महाभारतम्-12-शांतिपर्व-210
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति नारदाय श्रीनारायणोक्तस्य प्रयाणकाले श्रीभगवदनुस्मृतिप्रकारस्य कथनम्।। 1।।
`युधिष्ठिर उवाच। | 12-210-1x |
पितामह महाप्राज्ञ सर्वशास्त्रविशारद। प्रयाणकाले किं जप्यं मोक्षिभिस्तत्त्वचिन्तकैः।। | 12-210-1a 12-210-1b |
किंनु स्मरन्कुरुश्रेष्ठ मरणे समुपस्थिते। प्राप्नुयात्परमां सिद्धिं श्रोतुमिच्छामि तत्वतः।। | 12-210-2a 12-210-2b |
भीष्म उवाच। | 12-210-3x |
त्वद्युक्तश्च हितः सूक्ष्म उक्तः प्रश्नस्त्वयाऽनघ। शृणुष्वावहितो राजन्नारदेन पुरा श्रुतम्।। | 12-210-3a 12-210-3b |
श्रीवत्साङ्कं जगद्बीजमनन्तं लोकसाक्षिणम्। पुरा नारायणं देवं नारदः पर्यपृच्छत।। | 12-210-4a 12-210-4b |
अक्षरं परमं ब्रह्म निर्गुणं तमसः परम्। आहुर्वैद्यं परं धाम ब्रह्मादिकमलोद्भवम्।। | 12-210-5a 12-210-5b |
भगवन्भूतभव्येश श्रद्दधानैर्जितेन्द्रियैः। कथं भक्तैर्विचिन्त्योसि योगिभिर्मोक्षकाङ्क्षिभिः।। | 12-210-6a 12-210-6b |
किंनु जप्यं जपेन्नित्यं काल्यमुत्थाय मानवः। स्मरेच्च म्रियमाणो वै विशेषेण महाद्युते।। | 12-210-7a 12-210-7b |
कथं युञ्जन्समाध्यायेद्ब्रूहि तत्वं सनातनम्।। | 12-210-8a |
श्रुत्वा च नारदोक्तं तु देवानामीश्वरः स्वयम्। प्रोवाच भगवान्विष्णुर्नारदं वरदः प्रभुः।। | 12-210-9a 12-210-9b |
हन्त ते कथयिष्यामि इमां दिव्यामनुस्मृतिम्। यामधीत्य प्रयाणे तु मद्भावयोपपद्यते।। | 12-210-10a 12-210-10b |
ओंकारमग्रतः कृत्वा मां नमस्कृत्य नारद। एकाग्रः प्रयतो भूत्वा इमं मन्त्रमुदीरयेत्।। | 12-210-11a 12-210-11b |
ओं नमो भगवते वासुदेवायेति।। | 12-210-12a |
इत्युक्तो नारदः प्राह प्राञ्जलिः प्रणतः स्थितः। सर्वदेवेश्वरं विष्णुं सर्वात्मानं हरिं प्रभुम्।। | 12-210-13a 12-210-13b |
नारद उवाच। | 12-210-14x |
अव्ययं शाश्वतं देवं प्रभवं पुरुषोत्तमम्। प्रपद्ये प्राञ्जलिर्विष्णुमक्षरं परमं पदम्।। | 12-210-14a 12-210-14b |
पुराणं प्रभवं विष्णुमक्षयं लोकसाक्षिणम्। प्रपद्ये पुण्डरीकाक्षमीशं भक्तानुकम्पिनम्।। | 12-210-15a 12-210-15b |
लोकनाथं सहस्राक्षमद्भुतं परदं पदम्। भगवन्तं प्रपन्नोऽस्मि भूतभव्यभवत्प्रभुम्।। | 12-210-16a 12-210-16b |
स्रष्टारं सर्वलोकानामनन्तं सर्वतोमुखम्। पद्मनाभं हृषीकेशं प्रपद्ये सत्यमच्युतम्।। | 12-210-17a 12-210-17b |
हिरण्यगर्भममृतं भूगर्भं परतः परम्। प्रभोः प्रभुमनाद्यन्तं प्रपद्ये तं रविप्रभम्।। | 12-210-18a 12-210-18b |
सहस्रशीर्षं पुरुषं महर्षि तत्वभावनम्। प्रपद्ये सूक्ष्ममचलं वरेण्यमभयप्रदम्।। | 12-210-19a 12-210-19b |
