महाभारतम्-12-शांतिपर्व-241
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति व्यासकृतब्राह्मणधर्मकथनपूर्वकज्ञानप्रशंसनानुवादः।। 1।।
व्यास उवाच। | 12-241-1x |
त्रयीं विद्यामवेक्षेत वेदेपूत्तमतां गतः। ऋक्सामवर्णाक्षरतो यजुषोऽथर्वणस्तथा।। | 12-241-1a 12-241-1b |
[तिष्ठत्येतेषु भगवान्षट्सु कर्मसु संस्थितः।] वेदवादेषु कुशला ह्यध्यात्मकुशलाश्च ये।। | 12-241-2a 12-241-2b |
सत्ववन्तो महाभागाः पश्यन्ति प्रभवाप्ययौ। एवं धर्मेण वर्तेत क्रियाः शिष्टवदाचरेत्।। | 12-241-3a 12-241-3b |
असंरोधेन भूतानां वृत्तिं लिप्सेत वै द्विजः। सद्भ्य आगतविज्ञानः शिष्टः शास्त्रविचक्षणः।। | 12-241-4a 12-241-4b |
स्वधर्मेण क्रिया लोके कुर्वाणः सोऽप्यसङ्करः। तिष्ठते तेषु गृहवान्षट्सु कर्मसु स द्विजः।। | 12-241-5a 12-241-5b |
पञ्चभिः सततं यज्ञैः श्रद्दधानो यजेत च। धृतिमानप्रमत्तश्च दान्तो धर्मविदात्मवान्। वीतहर्षमदक्रोधो ब्राह्मणो नावसीदति।। | 12-241-6a 12-241-6b 12-241-6c |
दानमध्ययनं यज्ञस्तपो ह्रीरार्जवं दमः। एतैर्विवर्धते तेजः पाप्मानं चापकर्षति।। | 12-241-7a 12-241-7b |
धूतपाप्मा च मेधावी लघ्वाहारो जितेन्द्रियः। कामक्रोधौ वशे कृत्वा निनीषेद्ब्रह्मणः पदम्।। | 12-241-8a 12-241-8b |
अग्नींश्च ब्राह्मणांश्चार्चेद्देवताः प्रणमेत च। वर्जयेदुशतीं वाचं हिंसां चाधर्मसंहिताम्।। | 12-241-9a 12-241-9b |
एषा पूर्वतरा वृत्तिर्ब्राह्मणस्य विधीयते। ज्ञानागमेन कर्माणि कुर्वन्कर्मसु सिद्ध्यति।। | 12-241-10a 12-241-10b |
पञ्चेन्द्रियजलां घोरां लोभकूलां सुदुस्तराम्। मन्युपङ्कामनाधृष्यां नदीं तरति बुद्धिमान्।। | 12-241-11a 12-241-11b |
कालमभ्युद्यतं पश्येन्नित्यमत्यन्तमोहनम्।। | 12-241-12a |
महता विधिदृष्टेन बलिनाऽप्रतिघातिना। स्वभावस्रोतसा वृत्तमुह्यते सततं जगत्।। | 12-241-13a 12-241-13b |
कालोदकेन महता वर्षावर्तेन संततम्। मासोर्मिणर्तुवेगेन पक्षोलपतृणेन च।। | 12-241-14a 12-241-14b |
निमेषोन्मेषफेनेन अहोरात्रजवेन च। कामग्राहेण घोरेण वेदयज्ञप्लवेन च।। | 12-241-15a 12-241-15b |
धर्मद्वीपेन भूतानां चार्थकामरवेण च। ऋतवाङ्मोक्षतीरेण विहिंसातरुवाहिना।। | 12-241-16a 12-241-16b |
युगह्रदौघमध्येन ब्रह्मप्रायभवेन च। धात्रा सृष्टानि भूतानि कृष्यन्ते यमसादनम्।। | 12-241-17a 12-241-17b |
एतत्प्रज्ञामयैर्धीरा निस्तरन्ति मनीषिणः। प्लवैरप्लववन्तो हि किं करिष्यन्त्यचेतसः।। | 12-241-18a 12-241-18b |
