महाभारतम्-12-शांतिपर्व-038
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कृष्णेन युधिष्ठिरंप्रति चार्वाकराक्षसस्य पूर्ववृत्तकथनम्।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-38-1x |
ततस्तत्र तु राजानं तिष्ठन्ते भ्रातृभिः सह। उवाच देवकीपुत्रः सर्वदर्शी जनार्दनः।। | 12-38-1a 12-38-1b |
वासुदेव उवाच। | 12-38-2x |
ब्राह्मणास्तात लोकेऽस्मिन्नर्चनीयाः सदा मम। एते भूमिचरा देवा वाग्विषाः सुप्रसादकाः।। | 12-38-2a 12-38-2b |
पुरा कृतयुगे राजंश्चार्वाको नाम राक्षसः। तपस्तेपे महाबाहो बदर्यां बहुवार्षिकम्।। | 12-38-3a 12-38-3b |
वरेण च्छन्द्यमानश्च ब्रह्मणा च पुनः पुनः। अभयं सर्वभूतेभ्यो वरयामास भारत।। | 12-38-4a 12-38-4b |
द्विजावमानादन्यत्र प्रादाद्वरमनुत्तमम्। अभयं सर्वभूतेभ्यो ददौ तस्मै जगत्पतिः।। | 12-38-5a 12-38-5b |
स तु लब्धवरः पापो देवानमितविक्रमः। राक्षसस्तापयामास तीव्रकर्मा महाबलः।। | 12-38-6a 12-38-6b |
ततो देवाः समेताश्च ब्रह्माणमिदमब्रुवन्। वधाय रक्षसस्तस्य बलविप्रकृतास्तदा।। | 12-38-7a 12-38-7b |
तानुवाच ततो देवो विहितं तत्र वै मया। यथाऽस्य भविता मृत्युरचिरणेति भारत।। | 12-38-8a 12-38-8b |
राजा दुर्योधनो नाम सखाऽस्य भविता नृषु। तस्य स्नेहावबद्धोऽसौ ब्राह्मणानवमंस्यते।। | 12-38-9a 12-38-9b |
तत्रैनं रुषिता विप्रा विप्रकारप्रधर्षिताः। धक्ष्यन्ति वाग्बलाः पापं ततो नाशं गमिष्यति।। | 12-38-10a 12-38-10b |
स एष निहतः शेते ब्रह्मदण्डेन राक्षसः। चार्वाको नृपतिश्रेष्ठ मा शुचो भरतर्षभ।। | 12-38-11a 12-38-11b |
हतास्ते क्षत्रधर्मेण ज्ञातयस्तव पार्थिव। स्वर्गताश्च महात्मानो वीराः क्षत्रियपुङ्गवाः।। | 12-38-12a 12-38-12b |
स त्वमातिष्ठ कार्याणि मा ते भूद्वुद्धिरन्यथा। शत्रूञ्जहि प्रजा रक्ष द्विजांश्च परिपूजय।। | 12-38-13a 12-38-13b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि अष्टत्रिंशोऽध्यायः।। 38।। |
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