महाभारतम्-12-शांतिपर्व-049
दिखावट
← शांतिपर्व-048 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-049 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-050 → |
कृष्णेन भीष्मप्रशंसनपूर्वकं तंप्रति युधिष्ठिराय धर्मोपदेशचोदना।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-49-1x |
ततो रामस्य तत्कर्म श्रुत्वा राजा युधिष्ठिरः। विस्मयं परमं गत्वा प्रत्युवाच जनार्दनम्।। | 12-49-1a 12-49-1b |
अहो रामस्य वार्ष्णेय शक्रस्येव महात्मनः। विक्रमो वसुधा येन क्रोधान्निःक्षत्रिया कृता।। | 12-49-2a 12-49-2b |
गोभिः समुद्रेण तथा गोलाङ्गूलर्क्षवानरैः। गुप्ता रामभयोद्विग्नाः क्षत्रियाणां कुलोद्वहाः।। | 12-49-3a 12-49-3b |
अहो धन्यो नृलोकोऽयं समाग्याश्च नरा भुवि। यत्र कर्मेदृशं धर्म्यं द्विजाग्र्यैः कृतमच्युत।। | 12-49-4a 12-49-4b |
कथयन्तौ कथां तात तावच्युतयुधिष्ठिरौ। जग्मतुर्यत्र गाङ्गेयः शरतल्पगतः प्रभुः।। | 12-49-5a 12-49-5b |
ततस्ते ददृशुर्भीष्मं शरप्रस्तरशायिनम्। स्वरश्मिमालासंवीतं सायंसूर्यसमप्रभम्।। | 12-49-6a 12-49-6b |
उपास्यमानं मुनिभिर्देवैरिव शतक्रतुम्। देशे परमधर्मिष्ठे नदीमोघवतीमनु।। | 12-49-7a 12-49-7b |
दूरादेव तमालोक्य कृष्णो राजा च धर्मजः। चत्वारः पाण्डवाश्चैव ते च शारद्वतादयः।। | 12-49-8a 12-49-8b |
अवम्कन्द्याथ वाहेभ्यः संयम्य प्रचलं मनः। एकीकृत्येन्द्रियग्राममुपतम्थुर्महामुनीन्।। | 12-49-9a 12-49-9b |
अभिवाद्य तु गोविन्दः सात्यकिस्ते च पार्थिवाः। व्यासादीस्तानृपीन्पश्चाद्गाङ्गेयमुपतस्थिरे।। | 12-49-10a 12-49-10b |
तपोवृद्धि ततः पृष्ट्वा गाङ्गेयं यदुपुङ्गवः। परिवार्य ततः सर्वे निपेदुः पुरुषर्षभाः।। | 12-49-11a 12-49-11b |
ततो निशाम्य गाङ्गेयं शाम्यमानमिवानलम्। किंचिद्दीनमना भीष्ममितिहोवाच केशवः।। | 12-49-12a 12-49-12b |
कच्चिज्ज्ञानानि सर्वाणि प्रसन्नानि यथापुरम्। कच्चिन्न व्याकुला चैव बुद्धिस्ते वदतां वर।। | 12-49-13a 12-49-13b |
शराभिघातदुःखार्तं कच्चिद्गात्रं न दूयते। मानसादपि दुःखाद्धि शारीरं बलवत्तरम्।। | 12-49-14a 12-49-14b |
वरदानात्पितुः कामं छन्दमृत्युरसि प्रभो। शन्तनोर्धर्मनित्यस्य न त्वेतदिह कारणम्।। | 12-49-15a 12-49-15b |
सुमूक्ष्मोऽपि तु देहे वै शल्यो जनयते रुजम्। किंपुनः शरसंघातैश्चितस्य तव पार्थिव।। | 12-49-16a 12-49-16b |
कामं नैतत्तवाख्येयं प्राणिनां प्रभवाप्ययौ। भवानुपदिशेच्छ्रेयो देवानामपि भारत।। | 12-49-17a 12-49-17b |
यच्च भूतं भविष्यं च भवच्च पुरुषर्षभ। सर्वं तज्ज्ञानवृद्धस्य तव पाणाविवाहितम्।। | 12-49-18a 12-49-18b |
संसारस्येह भूतानां धर्मस्य च फलोदयः। विदितस्ते महाप्राज्ञ त्वं हि धर्ममयो निधिः।। | 12-49-19a 12-49-19b |
त्व, हि राज्ये स्थितं स्फीते समग्राङ्गमरोगिणम्। स्त्रीसहस्रैः परिवृतं पश्यामीवोर्ध्वरेतसम्।। | 12-49-20a 12-49-20b |
ऋते शान्तनवाद्भीष्मात्रिषु लोकेषु पार्थिवम्। सत्यधर्मान्महावीर्याच्छूराद्धर्मैकतत्परात्।। | 12-49-21a 12-49-21b |
