महाभारतम्-12-शांतिपर्व-342
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति दैवपित्र्यकर्मानुष्ठानस्यावश्यकत्वप्रतिपादकनारदनानायणसंवादानुवादः।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-342-1x |
गृहस्थो ब्रह्मचारी वा वानप्रस्थोऽथ भिक्षुकः। य इच्छेत्सिद्धिमास्थातुं देवतां कां यजेत सः।। | 12-342-1a 12-342-1b |
कुतो ह्यस्य ध्रुवः स्वर्गः कुतो नैःश्रेयसं परम्। विधिना केन जुहुयाद्दैवं पित्र्यं तथैव च।। | 12-342-2a 12-342-2b |
मुक्तश्च कां गतिं गच्छेन्मोक्षश्चैव किमात्मकः। स्वर्गतश्चैव किं कुर्याद्येन न च्यवते दिवः।। | 12-342-3a 12-342-3b |
देवतानां च को देवः पितॄणां च पिता तथा। तस्मात्परतरं यच्च तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 12-342-4a 12-342-4b |
भीष्म उवाच। | 12-342-5x |
गूढं मां प्रश्नवित्प्रश्नं पृच्छसे त्वमिहानघ। न ह्येतत्तर्कया शक्यं वक्तुं वर्षशतैरपि।। | 12-342-5a 12-342-5b |
ऋते देवप्रसादाद्वा राजञ्ज्ञानागमेन वा। गहनं ह्येतदाख्यानं व्याख्यातव्यं तवारिहन्।। | 12-342-6a 12-342-6b |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। नारदस्य च संवादमृषेर्नारायणस्य च।। | 12-342-7a 12-342-7b |
नारायणो हि विश्वात्मा चतुर्मूर्तिः सनातनः। धर्मात्मजः संबभूव पितैवं मेऽभ्यभाषत।। | 12-342-8a 12-342-8b |
कृते युगे महाराज पुरा स्वायंभुवेऽन्तरे। नरो नारायणश्चैव हरिः कृष्णस्तथैव च।। | 12-342-9a 12-342-9b |
तेषां नारायणनरौ तपस्तेपतुरव्ययौ। बदर्याश्रममासाद्य शकटे कनकामये।। | 12-342-10a 12-342-10b |
अष्टचक्रं हि तद्यानं भूतयुक्तं मनोरमम्। तत्राद्यौ लोकनाथौ तौ कृशौ धमनिसंततौ।। | 12-342-11a 12-342-11b |
तपसा तेजसा चैव दुर्निरीक्ष्यौ सुरैरपि। यस्य प्रसादं कुर्वाते स देवौ द्रष्टुमर्हति।। | 12-342-12a 12-342-12b |
नूनं तयोरनुमते हृदि हृच्छपचोदितः। महामेरोगिंरेः शृङ्गात्प्रत्युतो गन्धमादनम्।। | 12-342-13a 12-342-13b |
नारदः सुमहद्भूतं सर्वलोकानचीचरत्। तं देशमगमद्राजन्वदर्याश्रममाशुगः।। | 12-342-14a 12-342-14b |
तयोराह्निकवेलायां तस्य कौतूहलं त्वभूत्। इदं तदास्पदं कृत्स्नं यस्मिँल्लोकाः प्रतिष्ठिताः।। | 12-342-15a 12-342-15b |
सदेवासुरगन्धर्वाः सकिन्नरमहोरगाः। एका मूर्तिरियं पूर्वं जाता भूयश्चतुर्विधा।। | 12-342-16a 12-342-16b |
धर्मस्य कुलसंताने धर्मादेभिर्विवर्धितः। अहो ह्यनुगृहीतोऽद्य धर्म एभिः सुरैरिह।। | 12-342-17a 12-342-17b |
नरनारायणाभ्यां च कृष्णेन हरिणा तथा। अत्र कृष्णो हरिश्चैव कस्मिंश्चित्कारणान्तरे।। | 12-342-18a 12-342-18b |
स्थितौ धर्मसुतावेतौ तथा तपसि धिष्ठितौ। एतौ हि परमं धाम काऽनयोराह्निकक्रिया।। | 12-342-19a 12-342-19b |
पितरौ सर्वभूतानां दैवतं च यशस्विनौ। कां देवतां तु यजतः पितॄन्वा कान्महामती।। | 12-342-20a 12-342-20b |
इति संचिन्त्य मनसा भक्त्या नारायणस्य तु। सहसा प्रादुरभवत्समीपे देवयोस्तदा।। | 12-342-21a 12-342-21b |
कृते दैवे च पित्र्ये च ततस्ताभ्यां निरीक्षितः। पूजितश्चैव विधिना यथाप्रोक्तेन शास्त्रतः।। | 12-342-22a 12-342-22b |
तद्दृष्ट्वा महदाश्चर्यमपूर्वं विधिविस्तरम्। उपोपविष्टः सुप्रीतो नारदो भगवानृषिः।। | 12-342-23a 12-342-23b |
नारायणं संनिरीक्ष्य प्रसन्नेनान्तरात्मना। नमस्कृत्य महादेवमिदं वचनमब्रवीत्।। | 12-342-24a 12-342-24b |
वेदेषु सपुराणेषु साङ्गोपाङ्गेषु गीयसे। त्वमजः शाश्वतो धाता माता मृतमनुत्तमम्।। | 12-342-25a 12-342-25b |
प्रतिष्ठितं भूतभव्यं त्वयि सर्वमिदं जगत्। चत्वारो ह्याश्रमा देव सर्वे गार्हस्थ्यमूलकाः।। | 12-342-26a 12-342-26b |
