महाभारतम्-12-शांतिपर्व-026
दिखावट
← शांतिपर्व-025 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-026 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-027 → |
युधिष्ठिरेण व्यासंप्रति निर्वेदवचनम्।। 1।। व्यासेन युधिष्ठिरंप्रति राज्यपालनविधानम्।। 2।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-26-1x |
अभिमन्यौ हते बाले द्रौपद्यास्तनयेषु च। धृष्टद्युम्ने विराटे च द्रुपदे च महीपतौ।। | 12-26-1a 12-26-1b |
वृषसेने च धर्मज्ञे धृष्टकेतौ तु पार्थिवे। तथाऽन्येषु नरेन्द्रेषु नानादेश्येषु संयुगे।। | 12-26-2a 12-26-2b |
न च मुञ्चति मां शोको ज्ञातिघातिनमातुरम्। राज्यकामुकमत्युग्रं स्ववंशोच्छेदकारिणम्।। | 12-26-3a 12-26-3b |
यस्याङ्के क्रीडमानेन मया विपरिवर्तितम्। स मया राज्यलुब्धेन गाङ्गेयो युधि पातितः।। | 12-26-4a 12-26-4b |
यदा ह्येनं विघूर्णन्तं मदर्थं पार्थसायकैः। तक्ष्यमाणं यथा वज्रैः प्रेक्षमाणं शिखण्डिनम्।। | 12-26-5a 12-26-5b |
जीर्णसिंहमिव प्राज्ञं नरसिंहं पितामहम्। कीर्यमाणं शरैर्दीप्तैर्दृष्ट्वा मे व्यथितं मनः।। | 12-26-6a 12-26-6b |
प्राड्भुखं सीदमानं च रथात्पररथारुजम्। घूर्णमानं यथा शैलं तदा मे कश्मलोऽभवत्।। | 12-26-7a 12-26-7b |
यः सवाणधनुष्पाणिर्योधयामास भार्गवम्। बहून्यहानि कौरव्यः कुरुक्षेत्रे महामृधे।। | 12-26-8a 12-26-8b |
समेतं पार्थिवं क्षत्रं वाराणस्यां नदीसुतः। कन्यार्थमाह्वयद्वीरो रथेनैकेन संयुगे।। | 12-26-9a 12-26-9b |
येन चोग्रायुधो राजा चक्रवर्ती दुरासदः। दग्धश्चास्त्रप्रतापेन स मया युधि पातितः।। | 12-26-10a 12-26-10b |
स्वयं मृत्युं रक्षमाणः पाञ्चाल्यं यः शिखण्डिनम्। न बाणैः पातयामास सोऽर्जुनेन निपातितः।। | 12-26-11a 12-26-11b |
यदैनं पतितं भूमावपश्यं रुधिरोक्षितम्। तदैवाविशदन्युग्रो ज्वरो मां मुनिसत्तम।। | 12-26-12a 12-26-12b |
येन संवर्धिता बाला येन स्म परिरक्षिताः। स मया राज्यलुब्धेन पापेन गुरुधातिना। अल्पकालस्य राज्यस्य कृते मूढेन पातितः।। | 12-26-13a 12-26-13b 12-26-13c |
आचार्यश्च महेष्वासः सर्वपार्थिवपूजितः। अभिगम्य रणे मिथ्या पापेनोक्तः सुतं प्रति।। | 12-26-14a 12-26-14b |
तन्मे दहति गात्राणि यन्मां गुरुरभाषत। सत्यमाख्याहि राजंस्त्वं यदि जीवति मे सुतः।। | 12-26-15a 12-26-15b |
सत्यमामर्शयन्विप्रो मयि तत्परिपृष्टवान्। कुञ्जरं चान्तरं कृत्वा मिथ्योपचरितो मया।। | 12-26-16a 12-26-16b |
सुभृशं राज्यलुब्धेन पापेन गुरुघातिना। सत्यकञ्चुकमुन्मुच्य मया स गुरुराहवे।। | 12-26-17a 12-26-17b |
