महाभारतम्-12-शांतिपर्व-127
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वदरिकाश्रमं गतस्य ऋषभस्य तनुनामकेन महर्षिणा सह संवादः।। 1।। वने नष्टपुत्रान्वेषणवशात्तत्रोपागतेन वा द्युम्नेन राज्ञा तनुंप्रति आशाया ज्यायः किमिति प्रश्नः।। 2।।
भीष्म उवाच। | 12-127-1x |
ततस्तेषां समेतानामृषीणामृषिसत्तमः। ऋषभो नाम विप्रर्षिर्विस्मयन्निदमब्रवीत्।। | 12-127-1a 12-127-1b |
पुराऽहं राजशार्दूल तीर्थान्यनुचरन्प्रभो। समासादितवान्दिव्यं नरनारायणाश्रमम्।। | 12-127-2a 12-127-2b |
यत्र सा बदरी रम्या सरो वैहायसं तथा। यत्र चाश्वशिरा राजन्वेदान्पठति शाश्वतान्।। | 12-127-3a 12-127-3b |
तस्मिन्सरसि कृत्वाऽहं विधिवत्तर्पणं पुरा। पितृणां देवतानां च ततोश्रममियां तदा।। | 12-127-4a 12-127-4b |
रमाते यत्र तौ नित्यं नरनारायणावृषी। अदूरादाश्रमात्किंचिद्वासार्थमगमं तदा।। | 12-127-5a 12-127-5b |
अत्र चीराजिनधरं कृशमुच्चमतीव च। अद्राक्षमृषिमायान्तं तनुं नाम तपोनिधिम्।। | 12-127-6a 12-127-6b |
अन्यैर्नरैर्महाबाहो वपुषाऽप्रतिमं तदा। कृशता चापि राजर्षे न दृष्टा तादृशी मया।। | 12-127-7a 12-127-7b |
शरीरमपि राजेन्द्र तनु कानिष्ठिकासमम्। ग्रीवा बाहू तथा पादौ केशाश्चाद्भुतदर्शनाः।। | 12-127-8a 12-127-8b |
शिरः कायानुरूपं च कर्णौ नेत्रे तथैव च। तस्य वाक्चैव चेष्टा च सामान्ये राजसत्तम।। | 12-127-9a 12-127-9b |
दृष्ट्वाऽहं तं कृशं विप्रं भीतः परमदुर्मनाः। पादौ तस्याभिवाद्याथ स्थितः प्राञ्जलिरग्रतः।। | 12-127-10a 12-127-10b |
निवेद्य नामगोत्रे च तथा कार्यं नरर्षभ। प्रदिष्टे चासने तेन शनैरहमुपाविशम्।। | 12-127-11a 12-127-11b |
ततः स कथयामास धर्मार्थसहिताः कथाः। ऋषिमध्ये महाराज तत्र धर्मभृतां वरः।। | 12-127-12a 12-127-12b |
त--स्तु कथयत्येव राजा राजीवलोचनः। उपयाज्जवनैरश्वैः सबलः सावरोधनः।। | 12-127-13a 12-127-13b |
स्मरम्पुत्रमरण्ये वै नष्टं परमदुर्मनाः। भूविद्युम्नपिता श्रीमान्वीरद्युम्नो महायशाः।। | 12-127-14a 12-127-14b |
इह द्रक्ष्यामि तं पुत्रं द्रक्ष्यामीहेति भारत। एवमाशाकृशो राजा चरन्वनमिदं पुरा।। | 12-127-15a 12-127-15b |
दुर्लभः स मया द्रष्टुं भूय एव च धार्मिक। एकः पुत्रो महारण्ये नष्ट इत्यसकृत्तदा।। | 12-127-16a 12-127-16b |
न स शक्यो मया द्रष्टुमाशा च महती मम। तया परीतगात्रोऽहं मुमूर्षुर्नात्र संशयः।। | 12-127-17a 12-127-17b |
एतच्छ्रुत्वा तु भगवांस्तनुर्मुनिवरोत्तमः। अवाक्शिरा ध्यानपरो मुहूर्तमिव तस्थिवान्।। | 12-127-18a 12-127-18b |
तमनुध्यान्तमालक्ष्य राजा परमदुर्मनाः। उवाच वाक्यं दीनात्मा मन्दमन्दमिवासकृत्।। | 12-127-19a 12-127-19b |
दुर्लभं किंनु देवर्षे आशायाश्चैव किं महत्। ब्रवीतु भगवानेतद्यदि गुह्यं न चेत्तदा।। | 12-127-20a 12-127-20b |
तनुरुवाच। | 12-127-21x |
महर्षिर्भगवांस्तेन पूर्वमासीद्विमानितः। बालिशां बुद्धिमास्थाय मन्दभाग्यतयाऽऽत्मनः। अर्थयन्कुशलं राजन्काञ्चनं वल्कलानि च।। | 12-127-21a 12-127-21b 12-127-21c |
[अवज्ञापूर्वकेनापि न संपादितवांस्ततः।] निर्विण्णः स तु विप्रर्षिर्निराशः समपद्यत।। | 12-127-22a 12-127-22b |
एवमुक्तोऽभिवाद्याथ तमृषिं लोकपूजितम्। श्रान्तोऽवसीदद्धर्मात्मा यथा त्वं नरसत्तम।। | 12-127-23a 12-127-23b |
अर्ध्यं ततः समानीय पाद्यं चैव महायशाः। आरण्येनैव विधिना राज्ञे सर्वं न्यवेदयत्।। | 12-127-24a 12-127-24b |
ततस्तमृषयः सर्वे परिवार्य नरर्षभम्। उपाविशन्पुरस्कृत्य सप्तर्षय इव ध्रुवम्।। | 12-127-25a 12-127-25b |
अपृच्छंश्चैव तत्रैनं राजानमपराजितम्। प्रयोजनमिदं सर्वमाश्रमस्य प्रवेशने।। | 12-127-26a 12-127-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि सप्तविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 127।। |
12-127-3 वैहायसं विहायसा गच्छन्त्या मन्दाकिन्या वैहायस्या इदं वैहायसम्।। 12-127-4 ततोश्रमं तत आश्रमं मण्डपं इयां गतवामह।। 12-127-5 रेमाते रजसा यत्रेति थ. द. पाठः।। 12-127-7 वपुयाऽष्टगुणान्वितमिति झ. पाठः।। 12-127-21 तेन तव पुत्रेण भूरिद्युम्रेन।। 12-127-23 एवं मुनिना उक्तः वीरद्युम्नः अवसीदत् नष्टप्रायोऽभूदित्यर्थः।। 12-127-26 एवं मुनिना राजपूजानन्तरं आगताः किमर्थं आश्रमे त्वं प्रविष्ट ोऽसीत्य पृच्छन्।।
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