महाभारतम्-12-शांतिपर्व-028
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कृष्णेन युधिष्ठिरंप्रति सृञ्जयाय नारदोक्तषोडशराजोपाख्यानकथनम्।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-28-1x |
अव्याहरति राजेन्द्रे धर्मपुत्रे युधिष्ठिरे। गुडाकेशो हृषीकेशमभ्यभाषत पाण्डवः।। | 12-28-1a 12-28-1b |
अर्जुन उवाच। | 12-28-2x |
ज्ञातिशोकाभिसंतप्तो धर्मपुत्रः परंतपः। एष शोकार्णवे मग्नस्तमाश्वासय माधव।। | 12-28-2a 12-28-2b |
सर्वे स्म ते संशयिताः पुनरेव जनार्दन। अस्य शोकं महाप्राज्ञ प्रणाशयितुमर्हसि।। | 12-28-3a 12-28-3b |
वैशंपायन उवाच। | 12-28-4x |
एवमुक्तस्तु गोविन्दो विजयेन महात्मना। पर्यवर्तत राजानं पुण्डरीकेक्षणोऽच्युतः।। | 12-28-4a 12-28-4b |
अनतिक्रमणीयो हि धर्मराजस्य केशवः। बाल्यात्प्रभृति गोविंदः प्रीत्या चाभ्यधिकोर्जुनात्।। | 12-28-5a 12-28-5b |
संप्रगृह्य महाबाहुर्भुजं चन्दनभूषितम्। शैलस्तम्भोपमं शौरिरुवाचाभिविनोदयन्।। | 12-28-6a 12-28-6b |
शुशुभे वदनं तस्य सुदंष्ट्रं चारुलोचनम्। व्याकोचमिव विस्पष्टं पझं सूर्यविबोधितम्।। | 12-28-7a 12-28-7b |
वासुदेव उवाच। | 12-28-8x |
मा कृथाः पुरुषव्याघ्र शोकं त्वं गात्रशोषणम्। न हि ते सुलभा भूयो ये हताऽस्मिन्रणाजिरे।। | 12-28-8a 12-28-8b |
स्वप्नलब्धा यथा लाभा वितथाः प्रतिबोधने। तथा ते क्षत्रिया राजन्ये व्यतीता महारणे।। | 12-28-9a 12-28-9b |
सर्वे ह्यभिमुखाः शूरा निहता रणशोभिनः। नैषां कश्चित्पृष्ठतो वा पलायन्वा निपातितः।। | 12-28-10a 12-28-10b |
सर्वे त्यक्त्वाऽऽत्मनः प्राणान्युद्ध्वा वीरा महामृधे। शस्त्रपूता दिवं प्राप्ता न ताञ्छोचितुमर्हसि।। | 12-28-11a 12-28-11b |
क्षत्रधर्मरताः शूरा वेदवेदाङ्गपारगाः। प्राप्ता वीरगतिं पुण्यां तान्न शोचितुमर्हसि। मृतान्महानुभावांस्त्वं श्रुत्वैव पृथिवीपतीन्।। | 12-28-12a 12-28-12b 12-28-12c |
अत्रैवोदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। सृञ्जयं पुत्रशोकार्तं यथाऽयं नारदोऽब्रवीत्।। | 12-28-13a 12-28-13b |
नारद उवाच। | 12-28-14x |
सुखदुःखैरहं त्वं च प्रजाः सर्वाश्च सृञ्जय। अविमुक्ता मरिष्यामस्तत्र का परिदेवना।। | 12-28-14a 12-28-14b |
महाभाग्यं पुरा राज्ञां कीर्त्यमानं मया शृणु। गच्छावधानं नृपते ततो दुःखं प्रहास्यसि।। | 12-28-15a 12-28-15b |
मृतान्महानुभावांस्त्वं श्रुत्वैव पृथिवीपतीन्। शममानय संतापं शृणु विस्तरशश्च मे। क्रूरग्रहाभिशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्।। | 12-28-16a 12-28-16b 12-28-16c |
अग्रिमाणां क्षितिभुजामुदारं च मनोहरम्। आविक्षितं मरुत्तं च मृतं सृञ्जय शुश्रुम।। | 12-28-17a 12-28-17b |
यस्य सेन्द्राः सवरुणा बृहस्पतिपुरोगमाः। देवा विश्वसृजो राज्ञो यज्ञमीयुर्महात्मनः।। | 12-28-18a 12-28-18b |
