महाभारतम्-12-शांतिपर्व-159
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भीष्मेण तपोनिरूपणम्।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-159-1x |
सर्वमेतत्तपोमूलं कवयः परिचक्षते। न ह्यतप्ततपा मूढः क्रियाफलमवाप्नुते।। | 12-159-1a 12-159-1b |
प्रजापतिरिदं सर्वं तपसैवासृजत्प्रभुः। तथैव वेदानृपयस्तपसा प्रतिपेदिरे।। | 12-159-2a 12-159-2b |
तपसैव ससर्जान्नं फलमूलानि यानि च। त्रीँल्लोकांस्तपसा सिद्धाः पश्यन्ति सुसमाहिताः।। | 12-159-3a 12-159-3b |
औषधान्यगदादीनि तिस्त्रो विद्याश्च संस्कृताः। तषसैव हि सिद्ध्यन्ति तपोमूलं हि साधनम्।। | 12-159-4a 12-159-4b |
यद्दुरापं दुराराध्यं दुराधर्षं दुरुत्सहम्। तत्सर्वं तपसा शक्यं तपो हि दुरतिक्रमम्। ऐश्वर्यमृषयः प्राप्तास्तपसैव न संशयः।। | 12-159-5a 12-159-5b 12-159-5c |
सुरापोऽसंमतादायी भ्रूणहा गुरुतल्पगः। तपसैव सुतप्तेन नरः पापात्प्रमुच्यते।। | 12-159-6a 12-159-6b |
तपसो बहुरूपस्य तैस्तैर्द्वारैः प्रवर्ततः। निवृत्त्या वर्तमानस्य तपो नानशनात्परम्।। | 12-159-7a 12-159-7b |
अहिंसा सत्यवचनं दानमिन्द्रियनिग्रहः। एतेभ्यो हि महाराज तपो नानशनात्परम्।। | 12-159-8a 12-159-8b |
न दुष्करतरं दानान्नाति मातरमाश्रमः। त्रैविद्येभ्यः परं नास्ति संन्यासान्नापरं तपः।। | 12-159-9a 12-159-9b |
इन्द्रियाणीह रक्षन्ति विप्रर्षिपितृदेवताः। तस्मादर्थे च धर्मे च तपो नानशनात्परम्।। | 12-159-10a 12-159-10b |
ऋषयः पितरो देवा मनुष्या मृगपक्षिणः। यानि चान्यानि भूतानि स्यावराणि चराणि च।। | 12-159-11a 12-159-11b |
तपः परायणाः सर्वे सिध्यन्ति तपसा च ते। इत्येवं तपसा देवा महत्त्वं प्रतिपेदिरे।। | 12-159-12a 12-159-12b |
इमानीष्टविभागानि फलानि तपसः सदा। तपसा शक्यते प्राप्नुं देवत्वमपि निश्चयः।। | 12-159-13a 12-159-13b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि आपद्धर्मपर्वणि एकोनषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः।। 159।। |
[सम्पाद्यताम्]
12-159-3 तपसो ह्यानुपूर्व्येण फलमूलानिलाशिनः। इति द. ध. पाठः।। 12-159-9 मातरमतिक्रम्याश्रमो न। सर्वेष्वप्याश्रमेषु माता पालनीयैव। तत्त्यागस्य संन्यासिनोऽप्ययोगात्।। 12-159-13 इमानिं नक्षत्रादीनि। सुकृतां वा एतानि ज्योतीषि यन्नक्षत्राणीश्रुतेः।।
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