महाभारतम्-12-शांतिपर्व-206
दिखावट
← शांतिपर्व-205 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-206 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-207 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति भूतादिजगत्सृष्टिप्रकारनिरूपणम्।। 1।। तथा नारदोदितनृसिंहादिभगवत्प्रादुर्भावचरित्रनिरूपणपूर्वकं श्रीकृष्णस्य सर्वोत्तमत्वप्रतिपादनेन तद्ध्यानविधानम्।। 2।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-206-1x |
पितामह महाप्राज्ञ पुण्डरीकाक्षमच्युतम्। कर्तारमकृतं विष्णुं भूतानां प्रभवाप्ययम्।। | 12-206-1a 12-206-1b |
नारायणं हृषीकेशं गोविन्दमपराजितम्। तत्त्वेन भरतश्रेष्ठ श्रोतुमिच्छामि केशवम्।। | 12-206-2a 12-206-2b |
भीष्म उवाच। | 12-206-3x |
श्रुतोऽयमर्थो रामस्य जामदग्न्यस्य जल्पतः। नारदस्य च देवर्षेः कृष्णद्वैपायनस्य च।। | 12-206-3a 12-206-3b |
असितो देवलस्तात वाल्मीकिश्च महातपाः। मार्कण्डेयश्च गोविन्दे कथयन्त्यद्भुतं महत्।। | 12-206-4a 12-206-4b |
`केशवस्य मया राजन्न शक्या वर्णितुं गुणाः। ईदृशोऽसौ हृषीकेशो वासुदेवः परात्परः।।' | 12-206-5a 12-206-5b |
केशवो भरतश्रेष्ठ भगवानीश्वरः प्रभुः। पुरुषः सर्वमित्येव श्रूयते बहुधा विभुः।। | 12-206-6a 12-206-6b |
किंतु यानि विदुर्लोके ब्राह्मणाः शार्ङ्गधन्वनि। महात्मनि महाबाहो शृणु तानि युधिष्ठिर।। | 12-206-7a 12-206-7b |
यानि चाहुर्मनुष्येन्द्र ये पुराणविदो जनाः। श्रुत्वा सर्वाणि गोविन्दो कीर्तयिष्यामि तान्यहम्।। | 12-206-8a 12-206-8b |
महाभूतानि भूतात्मा महात्मा पुरुषोत्तमः। वायुर्ज्योतिस्तथा चापः खं च गां चान्वकल्पयत्।। | 12-206-9a 12-206-9b |
स सृष्ट्वा पृथिवीं चैव सर्वभूतेश्वरः प्रभुः। अप्स्वेव शयनं चक्रे महात्मा पुरुषोत्तमः।। | 12-206-10a 12-206-10b |
सर्वतेजोमयस्तस्मिञ्शयानः शयने शुभे। सोऽग्रजं सर्वभूतानां संकर्षणमचिन्तयत्।। | 12-206-11a 12-206-11b |
आश्रयं सर्वभूतानां मनसेतीह शुश्रुम्। स धारयति भूतानि उभे भूतभविष्यती।। | 12-206-12a 12-206-12b |
`प्रद्युम्नमसृजत्तस्मात्सर्वतेजः प्रकाशकम्। अनिरुद्धस्ततो जज्ञे सर्वशक्तिर्महाद्युतिः।। | 12-206-13a 12-206-13b |
अप्सु व्योमगतः श्रीमान्योगनिद्रामुपेयिवान्। तस्मात्संजज्ञिरे देवा ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः। लयस्थित्यन्तकर्माणस्रयस्ते सुमहौजसः।।' | 12-206-14a 12-206-14b 12-206-14c |
