महाभारतम्-12-शांतिपर्व-369
दिखावट
← शांतिपर्व-368 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-369 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-370 → |
नागपत्न्या प्रवासादागतं स्वभर्तारं प्रति ब्राह्मणवचननिवेदनम्।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-369-1x |
अथ काले बहुतिथे पूर्णे प्राप्तो भुजङ्गमः। दत्ताभ्यनुज्ञः स्वं वेश्म कृतकर्मा विवस्वता।। | 12-369-1a 12-369-1b |
तं भार्याऽप्युपचक्राम पादशौचादिभिर्गुणैः। उपपन्नां च तां साध्वीं पन्नगः पर्यपृच्छत।। | 12-369-2a 12-369-2b |
अथ त्वमसि कल्याणि देवतातिथिपूजने। पूर्वमुक्तेन विधिना युक्ता कर्मसु वर्तसे।। | 12-369-3a 12-369-3b |
न खल्वस्यकृतार्थेन स्त्रीबुद्ध्या मार्दवीकृता। मद्वियोगेन सुश्रोणि विमुक्ता धर्मसेतुना।। | 12-369-4a 12-369-4b |
नागभार्योवाच। | 12-369-5x |
शिष्याणां गुरुशुश्रूषा विप्राणां वेदधारणम्। भृत्यानां स्वामिवचनं राज्ञो लोकानुपालनम्।। | 12-369-5a 12-369-5b |
सर्वभूतपरित्राणं क्षत्रधर्म इहोच्यते। वैश्यानां यज्ञसंवृत्तिरातिथेयसमन्विता।। | 12-369-6a 12-369-6b |
विप्रक्षत्रियवैश्यानां शुश्रूषा शूद्रकर्म तत्। गृहस्थधर्मो नागेन्द्र सर्वभूतहितैषिता।। | 12-369-7a 12-369-7b |
नियताहारता नित्यं व्रतचर्या यथाक्रमम्। धर्मो हि धर्मसंबन्धादिन्द्रियाणां विशेषतः।। | 12-369-8a 12-369-8b |
अहं कस्य कुतो वाऽपि कः को मे ह भवेदिति। प्रयोजनमतिर्नित्यमेवं मोक्षाश्रमे वसेत्।। | 12-369-9a 12-369-9b |
पतिव्रतात्वं भार्यायाः परमो धर्म उच्यते। तवोपदेशान्नागेन्द्र तच्च तत्त्वेन वेद्मि वै।। | 12-369-10a 12-369-10b |
साऽहं धर्मं विजानन्ती धर्ननित्ये त्वयि स्थिते। सत्पथं कथमृत्सृज्य यास्यामि विपथं पथः।। | 12-369-11a 12-369-11b |
देवतानां महाभाग धर्मचर्या न हीयते। अतिथीनां च सत्कारे नित्ययुक्ताऽस्म्यतन्द्रिता।। | 12-369-12a 12-369-12b |
सप्ताष्टदिवसास्त्वद्य विप्रस्येहागतस्य वै। तच्च कार्यं न मे ख्याति दर्शनं तव काङ्क्षति।। | 12-369-13a 12-369-13b |
गोमत्यास्त्वेष पुलिने त्वद्दर्शनसमुत्सुकः। आसीनो वर्तयन्ब्रह्म ब्राह्मणः संशितव्रतः।। | 12-369-14a 12-369-14b |
अहं त्वनेन नागेन्द्र सत्यपूर्वं समाहिता। प्रस्थाप्यो मत्सकाशं स संप्राप्तो भुजगोत्तमः।। | 12-369-15a 12-369-15b |
एतच्छ्रुत्वा महाप्राज्ञ तत्र गन्तुं त्वमर्हसि। दातुमर्हसि वा तस्य दर्शनं दर्शनश्रवः।। | 12-369-16a 12-369-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि एकोनसप्तत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 369।। |
12-369-4 अकृतार्थेन धर्मसेतुना।। 12-369-5 विप्राणां वेदपालनमिति ट. पाठः।। 12-369-6 सर्वेषामेव वर्णानामातिथेसमन्वितेति ट. पाठः।। 12-369-8 धर्मसंबन्धात्क्षत्रियाणां विशेषत इति ट. पाठः।। 12-369-13 मे मांप्रति। ख्याति कथयति।। 12-369-14 वर्तयन् आवर्तयन्। ब्रह्म वेदम्।। 12-369-16 दर्शनश्रवः हे सर्प। दर्शनं दर्शनार्थिन इति ट. पाठः।।
शांतिपर्व-368 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-370 |