नारायणं पुराणर्षि योगात्मानं सनातनम्। संस्थानं सर्वतत्वानां प्रपद्ये ध्रुवमीश्वरम्।। | 12-210-20a 12-210-20b |
यः प्रभुः सर्वभूतानां येन सर्वमिदं ततम्। परावरगुरुर्विष्णुः स मे देवः प्रसीदतु।। | 12-210-21a 12-210-21b |
यस्मादुत्पद्यते ब्रह्मा पद्मयोनिः सनातनः। ब्रह्मयोनिर्हि विश्वात्मा स मे विष्णुः प्रसीदतु।। | 12-210-22a 12-210-22b |
यः पुरा प्रलये प्राप्ते नष्टे स्थावरजङ्गमे। ब्रह्मादिषु प्रलीनेषु नष्टे लोकपरावरे।। | 12-210-23a 12-210-23b |
आभूतसंप्लवे चैव प्रलीनेऽप्राकृतो महान्। एकस्तिष्ठति विश्वात्मा स मे विष्णुः प्रसीदतु।। | 12-210-24a 12-210-24b |
चतुर्भिश्च चतुर्भिश्च द्वाभ्यां पञ्चभिरेव च। हुयते च पुनर्द्वाभ्यां स मे विष्णुः प्रसीदतु।। | 12-210-25a 12-210-25b |
पर्जन्यः पृथिवी सस्यं कालो धर्मः क्रियाक्रिये। गुणाकरः स मे बभ्रुर्वासुदेवः प्रसीदतु।। | 12-210-26a 12-210-26b |
अग्नीषोमार्कताराणां ब्रह्मरुद्रेन्द्रयोगिनाम्। यस्तेजयति तेजांसि स मे विष्णुः प्रसीदतु।। | 12-210-27a 12-210-27b |
योगावास नमस्तुभ्यं सर्वावास वरप्रद। यज्ञगर्भ हिरण्याङ्गं पञ्चयज्ञ नमोस्तु ते।। | 12-210-28a 12-210-28b |
चतुर्मूर्ते परं धाम लक्ष्म्यावास परार्चित। सर्वावास नमस्तेऽस्तु वासुदेव प्रधानकृत्।। | 12-210-29a 12-210-29b |
अजस्त्वनामयः पन्था ह्यमूर्तिर्विश्वमूर्तिधृत्। विकर्तः पञ्चकाज्ञ नमस्ते ज्ञानसागर।। | 12-210-30a 12-210-30b |
अव्यक्ताद्व्यक्तमुत्पन्नमव्यक्ताद्यः परोऽक्षरः। यस्मात्परतरं नास्ति तमस्मि शरणं गतः।। | 12-210-31a 12-210-31b |
न प्रधानो न च महान्पुरुषश्चेतनो ह्यजः। अनयोर्यः परतरस्तमस्मि शरणं गतः।। | 12-210-32a 12-210-32b |
चिन्तयन्तो हि यं नित्यं ब्रह्मेशानादयः प्रभुम्। निश्चयं नाधिगच्छन्ति तमस्मि शरणं गतः।। | 12-210-33a 12-210-33b |
जितेन्द्रिया महात्मानो ज्ञानध्यानपरायणाः। यं प्राप्य न निवर्तन्ते तमस्मि शरणं गतः।। | 12-210-34a 12-210-34b |
एकांशेन जगत्सर्वमवष्टभ्य विभुः स्थितः। अग्राह्यं निर्गुणं नित्यं तमस्मि शरणं गतः।। | 12-210-35a 12-210-35b |
सोमार्काग्निमयं तेजो या च तारमयी द्युतिः। दिवि संजायते योऽयं स महात्मा प्रसीदतु।। | 12-210-36a 12-210-36b |
गुणादिर्निर्गुणश्चाद्यो लक्ष्मीवांश्चेतनो ह्यजः। सूक्ष्मः सर्वगतो योगी स महात्मा प्रसीदतु।। | 12-210-37a 12-210-37b |
साङ्ख्ययोगाश्च ये चान्ये सिद्धाश्च परमर्षयः। यं विदित्वा विमुच्यन्ते स महात्मा प्रसीदतु।। | 12-210-38a 12-210-38b |
