महाभारतम्-12-शांतिपर्व-005
दिखावट
← शांतिपर्व-004 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-005 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-006 → |
कर्णपराक्रमवर्णनम्।। 1।।
नारद उवाच। | 12-5-1x |
आदित्कृतबलं कर्णं दृष्ट्वा राजा स मागधः। आह्वयद्द्वैरथेनाजौ जरासन्धो महीपतिः।। | 12-5-1a 12-5-1b |
तयोः समभवद्युद्धं दिव्यास्त्रविदुषोर्द्वयोः। युधि नानाप्रहरणैरन्योन्यमभिवर्षतोः।। | 12-5-2a 12-5-2b |
क्षीणबाणौ विधनुषौ भग्नखङ्गौ महीं गतौ। बाहुभिः समसज्जेतामुभावतिबलान्वितौ।। | 12-5-3a 12-5-3b |
[बाहुकण्टकयुद्धेन तस्य कर्णोऽथ युध्यतः।] विभेदं संधिं देहस्य जरया श्लेषितस्य हि।। | 12-5-4a 12-5-4b |
स विकारं शरीरस्य दृष्ट्वा नृपतिरात्मनः। प्रीतोऽस्मीत्यब्रवीत्कर्णं वैरमुत्सृज्य दूरतः।। | 12-5-5a 12-5-5b |
प्रीत्या ददौ स कर्णाय मालिनीं नगरीमनु। अङ्गेषु नरशार्दूल स राजाऽऽसीत्सपत्नजित्।। | 12-5-6a 12-5-6b |
पालयामास वर्णांस्तु कर्णः परबलार्दनः। दुर्योधनस्यानुमते तवापि विदितं तथा।। | 12-5-7a 12-5-7b |
एवं शस्त्रप्रतापेन प्रथितः सोऽभवत्क्षितौ। त्वद्धितार्थं सुरेन्द्रेण भिक्षितो वर्मकुण्डले।। | 12-5-8a 12-5-8b |
स दिव्ये सहजे प्रादात्कुण्डले परमार्चिते। सहजं कवचं चापि मोहितो देवमायया।। | 12-5-9a 12-5-9b |
विमुक्तः कुण्डलाभ्यां च सहजेन च वर्मणा। निहतो विजयेनाजौ वासुदेवस्य पश्यतः।। | 12-5-10a 12-5-10b |
ब्राह्मणस्यापि शापेन रामस्य च महात्मनः। कुन्त्याश्च वरदानेन मायया च शतक्रतोः।। | 12-5-11a 12-5-11b |
भीष्मावमानात्सङ्ख्यायां रथानामर्धकीर्तनात्। शल्यतेजोवधाच्चापि वासुदेवनयेन च। | 12-5-12a 12-5-12b |
रुद्रस्य देवराजस्य यमस्य वरुणस्य च। कुबेरद्रोणयोश्चैव कृपस्य च महात्मनः।। | 12-5-13a 12-5-13b |
अस्त्राणि दिव्यान्यादाय युधि गाण्डीवधन्वना। हतो वैकर्तनः कर्णो दिवाकरसमद्युतिः।। | 12-5-14a 12-5-14b |
एवं शप्तस्तव भ्राता बहुभिश्चापि वञ्चितः। न शोच्यः पुरुषव्याघ्र युद्धे हि निधनं गतः।। | 12-5-15a 12-5-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि पञ्चमोऽध्यायः।। 5।। |
12-5-4 बाहुकण्टकयुद्धेन बाहुकण्टकं केतकपत्रं तद्वद्यत्र बलिना दुर्बलस्य शरीरं पाट्यते तद्वाहुकण्टकं नाम युद्धम्।। 12-5-5 विकारं पाटनरूपम्।। 12-5-7 पालयामास चम्पां चेति झ. पाठः।।
शांतिपर्व-004 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-006 |