः सप्तदशंसाङ्ख्यास्तस्मै साङ्ख्यात्मने नमः।। | 12-46-54a 12-46-54b |
यं विनिद्रा जितश्वासाः संतुष्टाः संयतेन्द्रियाः। ज्योतिः पश्यन्ति युञ्जानास्तस्मै योगात्मेन नमः।। | 12-46-55a 12-46-55b |
अपुण्यपुण्योपरमे यं पुनर्भवनिर्भयाः। शान्ताः संन्यासिनो यान्ति तस्मै मोक्षात्मने नमः।। | 12-46-56a 12-46-56b |
यस्याग्रिरास्यं द्यौर्मूर्धा खं नाभिश्चरणौ क्षितिः। सूर्यश्चक्षुर्दिशः श्रोत्रं तस्मै लोकात्मने नमः।। | 12-46-57a 12-46-57b |
युगेष्वावर्तते योंऽशैर्मासर्त्वयनहायनैः। सर्गप्रलययोः कर्ता तस्मै कालात्मने नमः।। | 12-46-58a 12-46-58b |
योऽसौ युगसहस्रान्ते प्रदीप्तार्चिर्विभावसुः। संभक्षयति भूतानि तस्मै घोरात्मने नमः।। | 12-46-59a 12-46-59b |
संभक्ष्य सर्वभूतानि कृत्वा चैकार्णवं जगत्। बालः स्वपिति यश्चैकस्तस्मै मायात्मने नमः।। | 12-46-60a 12-46-60b |
सहस्रशिरसे तस्मै पुरुषायामितात्मने। चतुःसमुद्रपयसि योगनिद्रात्मने नमः।। | 12-46-61a 12-46-61b |
अजस्य नाभावध्येकं यस्मिन्विश्वं प्रतिष्ठितम्। पुष्करं पुष्कराक्षस्य तस्मै पझात्मने नमः।। | 12-46-62a 12-46-62b |
यस्य केशेषु जीमूता नद्यः सर्वाङ्गसंधिषु। कुक्षौ समुद्राश्चत्वारस्तस्मै तोयात्मने नमः।। | 12-46-63a 12-46-63b |
यस्मात्सर्गाः प्रवर्तन्ते सर्गप्रलयविक्रियाः। यस्मिंश्चैव प्रलीयन्ते तस्मै हेत्वात्मने नमः।। | 12-46-64a 12-46-64b |
[यो निषण्णो भवेद्रात्रौ दिवा भवति विष्ठितः। इष्टानिष्टस्य च द्रष्टा तस्मै द्रष्ट्रात्मने नमः।।] | 12-46-65a 12-46-65b |
अकार्यः सर्वकार्येषु धर्मकार्यार्थमुद्यतः। वैकुण्ठस्य हि तद्रूपं तस्मै कार्यात्मने नमः।। | 12-46-66a 12-46-66b |
ब्रह्म वक्तं भुजौ क्षत्रं कृत्स्नमूरूदरं विशः। पादौ यस्याश्रिताः शूद्रास्तस्मैवर्णात्मने नमः।। | 12-46-67a 12-46-67b |
अन्नपानेन्धनमयो रसप्राणविवर्धनः। यो धारयति भूतानि तस्मै प्राणात्मने नमः।। | 12-46-68a 12-46-68b |
[प्राणानां धारणार्थाय योऽन्नं भुङ्क्ते चतुर्विधम्। अन्तर्भूतः पचत्यग्निस्तस्मै पाकात्मने नमः।। ] | 12-46-69a 12-46-69b |
विषये वर्तमानानां यं तं वैषयिकैर्गुणैः। प्राहुर्विषयगोप्तारं तस्मै गोप्त्रात्मने नमः।। | 12-46-70a 12-46-70b |
अप्रमेयशरीराय सर्वतो बुद्धिचक्षुषे। अपारपरिमाणाय तस्मै दिव्यात्मने नमः।। | 12-46-71a 12-46-71b |
परः कालात्परो यज्ञात्परः सदसतश्च यः। अनादिरादिर्विश्वस्य तस्मै विश्वात्मने नमः।। | 12-46-72a 12-46-72b |