यः स्पर्धामानयच्छक्रं देवराजं पुरंदरम्। शक्रप्रियैषी यं विद्वान्प्रत्याचष्ट बृहस्पतिः।। | 12-28-19a 12-28-19b |
संवर्तो याजयामास यं पीडार्थं बृहस्पतेः।। | 12-28-20a |
यस्मिन्प्रशासति महीं नृपतौ राजसत्तम। अकृष्टपच्या पृथिवी विबभौ सस्यमालिनी।। | 12-28-21a 12-28-21b |
आविक्षितस्य वै सत्रे विश्वेदेवाः सभासदः। मरुतः परिवेष्टारः साध्याश्चासन्महात्मनः।। | 12-28-22a 12-28-22b |
मरुद्गण मरुत्तस्य यत्सोममपिबंस्ततः। देवान्मनुष्यान्गन्धर्वानत्यरिच्यन्त दक्षिणाः।। | 12-28-23a 12-28-23b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-24a 12-28-24b |
सुहोत्रं च द्वतिथिनं मृतं सृञ्जय शुश्रुम। यस्मे हिरण्यं ववृषे मघवा परिवत्सरम्।। | 12-28-25a 12-28-25b |
सत्यनामा वसुमती यं प्राप्यासीञ्जनाधिपम्। हिरण्यमवहन्नद्यस्तस्मिञ्जनपदेश्वरे।। | 12-28-26a 12-28-26b |
मत्स्यान्कर्कटकान्नक्रान्मकराञ्छिंशुकानपि। नदीष्ववासृजद्राजन्मघवा लोकपूजितः।। | 12-28-27a 12-28-27b |
हैरण्यान्पातितान्दृष्ट्वा मत्स्यान्मकरकच्छपान्। सहस्रशोऽथ शतशस्ततोऽस्मयत वैतिथिः।। | 12-28-28a 12-28-28b |
तद्धिरण्यमपर्यन्तमावृतं कुरुजाङ्गले। ईजानो वितते यज्ञे ब्राह्मणेभ्यः समार्पयत्।। | 12-28-29a 12-28-29b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः। अदक्षिणमयज्वानं श्वैत्य संशाम्य माशुचः।। | 12-28-30a 12-28-30b 12-28-30c |
अङ्गं बृहद्रथं चैव मृतं सृञ्जय शुश्रुम। यः सहस्रं सहस्राणां श्वेतानश्वानवासृजात्।। | 12-28-31a 12-28-31b |
सहस्रं च सहस्राणां कन्या हमपरिष्कृताः। ईजानो वितते यज्ञे दक्षिणामत्यकालयत्।। | 12-28-32a 12-28-32b |
यः सहस्रं सहस्राणां गजानां पझमालिनाम्। ईजानो वितते यज्ञे दक्षिणामत्यकालयत्।। | 12-28-33a 12-28-33b |
शतं शतसहस्राणि वृषाणां हेममालिनाम्। गवां सहस्रानुचरं दक्षिणामत्यकालयत्।। | 12-28-34a 12-28-34b |
अङ्गस्य यजमानस्य तदा विष्णुपदे गिरौ। अमाद्यदिन्द्रः सोमेन दक्षिणाभिर्द्विजातयः।। | 12-28-35a 12-28-35b |
यस्य यज्ञेषु राजेन्द्र शतसङ्ख्येषु वै पुरा। देवान्मनुष्यान्गन्धर्वानत्यरिच्यन्त दक्षिणाः।। | 12-28-36a 12-28-36b |
न जातो जनिता नान्यः पुमान्यः संप्रदास्यति। यदङ्गः प्रददौ वित्तं सोमसंस्थासु सप्तसु।। | 12-28-37a 12-28-37b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-38a 12-28-38b |
शिबिमौशीनरं चैव मृतं सृञ्जय शुश्रुम। य इमां पृथिवीं सर्वां चर्मवत्समवेष्टयत्।। | 12-28-39a 12-28-39b |
महता रथघोषेण पृथिवीमनुनादयन्। एकच्छत्रां महीं चक्रे जैत्रेणैकरथेन यः।। | 12-28-40a 12-28-40b |
यावदस्य गवाश्वं स्यादारण्यैः पशुभिः सह। तावतीः प्रददौ गाः स शिबिरौशीनरोऽध्वरे।। | 12-28-41a 12-28-41b |