अश्वत्थामा हत इति निरुक्तः कुञ्जरे हते। काँल्लोकांस्तु गमिष्यामि कृत्वा कर्म सुदुष्करम्।। | 12-26-18a 12-26-18b |
अघातयं च यत्कर्णं समरेष्वपलायिनम्। ज्येष्ठभ्रातरमत्युग्रः को मत्तः पापकृत्तमः।। | 12-26-19a 12-26-19b |
अभिमन्युं च यद्वालं जातं सिंहमिवाद्रिषु। प्रावेशयमहं लुब्धो वाहिनीं द्रोणपालिताम्।। | 12-26-20a 12-26-20b |
तदाप्रभृति वीभत्सुं न शक्नोमि निरीक्षितुम्। कृष्णं च पुण्डरीकाक्षं किल्विषी भ्रूणहा यथा।। | 12-26-21a 12-26-21b |
द्रौपदीं चाप्यदुःखार्हां पञ्चपुत्रैर्विनाकृताम्। शोचामि पृथिवीं हीनां पञ्चभिः पर्वतैरिव।। | 12-26-22a 12-26-22b |
सोऽहमागस्करः पापः पृथिवीनाशकारकः। आसीन एवमेवेदं शोषयिष्ये कलेवरम्।। | 12-26-23a 12-26-23b |
प्रायोपविष्टं जानीध्वमथ मां गुरुघातिनम्। जातिष्वन्यास्वपि यथा न भवेयं कुलान्तकृत्।। | 12-26-24a 12-26-24b |
न भोक्ष्ये न च पानीयमुपयोक्ष्ये कथंचन। शोषयिष्ये प्रियान्प्राणानिहस्थोऽहं तपोधनाः।। | 12-26-25a 12-26-25b |
यथेष्टं गम्यतां काममनुजाने प्रसाद्य वः। सर्वे मामनुजानीत त्यक्ष्यामीदं कलेवरम्।। | 12-26-26a 12-26-26b |
वैशंपायन उवचा। | 12-26-27x |
तमेवंवादिनं पार्थं बन्धुशोकेन विह्वलम्। मैवमित्यब्रवीद्व्यासो निगृह्य मुनिसत्तमः।। | 12-26-27a 12-26-27b |
व्यास उवाच। | 12-26-28x |
अतिवेलं महाराज न शोकं कर्तुमर्हसि। पुनरुक्तं तु वक्ष्यामि दिष्टमेतदिति प्रभो।। | 12-26-28a 12-26-28b |
संयोगा विप्रयोगाश्च जातानां प्राणिनां ध्रुवम्। बुद्धुदा इव तोयेषु भवन्ति न भवन्ति च।। | 12-26-29a 12-26-29b |
सर्वे क्षयान्ता निचयाः पतनान्ताः समुच्छ्रयाः। संयोगा विप्रयोगान्ता मरणान्तं हि जीवितम्।। | 12-26-30a 12-26-30b |
सुखं दुःखान्तमालस्यं दाक्ष्यं दुःखं सुखोदयम्। भूतिः श्रीर्ह्रीर्धृतिः कीर्तिर्दक्षे वसति नालसे।। | 12-26-31a 12-26-31b |
नालं सुखाय सुहृदो नाले दुःखाय शत्रवः। न च प्रज्ञालमर्थेभ्यो न सुखेभ्योऽप्यलं धनम्।। | 12-26-32a 12-26-32b |
यथा सृष्टोऽसि कौन्तेय धात्रा कर्मसु तत्क्ररु। अत एव हि सिद्धिस्ते नेशस्त्वं ह्यात्मनो नृप।। | 12-26-33a 12-26-33b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि षङ्विशोऽध्यायः।। 26।। |
12-26-2 वृषसेने कर्णे।। 12-26-7 पररथारुजं पररथानां पीडकम्।। 12-26-16 आमर्शयन्निश्चिन्वन्।। 12-26-28 अतिवेलमत्यर्थम्।। 12-26-39 आलस्यं तत्काले सुखमपि दुःखान्तम्। दाक्ष्यं तत्काले दुःखमपि सुखोदयम्। भूतिः अणिमादिः।।
शांतिपर्व-025 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-027 |