महाभारतम्-12-शांतिपर्व-160
पठन सेटिंग्स
← शांतिपर्व-159 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-160 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-161 → |
भीष्मेण सत्यप्रशंसनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-160-1x |
सत्यं धर्मं प्रशंसन्ति विप्रर्षिपितृदेवताः। सत्यमिच्छाम्यहं ज्ञातुं तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 12-160-1a 12-160-1b |
सत्यं किंलक्षणं राजन्कथं वा तदवाप्यते। सत्यं प्राप्य भवेत्किंच कथं चैव तदुच्यताम्।। | 12-160-2a 12-160-2b |
भीष्म उवाच। | 12-160-3x |
चातुर्वर्ण्यस्य धर्माणां संकरो न प्रशस्यते। धर्मः साधारणः सत्यं सर्ववर्णेषु भारत।। | 12-160-3a 12-160-3b |
सत्यं सत्सु सदा धर्मः सत्यं धर्मः सनातनः। सत्यमेव नमस्येत सत्यं हि परमा गतिः।। | 12-160-4a 12-160-4b |
सत्यं धर्मस्तपोयोगः सत्यं ब्रह्म सनातनम्। सत्यं यज्ञः परः प्रोक्तः सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्।। | 12-160-5a 12-160-5b |
रूपं यदिह सत्यस्य यथावदनुपूर्वशः। लक्षणं च प्रवक्ष्यामि सत्यस्येह पराक्रमम्।। | 12-160-6a 12-160-6b |
प्राप्यते च यथा सत्यं तच्च वेत्तुमिहार्हसि। सत्यं त्रयोदशावधं सर्वलोकेषु भारत।। | 12-160-7a 12-160-7b |
सत्यं च समता चैव दमश्चैव न संशयः। अमात्सर्यं क्षमा चैव ह्रीस्तितिक्षाऽनसूयता।। | 12-160-8a 12-160-8b |
त्यागो ध्यानमथार्यत्वं धृतिश्च सततं दया। अहिंसा चैव राजेन्द्र सत्याकारास्त्रयोदश।। | 12-160-9a 12-160-9b |
सत्यं नामाव्ययं नित्यमविकारि तथैव च। सर्वधर्माविरुद्धं च योगेनैतदवाप्यते।। | 12-160-10a 12-160-10b |
आत्मनीष्टे तथाऽनिष्टे रिपौ च समता तथा। इच्छाद्वेषं क्षयं प्राप्य कामक्रोधक्षयं तथा।। | 12-160-11a 12-160-11b |
दमी नान्यस्पृहा नित्यं गाम्भीर्यं धैर्यमेव च। अशाठ्यं क्रोधदमनं ज्ञानेनैतदवाप्यते।। | 12-160-12a 12-160-12b |
अमात्सर्यं बुधाः प्राहुर्दाने धर्मे च संयमः। अवस्थितेन नित्यं च सत्येनामत्सरी भवेत्।। | 12-160-13a 12-160-13b |
अक्षमायाः क्षमायाश्च प्रियाणीहाप्रियाणि च। क्षमते स तः साधुस्ततः प्राप्नोति सत्यताम्।। | 12-160-14a 12-160-14b |
कल्याणं रुते बाढं धीमान्न ग्लायते क्वचित्। प्रशान्तवाङ्भना नित्यं ह्रीस्तु धर्मादवाप्यते।। | 12-160-15a 12-160-15b |
धर्मार्थहेतोः क्षमते तितिक्षा धर्म उत्तमः। लोकसंग्रहणार्थं वै सा तु धैर्येण लभ्यते।। | 12-160-16a 12-160-16b |
`अनसूया तु गाम्भीर्यं दानेनैतदवाप्यते।' त्यक्तस्नेहस्य यस्त्यागो विषयाणां तथैव च। रागद्वेषप्रहीणस्य त्यागो भवति नान्यथा।। | 12-160-17a 12-160-17b 12-160-17c |
`ध्यानं च शाठ्यमित्युक्तं मौनेनैतदवाप्यते।' आर्यता नाम भूतानां यः करोति प्रयत्नतः। शुभं कर्म निराकारो वीतरागस्तथैव च।। | 12-160-18a 12-160-18b 12-160-18c |
धृतिर्नाम सुखे दुःखे यया नाप्नोति विक्रियाम्।। तां भजेत सदा प्राज्ञो य इच्छेद्भूतिमात्मनः।। | 12-160-19a 12-160-19b |
सर्वथा क्षमिणा भाव्यं तथा सत्यपरेण च। वीतहर्षभयक्रोधो धृतिमाप्नोति पण्डितः।। | 12-160-20a 12-160-20b |
अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा। अनुग्रहश्च दानं च सतां धर्मः सनातनः।। | 12-160-21a 12-160-21b |
एते त्रयोदशाकाराः पृथक्सत्यैकलक्षणाः। भजन्ते सत्यमेवेह बृंहयन्ते च भारत।। | 12-160-22a 12-160-22b |
नान्तः शक्यो गुणानां च वक्तुं सत्यस्य पार्थिव। अतः सत्यं प्रशंसन्ति विप्राः सपितृदेवताः।। | 12-160-23a 12-160-23b |
नास्ति सत्यात्परो धर्मो नानृतात्पातकं परम्। स्थितिर्हि सत्यं धर्मस्य तस्मात्सत्यं न लोपयेत्।। | 12-160-24a 12-160-24b |
उपैति सत्याद्दानं हि तथा यज्ञाः सदक्षिणाः। त्रेताग्निहोत्रं वेदाश्च ये चान्ये धर्मनिश्चयाः।। | 12-160-25a 12-160-25b |
अश्वमेधसहस्त्रं च सत्यं च तुलया धृतम्। अश्वमेधसहस्राद्धि सत्यमेव विशिष्यते।। | 12-160-26a 12-160-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि आपद्धर्मपर्वणि षष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः।। 160।। |
12-160-14 अक्षमाया विषये तथा क्षमाया इति दृष्टान्तार्थम्।।
शांतिपर्व-159 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-161 |