महाभारतम्-12-शांतिपर्व-208
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति हरेर्वराहावतारनिरूपणम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-208-1x |
पितामह महाप्राज्ञ युधि सत्यपराक्रम। श्रोतुमिच्छामि कार्त्स्न्येन वृष्णमव्ययमीश्वरम्।। | 12-208-1a 12-208-1b |
यच्चास्य तेजः सुमहद्यच्च कर्म पुरा कृतम्। तन्मे सर्वं यथातत्त्वं ब्रूहि त्वं पुरुषर्षभ।। | 12-208-2a 12-208-2b |
तिर्यग्योनिगतो रूपं कथं धारितवान्प्रभुः। केन कार्यनिसर्गेण तमाख्याहि महाबल।। | 12-208-3a 12-208-3b |
भीष्म उवाच। | 12-208-4x |
पुराऽहं मृगयां यातो मार्कण्डेयाश्रमे स्थितः। तत्रापश्यं मुनिगणान्समासीनान्सहस्रशः।। | 12-208-4a 12-208-4b |
ततस्ते मधुपर्केण पूजां चक्रुरथो मयि। प्रतिगृह्य च तां पूजां चक्रुरथो मयि। | 12-208-5a 12-208-5b |
कथैषा कथिता तत्र कश्यपेन महर्षिणा। मनः प्रह्वादिनीं दिव्यां तामिहैकमनाः शृणु।। | 12-208-6a 12-208-6b |
पुरा दानवमुख्या हि क्रोधलोभसमन्विताः। बलेन मत्ताः शतशो नरकाद्या महासुराः।। | 12-208-7a 12-208-7b |
तथैव चान्ये बहवो दानवा युद्धदुर्मदाः। न सहन्ते स्म देवानां समृद्धिं तामनुत्तमाम्।। | 12-208-8a 12-208-8b |
`नराकाद्या महाघोरा हिरण्याक्षमुपाश्रिताः। उद्योगं परमं चक्रुर्देवानां निग्रहे तदा।। | 12-208-9a 12-208-9b |
नियुतं वत्सराणां तु वायुभक्षोऽभवत्तदा। हिरण्याक्षो महारौद्रो लेभे देवात्पितामहात्। वरानचिन्त्यानतुलाञ्शतशोऽथ सहस्रशः।।' | 12-208-10a 12-208-10b 12-208-10c |
दानवैरर्द्यमानास्तु देवा देवर्षयस्तथा। न शर्म लेभिरे राजन्क्लिश्यमानास्ततस्ततः।। | 12-208-11a 12-208-11b |
पृथिवीमार्तरूपां ते समपश्यन्दिवौकसः। दानवैरभिसंकीर्णां घोररूपैर्महाबलैः। भारार्तामप्रहृष्टां च दुःखितां संनिमज्जतीम्।। | 12-208-12a 12-208-12b 12-208-12c |
`गृहीत्वा पृथिवी देवी पाताले न्यवसत्तदा। ततस्त्रैलोक्यमखिलं निरोषधिगणान्वितम्। निःस्वाध्यायवषट्कारमभूत्सर्वं समन्ततः।।' | 12-208-13a 12-208-13b 12-208-13c |
अथादितेयाः संत्रस्ता ब्रह्माणमिदमब्रुवन्। कथं शक्ष्यामहे ब्रह्मन्दानवैरभिमर्दनम्।। | 12-208-14a 12-208-14b |
`हिरण्याक्षेण भगवन्गृहीतेयं वसुन्धरा। न शक्ष्यामो वयं तत्र प्रवेष्टुं जलदुर्गमम्।। | 12-208-15a 12-208-15b |
तानाह भगवान्ब्रह्मा मुनिरेव प्रसाद्यताम्। अगस्त्योऽसौ महातेजाः पातु तज्जलमञ्जसा।। | 12-208-16a 12-208-16b |
तथेति चोक्त्वा ते देवा मुनिमूचुर्मुदान्विताः। त्रायस्व लोकान्विप्रर्षे जलमेतत्क्षयं नय।। | 12-208-17a 12-208-17b |
तथेति चोक्त्वा भगवान्कालानलसमद्युतिः। ध्यायञ्जलादनिवहं स क्षणेन पपौ जलम्।। | 12-208-18a 12-208-18b |
शोषिते तु समुद्रे च देवाः सर्षिपुरोगमाः। ब्रह्माणं प्रणिपत्योचुर्मुनिना शोषितं जलम्। इति भूयः समाचक्ष्व किं करिष्यामहे विभो।। | 12-208-19a 12-208-19b 12-208-19c |
स्वयंभूस्तानुवाचेदं निसृष्टोऽत्र विधिर्मया।। | 12-208-20a |
ते वरेणाभिसंपन्ना बलेन च मदेन च। नावबुद्ध्यन्ति संमूढा विष्णुमव्यक्तदर्शनम्। वराहरूपिणं देवमधृष्यममरैरपि।। | 12-208-21a 12-208-21b 12-208-21c |
एष वेगेन गत्वा हि यत्र ते दानवाधमाः। अन्तर्भूमिगता घोरा निवसन्ति सहस्रशः। शमयिष्यति तच्छ्रुत्वा जहृषुः सुरसत्तमाः।। | 12-208-22a 12-208-22b 12-208-22c |
ततो विष्णुर्महातेजा वाराहं रूपमास्थितः। अन्तर्भूमिं संप्रविश्य जगाम दितिजान्प्रति।। | 12-208-23a 12-208-23b |