न वोढारं धुरं तस्य कंचिन्मेने प्रजापतिः। न भूतं न भविष्यं च सर्वराजसु सृञ्जय। अन्यत्रौशीनराच्छैब्याद्राजर्षेरिन्द्रविक्रमात्।। | 12-28-42a 12-28-42b 12-28-42c |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-43a 12-28-43b |
अदक्षिणमयज्वानं पुत्रं संस्मृत्य मा शुचः।। | 12-28-44a |
भरतं चैव दौष्यन्तिं मृतं सृञ्जय शुश्रुम। शाकुन्तलं महात्मानं भूरिद्रविणतेजसम्।। | 12-28-45a 12-28-45b |
योऽबध्नात्रिशतं चाश्वान्देवेभ्यो यमुनामनु। सरस्वतीं विंशतिं च गङ्गामनु चतुर्दश।। | 12-28-46a 12-28-46b |
अश्वमेधसहस्रेण राजसूयशतेन च। इष्टवान्स महातेजा दौष्यन्तिर्भरतः पुरा।। | 12-28-47a 12-28-47b |
भरतस्य महत्कर्म सवराजसु पार्थिवाः। स्वं मर्त्या इव बाहुभ्यां नानुगन्तुमशक्नुवन्।। | 12-28-48a 12-28-48b |
परं सहस्राद्योऽबध्नाद्धयान्वेदीर्वितत्य च। सहस्रं यत्र पद्मानां कण्वाय भरतो ददौ।। | 12-28-49a 12-28-49b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-50a 12-28-50b |
रामं दाशरथिं चैव मृतं सृञ्जय शुश्रुम। योऽन्वकम्पत वै नित्यं प्रजाः पुत्रानिवौरसान्।। | 12-28-51a 12-28-51b |
नाधनो यस्य विषये नानर्थः कस्यचिद्भवेत्। सर्वस्यासीत्पितृसमो रामो राज्यं यदन्वशात्।। | 12-28-52a 12-28-52b |
कालवर्षी च पर्जन्यः सस्यानि समपादयत्। नित्यं सुभिक्षमेवासीद्रामे राज्यं प्रशासति।। | 12-28-53a 12-28-53b |
प्राणिनो नाप्सु मञ्जन्ति नानर्थे पावकोऽदहत्। न व्यालतो भयं चासीद्रामे राज्यं प्रशासति।। | 12-28-54a 12-28-54b |
आसन्वर्षसहस्रिण्यस्तथा वर्षसहस्रकाः। अरोगाः सर्वसिद्धार्था रामे राज्यं प्रशासति।। | 12-28-55a 12-28-55b |
नान्योन्येन विवादोऽभूत्स्त्रीणामपि कुतो नृणाम्। धर्मनित्याः प्रजाश्चासन्रामे राज्यं प्रशासति।। | 12-28-56a 12-28-56b |
संतुष्टाः सर्वसिद्धार्था निर्भयाः स्वैरचारिणः। नराः सत्यव्रताश्चासन्रामे राज्यं प्रशासति।। | 12-28-57a 12-28-57b |
नित्यपुष्पफलाश्चैव पादपा निरुपद्रवाः। सर्वा द्रोणदुघा गावो रामे राज्यं प्रशासति।। | 12-28-58a 12-28-58b |
स चतुर्दश वर्षाणि वने प्रोष्य महातपाः। दशाश्वमेधाञ्जारूथ्यानाजहार निरर्गलान्।। | 12-28-59a 12-28-59b |
युवा श्यामो लोहिताक्षो मातङ्ग इव यूथपः। आजानुबाहुः सुमुखः सिंहस्कन्धो महाभुजः।। | 12-28-60a 12-28-60b |
दशवर्षसहस्राणि दशवर्षशतानि च। अयोध्याधिपतिर्भूत्वा रामो राज्यमकारयत्।। | 12-28-61a 12-28-61b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः। अयज्वानमदक्षिण्यं मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-62a 12-28-62b 12-28-62c |
भगीरथं च राजानं मृतं सृञ्जय शुश्रुम्। यस्येन्द्रो वितते यज्ञे सोमं पीत्वा मदोत्कटः।। | 12-28-63a 12-28-63b |
असुराणां सहस्राणि बहूनि सुरसत्तमः। अजयद्वाहुवीर्येण भगवान्पाकशासनः।। | 12-28-64a 12-28-64b |
यः सहस्रं सहस्राणां कन्या हेमविभूषिताः। ईजानो वितते यज्ञे दक्षिणामत्यकालयत्।। | 12-28-65a 12-28-65b |
