महाभारतम्-12-शांतिपर्व-021
दिखावट
← शांतिपर्व-020 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-021 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-022 → |
युधिष्ठिरंप्रति देवस्थानस्य वचनम्।। 1।।
देवस्थान उवाच। | 12-21-1x |
अत्रैवोदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। इन्द्रेण समये पृष्टो यदुवाच बृहस्पतिः।। | 12-21-1a 12-21-1b |
संतोषो वै स्वर्गसमः संतोषः परमं सुखम्। तुष्टेर्न किंचित्परतः सा सम्यक्प्रतितिष्ठति।। | 12-21-2a 12-21-2b |
यदा संहरते कामान्कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः। तदाऽऽत्मज्योतिरचिरात्स्वात्मन्येव प्रसीदति।। | 12-21-3a 12-21-3b |
न विभेति यदा चायं यदा चास्मान्न बिभ्यति। कामद्वेषौ च जयति तदाऽऽत्मानं च पश्यति।। | 12-21-4a 12-21-4b |
यदाऽसौ सर्वभूतानां न द्रुह्यति न काङ्क्षति। कर्मणा मनसा वाचा ब्रह्म संपद्यते तदा।। | 12-21-5a 12-21-5b |
एवं कौन्तेय भूतानि तंतं धर्मं तथातथा। तदाऽऽत्मना प्रपश्यन्ति तस्माद्वुध्यस्व भारत।। | 12-21-6a 12-21-6b |
अन्ये साम प्रशंसन्ति व्यायाममपरे जनाः। नैकं न चापरं केचिदुभयं च तथाऽपरे।। | 12-21-7a 12-21-7b |
यज्ञमेके प्रशंसन्ति संन्यासमपरे जनाः। `नैकं न चापरं केचिदुभयं च तथाऽपरे।।' | 12-21-8a 12-21-8b |
दानमेके प्रशंसन्ति केचिच्चैव प्रतिग्रहम्। केचित्सर्वं परित्यज्य तूष्णीं ध्यायन्त आसते।। | 12-21-9a 12-21-9b |
राज्यमेके प्रशंसन्ति प्रजानां परिपालनम्। हत्वा छित्त्वा च भित्त्वा च केचिदेकान्तशीलिनः।। | 12-21-10a 12-21-10b |
एतत्सर्वं समालोक्य बुधानामेव निश्चयः। अद्रोहेणैव भूतानां यो धर्मः स सतां मतः।। | 12-21-11a 12-21-11b |
अद्रोहः सत्यवचनं संविभागो दया दमः। प्रजनं स्वेषु दारेषु मार्दवं हीरचापलम्।। | 12-21-12a 12-21-12b |
एवं धर्मं प्रधानेष्टं मनुः स्वायंभुवोऽब्रवीत्। तस्मादेतत्प्रयत्नेन कौन्तेय प्रतिपालय।। | 12-21-13a 12-21-13b |
यो हि राज्ये स्थितः शश्वद्वशी तुल्यप्रियाप्रियः। क्षत्रियो यज्ञशिष्टाशी राजा शास्त्रार्थतत्त्ववित्।। | 12-21-14a 12-21-14b |
असाधुनिग्रहरतः साधूनां प्रग्रहे रतः। धर्मवर्त्मनि संस्थाप्य प्रजा वर्तेत धर्मतः।। | 12-21-15a 12-21-15b |
पुत्रसंक्रामितश्रीश्च वने वन्येन वर्तयेत्। विधानमाश्रमाणां वै कुर्यात्कर्माण्यतन्द्रितः।। | 12-21-16a 12-21-16b |
य एवं वर्तते राजन्स राजा धर्मनिश्चितः। तस्यायं च परश्चैव लोकः स्यात्संफलोदयः।। | 12-21-17a 12-21-17b |
निर्वाणं हि सुदुष्प्राप्यं बहुविघ्नं च मे मतम्।। | 12-21-18a |
एवं धर्ममनुक्रान्ताः सत्यदानतपः पराः। आनृशंस्यगुणैर्युक्ताः कामक्रोधविवर्जिताः।। | 12-21-19a 12-21-19b |
प्रजानां पालने युक्ता धर्ममुत्तममास्थिताः। गोब्राह्मणार्थे युध्यन्तः प्राप्ता गतिमनुत्तमाम्।। | 12-21-20a 12-21-20b |
एवं रुद्राः सवसवस्तथाऽऽदित्याः परंतप। साध्या राजर्षिसङ्घाश्च धर्ममेतं समाश्रिताः। अप्रमत्तास्ततः स्वर्गं प्राप्ताः पुण्यैः स्वकर्मभिः।। | 12-21-21a 12-21-21b 12-21-21c |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि एकविंशोऽध्यायः।। 21।। |
= =12-21-3 यदा प्रसीदति तदा तुष्टिः प्रतितिष्ठतीति पूर्वेण संबन्धः।। 12-21-7 साम प्रीतिम्। व्यायामं यत्नम्।। 12-21-12 प्रजने पुत्रोत्पादनम्।। 12-21-15 प्रग्रहे संग्रहे।।
शांतिपर्व-020 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-022 |