मृत्युमावार्य तपसा शरसंस्तरशायिनः। त्रिवर्गप्रभवं कंचिन्न च तातानुशुश्रुम।। | 12-49-22a 12-49-22b |
सत्ये तपसि दाने च यज्ञाधिकरणे तथा। धनुर्वेदे च वेदे च नित्यं चैवान्ववेक्षणे।। | 12-49-23a 12-49-23b |
अनृशंसं शुचिं दान्तं सर्वभूतहिते रतम्। महारथं त्वत्सदृशं न कंचिदनुशुश्रुम।। | 12-49-24a 12-49-24b |
त्वं हि देवान्सगन्धर्वानसुरान्यक्षराक्षसान्। शक्तस्त्वेकरथेनैव विजेतुं नात्र संशयः।। | 12-49-25a 12-49-25b |
स त्वं भीष्म महाबाहो वसूनां वासवोपमः। नित्यं विप्रैः समाख्यातो नवमोऽनवमो गुणैः।। | 12-49-26a 12-49-26b |
अहं च त्वाऽभिजानामि स्वयं पुरुषसत्तम। त्रिदशेष्वपि विख्यातस्त्वं शक्त्या पुरुषोत्तमः।। | 12-49-27a 12-49-27b |
मनुष्येषु मनुष्येन्द्र न दृष्टो न च मे श्रुतः। भवतो हि गुणैस्तुल्यः पृथिव्यां पुरुषः क्वचित्।। | 12-49-28a 12-49-28b |
त्वं हि सर्वगुणै राजन्देवानप्यतिरिच्यसे।। | 12-49-29a |
तपसा हि भवाञ्शक्तः स्रष्टुं लोकांश्चराचरान्। किंपुनश्चात्मनो लोकानुत्तमानुत्तमैर्गुणैः।। | 12-49-30a 12-49-30b |
तदस्य तप्यमानस्य ज्ञातीनां संक्षयेन वै। ज्येष्ठस्य पाण्डुपुत्रस्य शोकं भीष्म व्यपानुद।। | 12-49-31a 12-49-31b |
ये हि धर्माः समाख्याताश्चातुर्वर्ण्यस्य भारत। चातुराश्रम्यसंयुक्ताः सर्वे ते विदितास्तव।। | 12-49-32a 12-49-32b |
चातुर्विद्ये च ये प्रोक्ताश्चातुर्होत्रे च भारत। योगे साङ्ख्ये च नियता ये च धर्माः सनातनाः।। | 12-49-33a 12-49-33b |
चातुर्वर्ण्यस्य यश्चोक्तो धर्मो न स्म विरुध्यते। सेव्यमानः सवैयाख्यो गाङ्गेय विदितस्तव।। | 12-49-34a 12-49-34b |
प्रतिलोमप्रसूतानां म्लेच्छानां चैव यः स्मृतः। देशजातिकुलानां च जानीषे धर्मलक्षणम्। | 12-49-35a 12-49-35b |
वेदोक्तो यश्च शिष्टोक्तः सदैव विदितस्तव। `प्रवृत्तश्च निवृत्तश्च स चापि विदितस्तव।।' | 12-49-36a 12-49-36b |
इतिहासपुराणार्थाः कार्त्स्न्येन विदितास्तव। धर्मशास्त्रं च सकलं नित्यं मनसि ते स्थितम्।। | 12-49-37a 12-49-37b |
ये च केचन लोकेऽस्मिन्नर्थाः संशयकारकाः। तेषां छेत्ता नास्ति लोके त्वदन्यः पुरुषर्षभः।। | 12-49-38a 12-49-38b |
स पाण्डवेयस्य मनःसमुत्थितं नरेन्द्र शोकं व्यपकर्ष मेधया। भवद्विधा ह्युत्तमबुद्धिर्विस्तरा विमुह्यमानस्य जनस्य शान्तये।। | 12-49-39a 12-49-39b 12-49-39c 12-49-39d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि एकोनपञ्चाशोऽध्यायः।। 49।। |
12-49-1 अवस्कन्द्यावरुह्य वाहेभ्यः।। 12-49-11 यदुपुंगवो निपसादेति शेषः। ततो वृद्धं तथा दृष्ट्वा गाङ्गेयं यदुकौरवाः इति झ. पाठः।। 12-49-12 निशाम्य आलोच्य।। 12-49-15 छन्दमृत्युः इच्छामरणः। नत्वेतदिह कारणमिति ट. ड. थ. पाठः।। 12-49-20 नहि राज्ये स्थितमिति ट.ड. पाठः।। 12-49-21 भीष्मादृते मृत्युमावार्य स्थितं कमपि न शुश्रुमेति द्वयोः संबन्धः।। 12-49-26 वसूनामष्टानामंशेर्घटितो नवमः गुणैरनवमश्च।।
शांतिपर्व-048 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-050 |