सर्वा रथगताः कन्या रथाः सर्वे चतुर्युजः। शतंशतं रथे नागाः पझिनो हेममालिनः।। | 12-28-66a 12-28-66b |
सहस्रमश्वा एकैकं हस्तिनं पृष्ठतोऽन्वयुः। गवां सहस्रमश्वेऽश्वे सहस्रं गव्यजाविकम्।। | 12-28-67a 12-28-67b |
उपह्वरे निवसतो यस्याङ्के निषसाद ह। गङ्गा भागीरथी तस्मादुर्वशी चाभवत्पुरा।। | 12-28-68a 12-28-68b |
भूरिदक्षिणमिक्ष्वाकुं यजमानं भगीरथम्। त्रिलोकपथगा गङ्गा दुहितृत्वमुपेयुषी।। | 12-28-69a 12-28-69b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-70a 12-28-70b |
दिलीपं च महात्मानं मृतं सृञ्जय शुश्रुम। प्रस्य कर्माणि भूरीणि कथयन्ति द्विजातयः।। | 12-28-71a 12-28-71b |
य इमां वसुसंपूर्णां वसुधां वसुधाधिपः। ददौ तस्मिन्महायज्ञे ब्राह्मणेभ्यः समाहितः।। | 12-28-72a 12-28-72b |
यस्येह यजमानस्य यज्ञेयज्ञे पुरोहितः। सहस्रं वारणान्हैमान्दक्षिणामत्यकालयत्।। | 12-28-73a 12-28-73b |
यस्य यज्ञे महानासीद्यूपः श्रीमान्हिरण्मयः। ते देवां कर्म कुर्वाणाः शक्रज्येष्ठा उपासत।। | 12-28-74a 12-28-74b |
चषाले यस्य सौवर्णे तस्मिन्यूपे हिरण्मये। ननृतुर्देवगन्धर्वाः षट्सहस्राणि सप्तधा।। | 12-28-75a 12-28-75b |
अवादयत्तत्र वीणां मध्ये विश्वावसुः स्वयम्। सर्वभूतान्यमन्यन्त मम वादयतीत्ययम्।। | 12-28-76a 12-28-76b |
एतद्राज्ञो दिलीपस्य राजानो नानुचक्रिरे। यस्येभा हेमसंछन्नाः पथि मत्ताः स्म शेरते।। | 12-28-77a 12-28-77b |
राजानं शतधन्वानं दिलीपं सत्यवादिनम्। येऽपश्यन्सुमहात्मानं तेऽपि स्वर्गजितो नराः।। | 12-28-78a 12-28-78b |
त्रयः शब्दा न जीर्यन्ते दिलीपस्य निवेशने। स्वाध्यायशब्दः ज्याशब्दः शब्दो वै दीयतामिति।। | 12-28-79a 12-28-79b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-80a 12-28-80b |
मान्धातारं यौवनाश्वं मृतं सृञ्जय शुश्रुम। यं देवा मरुतो गर्भं पितुः पार्श्वादपाहरन्।। | 12-28-81a 12-28-81b |
समृद्धो युवनाश्वस्य जठरे यो महात्मनः। पृषदाज्योद्भवः श्रीमांस्त्रिलोकविजयी नृपः।। | 12-28-82a 12-28-82b |
यं दृष्ट्वा पितुरुत्सङ्गे शयानं देवरूपिणम्। अन्योन्यमब्रुवन्देवाः कमयं धास्यतीति वै।। | 12-28-83a 12-28-83b |
मामेव धास्यतीत्येवमिन्द्रोऽथाभ्युपपद्यत। मांधातेति ततस्तस्य नाम चक्रे शतक्रतुः।। | 12-28-84a 12-28-84b |
ततस्तु पयसो धारां पुष्टिहेतोर्महात्मनः। तस्यास्ये यौवनाश्वस्य पाणिरिन्द्रस्य चास्रवत्।। | 12-28-85a 12-28-85b |
तं पिवन्पाणिमिन्द्रस्य शतमह्ना व्यवर्धत। स आसीद्द्वादशसमो द्वादशाहेन पार्थिवः।। | 12-28-86a 12-28-86b |
तमिमं पृथिवी सर्वा एकाह्ना समपद्यत। धर्मात्मानं महात्मानं शूरमिन्द्रसमं युधि।। | 12-28-87a 12-28-87b |
यश्चाङ्गारं तु नृपतिं मरुत्तमसितं गयम्। अङ्गं बृहद्रथं चैव मान्धाता समरेऽजयत्।। | 12-28-88a 12-28-88b |