अव्यक्तः समधिष्ठाता अचिन्त्यः सदसत्परः। अस्थितिः प्रकृतिश्रेष्ठः स महात्मा प्रसीदतु।। | 12-210-39a 12-210-39b |
क्षेत्रज्ञः पञ्चधा भुङ्क्ते प्रकृतिं पञ्चभिर्मुखैः। महान्गुणांश्च यो भुङ्क्ते स महात्मा प्रसीदतु।। | 12-210-40a 12-210-40b |
सूर्यमध्ये स्थितः सोमस्तस्य मध्ये च या स्थिता। भूतबाह्या च या दीप्तिः स महात्मा प्रसीदतु।। | 12-210-41a 12-210-41b |
नमस्ते सर्वतः सर्वं सर्वतोक्षिशिरोमुख। निर्विकार नमस्तेऽस्तु साक्षी क्षेत्रध्रुवस्थितिः।। | 12-210-42a 12-210-42b |
अतीन्द्रिय नमस्तुभ्यं लिङ्गैर्व्यक्तैर्न मीयसे। ये च त्वां नाभिजानन्ति संसारे संसरन्ति ते।। | 12-210-43a 12-210-43b |
कामक्रोधविनिर्मुक्ता रागद्वेषविवर्जिताः। मान्यभक्ता विजानन्ति न पुनर्भवका द्विजाः।। | 12-210-44a 12-210-44b |
एकान्तिनो हि निर्द्वन्द्वा निराशीःकर्मकारिणः। ज्ञानाग्निदग्धकर्माणस्त्वां विशन्ति विचिन्तकाः।। | 12-210-45a 12-210-45b |
अशरीरं शरीरस्थं समं सर्वेषु देहिषु। पुण्यपापविनिर्मुक्ता भक्तास्त्वां प्राविशन्त्युत।। | 12-210-46a 12-210-46b |
अव्यक्तं बुद्ध्यहङ्कारमनोभूतेन्द्रियाणि च। त्वयि तानि च तेषु त्वं न तेषु त्वं न ते त्वयि।। | 12-210-47a 12-210-47b |
एकत्वान्यत्वनानात्वं ये विदुर्यान्ति ते परम्। समोसि सर्वभूतेषु न ते द्वेष्योस्ति न प्रियः।। | 12-210-48a 12-210-48b |
समत्वमभिकाङ्क्षेऽहं भक्त्या वै नान्यचेतसा। चराचरमिदं सर्वं भूतग्रामं चतुर्विधम्। त्वया त्वय्येव तत्प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।। | 12-210-49a 12-210-49b 12-210-49c |
स्रष्टा भोक्तासि कूटस्थो ह्यतत्वं तत्वसंज्ञिकः। अकर्ता हेतुरचलः पृथगात्मन्यवस्थितः।। | 12-210-50a 12-210-50b |
न ते भूतेषु संयोगो भूततत्वगुणाधिकः। अहङ्कारेण बुद्ध्या वा न ते योगस्त्रिभिर्गुणैः।। | 12-210-51a 12-210-51b |
न मोक्षधर्मो वा न त्वं नारम्भो जन्म वा पुनः। जरामरणमोक्षार्थं त्वां प्रपन्नोस्मि सर्वग।। | 12-210-52a 12-210-52b |
ईश्वरोसि जगन्नाथ ततः परम उच्यसे। भक्तानां यद्धितं देव तद्ध्याहि त्रिदशेश्वर।। | 12-210-53a 12-210-53b |
विषयैरिन्द्रियैर्वाऽपि न मे भूयः समागमः। पृथिवीं यातु गन्धो वै रसं यातु जलं तथा।। | 12-210-54a 12-210-54b |
तेजो हुताशनं यातु स्पर्शो यातु च मारुतम्। श्रोत्रमाकाशमप्येतु मनो वैकारिकं पुनः।। | 12-210-55a 12-210-55b |
इन्द्रियाण्यपि संयान्तु स्वासुस्वासु च योनिषु। पृथिवी यातु सलिलमापोग्निमनलोऽनिलम्।। | 12-210-56a 12-210-56b |
वायुराकाशमप्येतु मनश्चाकाश एव च। अहंकारं मनो यातु मोहनं सर्वदेहिनाम्।। | 12-210-57a 12-210-57b |
