महाभारतम्-12-शांतिपर्व-052
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प्ररेद्युः प्रभाते कृष्णयुधिष्ठिरादिभिर्धर्मश्रवणाय भीष्मसमीपगमनम्।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-52-1x |
ततः प्रविश्य भवनं प्रविश्ये मधुसूदनः। याममात्रावशेषायां यामिन्यां प्रत्यबुध्यत।। | 12-52-1a 12-52-1b |
स ध्यानपथमाविश्य सर्वज्ञानानि माधवः। अवलोक्य ततः पश्चाद्दध्यौ ब्रह्म सनातनम्।। | 12-52-2a 12-52-2b |
सूताः स्तुतिपुराणज्ञा रक्तकण्ठाः सुशिक्षिताः। अस्तुवन्विश्वकर्माणं वासुदेवं प्रजापतिम्।। | 12-52-3a 12-52-3b |
पठन्ति पाणिस्वनिकास्तथा गायन्ति गायनाः। शङ्खानथ मृदङ्गांश्च प्रवाद्यन्ति सहस्रशः।। | 12-52-4a 12-52-4b |
वीणापणववेणूनां स्वनश्चातिमनोरमः। सहास इव विस्तीर्णः शुश्रुवे तस्य वेश्मनि।। | 12-52-5a 12-52-5b |
ततो युधिष्ठिरस्यापि राज्ञो मङ्गलसंहिताः। उच्चेरुर्मधुरा वाचो गीतवादित्रबृंहिताः।। | 12-52-6a 12-52-6b |
तत उत्थाय दाशार्हः स्नातः प्राञ्जलिरच्युतः। जप्त्वा गुह्यं महाबाहुरग्नीनाश्रित्य तस्थिवान्।। | 12-52-7a 12-52-7b |
ततः सहस्रं विप्राणां चतुर्वेदविदां तथा। गवां सहस्रेणैकैकं वाचयामास माधवः।। | 12-52-8a 12-52-8b |
मङ्गलालम्भनं कृत्वा आत्मानमवलोक्य च। आदर्शे विमले कृष्णस्ततः सात्यकिमब्रवीत्।। | 12-52-9a 12-52-9b |
गच्छ शैनेय जानीहि गत्वा राजनिवेशनम्। अपि सञ्जो महातेजा भीष्मं द्रष्टुं युधिष्ठिरः।। | 12-52-10a 12-52-10b |
ततः कृष्णस्य वचनात्सात्यंकिस्त्वरितो ययौ। उपगम्य च राजानं युधिष्ठिरमभाषत।। | 12-52-11a 12-52-11b |
युक्तो रथवरो राजन्वासुदेवस्य धीमतः। समीपमापगेयस्य प्रयास्यति जनार्दनः।। | 12-52-12a 12-52-12b |
भवत्प्रतीक्षः कृष्णोऽसौ धर्मराज महाद्युते। यदत्रानन्तरं कृत्यं तद्भवान्कर्तुमर्हति।। | 12-52-13a 12-52-13b |
एवमुक्तः प्रत्युवाच धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। युज्यतां मे रथवरः फल्गुनाप्रतिमद्युते।। | 12-52-14a 12-52-14b |
न सैनिकैश्च यातव्यं यास्यामो वयमेव हि। न च पीडयितव्यो मे भीष्मो धर्मभृतां वरः।। | 12-52-15a 12-52-15b |
अतः पुरःसराश्चापि निवर्तन्तु धनञ्जय। अद्यप्रभृति गाङ्गेयः परं गुह्यं प्रवक्ष्यति। अतो नेच्छामि कौन्तेय पृथग्जनसमागमम्।। | 12-52-16a 12-52-16b 12-52-16c |
वैशंपायन उवाच। | 12-52-17x |
स तद्वाक्यमथाज्ञाय कुन्तीपुत्रो धनञ्जयः। युक्तं रथवरं तस्मा आचचक्षे नरर्षभः।। | 12-52-17a 12-52-17b |
ततो युधिष्ठिरो राजा यमौ भीमार्जुनावपि। भूतानीव समस्तानि ययुः कृष्णनिवेशनम्।। | 12-52-18a 12-52-18b |
आगच्छत्स्वथ कृष्णोऽपि पाण्डवेषु महात्मसु। शैनेयसहितो धीमान्रथमेवान्वपद्यत।। | 12-52-19a 12-52-19b |
रथस्थाः संविदं कृत्वा सुखां पृष्ट्वा च शर्वरीम्। मेघघोषै रथवरैः प्रययुस्ते नरर्षभाः।। | 12-52-20a 12-52-20b |
बलाहकं मेघपुष्पं शैब्यं सुग्रीवमेवच। दारुकश्चोदयामास वासुदेवस्य वाजिनः।। | 12-52-21a 12-52-21b |
ते हया वासुदेवस्य दारुकेण प्रचोदिताः। गां खुराग्रैस्तथा राजँल्लिखन्तः प्रययुस्तदा।। | 12-52-22a 12-52-22b |
ते ग्रसन्त इवाकाशं वेगवन्तो महाबलाः। क्षेत्रं धर्मस्य कृत्स्नस्य कुरुक्षेत्रमवातरन्।। | 12-52-23a 12-52-23b |
ततो ययुर्यत्र भीष्मः शरतल्पगतः प्रभुः। आस्ते महर्षिभिः सार्ध्रं ब्रह्मा देवगणैर्यथा।। | 12-52-24a 12-52-24b |
ततोऽवतीर्य गोविन्दो रथात्स च युधिष्ठिरः। भीमो गाण्डीवधन्वा च यमौ सात्यकिरेव च। ऋषीनभ्यर्चयामासुः करानुद्यम्य दक्षिणान्।। | 12-52-25a 12-52-25b 12-52-25c |
स तैः परिवृतो राजा नक्षत्रैरिव चन्द्रमाः। अभ्याजगाम गाङ्गेयं ब्रह्माणमिव वासवः।। | 12-52-26a 12-52-26b |
शरतल्पे शयानं तमादित्यं पतितं यथा। स ददर्श महाबाहुं भयाच्चागतसाध्वसः।। | 12-52-27a 12-52-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि द्विपञ्चाशोऽध्यायः।। 52।। |
12-52-9 मङ्गलानां गवादीनामालम्भनं स्पर्शम्।। 12-52-27 आगतसाध्वसः भयजन्यकम्पादिमान्।।
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