वैद्युतो जाठरश्चैव पावकः शुचिरेव च। दहनः सर्वभक्षाणां तस्मै वह्न्यात्मने नमः।। | 12-46-73a 12-46-73b |
रसातलगतः श्रीमार्ननन्तो भगवान्प्रभुः। जगद्धारयते योऽसौ तस्मै शेषात्मने नमः।। | 12-46-74a 12-46-74b |
ज्वलनार्केन्दुताराणां ज्योतिषां दिव्यमूर्तिनाम्। यस्तेजयति तेजांसि तस्मै तेजात्मने नमः।। | 12-46-75a 12-46-75b |
आत्मज्ञानमिदं ज्ञानं ज्ञात्वा पञ्चस्ववस्थितम्। यं ज्ञानेनाधिगच्छन्ति तस्मै ज्ञानात्मने नमः।। | 12-46-76a 12-46-76b |
साङ्ख्यैर्योगैर्विनिश्चित्य साध्यैश्च परमर्षिभिः। यस्य तु ज्ञायते तत्वं तस्मै गुह्यात्मने नमः।। | 12-46-77a 12-46-77b |
जटिने दण्डिने नित्यं लम्बोदरशरीरिणे। कमण्डलुनिषङ्गाय तस्मै ब्रह्मात्मने नमः।। | 12-46-78a 12-46-78b |
[शूलिने त्रिदशेशाय त्र्यम्बकाय महात्मने। भस्मदिग्धोर्ध्वलिङ्गाय तस्मा रुद्रात्मने नमः।। | 12-46-79a 12-46-79b |
चन्द्रार्धकृतशीर्षाय व्यालयज्ञोपवीतिने। पिनाकशूलहस्ताय तस्मै उग्रात्मने नमः।।] | 12-46-80a 12-46-80b |
यो जातो वसुदेवेन देवक्यां यदुनन्दनः। शङ्खचक्रगदापाणिर्वासुदेवात्मने नमः।। | 12-46-81a 12-46-81b |
शिरःकपालमालाय व्याघ्रचर्मनिवासिने। भस्मदिग्धशरीराय तस्मै रुद्रात्मने नमः।। | 12-46-82a 12-46-82b |
यो मोहयति भूतानि सर्वपाशानुबन्धनैः। सर्वस्य रक्षणार्थाय तस्मै मोहात्मने नमः।। | 12-46-83a 12-46-83b |
चैतन्यं सर्वतो नित्यं सर्वप्राणिहृदि स्थितम्। सर्वातीततरं सूक्ष्मं तस्मै सूक्ष्मात्मने नमः।। | 12-46-84a 12-46-84b |
पञ्चभूतात्मभूताय भूतादिनिधनाय च। अक्रोधद्रोहमोहाय तस्मै शान्तात्मने नमः।। | 12-46-85a 12-46-85b |
यस्मिन्सर्वं यतः सर्वं यः सर्वं सर्वतश्च यः। यश्च सर्वमयो देवस्तस्मै सर्वात्मने नमः।। | 12-46-86a 12-46-86b |
यः शेते क्षीरपर्यङ्के दिव्यनागविभूषिते। फणासहस्ररचिते तस्मै निद्रात्मने नमः।। | 12-46-87a 12-46-87b |
विश्वे च मरुतश्चैव रुद्रादित्याश्विनावपि। वसवः सिद्धसाध्याश्च तस्मै देवात्मने नमः।। | 12-46-88a 12-46-88b |
अव्यक्तं बुद्ध्यहंकारो मनोबुद्धीन्द्रियाणि च। तन्मात्राणि विशेषाश्च तस्मै तत्वात्मने नमः।। | 12-46-89a 12-46-89b |
भूतं भव्यं भविष्यच्च भूतादिप्रभवाव्ययः। योऽग्रजः सर्वभूतानां तस्मै भूतात्मने नमः।। | 12-46-90a 12-46-90b |
यं हि सूक्ष्मं विचिन्वन्ति परं सूक्ष्मविदो जनाः। सूक्ष्मात्सूक्ष्मं च यद्ब्रह्म तस्मै सूक्ष्मात्मने नमः।। | 12-46-91a 12-46-91b |