ततस्तस्मिन्महाबाहौ प्रादुर्भूते महात्मनि। भास्करप्रतिमं दिव्यं नाभ्यां पद्ममजायत।। | 12-206-15a 12-206-15b |
स तत्र भगवान्देवः पुष्करे भ्राजयन्दिशः। ब्रह्मा समभवत्तात सर्वभूतपितामहः।। | 12-206-16a 12-206-16b |
तस्मिन्नपि महाबाहौ प्रादुर्भूते महात्मनि। तमसः पूर्वजो जज्ञे मधुर्नाम महासुरः।। | 12-206-17a 12-206-17b |
तमुग्रमुग्रकर्माणमुग्रां बुद्धिं समास्थितम्। ब्रह्मणोपचितिं कुर्वञ्जघान पुरुषोत्तमः।। | 12-206-18a 12-206-18b |
तस्य तात वधात्सर्वे देवदानवमानवाः। मधुसूदनमित्याहुर्ऋषभं सर्वसात्वताम्।। | 12-206-19a 12-206-19b |
ब्रह्माऽनुससृजे पुत्रान्मानसान्दक्षसप्तमान्। मरीचिमत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यं पुलहं क्रतुम्।। | 12-206-20a 12-206-20b |
मरीचिः कश्यपं तात पुत्रमग्रजमग्रजः। मानसं जनयामास तैजसं ब्रह्मवित्तमम्।। | 12-206-21a 12-206-21b |
अङ्गुष्ठात्ससृजे ब्रह्मा मरीचेरपि पूर्वजम्। सोऽभवद्भरतश्रेष्ठ दक्षो नाम प्रजापतिः।। | 12-206-22a 12-206-22b |
तस्य पूर्वमजायन्त दश तिस्रश्च भारत।। प्रजापतेर्दुहितरस्तासां ज्येष्ठाऽभवद्दितिः।। | 12-206-23a 12-206-23b |
सर्वधर्मविशेषज्ञः पुण्यकीर्तिर्महायशाः। मारीचः कश्यपस्तात सर्वासामभवत्पतिः।। | 12-206-24a 12-206-24b |
उत्पाद्य तु महाभागस्तासामवरजा दश। ददौ धर्माय धर्मज्ञो दक्ष एव प्रजापतिः।। | 12-206-25a 12-206-25b |
धर्मस्य वसवः पुत्रा रुद्राश्चामिततेजसः। विश्वेदेवाश्च साध्याश्च मरुत्वन्तश्च भारत।। | 12-206-26a 12-206-26b |
अपराश्च यवीयस्यस्ताभ्योऽन्याः सप्तविंशतिः। सोमस्तासां महाभागः सर्वासामभवत्पतिः।। | 12-206-27a 12-206-27b |
इतरास्तु व्यजायन्त गन्धवोस्तुरगान्द्विजान्। गाश्च किंपुरुषान्मत्स्यानुद्भिज्जांश्च वनस्पतीन्।। | 12-206-28a 12-206-28b |
आदित्यानदितिर्जज्ञे देवश्रेष्ठान्महाबलान्। तेषां विष्णुर्वामनोऽभूद्गोविन्दश्चाभवत्प्रभुः।। | 12-206-29a 12-206-29b |
तस्य विक्रमणाच्चापि देवानां श्रीर्व्यवर्धत। दानवाश्च पराभूता दैतेयाश्चासुरी प्रजा।। | 12-206-30a 12-206-30b |
विप्रचित्तिप्रधानांश्च दानवानसृजद्दनुः। दितिस्तु सर्वानसुरान्महासत्वानजीजनत्।। | 12-206-31a 12-206-31b |
`ततः ससर्ज भगवान्मृत्युं लोकभयंकरम्। हर्तारं सर्व भूतानां ससर्ज च जनार्दनः।। | 12-206-32a 12-206-32b |
अहोरात्रं च कालं च यथर्तु मधुसूदनः। पूर्वाह्णं चापराह्णं च सर्वमेवान्वकल्पयत्।। | 12-206-33a 12-206-33b |
