महाभारतम्-12-शांतिपर्व-069
दिखावट
← शांतिपर्व-068 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-069 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-070 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति कृतादियुगचतुष्टयगुणनिरूपणम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-69-1x |
दण्डनीतिश्च राजा च समस्तौ तावुभावपि। तत्र किं कुर्वतः सिद्धिस्तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 12-69-1a 12-69-1b |
भीष्म उवाच। | 12-69-2x |
माहात्म्यं दण्डनीत्यास्तु साध्यं शब्दैः सहेतुकैः। शृणु मे शंसतो राजन्यथावदिह भारत।। | 12-69-2a 12-69-2b |
दण्डनीतिः स्वधर्मेषु चातुर्वर्ण्यं नियच्छति। प्रयुक्ता स्वामिना सम्यगधर्मेभ्यो नियच्छति।। | 12-69-3a 12-69-3b |
चातुर्वर्ण्ये स्वधर्मस्थे मर्यादानामसंकरे। दण्डनीतिकृते क्षेमे प्रजानामकुतोभये।। | 12-69-4a 12-69-4b |
सोमे प्रयत्नं कुर्वन्ति वयो वर्णा यथाविधि। तस्मादेव मनुष्याणां सुखं विद्धि समाहितम्।। | 12-69-5a 12-69-5b |
कालो वा कारणं राज्ञो राजा वा कालकारणम्। इति ते संशयो माभूद्राजा कालस्य कारणम्।। | 12-69-6a 12-69-6b |
दण्डनीत्यां यदा राजा सम्यक्कार्त्स्न्येन वर्तते। तदा कृतयुगं नाम कालः श्रेष्ठः प्रवर्तते।। | 12-69-7a 12-69-7b |
भवेत्कृतयुगे धर्मो नाधर्मो विद्यते क्वचित्। सर्वेषामेव वर्णानां नाधर्मे रमते मनः।। | 12-69-8a 12-69-8b |
योगक्षेमाः प्रवर्तन्ते प्रजानां नात्र संशयः। वैदिकानि च कर्माणि भवन्त्यपि गुणान्युत।। | 12-69-9a 12-69-9b |
ऋतवश्च सुखाः सर्वे भवन्त्युत निरामयाः। प्रसीदन्ति नराणां च स्वरवर्णमनांसि च।। | 12-69-10a 12-69-10b |
व्याधयो न भवन्त्यत्र नाल्पायुर्दृश्यते नरः। विधवा न भवन्त्यत्र नृशंसो नात्र जायते।। | 12-69-11a 12-69-11b |
अकृष्टपच्या पृथिवी भवन्त्योषधयस्तथा। त्वक्पत्रफलमूलानि वीर्यवन्ति भवन्ति च।। | 12-69-12a 12-69-12b |
नाधर्मो विद्यते तत्र धर्म एव तु केवलम्। इति कार्तयुगानेतान्गुणान्विद्धि युधिष्ठिर।। | 12-69-13a 12-69-13b |
दण्डनीत्या यदा राजा त्रीनंशाननुवर्तते। चतुर्थमंशमुत्सृज्य तदा त्रेता प्रवर्तते।। | 12-69-14a 12-69-14b |
अधर्मस्य चतुर्थांशस्त्रीनंशाननुवर्तते। कृष्टपच्यैव पृथिवी भवन्त्योषधयस्तथा।। | 12-69-15a 12-69-15b |
अर्धं त्यक्त्वा यदा राजा नीत्यर्धमनुवर्तते। ततस्तु द्वापरं नाम स कालः संप्रवर्तते।। | 12-69-16a 12-69-16b |
अशुभस्य यदा त्वर्धं द्वावंशावनुवर्तते। कुष्टपच्यैव पृथिवी भवत्यर्धफला तथा।। | 12-69-17a 12-69-17b |
दण्डनीतिं परित्यज्य यदा कार्त्स्न्येन भूमिपः। प्रजाः क्लिश्नात्ययोगेन प्रवर्तेत तदा कलिः।। | 12-69-18a 12-69-18b |
कलावधर्मो भूयिष्ठो धर्मो भवति न क्वचित्। सर्वेषामेव वर्णानां स्वधर्माच्च्यवते मनः।। | 12-69-19a 12-69-19b |
शूद्रा भैक्षेण जीवन्ति ब्राह्मणाः परिचर्यया। योगक्षेमस्य नाशश्च वर्तते वर्णसंकरः।। | 12-69-20a 12-69-20b |
वैदिकानि च कर्माणि भवन्ति विगुणान्युत। ऋतवो न सुखाः सर्वे भवन्त्यामयिनस्तथा।। | 12-69-21a 12-69-21b |
ह्रसन्त च मनुष्याणां स्वरवर्णमनांस्युत। व्याधयश्च भवन्त्यत्र म्रियन्ते चाशतायुषः।। | 12-69-22a 12-69-22b |
विधवाश्च भवन्त्यत्र नृशंसा जायते प्रजा। क्वचिद्वर्षति पर्जन्यः क्वचित्सस्यं प्ररोहति।। | 12-69-23a 12-69-23b |
रसाः सर्वे क्षयं यान्ति यदा नेच्छति भूमिपः। प्रजाः संरक्षितुं सम्यग्दण्डनीतिसमाहितः।। | 12-69-24a 12-69-24b |
राजा कृतयुगस्रष्टा त्रेताया द्वापरस्य च। युगस्य च चतुर्थस्य राजा भवति कारणम्।। | 12-69-25a 12-69-25b |
कृतस्य करणाद्राजा स्वर्गमत्यन्तमश्नुते। त्रेतायाः करणाद्राजा स्वर्गं नात्यन्तमश्नुते।। | 12-69-26a 12-69-26b |
प्रवर्तनाद्द्वापरस्य यथाभागमुपाश्नुते। कलेः प्रवर्तनाद्राजा पापमत्यन्तमश्नुते।। | 12-69-27a 12-69-27b |
ततो वसति दुष्कर्मा नरके शाश्वतीः समाः। प्रजानां कल्मषे मग्नोऽकीर्ति पापं च विन्दति।। | 12-69-28a 12-69-28b |
दण्डनीतिं पुरस्कृत्य क्षत्रियेण विजानता। लिप्सितव्यमलभ्यं च लब्धं रक्ष्यं च भारत। `योगक्षेमाः प्रवर्तन्ते प्रजानां नात्र संशयः।।' | 12-69-29a 12-69-29b 12-69-29c |
लोकस्य सीमन्तकरी मर्यादा लोकपावनी। सम्यङ्गीता दण्डनीतिर्यथा माता यथा पिता।। | 12-69-30a 12-69-30b |
यस्यां भवन्ति भूतानि तद्विद्धि भरतर्षभ। एष एव परो धर्मो यद्राजा दण्डनीतिमान्।। | 12-69-31a 12-69-31b |
तस्मात्कौरव्य धर्मेण प्रजाः पालय नीतिमान्। एवं वृत्तः प्रजा रक्षन्स्वर्गं जेतासि दुर्जयम्।। | 12-69-32a 12-69-32b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि एकोनसप्ततितमोऽध्यायः।। 69।। |
12-69-3 अधर्मेभ्य इति प़ञ्चमी।। 3।। 12-69-11 कपणो न त्विति झ. पाठः।। 12-69-18 अयोगेन अनुप्रायेन।। 12-69-20 योगक्षेमस्य नाशाच्चेति ट. ड. थ. पाठः।। 12-69-30 सीमन्तकरी त्र्यवस्यापिका।।
शांतिपर्व-068 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-070 |