मत्स्यो भूत्वा विरिञ्चाय येन वेदाः समाहृताः। रसातलगतः शीघ्रं तस्मै मत्स्यात्मने नमः।। | 12-46-92a 12-46-92b |
मन्दराद्रिर्धृतो येन प्राप्ते ह्यमृतमन्थने। अतिकर्कशदेहाय तस्मै कूर्मात्मने नमः।। | 12-46-93a 12-46-93b |
वाराहं रूपमास्थाय महीं सवनपर्वताम्। उद्धरत्येकदंष्ट्रेण तस्मै क्रोडात्मने नमः।। | 12-46-94a 12-46-94b |
नारसिंहवपुः कृत्वा सर्वलोकभयंकरम्। हिरण्यकशिपुं जघ्ने तस्मै सिंहात्मने नमः।। | 12-46-95a 12-46-95b |
पिङ्गेक्षणसटं यस्य रूपं दंष्ट्रानखैर्युतम्। दानवेन्द्रान्तकरणं तस्मै दृप्तात्मने नमः।। | 12-46-96a 12-46-96b |
यं न देवा न गन्धर्वा न दैत्या न च दानवाः। तत्वतो हि विजानन्ति तस्मै सूक्ष्मात्मने नमः।।] वामनं रूपमास्थाय बलिं संयम्य मायया। त्रैलोक्यं क्रान्तवान्यस्तु तस्मै क्रान्तात्मने नमः।। | 12-46-97a 12-46-97b 12-46-97c 12-46-97d |
जमदग्निसुतो भूत्वा रामः शस्त्रभृतां वरः। महीं निःक्षत्रियां चक्रे तस्मै रामात्मने नमः।। | 12-46-98a 12-46-98b |
त्रिःसप्तकृत्वो यश्चैको धर्मे व्युत्क्रान्तिगौरवात्। जघान क्षत्रियान्सङ्ख्ये तस्मै क्रोधात्मने नमः।। | 12-46-99a 12-46-99b |
[विभज्य पञ्चधाऽऽत्मानं वायुर्भूत्वा शरीरगः। यश्चेष्टयति भूतानि तस्मै वाय्वात्मने नमः।।] | 12-46-100a 12-46-100b |
रामो दशिरथिर्भूत्वा पुलस्त्यकुलनन्दनम्। जघान रावणं सङ्ख्ये तस्मै क्षत्रात्मने नमः।। | 12-46-101a 12-46-101b |
यो हली मुसली श्रीमान्नीलाम्बरधरः स्थितः। रामाय रौहिणेयाय तस्मै भोगात्मने नमः।। | 12-46-102a 12-46-102b |
शङ्खिने चक्रिणे नित्यं शार्ङ्गिणे पीतवाससे। वनमालाधरायैव तस्मै कृष्णात्मने नमः।। | 12-46-103a 12-46-103b |
वसुदेवसुतः श्रीमान्क्रीडितो नन्दगोकुले। कंसस्य निधनार्थाय तस्मै क्रीडात्मने नमः।। | 12-46-104a 12-46-104b |
वासुदेवत्वमागम्य यदोर्वंशसमुद्भवः। भूभारहरणं चक्रे तस्मै कृष्णात्मने नमः।। | 12-46-105a 12-46-105b |
सारथ्यमर्जुनस्याजौ कुर्वन्गीतामृतं ददौ। लोकत्रयोपकाराय तस्मै ब्रह्मात्मने नमः।। | 12-46-106a 12-46-106b |
दानवांस्तु वशे कृत्वा पुनर्बुद्धत्वमागतः। सर्गस्य रक्षणार्थाय तस्मै बुद्धात्मने नमः।। | 12-46-107a 12-46-107b |
हनिष्यति कलौ प्राप्ते म्लेच्छांस्तुरगवाहनः। धर्मसंस्थापको यस्तु तस्मै कल्क्यात्मने नमः।। | 12-46-108a 12-46-108b |
