महाभारतम्-12-शांतिपर्व-040
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युधिष्ठिरेण भीमार्जुनाद्रीनां तत्तद्योग्ययौवराज्याद्यधिकारेषु नियोजनम्।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-40-1x |
प्रकृतीनां च तद्वाक्यं देशकालोपबृंहितम्। श्रुत्वा युधिष्ठिरो राजाऽथोत्तरं प्रत्यभाषत।। | 12-40-1a 12-40-1b |
धन्याः पाण्डुसुता नूनं येषां ब्राह्मणपुङ्गवाः। तथ्यान्वाप्यथवाऽतथ्यान्गुणानाहुः समागताः।। | 12-40-2a 12-40-2b |
अनुग्राह्या वयं नूनं भवतामिति मे मतिः। यदेवं गुणसंपन्नानस्मान्ब्रूथ विमत्सराः।। | 12-40-3a 12-40-3b |
धृतराष्ट्रो महाराजः पिता नो दैवतं परम्। शासनेऽस्य प्रिये चैव स्थेयं मत्प्रियकाङ्क्षिभिः।। | 12-40-4a 12-40-4b |
एतदर्थं हि जीवामि कृत्वा ज्ञातिवधं महत्। अस्य शुश्रूषणं कार्यं मया नित्यमतन्द्रिणा।। | 12-40-5a 12-40-5b |
यदि चाहमनुग्राह्यो भवतां सुहृदां तथा। धृतरा यथापूर्वं वृत्तिं वर्तितुमर्हथ।। | 12-40-6a 12-40-6b |
एष नाथो हि जगतो भवतां च मया सह। अस्य प्रसादे पृथिवी पाण्डवाः सर्व एव च।। | 12-40-7a 12-40-7b |
एतन्मनसि कर्तव्यं भवद्भिर्वचनं मम। अनुज्ञाप्याथ तान्राजा यथेष्टं गम्यतामिति।। | 12-40-8a 12-40-8b |
पौरजानपदान्सर्वान्विसृज्य कुरुनन्दनः। यौवराज्येन कौन्तेयं भीमसेनमयोजयत्।। | 12-40-9a 12-40-9b |
मन्त्रे च निश्चये चैव षाङ्गुण्यस्य च चिन्तने। विदुरं बुद्धिसंपन्नं प्रीतिमान्स समादिशत्।। | 12-40-10a 12-40-10b |
कृताकृतपरिज्ञाने तथाऽऽयव्ययचिन्तने। संजयं योजयामास वृद्धं सर्वगुणैर्युतम्।। | 12-40-11a 12-40-11b |
बलस्य परिमाणे च भक्तवेतनयोस्तथा। नकुलं व्यादिशद्राजा कर्मणां चान्ववेक्षणे।। | 12-40-12a 12-40-12b |
परचक्रोपरोधे च दृप्तानां चावमर्दने। युधिष्ठिरो महाराज फल्गुनं व्यादिदेश ह।। | 12-40-13a 12-40-13b |
द्विजानां देवकार्येषु कार्येष्वन्येषु चैव ह। धौम्यं पुरोधसां श्रेष्ठं नित्यमेव समादिशत्।। | 12-40-14a 12-40-14b |
सहदेवं समीपस्थं नित्यमेव समादिशत्। तने गोप्यो हि नृपतिः सर्वावस्थो विशांपते।। | 12-40-15a 12-40-15b |
यान्यानमन्यद्योग्यांश्च येषु येष्विह कर्मसु। तांस्तांस्तेष्वेव युयुजे प्रीयमाणो महीपतिः।। | 12-40-16a 12-40-16b |
विदुरं संजयं चैव युयुत्सुं च महामतिम्। अब्रवीत्परवीरघ्नो धर्मात्मा धर्मवत्सलः।। | 12-40-17a 12-40-17b |
उत्थायोत्थाय तत्कार्यमस्य राज्ञः पितुर्मम। सर्वं भवद्भिः कर्तव्यमप्रमत्तैर्यथा मम।। | 12-40-18a 12-40-18b |
पौरजानपदानां च यानि कार्याणि नित्यशः। राजानं समनुज्ञाप्य तानि कार्याणि धर्मतः।। | 12-40-19a 12-40-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि चत्वारिंशोऽध्यायः।। 40।। |
12-40-18 यत् अस्य कार्यं तच्च भवद्भिः कर्तव्यमित्यर्थः। अप्रमत्तैस्तथामयेति ट. द. पाठः।। 12-40-19 तानि कार्याणि कर्तव्यानीत्यर्थः।।
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