उपपन्नं हि यत्प्राज्ञो निस्तरेन्नेतरो जनः। दूरतो गुणदोषौ हि प्राज्ञः सर्वत्र पश्यति।। | 12-241-19a 12-241-19b |
संशयात्तु स कामात्मा चलचित्तोऽल्पचेतनः। अप्राज्ञो न तरत्येनं यो ह्यास्ते न स गच्छति।। | 12-241-20a 12-241-20b |
अप्लवो हि महादोषं मुह्यमानो न गच्छति। कामग्राहगृहीतस्य ज्ञानमप्यस्य न प्लवः।। | 12-241-21a 12-241-21b |
तस्मादुन्मज्जनस्यार्थे प्रयतेत विचक्षणः। एतदुन्मज्जनं तस्य यदयं ब्राह्मणो भवेत्।। | 12-241-22a 12-241-22b |
त्र्यवदाते कुले जातस्त्रिसंदेहस्त्रिकर्मकृत्। तस्मादुन्मज्जनं तिष्ठेत्प्रज्ञया निस्तरेद्यथा।। | 12-241-23a 12-241-23b |
संस्कृतस्य हि दान्तस्य नियतस्य यतात्मनः। प्राज्ञस्यानन्तरा सिद्धिरिह लोके परत्र च।। | 12-241-24a 12-241-24b |
वर्तेत तेषु गृहवानक्रुध्यन्ननसूयकः। पञ्चभिः सततं यज्ञैर्विघसाशी यजेत च।। | 12-241-25a 12-241-25b |
सतां धर्मेण वर्तेत क्रियां शिष्टवदाचरेत्। असंरोधेन लोकस्य वृत्तिं लिप्सेदगर्हिताम्।। | 12-241-26a 12-241-26b |
श्रुतविज्ञानतत्त्वज्ञः शिष्टाचारविचक्षणः। स्वधर्मेण क्रियावांश्च कर्मणा सोऽप्यसंकरः।। | 12-241-27a 12-241-27b |
क्रियावाञ्श्रद्दधानो कहि दान्तः प्रायोऽनसूयकः। धमार्धर्मविशेषज्ञः सर्वं तरति दुस्तरम्।। | 12-241-28a 12-241-28b |
धृतिमानप्रमत्तश्च दान्तो धर्मविदात्मवान्। वीतहर्षमदक्रोधो ब्राह्मणो नावसीदति।। | 12-241-29a 12-241-29b |
एषा पुरातनी वृत्तिर्ब्राह्मणस्य विधीयते। ज्ञानवृद्ध्यैव कर्माणि कुर्वन्सर्वत्र सिध्यति।। | 12-241-30a 12-241-30b |
अधर्मं धर्मकामो हि करोति ह्यविचक्षणः। धर्मं वा धर्मसंकाशं शोचन्निव करोति सः।। | 12-241-31a 12-241-31b |
धर्मं करोमीति करोत्यधर्म मधर्मकामश्च करोति धर्मम्। उभे बालः कर्मणी न प्रजानम् संजायते म्रियते चापि देही।। | 12-241-32a 12-241-32b 12-241-32c 12-241-32d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि एकचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 241।। |
12-241-1 वेदेषूक्तामथाङ्गत इति झ. पाठः।। 12-241-7 एतैर्वर्धयते इति झ. पाठः।। 12-241-12 काममन्यूद्धतं पश्यन्नित्यमत्यन्तमोहितमिति ट. थ. ध. पाठः।। 12-241-17 ब्रह्मप्रायभवेन ब्रह्मकार्यभूतेन। स्रोतसा युगभूतेन ब्रह्मप्रायभवेन चेति ट. थ. पाठः।। 12-241-23 अवदातेषु शुद्धेषु कुलेष्विति शेषः। त्रिष्वध्यापनयाजनप्रतिग्रहेषु संदेहवांस्तत्राप्रवृत्त इत्यर्थखः। त्रिकर्मकृत् स्वाध्याययजनदानकृत्।। 12-241-27 शिष्टशास्त्रविचक्षण इति ट. थ. पाठः।।
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