दृष्ट्वा च सहिताः सर्वे दैत्याः सत्वममानुषम्। प्रसह्य तरसा सर्वे संतस्थुः कालमोहिताः।। | 12-208-24a 12-208-24b |
ततस्ते समभिद्रुत्य वराहं जगृहुः समम्। संक्रुद्धाश्च वराहं तं व्यकर्षन्त समन्ततः।। | 12-208-25a 12-208-25b |
दानवेन्द्रा महाकाया महावीर्यबलोच्छ्रिताः। नाशक्नुवंश्च किंचित्ते तस्य कर्तुं तदा विभो।। | 12-208-26a 12-208-26b |
ततोऽगच्छन्विस्मयं ते दानवेन्द्रा भयं तथा। संशयं गतमात्मानं मेनिरे च सहस्रशः।। | 12-208-27a 12-208-27b |
ततो देवाधिदेवः स योगात्मा योगसारथिः। योगमास्थाय भगवांस्तदा भरतसत्तम।। | 12-208-28a 12-208-28b |
विननाद महानादं क्षोभयन्दैत्यदानवान्। सन्नादिता येन लोकाः सर्वाश्चैव दिशो दश।। | 12-208-29a 12-208-29b |
तेन सन्नादशब्देन लोकानां क्षोभ आगमत्। संश्रान्ताश्च दिशः सर्वा देवाः शक्रपुरोगमाः।। | 12-208-30a 12-208-30b |
निर्विचेष्टं जगच्चापि बभूवातिभृशं तदा। स्थावरं जङ्गमं चैव तेन नादेन मोहितम्।। | 12-208-31a 12-208-31b |
ततस्ते दानवाः सर्वे तेन नादेन भीषिताः। पेतुर्गतासवश्चैव विष्णुतेजः प्रमोहिताः।। | 12-208-32a 12-208-32b |
`त्रस्तांश्च देवानालोक्य ब्रह्मा प्राह पितामहः। योगेश्वरोऽयं भगवान्वाराहं रूपमास्थितः। नर्दमानोऽत्र संयाति मा भैष्ट सुरसत्तमाः।। | 12-208-33a 12-208-33b 12-208-33c |
एवमुक्त्वा ततो ब्रह्मा नमश्चक्रे पितामहः। देवता मुनयश्चैव विष्णुं वै मुक्तिहेतवे।। | 12-208-34a 12-208-34b |
ततो हरिर्महातेजा ब्रह्माणमभिनन्द्य च।' रसातलगतश्चापि वराहस्त्रिदशद्विषाम्। खुरैर्विदारयामास मांसमेदोस्थिसंचयान्।। | 12-208-35a 12-208-35b 12-208-35c |
नादेन तेन महता सनातन इति स्मृतः। पद्मनाभो महायोगी भूतात्मा भूतभावनः।। | 12-208-36a 12-208-36b |
ततो देवगणाः सर्वे पितामहमुपाद्रवन्। तत्र गत्वा महात्मानमूचुश्चैव जगत्पतिम्।। | 12-208-37a 12-208-37b |
नादोऽयं कीदृशो देव नेतं विद्म वयं प्रभो। कोसौ हि कस्य वा नादो येन विह्वलितं जगत्। देवाश्च दानवाश्चैव मोहितास्तस्य तेजसा।। | 12-208-38a 12-208-38b 12-208-38c |
एतस्मिन्नन्तरे विष्णुर्वाराहं रूपमास्थितः। उदतिष्ठन्महाबाहो स्तूयमानो महर्षिभिः।। | 12-208-39a 12-208-39b |
पितामह उवाच। | 12-208-40x |
`दिव्यं------ युद्धमासीन्महात्मनोः। हिरण्याक्षस्य विष्णोश्च सर्वसंक्षोभकारणम्।। | 12-208-40a 12-208-40b |
जघान च हिरण्याक्षमन्तर्भूमिगतं हरिः। तदाकर्ण्य महातेजा ब्रह्मा मधुरमब्रवीत्।।' | 12-208-41a 12-208-41b |
पीतामह उवाच। | 12-208-42x |
निहत्य दानवपतीन्महावर्ष्मा महाबलः। एष देवो महायोगी भूतात्मा भूतभावनः।। | 12-208-42a 12-208-42b |
सर्वभूतेश्वरो योगी मुनिरात्मा तथाऽऽत्मनः। स्थिरीभवत कृष्णोऽयं सर्वविध्नविनाशनः।। | 12-208-43a 12-208-43b |
कृत्वा कर्मातिसाध्वेतदशक्यममितप्रभः। समायातः स्वमात्मानं महाभागो महाद्युतिः।। | 12-208-44a 12-208-44b |
पद्मनाभो महायोगी पुराणपुरुषोत्तमः। न संतापो न भीः कार्या शोको वा सुरसत्तमैः।। | 12-208-45a 12-208-45b |
विधिरेष प्रभावश्च कालः संक्षयकारकः। लोकान्धारयता तेन नादो मुक्तो महात्मना।। | 12-208-46a 12-208-46b |
स एष हि महाबाहुः सर्वलोकनमस्कृतः। अच्युतः पुण्डरीकाक्षः सर्वभूतादिरीश्वरः।। | 12-208-47a 12-208-47b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि अष्टाधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 208।। |
12-208-36 भूताचार्यः स भूतराट्र इति झ. ड.थ. पाठः।।
शांतिपर्व-207 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-209 |