महाभारतम्-12-शांतिपर्व-280
पठन सेटिंग्स
← शांतिपर्व-279 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-280 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-281 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति मोक्षोपायप्रतिपादनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-280-1x |
मोक्षः पितामहेनोक्त उपायान्नानुपायतः। तमुपायं यथान्यायं श्रोतुमिच्छामि भारत।। | 12-280-1a 12-280-1b |
भीष्म उवाच। | 12-280-2x |
त्वय्येवैतन्महाप्राज्ञ युक्तं निपुणदर्शनम्। यदुपायेन सर्वार्थं नित्यं मृगयसेऽनघ।। | 12-280-2a 12-280-2b |
करणे घटस्य या बुद्धिर्घटोत्पत्तौ न सा मता। एवं धर्माभ्यपायेषु नान्यद्धर्मेषु कारणम्।। | 12-280-3a 12-280-3b |
पूर्वे समुद्रे यः पन्थाः स न गच्छति पश्चिमम्। एकः पन्था हि मोक्षस्य तन्मे विस्तरतः शृणु।। | 12-280-4a 12-280-4b |
क्षमया क्रोधमुच्छिन्द्यात्कामं संकल्पवर्जनात्। सत्वसंसेवानद्धीरो निद्रामुच्छेत्तुमर्हति।। | 12-280-5a 12-280-5b |
अप्रमादाद्भयं रक्षेच्छ्वासं क्षेत्रज्ञशीलनात्। इच्छां द्वेषं च कामं च धैर्येण विनिवर्तयेत्।। | 12-280-6a 12-280-6b |
भ्रमं संमोहमावर्तमभ्यासाद्विनिवर्तयेत्। निद्रां चाप्रतिभां चैव ज्ञानाभ्यासेन तत्त्ववित्।। | 12-280-7a 12-280-7b |
उपद्रवांस्तथा रोगान्हितजीर्णमिताशनात्। लोभं मोहं च संतोषाद्विषयांस्तत्त्वदर्शनात्।। | 12-280-8a 12-280-8b |
अनुक्रोशादधर्मं च जयेद्धर्ममवेक्षया। आयत्या च जयेदाशामर्थं सङ्गविवर्जनात्।। | 12-280-9a 12-280-9b |
अनित्यत्वेन च स्नेहं क्षुधं योगेन पण्डितः। कारुण्येनात्मनो मानं तृष्णां च परितोषतः।। | 12-280-10a 12-280-10b |
उत्थानेन जयेत्तन्द्रीं वितर्कं निश्चयाज्जयेत्। मौनेन बहुभाषां च शौर्येण च भयं जयेत्।। | 12-280-11a 12-280-11b |
यच्छेद्वाङ्भनसी बुद्ध्या तां यच्छेज्ज्ञानचक्षुषा। ज्ञानमात्मा महान्यच्छेत्तं यच्छेज्ज्ञानमात्मनः।। | 12-280-12a 12-280-12b |
तदेतदुपशान्तेन बोद्धव्यं शुचिकर्मणा। योगदोषान्समुच्छिद्यात्पञ्च यान्कवयो विदुः।। | 12-280-13a 12-280-13b |
कामं क्रोधं च लोभं च भयं स्वप्नं च पञ्चमम्। परित्यज्य निषेवेत तथेमान्योगसाधनान्।। | 12-280-14a 12-280-14b |
ध्यानमध्ययनं दानं सत्यं ह्रीरार्जवं क्षमा। शौचमाहारतः शुद्धिरिन्द्रियाणां च संयमः।। | 12-280-15a 12-280-15b |
एतैर्विवर्धते तेजः पाप्मानमपहन्ति च। सिध्यन्ति चास्य संकल्पा विज्ञानं च प्रवर्तते।। | 12-280-16a 12-280-16b |
धूतपापः स तेजस्वी लध्वाहारो जितेन्द्रियः। कामक्रोधौ वशे कृत्वा निनीषेद्ब्रह्मणः पदम्।। | 12-280-17a 12-280-17b |
अमूढत्वमसङ्गित्वं कामक्रोधविवर्जनम्। अदैन्यमनुदीर्णत्वमनुद्वेगो व्यवस्थितिः।। | 12-280-18a 12-280-18b |
एष मार्गो हि मोक्षस्य प्रसन्नो विमलः शुचिः। तथा वाक्कायमनसां नियमः कामतोऽन्यथा।। | 12-280-19a 12-280-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि अशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 280।। |
12-280-9 अयेद्धर्ममुपेक्षयेति ट. थ. ध. पाठः।। 12-280-12 ज्ञानमात्मावबोधेन यच्छेदात्मानमात्मनेति झ. पाठः।।
शांतिपर्व-279 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-281 |