महाभारतम्-12-शांतिपर्व-363
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महापद्मपुरवासिना विप्रेणातिथिप्रति सत्कारपूर्वकं पश्नारम्भः।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-363-1x |
आसीत्किल नरश्रेष्ठ महापद्मे पुरोत्तमे। गङ्गाया दक्षिणे तीरे कश्चिद्विप्रः समाहितः।। | 12-363-1a 12-363-1b |
सौम्यः सोमान्वये जातो जितात्मा गोत्रतो भृगुः। धर्मनित्यो जितक्रोधो नित्यतप्तो जितेन्द्रियः।। | 12-363-2a 12-363-2b |
तपःस्वाध्यायनिरतः सत्यः सज्जनसंमतः। न्यायप्राप्तेन वित्तेन स्वेन शीलेन चान्वितः।। | 12-363-3a 12-363-3b |
ज्ञाति संबन्धिविपुले पुत्रपौत्रप्रतिष्ठिते। कुले महति विख्याते विशिष्टां वृत्तिमास्थितः।। | 12-363-4a 12-363-4b |
स पुत्रान्बहुलाँल्लब्ध्वा विपुले कर्मणि स्थितः। कुलधर्माश्रितो राजन्धरर्मचर्यास्थितोऽभवत्।। | 12-363-5a 12-363-5b |
ततः स धर्मं वेदोक्तं तथा शास्त्राक्तमेव च। शिष्टाचीर्णं च धर्मं च त्रिविधं चिन्त्य चेतसा।। | 12-363-6a 12-363-6b |
किंनु मे स्याच्छुभं कृत्वा किं कृतं किं परायणम्। इत्येवं चिन्तयन्नित्यं न च याति विनिश्चयम्।। | 12-363-7a 12-363-7b |
तस्यैवं चिन्त्यमानस्य धर्मं परममास्थितः। कदाचिदतिथिः प्राप्तो ब्राह्मणः सुसमाहितः।। | 12-363-8a 12-363-8b |
स तस्मै सत्क्रियां चक्रे क्रियायुक्तेन हेतुना। विश्रान्तं सुसमासीनमिदं वचनमब्रवीत्।। | 12-363-9a 12-363-9b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि त्रिषष्ट्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 363।। |
12-363-2 सोमान्वये अत्रिगोत्रे।।
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