महाभारतम्-12-शांतिपर्व-260
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति कामादिशक्तिप्रतिपादनपूर्वकतज्जयोपायप्रतिपादनपरव्यासवाक्यानुवादः।। 1।।
व्यास उवाच। | 12-260-1x |
हृदि कामद्रुमश्चित्रो मोहसंचयसंभवः। क्रोधमानमहास्कन्धो विवित्सापरिवेषणः।। | 12-260-1a 12-260-1b |
तस्य चाज्ञानमाधारः प्रमादः परिषेचनम्। सोऽभ्यसूयापलाशो हि पुरा दुष्कृतसारवान्।। | 12-260-2a 12-260-2b |
संमोहचिन्ताविटपः शोकशाखो भयाङ्कुरः। मोहनीभिः पिपासाभिर्लताभिरनुवेष्टितः।। | 12-260-3a 12-260-3b |
उपासते महावृक्षं सुलुब्धास्तत्फलेप्सवः। आयतैः संयुताः पाशैः फलदं परिवेष्ट्य तम्।। | 12-260-4a 12-260-4b |
यस्तान्पाशान्वशे कृत्वा तं वृक्षमपकर्षति। गतः स दुःखयोरन्तं जरामरणयोर्द्वयोः।। | 12-260-5a 12-260-5b |
संरोहत्यकृतप्रज्ञः ससत्वो हन्ति पादपम्। स तमेवाहतो हन्ति विषं ग्रस्तमिवातुरम्।। | 12-260-6a 12-260-6b |
तस्यानुगतमूलस्य मूलमुद्भियते बलात्। योगप्रसादात्कृतिना साम्येन परमासिना।। | 12-260-7a 12-260-7b |
एवं यो वेद कामस्य केवलं परिसर्पणम्। एतच्च कामशास्त्रस्य सुदुःखान्यतिवर्तते।। | 12-260-8a 12-260-8b |
शरीरं पुरमित्याहुः स्वामिनी बुद्धिरिष्यते। तत्र बुद्धेः शरीरस्थं मनो नामार्थचिन्तकम्।। | 12-260-9a 12-260-9b |
इन्द्रियाणि जनाः पौरास्तदर्थं तु परा कृतिः। तत्र द्वौ दारुणौ दोषौ तमो नाम रजस्तथा। तदर्थमुपजीवन्ति पौराः सह पुरेश्वरैः।। | 12-260-10a 12-260-10b 12-260-10c |
अद्वारेण तमेवार्थं द्वौ दोषावुपजीवतः। तत्र बुद्धिर्हि दुर्धर्षा मनः साधर्म्यमुच्यते।। | 12-260-11a 12-260-11b |
पौराश्चापि मनस्तृप्तास्तेषामपि चला स्थितिः। यदर्थं बुद्धिरध्यास्ते सोऽनर्थः परिषीदति।। | 12-260-12a 12-260-12b |
`पौरमन्त्रवियुक्तायाः सोऽर्थः संसीदति क्रमात्'। यदर्थं पृथगध्यास्ते मनस्तत्परिषीदति।। | 12-260-13a 12-260-13b |
पृथग्भूतं मनो बुद्ध्या मनो भवति केवलम्। तत्रैनं विकृतं शून्यं रजः पर्यवतिष्ठते।। | 12-260-14a 12-260-14b |
तन्मनः कुरुते सख्यं रजसा सह संगतम्। तं चादाय जनं पौरं रजसे संप्रयच्छति।। | 12-260-15a 12-260-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि षष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 260।। |
12-260-1 विधित्सा परिषेचन इति झ. पाठः।। 12-260-3 शोकशाखाभयंकर इति ड. थ. पाठः।। 12-260-4 फलादायिभिरन्वित इति ध. पाठः। पाशैः फलानि परिभक्षयन्निति ड. थ. पाठः।। 12-260-5 त्यागप्रमाद कृतिनेति ड. थ. पाठः।।
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