यौवनाश्वो यदाङ्गारं समरे प्रत्ययुध्यत। विस्फारैर्धनुषो देवा द्यौरभेदीति मेनिरे।। | 12-28-89a 12-28-89b |
यत्र सूर्य उदेति स्म यत्र च प्रतितिष्ठति। सर्वं तद्यौवनाश्वस्य मान्धातुः क्षेत्रमुच्यते।। | 12-28-90a 12-28-90b |
अश्वमेधशतेनेष्ट्वा राजसूयशतेन च। अददद्रोहितान्मत्स्यान्ब्राह्मणेभ्यो विशांपते।। | 12-28-91a 12-28-91b |
हैरण्यान्यो जनोत्सेधानायतान्दशयोजनम्। अतिरिक्तान्द्विजातिभ्यो व्यभजंस्त्वितरे जनाः।। | 12-28-92a 12-28-92b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-93a 12-28-93b |
ययातिं नाहुषं चैव मृतं सृञ्जय शुश्रुम। य इमां पृथिवीं कृत्स्नां विजित्य सहसागराम्।। | 12-28-94a 12-28-94b |
शम्यापातेनाभ्यतीयाद्वेदीभिश्चित्रयन्महीम्। ईजानः क्रतुभिर्मुख्यैः पर्यगच्छद्वसुन्धराम्।। | 12-28-95a 12-28-95b |
इष्ट्वा क्रतुसहस्रेण वाजपेयशतेन च। तर्पयामास विप्रेन्द्रांस्त्रिभिः काञ्चनपर्वतैः।। | 12-28-96a 12-28-96b |
व्यूढेनासुरयुद्धेन हत्वा दैतेयदानवान्। व्यभजत्पृथिवीं कृत्स्नां ययातिर्नहुषात्मजः।। | 12-28-97a 12-28-97b |
अन्त्येषु पुत्रान्निक्षिप्य यदुद्रुह्युपुरोगमान्। पुरुं राज्येऽभिषिच्याथ सदारः प्राविशद्वनम्।। | 12-28-98a 12-28-98b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-99a 12-28-99b |
अम्बरीषं च नाभागं मृतं सृञ्जय शुश्रुम। यं प्रजा वव्रिरे पुण्यं गोप्तारं नृपसत्तमम्।। | 12-28-100a 12-28-100b |
यः सहस्रं सहस्राणां राज्ञामयुतयाजिनाम्। ईजानो वितते यज्ञे ब्राह्मणेभ्यस्त्वमन्यत।। | 12-28-101a 12-28-101b |
नैतत्पूर्वे जनाश्चक्रुर्न करिष्यन्ति चापरे। इत्यम्बरीषं नाभागिमन्वमोदन्त दक्षिणाः।। | 12-28-102a 12-28-102b |
शतं राजसहस्राणि शतं राजशतानि च। सर्वेऽश्वमेधैरीजानास्तेऽन्वयुर्दक्षिणायनम्।। | 12-28-103a 12-28-103b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-104a 12-28-104b |
शशबिन्दुं चैत्ररथं मृतं शुश्रुम सृञ्जय। यस्य भार्यासहस्राणां शतमासीन्महात्मनः।। | 12-28-105a 12-28-105b |
सहस्रं तु सहस्राणां यस्यासञ्शाशबिन्दवाः। हिरण्यकवचाः सर्वे सर्वे चोत्तमधन्विनः।। | 12-28-106a 12-28-106b |
शतं कन्या राजपुत्रमेकैकं पृथगन्वयुः। कन्यांकन्यां शतं नागा नागंनागं शतं रथाः।। | 12-28-107a 12-28-107b |
रथेरथे शतं चाश्वा देशजा हेममालिनः। अश्वेअश्वे शतं गावो गांगां तद्वदजाविकम्।। | 12-28-108a 12-28-108b |
एतद्धनमपर्यन्तमश्वमेधे महामखे। शशबिन्दुर्महाराज ब्राह्मणेभ्यो ह्यमन्यत।। | 12-28-109a 12-28-109b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-110a 12-28-110b |
गयं चाधूर्तरजसं मृतं शुश्रुम सृञ्जय। यः स वर्षशतं राजा हुतशिष्टाशनोऽभवत्।। | 12-28-111a 12-28-111b |