अहंकारस्ततो बुद्धिं बुद्धिरव्यक्तमच्युत।। | 12-210-58a |
प्रधाने प्रकृतिं याते गुणसाम्ये व्यवस्थिते। वियोगः सर्वकरणैर्गुणैर्भूतैश्च मे भवेत्।। | 12-210-59a 12-210-59b |
निष्केवलं पदं तात काङ्क्षेऽहं परमं तव। एकीभावस्त्वया मेऽस्तु न मे जन्म भवेत्पुनः।। | 12-210-60a 12-210-60b |
त्वद्बुद्धिस्त्वद्गतप्राणस्त्वद्भक्तिस्त्वत्परायणः। त्वामेवाहं स्मरिष्यामि मरणे पर्युपस्थिते।। | 12-210-61a 12-210-61b |
पूर्वदेहकृता ये तु व्याधयः प्रविशन्तु माम्। अर्दयन्तु च दुःखानि ऋणं मे प्रविमुञ्चतु।। | 12-210-62a 12-210-62b |
अनुध्यातोऽसि देवेश न मे जन्म भवेत्पुनः। तस्माद्ब्रवीमि कर्माणि ऋणं मे न भवेदिति।। | 12-210-63a 12-210-63b |
नोपतिष्ठन्तु मां सर्वे व्याधयः पूर्वसंचिताः। अनृणो गन्तुमिच्छामि तद्विष्णोः परमं पदम्।। | 12-210-64a 12-210-64b |
श्रीभगवानुवाच। | 12-210-65x |
अहं भगवतस्तस्य मम चासौ सनातनः। तस्याहं न प्रणश्यासि स च मे न प्रणश्यति।। | 12-210-65a 12-210-65b |
कर्मेन्द्रियामि संयम्य पञ्च बुद्धीन्द्रियाणि च। दशेन्द्रियाणि मनसि अहंकारे तथा मनः।। | 12-210-66a 12-210-66b |
अहंकारं तथा बुद्धौ बुद्धिमात्मनि योजयेत्। यतबुद्धीन्द्रियः पश्येद्बुद्ध्या बुद्ध्येत्परात्पम्।। | 12-210-67a 12-210-67b |
ममायमिति यस्याहं येन सर्वमिदं तततम्। ततो बुद्धेः परं बुद्ध्वा लभते न पुनर्भवम्।। | 12-210-68a 12-210-68b |
मरणे समनुप्राप्ते यश्चैवं मामनुस्मरेत्। अपि पापसमाचारः स याति परमां गतिम्।। | 12-210-69a 12-210-69b |
ओं नमो भगवते तस्मै देहिनां परमात्मने। नारायणाय भक्तानामेकनिष्ठाय शाश्वते।। | 12-210-70a 12-210-70b |
इमामनुस्मृतिं दिव्यां वैष्णवीं सुसमाहितः। स्वपन्विबुद्धश्च पठेद्यत्र तत्र समभ्यसेत्।। | 12-210-71a 12-210-71b |
पौर्णमास्याममावास्यां द्वादश्यां च विशेषतः। श्रावयेच्छ्रद्दधानांश्च मद्भक्तांश्च विशेषतः।। | 12-210-72a 12-210-72b |
यद्यहंकारमाश्रित्य यज्ञदानतपः क्रियाः। कुर्वंस्तत्फलमाप्नोति पुनरावर्तनं न तु।। | 12-210-73a 12-210-73b |
अभ्यर्चयन्पितॄन्देवान्पठञ्जुह्वन्यलिं ददत्। ज्वलन्नग्निं स्मरेद्यो मां स याति परमां गतिम्।। | 12-210-74a 12-210-74b |
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि शरीरिणाम्। यज्ञं दानं तपस्तस्मात्कुर्यादाशीर्विवर्जितः।। | 12-210-75a 12-210-75b |
नम इत्येव यो ब्रूयान्मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः। तस्याक्षयो भवेल्लोकः श्वपाकस्यापि नारद।। | 12-210-76a 12-210-76b |