यजन्ते त्वामहरहर्नानामूर्तिसमास्थितम्। पिता माता च सर्वस्य देवतानां च शाश्वतम्। कं त्वद्य यजसे देवं पितरं कं न विद्महे।। | 12-342-27a 12-342-27b 12-342-27c |
`कमर्चसि महाभाग तन्मे प्रब्रूहि पृच्छतः।।' | 12-342-28a |
श्रीभगवानुवाच। | 12-342-29x |
अवाच्यमेतद्वक्तव्यमात्मगुह्यं सनातनम्। तव भक्तिमतो ब्रह्मन्वक्ष्यामि तु यथातथम्।। | 12-342-29a 12-342-29b |
यत्तत्सूक्ष्ममविज्ञेयमव्यक्तमचलं ध्रुवम्। इन्द्रियैन्द्रियार्थैश्च सर्वभूतैश्च वर्जितम्।। | 12-342-30a 12-342-30b |
स ह्यन्तरात्मा भूतानां क्षेत्रज्ञश्चेति कथ्यते। त्रिगुणव्यतिरिक्तो वै पुरुषश्चेति कल्पितः।। | 12-342-31a 12-342-31b |
तस्मादव्यक्तमुत्पन्नं त्रिगुणं द्विजसत्तम। अव्यक्ताव्यक्तभावस्था या सा प्रकृतिरव्यया।। | 12-342-32a 12-342-32b |
तां योनिमावयोर्विद्धि योसौ सदसदात्मकः। आवाभ्यां पूज्यते यो हि दैवे पित्र्ये च कल्प्यते।। | 12-342-33a 12-342-33b |
नास्ति तस्मात्परोऽन्यो हि पिता देवोऽथवा द्विज। आत्मा हि नौ स विज्ञेयस्ततस्तं पूजयावहे।। | 12-342-34a 12-342-34b |
तेनैषा प्रथिता ब्रह्मन्मर्यादा लोकमाविनी। दैवं पित्र्यं च कर्तव्यमिति तस्यानुशासनम्।। | 12-342-35a 12-342-35b |
ब्रह्मा स्थाणुर्मनुर्दक्षो भृगुर्धर्मस्तथा यमः। मरीचिरङ्गिराश्चात्रिः पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः।। | 12-342-36a 12-342-36b |
वसिष्ठः परमेष्ठी च विवस्वान्सोम एव च। कर्दमश्चापि यः प्रोक्तः क्रोधो विक्रीत एव च।। | 12-342-37a 12-342-37b |
*एकविंशतिरुत्पन्नास्ते प्रजापतयः स्मृताः। तस्य देवस्य मर्यादां पूजयन्तः सनातनीम्।। | 12-342-38a 12-342-38b |
दैवं पित्र्यं च सततं तस्य विज्ञाय तत्त्वतः। आत्मप्राप्तानि च ततो जानन्ति द्विजसत्तमाः।। | 12-342-39a 12-342-39b |
स्वर्गस्था अपि ये केचित्तान्नमस्यन्ति देहिनः। ते तत्प्रसादाद्गच्छन्ति तेनादिष्टफलां गतिम्।। | 12-342-40a 12-342-40b |
ये हीनाः सप्तदशभिर्गुणैः कर्मभिरेव च। कलाः पञ्चदश त्यक्त्वा ते मुक्ता इति निश्चयः।। | 12-342-41a 12-342-41b |
मुक्तानां तु गतिर्ब्रह्मन्क्षेत्रज्ञ इति कल्पिता। स हि सर्वगतिश्चैव निर्गुणश्चैव कथ्यते।। | 12-342-42a 12-342-42b |
दृश्यते ज्ञानयोगेन आवां च प्रसृतौ ततः। एवं ज्ञात्वा तमात्मानं पूजयावः सनातनम्।। | 12-342-43a 12-342-43b |
तं वेदाश्चाश्रमाश्चैव नानातनुसमाश्रितम्। भक्त्या संपूजयन्त्यद्य गतिं चैषां ददाति सः।। | 12-342-44a 12-342-44b |
ये तु तद्भाविता लोके ह्येकान्तित्वं समास्थिताः। एतदभ्यधिकं तेषां यत्ते तं प्रविशन्त्युत।। | 12-342-45a 12-342-45b |
इति गुह्यसमुद्देशस्तव नारद कीर्तितः। भक्त्या प्रेम्णा च विप्रर्षे अस्मद्भक्त्या च ते श्रुतः।। | 12-342-46a 12-342-46b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि द्विचत्वारिंशदधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 342।। |
12-342-3 किं कुर्यात्कथं न चलते दिव इति ध. पाठः।। 12-342-5 अतिगूढमिति प्रश्नमिति ट. पाठः। नह्येतदन्यथा शक्यमिति ध. पाठः। तर्कया तक्रेण आर्षो लिङ्गव्यत्ययः।। 12-342-6 ज्ञानागमेन ऋते विना।। 12-342-8 चतस्रो मूर्तयो नराद्याः।। 12-342-17 धर्मस्य मूलसंतानो महानिति विवर्धित इति ध. पाठः।। 12-342-19 स्थितौ धर्मोत्तरौ ह्येताविति झ. पाठः।। 12-342-25 सपुराणेषु शास्त्रेषु च महामतिरिति ध. पाठः। धाता विधाता मृत्युरुत्तम इति थ. पाठः।। 12-342-34 आत्मा हि नः स विज्ञेय इति झ. पाठः।। 12-342-35 तेनैव स्थापिता ब्रह्मन्निति थ. पाठः।।
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