महाभारतम्-12-शांतिपर्व-371
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नागब्राह्मणयोः संलापः।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-371-1x |
स पन्नगपतिस्तत्र प्रययौ ब्राह्मणं प्रति। तमेव मनसा ध्यायन्कार्यवत्तां विचारयन्।। | 12-371-1a 12-371-1b |
तमतिक्रम्य नागेन्द्रो मतिमान्स नरेश्वर। प्रोवाच मधुरं वाक्यं प्रकृत्या धर्मवत्सलः।। | 12-371-2a 12-371-2b |
भोभो क्षाम्याभिभाषए त्वां न रोषं कर्तुमर्हसि। इह त्वमभिसंप्राप्तः कस्यार्थे किं प्रयोजनम्।। | 12-371-3a 12-371-3b |
आभिमुख्यादभिक्रम्य स्नेहात्पृच्छामि ते द्विज। विविक्ते गोमतीतीरे कं वा त्वं पर्युपाससे।। | 12-371-4a 12-371-4b |
ब्राह्मण उवाच। | 12-371-5x |
धर्मारण्यं हि मां विद्धि नागं द्रष्टुमिहागतम्। पद्मनाभं द्विजश्रेष्ठ तत्र मे कार्यमाहितम्।। | 12-371-5a 12-371-5b |
तस्य चाहमसान्निध्ये श्रुतवानस्मि तं गतम्। स्वजनात्तं प्रतीक्षामि पर्जन्यमिव कर्षकः।। | 12-371-6a 12-371-6b |
तस्य चाक्लेशकरणं स्वस्तिकारसमाहितम्। आवर्तयामि तद्ब्रह्म योगयुक्तो निरामयः।। | 12-371-7a 12-371-7b |
नाग उवाच। | 12-371-8x |
अहो कल्याणवृत्तस्त्वं साधुः सज्जनवत्सलः। अवाच्यस्त्वं महाभाग परं स्नेहेन पश्यसि।। | 12-371-8a 12-371-8b |
अहं स नागो विप्रर्षे यथा मां विन्दते भवान्। आज्ञापय यथास्वैरं किं करोमि प्रियं तव।। | 12-371-9a 12-371-9b |
भवन्तं स्वजनादस्मि संप्राप्तं श्रुतवानहम्। अतस्त्वां स्वयमेवाहं द्रष्टुमभ्यागतो द्विज।। | 12-371-10a 12-371-10b |
संप्राप्तश्च भवानद्य कृतार्थः प्रतियास्यति। विस्रब्धो मां द्विजश्रेष्ठ विषये योक्तमर्हसि।। | 12-371-11a 12-371-11b |
वयं हि भवता सर्वे गुणक्रीता विशेषतः। यस्त्वमात्महितं त्यक्त्वा मामेवेहानुरुध्यसे।। | 12-371-12a 12-371-12b |
ब्राह्मण उवाच। | 12-371-13x |
आगतोऽहं महाभाग तव दर्शनलालसः। कंचिदर्थमनर्यज्ञः प्रष्टुकामो भुजंगम।। | 12-371-13a 12-371-13b |
अहमात्मानमात्मस्थो मार्गगाणोऽऽत्मनो गतिम्। वासार्थिनं महाप्रज्ञं चलच्चित्तमुपास्मि ह।। | 12-371-14a 12-371-14b |
प्रकाशितस्त्वं स गुणैर्यशोगर्भगभस्तिभिः। शशाङ्ककरसंस्पर्शैर्हृद्यैरात्मप्रकाशितैः।। | 12-371-15a 12-371-15b |
तस्य मे प्रश्नमुत्पन्नं छिन्धि त्वमनिलाशन। पश्चात्कार्यं वदिष्यामि श्रोतुमर्हति तद्भवान्।। | 12-371-16a 12-371-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि एकसप्तत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 371।। |
12-371-3 क्षाम्य क्षमस्व।। 12-371-5 धर्मारण्यं मुनिं मां विद्धि। द्विजानां सर्पाणां श्रेष्ठ। धर्मारण्याद्धि मां विद्धि इति ट. पाठः।। 12-371-6 श्रुतवानस्मि तां गतिमिति ठ. पाठः।। 12-371-7 अक्लेशकरणं क्लेशनिवारकम्।। 12-371-8 श्रुत्वाद्य त्वं महाभाग परं यत्नेन पश्यसीति ट. पाठः।। 12-371-13 अनर्थज्ञः अर्थानभिज्ञः। कंचिदर्थं हि तत्वज्ञेति ट. पाठः।। 12-371-15 आत्मन्यात्मप्रकाशिभिरिति ट. पाठः।।
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