महाभारतम्-12-शांतिपर्व-076
दिखावट
← शांतिपर्व-075 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-076 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-077 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति ब्राह्मणानां निषिद्धकर्मकथनम् राजधर्मकथनं च।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-76-1x |
स्वकर्मण्यपरे युक्तास्तथैवान्ये विकर्मणि। तेषां विशेषमाचक्ष्व ब्राह्मणानां पितामह।। | 12-76-1a 12-76-1b |
भीष्म उवाच। | 12-76-2x |
विद्यालक्षणसंपन्नाः सर्वत्राम्नायदर्शिनः। एते ब्रह्मसमा राजन्ब्राह्मणाः परिकीर्तिताः।। | 12-76-2a 12-76-2b |
ऋत्विगाचार्यसंपन्नाः स्वेषु कर्मस्ववस्थिताः। एते देवसमा राजन्ब्राह्मणानां भवन्त्युत।। | 12-76-3a 12-76-3b |
`गोऽजाविमहिषाणां च बडवानां च पोषकाः। वृत्त्यर्थं प्रतिपद्यन्ते तान्वैश्यान्संप्रचक्षते।। | 12-76-4a 12-76-4b |
ऐश्वर्यकामा ये चापि सामिपा वाऽपि भारत। निग्रहानुग्रहरतांस्तान्द्विजान्क्षत्रियान्विदुः।। | 12-76-5a 12-76-5b |
अश्वारोहा गजारोहा रथिनोऽथ पदातयः। एते वैश्यसमा राजन्ब्राह्मणानां भवन्त्युत।। | 12-76-6a 12-76-6b |
जन्मकर्मविहीना ये कदर्या ब्रह्मबन्धवः। एते शूद्रसमा राजन्ब्राह्मणानां भवन्त्युत।। | 12-76-7a 12-76-7b |
अश्रोत्रियाः सर्वे एते सर्वे चानाहिताग्नयः। तान्सर्वान्धार्मिको राजा बलिं विष्टिं च कारयेत्।। | 12-76-8a 12-76-8b |
आह्वायका देवलका नाक्षत्रा ग्रामयाजकाः। एते ब्राह्मणचाण्डाला महापथिकपञ्चमाः।। | 12-76-9a 12-76-9b |
[ऋत्विक्पुरोहितो मन्त्री दूतो वार्तानुकर्षकः। एते क्षत्रसमा राजन्ब्राह्मणानां भवन्त्युत।।] | 12-76-10a 12-76-10b |
`म्लेच्छदेशाश्च ये केचित्पापैरध्युषिता नरैः। गत्वा तु ब्राह्मणस्तांश्च चण्डालः प्रेत्य चेह च।। | 12-76-11a 12-76-11b |
व्रात्यान्म्लेच्छांश्च शूद्रांश्च याजयित्वा द्विजाधमः। अकीर्तिमिह संप्राप्य नरकं प्रतिपद्यते।। | 12-76-12a 12-76-12b |
महावृन्दसमुद्राभ्यां पर्यायेणैकविंशतिम्। ब्राह्मणो ऋग्यजुः साम्नां मूढः कृत्वा तु विप्लवम्।। | 12-76-13a 12-76-13b |
कल्पमेकं कृमिस्थोऽथ नानाविष्ठासु जायते। व्रात्ये म्लेच्छे तथा शूद्रे तस्करे पत्तितेऽशुचौ।। | 12-76-14a 12-76-14b |
कुदेशे च सुरापे च ब्रह्मघ्ने वृषलीपतौ। अनधीतेषु सर्वत्र भुञ्जाने यत्र तत्र वा।। | 12-76-15a 12-76-15b |
वालस्त्रीवृद्धहन्तुश्च मातापित्रोर्गुरोस्तथा। मित्रद्रुहि कृतघ्ने च गोघ्ने चैव कथंचन।। | 12-76-16a 12-76-16b |
पुत्रघातिनि शत्रौ च न मन्त्राद्याजयेद्द्विजः। स तेषां विप्लवः प्रोक्तो मन्त्रविद्भिः सनातनैः।। | 12-76-17a 12-76-17b |
यदि विप्रो विदेशस्थस्तीर्थयात्रां गतोऽपि वा। यदि भीतः प्रपन्नो वा कुदेशं शौचवर्जितम्।। | 12-76-18a 12-76-18b |
सुसयतः शुचिर्भुत्वा मन्त्रानुच्चारयेद्द्विजः। आर्तश्चोच्चारयेन्मन्त्रमार्तत्राणपरोऽथवा। हीनेष्वपि प्रयुञ्जानो नासौ विप्लावकः स्मृतः।। | 12-76-19a 12-76-19b 12-76-19c |
क्रूरकर्मा विकर्मा वा कर्मभिर्वञ्चितोऽथवा। तत्त्ववित्तरते पापं शीलवान्सयतेन्द्रियः।। ' | 12-76-20a 12-76-20b |
एतेभ्यो बलिमादद्याद्धीनकोशो महीपतिः। ऋते ब्रह्मसमेभ्यश्च देवकल्पेभ्य एव च।। | 12-76-21a 12-76-21b |
अब्राह्मणानां वित्तस्य स्वामी राजेति नः श्रुतिः। ब्राह्मणानां च येकेचिद्विकर्मस्था इति श्रुतिः। `प्रागुक्तांश्चाप्यनुक्तांश्च सर्वास्तान्दापयेत्करान्' | 12-76-22a 12-76-22b 12-76-22c |
विकर्मस्थाश्च नोपेक्ष्या विप्रा राज्ञा कथंचन। नियम्याः संविभज्याश्च धर्मानुग्रहकाम्यया।। | 12-76-23a 12-76-23b |
यस्य स्म विषये राज्ञः स्तेनो भवति वै द्विजः। राज्ञ एवापराधं तं मन्यन्ते तद्विदो जनाः।। | 12-76-24a 12-76-24b |
अवृत्त्या यो भवेत्स्तेनो वेदवित्स्नातकस्तथा। राजन्स राज्ञा भर्तव्य इति वेदविदो विदुः।। | 12-76-25a 12-76-25b |
स चेन्नापि निवर्तेत कृतवृत्तिः परन्तप। ततो निर्वासनीयः स्यात्तस्माद्देशात्सबान्धवः।। | 12-76-26a 12-76-26b |
`यज्ञः श्रुतमपैशुन्यमर्हिसाऽतिथिपूजनम्। दमः सत्यं तपो दानमेतद्ब्राह्मणलक्षणम्।।' | 12-76-27a 12-76-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि षट्सप्ततितमोऽध्यायः।। 76।। |
12-76-3 ऋग्यजुःसामसंपन्नाः इति झ. पाठः।। 12-76-7 जन्मकर्मजन्मोचितकर्म तेन विहीनाः।। 12-76-8 बलिं करवानम्। विष्टिंविना वेतनं राजसेवाम्।। 12-76-9 आह्वायका धर्माधिकारिणः। देवलका वेतनेन देवपूजाकर्तारः। महापथिकः समुद्रे नौयानेन गच्छन्। यद्वा महापथि शुल्कग्राहकः।।
शांतिपर्व-075 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-077 |