यस्मै वह्निर्वरान्प्रादात्ततो वव्रे वरान्गयः। ददतो मे क्षयो मा भूद्धर्मे श्रद्धा च वर्धताम्।। | 12-28-112a 12-28-112b |
मनो मे रभतां सत्ये त्वत्प्रसादाद्धुताशन। लेभे च कामांस्तान्सर्वान्पावकादिति नः श्रुतम्।। | 12-28-113a 12-28-113b |
दर्शेन पूर्णमासेन चातुर्मास्यैः पुनः पुनः। अयजद्धयमेधेन सहस्रं परिवत्सरान्।। | 12-28-114a 12-28-114b |
शतं गवां सहस्राणि शतमश्वशतानि च। उत्थायोत्थाय वै प्रादात्सहस्रं परिवत्सरान्।। | 12-28-115a 12-28-115b |
तर्पयामास सोमेन देवान्वित्तैर्द्विजानपि। पितॄन्स्वधाभिः कामैश्च स्त्रियः स्वाः पुरुषर्षभ।। | 12-28-116a 12-28-116b |
सौवर्णां पृथिवीं कृत्वा दशव्यामां द्विरायताम्। दक्षिणामददद्राजा वाजिमेधे महाक्रतौ।। | 12-28-117a 12-28-117b |
यावत्यः सिकता राजन्गङ्गायां पुरुषर्षभ। तावतीरेव गाः प्रादादाधूर्तरजसो गयः।। | 12-28-118a 12-28-118b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-119a 12-28-119b |
रन्तिदेवं च सांकृत्यं मृतं सृञ्जय शुश्रुम। सम्यगाराध्य यः शक्राद्वरं लेभे महातपाः।। | 12-28-120a 12-28-120b |
अन्नं च नो बहु भवेदतिथींश्च लभेमहि। श्रद्धा च नो मा व्यगमन्मा च याचिष्म कंचन।। | 12-28-121a 12-28-121b |
उपातिष्ठन्त पशवः स्वयं तं संशितव्रतम्। ग्राम्यारण्या महात्मानं रन्तिदेवं यशस्विनम्।। | 12-28-122a 12-28-122b |
महानदी चर्मराशेरुत्क्लेदात्ससृजे यतः। ततश्चर्मण्वतीत्येवं विख्याता सा महानदी।। | 12-28-123a 12-28-123b |
ब्राह्मणेभ्यो ददौ निष्कान्सदसि प्रतते नृपः। तुभ्यंतुभ्यं निष्कमिति यदा क्रोशन्ति वै द्विजाः।। | 12-28-124a 12-28-124b |
सहस्रं तुभ्यमित्युक्त्वा ब्राह्मणान्संप्रपद्य ते।। | 12-28-125a |
अन्वाहार्योपकरणं द्रव्योपकरणं च यत्। घटाः पात्र्यः कटाहानि स्थाल्यश्च पिठराणि च। नासीत्किंचिदसौवर्णं रन्तिदेवस्य धीमतः।। | 12-28-126a 12-28-126b 12-28-126c |
सांकृते रन्तिदेवस्य यां रात्रिमवसन्गृहे। आलभ्यन्त शतं गावः सहस्राणि च विंशतिः।। | 12-28-127a 12-28-127b |
तत्र स्म सूदाः क्रोशन्ति सुमृष्टमणिकुण्डलाः। सूपं भूयिष्ठमश्नीध्वं नाद्य मांसं यथा पुरा।। | 12-28-128a 12-28-128b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-129a 12-28-129b |
सगरं च महात्मानं मृतं शुश्रुम सृञ्जय। ऐक्ष्वाकं पुरुषव्याघ्रमतिमानुषविक्रमम्।। | 12-28-130a 12-28-130b |
षष्टिः पुत्रसहस्राणि यं यान्तमनुजग्मिरे। नक्षत्रराजं वर्षान्ते व्यभ्रे ज्योतिर्गणा इव।। | 12-28-131a 12-28-131b |
एकच्छत्रा मही यस्य प्रतापादभवत्पुरा। योऽश्वमेधसहस्रेण तर्पयामास देवताः।। | 12-28-132a 12-28-132b |
यः प्रादात्कनकस्तम्भं प्रासादं सर्वकाञ्चनम्। पूर्णं पझदलाक्षीणां स्त्रीणां शयनसंकुलम्।। | 12-28-133a 12-28-133b |
द्विजातिभ्योऽनुरूपेभ्यः कामांश्च विविधान्बहून्। यस्यादेशेन तद्वित्तं व्यभजन्त द्विजातयः।। | 12-28-134a 12-28-134b |