तारान्वये कालनेमिं हत्वा दानवपुङ्गवम्। ददौ राज्यं महेन्द्राय तस्मै साङ्ख्यात्मने नमः।। | 12-46-109a 12-46-109b |
यः सर्वप्राणिनां देहे साक्षिभूतो ह्यवस्थितः। अक्षरः क्षरमाणानां तस्मै साक्ष्यात्मने नमः।। | 12-46-110a 12-46-110b |
नमोस्तु ते महादेव नमस्ते भक्तवत्सल। सुब्रह्मण्य नमस्तेऽस्तु प्रसीद परमेश्वर।। | 12-46-111a 12-46-111b |
अव्यक्तव्यक्तरूपेण व्याप्तं सर्वं त्वया विभो। नारायणं सहस्राक्षं सर्वलोकमहेश्वरम्।। | 12-46-112a 12-46-112b |
हिरण्यनाभ यज्ञाङ्गममृतं विश्वतोमुखम्। सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम्।। | 12-46-113a 12-46-113b |
येषां हृदिस्थो देवेशो मङ्गलायतनं हरिः। मङ्गल भगवान्विष्णुर्मङ्गलं मधुसूदनः।। | 12-46-114a 12-46-114b |
मङ्गलं पुण्डरीकाक्षो मङ्गलं गरुडध्वजः। विश्वकर्मन्नमस्तेऽस्तु विश्वात्मन्विश्वसंभव।। | 12-46-115a 12-46-115b |
अपवर्गस्थभूतानां पञ्चानां परमास्थित। नमस्ते त्रिषु लोकेषु वमस्ते परतस्त्रिषु।। | 12-46-116a 12-46-116b |
नमस्ते दिक्षु सर्वासु त्वं हि सर्वपरायणम्। नमस्ते भगवन्विष्णो त्येकानां प्रभवाव्यय।। | 12-46-117a 12-46-117b |
त्वं हि कर्ता हृषीकेशः संहर्ता चापराजितः। तेन पश्यामि ते दिव्यान्भावान्हि त्रिषुवर्त्मसु।। | 12-46-118a 12-46-118b |
तच्च पश्यामि तत्वेन यत्ते रूपं सनातनम्। दिवं ते शिरसा व्याप्तं पद्भ्यां देवी वसुंधरा। विक्रमेण त्रयो लोकाः पुरुषोऽसि सनातनः।। | 12-46-119a 12-46-119b 12-46-119c |
[दिशो भुजा रविश्चक्षुर्वीर्ये शुक्रः प्रतिष्ठितः। सप्तमार्गा निरुद्धास्ते वायोरमिततेजसः।।] | 12-46-120a 12-46-120b |
व्यक्ताव्यक्तस्वरूपेण व्याप्तं सर्वं त्वया विभो। अव्यक्तं ब्राह्मणं रूपं व्यक्तमेतच्चराचरम्।। | 12-46-121a 12-46-121b |
अतसीपुष्पसंकाशं पीतवाससमच्युतम्। ये नमस्यन्ति गोविन्दं न तेषां विद्यते भयम्।। | 12-46-122a 12-46-122b |
[एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः। दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय।। | 12-46-123a 12-46-123b 12-46-123c 12-46-123d |
कृष्णव्रताः कृष्णमनुस्मरन्तो रात्रौ च कृष्णं पुनरुत्थिता ये। ते कृष्णदेहाः प्रविशन्ति कृष्ण माज्यं यथा मन्त्रहुतं हुताशे।। | 12-46-124a 12-46-124b 12-46-124c 12-46-124d |
नमो नरकसंत्रासरक्षामण्डलकारिणे। संसारनिम्नगावर्ततरिकाष्ठाय विष्णवे।। | 12-46-125a 12-46-125b |
नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च। जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमोनमः।। | 12-46-126a 12-46-126b |
प्राणकान्तारपाथेयं संसारोच्छेदभेषजम्। दुःखशोकपरित्राणं हरिरित्यक्षरद्वयम्।।] | 12-46-127a 12-46-127b |
नारायणपरं ब्रह्म नारायणपरं तपः। नारायणपरं सत्यं नारायणपरं परम्।। | 12-46-128a 12-46-128b |
यथा विष्णुमयं सत्यं यथा विष्णुमयं हविः। तथा विष्णुमयं सर्वं पाप्मा ने नश्यतां तथा।। | 12-46-129a 12-46-129b |
तस्य यज्ञवराहस्य विष्णोरमिततेजसः। प्रणामं येऽपि कुर्वन्ति तेषामपि नमोनमः।। | 12-46-130a 12-46-130b |
त्वां प्रपन्नाय भक्ताय गतिमिष्टां जिगीषवे। यच्छ्रेयः पुण्डरीकाक्ष तद्ध्यायस्व सुरोत्तम।। | 12-46-131a 12-46-131b |
इति विद्यातपोयोनिरयोनिर्विष्णुरीडितः। वाग्यज्ञेनार्चितो देवः प्रीयतां मे जनार्दनः।। | 12-46-132a 12-46-132b |
वैशंपायन उवाच। | 12-46-133x |
एतावदुक्त्वा वचनं भीष्मस्तद्रतमानसः। नम इत्येव कृष्णाय प्रणाममकरोत्तदा।। | 12-46-133a 12-46-133b |
तस्मिन्नुपरते वाक्ये ततस्ते ब्रह्मवादिनः। भीष्मं वाग्भिर्वाष्पगलास्तमानर्चुर्महाद्युतिम्।। | 12-46-134a 12-46-134b |
तेऽस्तुवन्तश्च विप्रेन्द्राः केशवं पुरुषोत्तमम्। भीष्मं च शनकैः सर्वे प्रशशंसुः पुनः पुनः।। | 12-46-135a 12-46-135b |
अधिगम्य तु योगेन भक्तिं भीष्मस्य माधवः। त्रैलोक्यदर्शनं ज्ञानं दिव्यं दत्त्वा ययौ हरिः।। | 12-46-136a 12-46-136b |
विदित्वा भक्तियोगं तं भीष्मस्य पुरुषोत्तमः। सहसोत्थाय तं हृष्टो यानमेवान्वपद्यत।। | 12-46-137a 12-46-137b |
केशवः सात्यकिश्चैव रथेनकेन जग्मतुः। अपरेण महात्मानौ युधिष्ठिरधनञ्जयौ।। | 12-46-138a 12-46-138b |
भीमसेनो यमौ चोभौ रथमेकं समास्थिताः। कृपो युयुत्सुः सूतश्च सञ्जयश्चापरं रथम्।। | 12-46-139a 12-46-139b |
ते रथैर्नगराकारैः प्रयाताः पुरुषर्षभाः। नेमिघोषेण महता कम्पयन्ते वसुंधराम्।। | 12-46-140a 12-46-140b |
ततो गिरः पुरुषवरस्तवेरितां द्विजेरिताः पथिषु मनाक् स शुश्रुवे। कृताञ्जलिं प्रणतमथापरं जनं स केशिहा मुदितमनास्थनन्दत।। | 12-46-141a 12-46-141b 12-46-141c 12-46-141d |
इति स्मरन्पठति च शार्ङ्गधन्वनः शृणोतु वा यदुकुलनन्दनस्तवम्। स चक्रभृत्प्रतिहतसर्वाकिल्विषो जनार्दनं प्रविशति देहसंक्षये।। | 12-46-142a 12-46-142b 12-46-142c 12-46-142d |