किं पुनर्ये यजन्ते मां साधका विधिपूर्वकम्। श्रद्धावन्तो यतात्मानस्ते मां यान्ति मदाश्रिताः।। | 12-210-77a 12-210-77b |
कर्माण्याद्यन्तवन्तीह मद्भक्तोऽमृतमश्नुते। मामेव तस्माद्देवर्षे ध्याहि नित्यमतन्द्रितः। अवाप्स्यसि ततः सिद्धिं द्रक्ष्यस्येव पदं मम।। | 12-210-78a 12-210-78b 12-210-78c |
अज्ञानिने च यो ज्ञानं दद्याद्धर्मोपदेशनम्। कृत्स्नां वा पृथिवीं दद्यात्तेन तुल्यं न तत्फलम्।। | 12-210-79a 12-210-79b |
तस्मात्प्रेदयं साधुभ्यो जन्मबन्धभयापहम्। एवं दत्त्वा नरश्रेष्ठ श्रेयो वीर्यं च विन्दति।। | 12-210-80a 12-210-80b |
अश्वमेधसहस्राणां सहस्रं यः समाचरेत्। नासौ पदमवाप्नोति मद्भक्तैर्यदवाप्यते।। | 12-210-81a 12-210-81b |
भीष्म उवाच। | 12-210-82x |
एवं पृष्टः पुरा तेन नारदेन सुरर्षिणा। यदुवाच तदाऽसौ भो तदुक्तं तव सुव्रत।। | 12-210-82a 12-210-82b |
त्वमप्येकमना भूत्वा ध्याहि ज्ञेयं गुणातिगम्। भजस्व सर्वभावेन परमात्मानमव्ययम्।। | 12-210-83a 12-210-83b |
श्रुत्वैतन्नारदो वाक्यं दिव्यं नारायणेरितम्। अत्यन्तभक्तिमान्देव एकान्तत्वमुपेयिवान्।। | 12-210-84a 12-210-84b |
नारायणमृषिं देवं दशवर्षाण्यनन्यभाक्। इदं जपन्वै प्राप्नोति तद्विष्णोः परमं पदम्।। | 12-210-85a 12-210-85b |
किं तस्य बहुभिर्मन्त्रैर्भक्तिर्यस्य जनार्दने। नमो नारायणायेति मन्त्रः सर्वार्थसाधकः।। | 12-210-86a 12-210-86b |
इमां रहस्यां परमामनुस्मृति मधीत्य बुद्धिं लभते च नैष्ठिकीम्। विहाय दुःखान्यवमुच्य सङ्कटा त्स वीतरागो विगतज्वरः सुखी।। | 12-210-87a 12-210-87b 12-210-87c 12-210-87d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि दशाधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 210।। |
12-210-1 श्रुत्वा तस्य तु देवर्षेर्वाक्यं वाचस्पतिः स्वयमिति थ. पाठः।। 12-210-14 अव्यक्तं शाश्वतं देवमि ट.थ. पाठः।। 12-210-15 पुराणं प्रभवं नित्यमिति ट. थ. पाठः।। 12-210-30 त्रिकर्तः पञ्चकालज्ञेति ट.थ. पाठः।। 12-210-44 न पुनर्मारका द्विजा इति ट. थ. पाठः।। 12-210-46 त्वां विशन्ति विनिश्चिता इति ध. पाठः।। 12-210-52 न मे धर्मो ह्यधर्मो वेति ट. थ. पाठः।। 12-210-54 पृथिवीं यातु मे घ्राणं यातु मे रसनं जलम्। रूपं हुताशनं यातु इति ट. थ. पाठः।। 12-210-60 निष्केवलं वरं देवेति ध. पाठः।। 12-210-74 जपन्भिन्नं स्मरेदिति ध. पाठः।। 12-210-78 मद्भक्तो नान्तमश्नुत इति ट. थ. पाठः।। 12-210-82 यदुवाच तदा शंभुरिति ट. थ. पाठः।। 12-210-87 स वीतरागो विचरेदिमां महीम्। इति ट. थ. पाठः।।
शांतिपर्व-209 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-211 |