खानयामास यः कोपात्पृथिवीं सागराङ्किताम्। यस्य नाम्ना समुद्रश्च सागरत्वमुपागतः।। | 12-28-135a 12-28-135b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-136a 12-28-136b |
राजानं च पृथुं वैन्यं मृतं शुश्रुम सृञ्जय। यमभ्यषिञ्चन्संभूयः महारण्ये महर्षयः।। | 12-28-137a 12-28-137b |
प्रथयिष्यति वै लोकान्पृथुरित्येव शब्दितः। क्षताद्यो वै त्रायतीति स तस्मात्क्षत्रियः स्मृतः।। | 12-28-138a 12-28-138b |
पृथुं वैन्यं प्रजा दृष्ट्वा रक्तास्मेति यदब्रुवन्। ततो राजेति नामास्य अनुरागादजायत।। | 12-28-139a 12-28-139b |
अकृष्टपच्या पृथिवी पुटकेपुटके मधु। सर्वा द्रोणदुघा गावो वैन्यस्यासन्प्रशासतः।। | 12-28-140a 12-28-140b |
अरोगाः सर्वसिद्धार्था मनुष्या अकुतोभयाः। यथाऽभिकाममवसन्क्षेत्रेषु च गृहेषु च।। | 12-28-141a 12-28-141b |
आपस्तस्तम्भिरे चास्य समुद्रमभियास्यतः। शैलाश्चापाद्व्यदीर्यन्त ध्वजभङ्गश्च नाभवत्।। | 12-28-142a 12-28-142b |
हैरण्यांस्त्रिनरोत्सेधान्पर्वतानेकविंशतिम्। ब्राह्मणेभ्यो ददौ राजा योश्वमेधे महामखे।। | 12-28-143a 12-28-143b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरश्चैव मा पुत्रमनुतप्यथाः।। | 12-28-144a 12-28-144b |
किं वा तूष्णीं ध्यायसे सृञ्जय त्वं न मे राजन्वाचिममां शृणोपि। न चेन्मोघं विप्रलप्तं ममेदं पथ्यं मुमूर्षोरिव सुप्रयुक्तम्।। | 12-28-145a 12-28-145b 12-28-145c 12-28-145d |
सृञ्जय उवाच। | 12-28-146x |
शृणोमि ते नारद वाचमेनां विचित्रार्थां स्रजमिव पुण्यगन्धाम्। राजर्षीणां पुण्यकृतां महात्मनां कीर्त्या युक्तानां शोकनिर्नाशनार्थाम्।। | 12-28-146a 12-28-146b 12-28-146c 12-28-146d |
न ते मोघं विप्रलप्तं महर्षे दृष्ट्वैवाहं नारद त्वां विशोकः। शुश्रूषे ते वचनं ब्रह्मवादि न्न ते तृप्याम्यमृतस्येव पानात्।। | 12-28-147a 12-28-147b 12-28-147c 12-28-147d |
अमोघदर्शिन्मम चेत्प्रसादं संतापदग्धस्य विभो प्रकुर्याः। सुतस्य संजीवनमद्य मे स्या त्तव प्रसादात्सुतसङ्गमाप्नुयाम्।। | 12-28-148a 12-28-148b 12-28-148c 12-28-148d |
नारद उवाच। | 12-28-149x |
यस्ते पुत्रः शयितोयं विजातः स्वर्णष्ठीवी यमदात्पर्वतस्ते। | 12-28-149a 12-28-149b |
पुनस्तं ते पुत्रमहं ददामि हिरण्यनाभं वर्षसबस्रिणं च।। | 12-28-149a 12-28-149b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि अष्टाविंशोऽध्यायः।। 28।। |