लब्ध्वापः सोऽसृजन्मेघांस्तथा स्थावरजङ्गमान्। पृथिवीं सोऽसृजद्विश्वां सहीतां भूरितेजसा।। | 12-206-34a 12-206-34b |
ततः कृष्णो महाभागः पुनरेव युधिष्ठिर। ब्राह्मणानां शतं श्रेष्ठं मुखादेवासृजत्प्रभुः।। | 12-206-35a 12-206-35b |
बाहुभ्यां क्षत्रियशतं वैश्यानामूरुतः शतम्। पद्भ्यां शूत्रशतं चैव कशेवो भरतर्षभ।। | 12-206-36a 12-206-36b |
स एवं चतुरो वर्णान्समुत्पाद्य महातपाः। अध्यक्षं सर्व भूतानां धातारमकरोत्स्वयम्।। | 12-206-37a 12-206-37b |
वेदविद्याविधातारं ब्रह्माणमतितद्युतिम्। भूतमातृगणाध्यक्षं विरूपाक्षं च सोऽसृजत्।। | 12-206-38a 12-206-38b |
शासितारं च पापानां पितृणां समवर्तिनम्। असृजत्सर्वभूतात्मा निधिपं च धनेश्वरम्।। | 12-206-39a 12-206-39b |
यादसामसृजन्नाथं वरुणं च जलेश्वरम्। वासवं सर्वदेवानामध्यक्षमकरोत्प्रभुः।। | 12-206-40a 12-206-40b |
यावद्यावदभूच्छ्रद्धा देहं धारयितुं नृणाम्। तावत्तावदजीवंस्ते नासीद्यमकृतं भयम्।। | 12-206-41a 12-206-41b |
न चैषां मैथुनो धर्मो बभूव भरतर्षभ। संकल्पादेव चैतेषां गर्भः समुपपद्यते।। | 12-206-42a 12-206-42b |
ततस्रेतायुगे काले संस्पर्शाज्जायते प्रजा। न ह्यभून्मैथुनो धर्मस्तेषामपि जनाधिप।। | 12-206-43a 12-206-43b |
द्वापरे मैथुनो धर्मः प्रजानामभवन्नृप। तथा कलियुगे राजन्द्वन्द्वमापेदिरे जनाः।। | 12-206-44a 12-206-44b |
एष भूतपतिस्तात स्वध्यक्षश्च तथोच्यते। निरपेक्षांश्च कौन्तेय कीर्तयिष्यामि तच्छृणु।। | 12-206-45a 12-206-45b |
दक्षिणापथजन्मानः सर्वे करभृतस्तव। आन्ध्राः पुलिन्दाः शवराश्चूचुपा मद्रकैः सह।। | 12-206-46a 12-206-46b |
उत्तरापथजन्मानः कीर्तयिष्यामि तानपि। ये तु काम्भोजगान्धाराः किराता बर्वरैः सह।। | 12-206-47a 12-206-47b |
एते पापकृतस्तात चरन्ति पृथिवीमिमाम्। बकश्वपाकगृध्राणां सधर्माणो नराधिप।। | 12-206-48a 12-206-48b |
नैते कृतयुगे तात चरन्ति पृथिवीमिमाम्। त्रेताप्रभुति वर्धन्ते ते जना भरतर्षभ।। | 12-206-49a 12-206-49b |
ततस्तस्मिन्महाघोरे संन्ध्याकाले युगान्तिके। राजानः समसज्जन्त समासाद्येतरेतम्।। | 12-206-50a 12-206-50b |
`ऐन्द्रं रूपं समास्थाय ह्यसुरेभ्यो चरन्महीम्। स एव भगवान्देवो वेदित्वं च गता मही।। | 12-206-51a 12-206-51b |
एवंभूते सृष्टिर्नारसिंहादयः क्रमात्। प्रादुर्भावाः स्मृता विष्णोर्जगतीरक्षणाय वै।। | 12-206-52a 12-206-52b |
एष कृष्णो महायोगी तत्तत्कार्यानुरूपणम्। हिरण्यकशिपुं दैत्यं हिरण्याक्षं तथैव च।। | 12-206-53a 12-206-53b |