यं योगिनः प्राणवियोगकाले यत्नेन चित्ते विनिवेशयन्ति। स तं पुरस्ताद्धरिमीक्षमाणः प्राणाञ्जहौ प्राप्तफलो हि भीष्मः।। | 12-46-143a 12-46-143b 12-46-143c 12-46-143d |
स्ववराजः समाप्तोऽयं विष्णोरद्भुतकर्मणः। गाङ्गेयेन पुरा गीतो महापातकनाशनः।। | 12-46-144a 12-46-144b |
इमं नरः स्तवराजं मुमुक्षुः पठञ्शुचिः कलुषितकल्मषापहम्। अतीत्य लोकान्मलिनः समामता न्पदं स गच्छत्यमृतं महात्मनः।। | 12-46-145a 12-46-145b 12-46-145c 12-46-145d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि षट्चत्वारिंशोऽध्यायः।। |
12-46-17 जिगदिषामि वक्तुमिच्छामि। व्याससमासिन्या विस्तरसंक्षेपवत्या।। 12-46-25 सदसत्कार्यं कारणं च विश्वं कर्म यस्मात्।। 12-46-28 वाकेषु मन्त्रेषु सामान्यतः कर्मप्रकाशकेषु। अनुवाकेषु मन्त्रार्थविवरणभूतेषु ब्राह्मणवाक्येषु। निषत्सु कर्माङ्गाद्यवबद्धदेवतादिज्ञानवाक्येषु। उपनिषत्सु केवलात्मज्ञापकवाक्येषु गृणन्ति ध्यायन्ति। सत्यमबाधितम्। सत्येष्वबाधितार्थेषु। सामसु ज्येष्ठसामादिषु।। 12-46-29 चतुर्भिर्नामभिर्वासुदेवसकर्षणप्रद्युम्रानिरुद्धरूपैः।। 12-46-30 नित्यं तपः स्वधर्मस्तद्यस्मिन्। यत्प्रीत्यर्थं तप्तं सद्यद्यस्मादङ्गेषु चित्तेष्वनुतिष्ठति उपतिष्ठति यश्च सर्वात्मा तं प्रपद्ये इति सर्वेषां यच्छब्दसंबद्धानां प्रथमेनान्वयः। ईश्वलरार्थमनुष्ठितो धर्मः स्वचित्तशुद्धिद्वारास्वार्थएव भवतीति भावः।। 12-46-31 भौमं ब्रह्म वेदा ब्राह्मणा यज्ञाश्च।। 12-46-32 आत्मानं सर्वेश्वरमात्मनि हार्दाकाशे इष्ट्वा योगेन पश्यति। आनन्त्याय मोक्षाय।। 12-46-34 पुराणे अतीतकल्पादिविषये। पुरुषं पूर्णं सर्वमस्मिन्नतीतमस्त्येवेति योगात्पुरुष इति नाम। युगादिषु युगारम्भेषु। बृंहकत्वात्सृष्टेरेनं ब्रह्मेत्याहुः। क्षये सर्वस्य सम्यक्वर्षणादयं संकर्षण इत्युक्तः।। 12-46-35 नान्यभक्ता अनन्यभक्ताः।। 12-46-39 हिरण्यगर्भमिति ड. थ. पाठः। जज्ञे जनयामास।। 12-46-43 उक्थे बह्वृचाः। अग्नौ चयनेऽध्वर्यवः।। 12-46-47 चतुर्भिरिति। आश्रावयेति चतुरक्षरं अस्तु श्रौषिडिति चतुरक्षरं यजेति द्व्यक्षरं ये यजामहे इति पञ्चाक्षरं द्व्यक्षरो वषट्कार इति सप्तदशभिरक्षरैर्यो हूयते तस्मै होमात्मने नमः।। 12-46-49 यः सहस्रसमे सत्र इति झ. पाठः। तत्र सहस्रसमे सहस्रसं वत्सरे सत्रे इत्यर्थः।। 12-46-54 यं त्रिधात्मानमिति झ.पाठः।।
शांतिपर्व-045 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-047 |