12-28-3 ते वयम्।। 12-28-4 पर्यवर्तत अभिमुखोऽभूत्।। 12-28-6 भुजं राज्ञः। अभिविनादयन् इति ट. ड. थ. पाठः।। 12-28-7 व्याकोचं विकसितम्।। 12-28-8 हताः अस्मिन्संधिरार्षः।। 12-28-9 लाभाः अर्थाः।। 12-28-15 महाभाग्यं माहात्म्यम्।। 12-28-16 श्वैत्यमानय संतापमिति ट. ड. पाठः।। 12-28-19 यागं माकुर्विति प्रत्याचष्ट प्रत्याख्यातवान्।। 12-28-24 चतुर्भद्रतरः चत्वारि धर्मज्ञानवैराग्यैश्वर्यीख्यानि भद्राणि यस्मिन्स चतुर्भद्रः। त्वया अवधिभूतेन त्वत्तोऽतिशयेन चतुर्भद्र इत्यर्थः।। 12-28-31 अवासृजत् यज्ञार्थमुत्सृष्टवान्।। 12-28-32 अत्यकालयत् दत्तवान्।। 12-28-55 वर्षसदृस्त्रिण्यः स्त्रियः। वर्षसहस्रकाः पुरुषाः।। 12-28-58 द्रोणदुधाः द्रोणपरिमितं क्षीरं दुहन्ति ताः।। 12-28-59 जारूथ्यान् स्तुत्यान्। त्रिगुणदक्षिणानित्यन्ये। निरर्गलानवारितद्वारान्।। 12-28-66 चतुर्युजश्चतुरश्वाः।। 12-28-68 उपह्वरे समीपे। अङ्के ऊरौ निषसाद आसांचक्रे। तस्माद्योगात्सा उर्वशी ऊरौ वासो यस्याः सा इति योगात्। ऊर्वसीत्यपेक्षिते ह्रस्वत्वं वर्णविपर्ययश्च पृषोदरादित्वात् ज्ञेयः।। 12-28-75 सप्तधा सप्तस्वरानुसारेणावादयदिति संबन्धः।। 12-28-76 मम पुरत इति शेषः। मां लक्षीकृत्येत्यर्थः।। 12-28-78 शतधन्वानं शतं अनन्तान् सहते धनुर्यस्य तं शतधन्वानम्। मध्यमपदलोपी समासः।। 12-28-82 पृषदाज्यं दधिमिश्रमाज्यं कस्यचिदर्थे पुत्रोत्पादनाय निर्मितं तद्युवनाश्वेन पीतं तत् रेतोरुधिरयोगं वेनापि तदुदरे गर्भोऽभवत्। स पितुः पार्श्वं भित्त्वा निःसारितो देवैरित्याख्यायिकार्योऽत्र सूचितः।। 12-28-86 अह्ना एकेन शतं पलानि व्यवर्धत। द्वादशवर्षतुल्यः।। 12-28-89 अभेदि भिन्ना।। 12-28-91 मत्स्यान् हैरण्यानिति संबन्धः।। 12-28-95 शम्या स्थूलबुध्नः काष्ठदण्डः स बलवता क्षिप्तो यावद्दूरं पतेत्तावान्देशः शम्यापातः। तावतान्तरेण पुरः पुरो यज्ञवेदीं कुर्वाणो वसुंधरां पर्यगच्छत्। परित्यज्य समुद्रतीरं प्राप्त इत्यर्थः।। 12-28-97 व्यभजत्पुत्रेभ्यो दत्तवान्।। 12-28-101 नृपान्दात्ये योजितवानित्यर्थः।। 12-28-102 दक्षिणाः दाक्ष्ययुक्ताः।। 12-28-103 सर्वे राजानोऽम्बरीषयज्ञेषु विप्रद्वास्यं कुर्वाणा अश्वमेधफलभागित्वात्तद्याजिनः सन्तः अम्बरीषमाहात्म्याद्दक्षिणायनं अनुपश्चात् अयुर्गताः। उत्तरायणमार्गेण हिरण्यगर्भलोक प्राप्ता इत्यर्थः।। 12-28-106 शाशबिन्दवाः शशबिन्दोः पुत्राः।। 12-28-111 गयं चामूर्तरयसमिति झ. पाठः।। 12-28-115 शतमश्वतराणि चेति झ. पाठः।। 12-28-117 दशव्यामां पञ्चाशद्धस्तविस्तारां द्विरायतां शतहस्तदीर्घाम्।। 12-28-122 उपातिष्ठन्त पितृकार्ये मां नियोजयेति।। 12-28-123 तेषां मारितानां पशूनां चर्मराशेः। उत्क्लेदात् सारद्रवात्।। 12-28-126 पिठराणि विततमुखानि पात्राणि।। 12-28-128 नाद्य मांसं पशुमात्रोपयोगस्य प्रागुक्तत्वात्।। 12-28-130 ऐक्ष्वाकं इक्ष्वाकुवंशजम्।। 12-28-134 आदेशेन आज्ञया तद्वित्तं स्वर्णप्रासादरूपम्।। 12-28-137 वैन्यं वेनपुत्रम्। महारण्ये दण्डकारण्ये।। 12-28-140 पुटकेपुटके पत्रेपत्रे इति प्राञ्चः।। 12-28-145 विप्रलप्तं विप्रलपितम्।। 12-28-147 विशोको जात इति शेषः।।
शांतिपर्व-027 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-029 |