रावणं च महादैत्यं हत्वासौ पुरुषोत्तमः। भूमेर्दुःखोपनाशार्थं ब्रह्मशक्रादिभिः स्तुतः।। | 12-206-54a 12-206-54b |
आत्मनोऽङ्गान्महातेजा उद्वबर्ह जनार्दनः। सितकृष्णौ महाराज केशौ हरिरुदारधीः।। | 12-206-55a 12-206-55b |
वसुदेवस्य देवक्यामेष जात इहोत्तमः। देहवानिह विश्वात्मा संबन्धी ते जनार्दनः।। | 12-206-56a 12-206-56b |
आविर्वभूव योगीन्द्रो मनोतीतो जगत्पतिः। अचिन्त्यः पुरुषव्याघ्र नैव केवलमानुषः।। | 12-206-57a 12-206-57b |
अव्यक्तादिविशेषान्तं परिमाणार्थसंयुतम्। क्रीडा हरेरिदं सर्वं क्षरमित्येव धार्यताम्।। | 12-206-58a 12-206-58b |
अक्षरं तत्परं नित्यं वैरूप्यं जगतो हरेः। तद्विद्धि रूपमतुलममृतत्वं भवज्जितम्।। | 12-206-59a 12-206-59b |
तदेव कृष्णो दाशार्हः श्रीमाञ्श्रीवत्सलक्षणः। न भूतसृष्टिसंस्थानं देहोऽस्य परमात्मनः।। | 12-206-60a 12-206-60b |
देहवानिह यो विष्णुरसौ मायामयो हरिः। आत्मनो लोकरक्षार्थं ध्याहि नित्यं सनातनम्।। | 12-206-61a 12-206-61b |
अङ्गानि चतुरे वेदा मीमांसा न्यायविस्तरः। इतिहासपुराणानि धर्माः स्वायंभुवादयः।। | 12-206-62a 12-206-62b |
य एनं प्रतिवर्तन्ते वेदान्तानि च सर्वशः। भक्तिहीना न तैर्यान्ति नित्यमेनं कथंचन।। | 12-206-63a 12-206-63b |
सर्वभूतेषु भूतात्मा तत्तद्बुद्धिं समास्थितः। तस्माद्बुद्धस्त्वमेवैनं ध्याहि नित्यमतन्द्रितः।।' | 12-206-64a 12-206-64b |
एवमेष कुरुश्रेष्ठ प्रादुर्भावो महात्मनः। एवं देवर्षिराचष्ट नारदः सर्वलोकदृक्।। | 12-206-65a 12-206-65b |
नारदोऽप्यथ कृष्णस्य परं मेने नराधिप। शाश्वतत्वं महाबाहो यथावद्भरतर्षभ।। | 12-206-66a 12-206-66b |
एवमेव महाबाहुः केशवः सत्यविक्रमः। अचिन्त्यः पुण्डरीकाक्षो नैष केवलमानुषः।। | 12-206-67a 12-206-67b |
`एवंविधोऽसौ पुरुषः को वैनं वेत्ति सर्वदा। एतत्ते कथितं राजन्भूयः श्रोतुं किमिच्छसि'।। | 12-206-68a 12-206-68b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि षडधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 206।। |
12-206-1 कर्तारममृतं विष्णुमिति ड. थ. पाठः।। 12-206-25 ततस्त्वरजसो दशेति ड. थ. पाठः।। 12-206-28 द्विरदांश्च वनस्पतीनिति ड. पाठः। विशदांश्च वनस्पतीनिति ध. पाठः। इतराः कश्यपस्त्रियः। व्यजायन्त व्यजनयन्त।। 12-206-35 शतमनन्तम्।। 12-206-39 समवर्तिनं यमम्।।
शांतिपर्व-205 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-207 |