महाभारतम्-12-शांतिपर्व-365
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अतिथिना ब्राह्मणंप्रति श्रेयःसाधनावगमनाय पद्माख्यनागसमीपगमनचोदना।। 1।।
अतिथिरुवाच। | 12-365-1x |
उपदेशं तु ते विप्र करिष्येऽहं यथाक्रमम्। गुरुणा मे यथाख्यातमर्थतत्त्वं तु मे शृणु।। | 12-365-1a 12-365-1b |
यत्र पूर्वाभिसर्गे वै धर्मचक्रं प्रवर्तितम्। नैमिषे गोमतीतीरे तत्र नागह्रदो महान्।। | 12-365-2a 12-365-2b |
समग्रैस्रिदशैस्तत्र इष्टमासीद्द्विजर्षभ। यत्रेन्द्रातिक्रमं चक्रे माधाता राजसत्तमः।। | 12-365-3a 12-365-3b |
कृताधिवासो धर्मात्मा तत्र चक्षुःश्रवा महान्। पद्मनाभो महानागः पद्म इत्येव विश्रुतः।। | 12-365-4a 12-365-4b |
स वाचा कर्मणा चैव मनसा च द्विजर्षभः। प्रसादयति भूतानि त्रिविधे वर्त्मनि स्थितः।। | 12-365-5a 12-365-5b |
साम्ना भेदेन दानेन दणडेनेति चतुर्विधम्। पिपमस्थं समस्थं च चक्षुर्ध्यानेन रक्षति।। | 12-365-6a 12-365-6b |
तमतिक्रम्य विधिना प्रष्टुमर्हसि काङ्क्षित्तम्। स ते परमकं धर्मं न मिथ्या दर्शयिष्यरति।। | 12-365-7a 12-365-7b |
स हि सर्वातिथिर्नाणो बुद्धिशास्त्रविशारदः। गुणैरनुपमैर्युक्तः समस्तैराभिकामिकैः।। | 12-365-8a 12-365-8b |
प्रकृत्या नित्यसलिलो नित्यमध्ययने रतः। तपोदमाभ्यां संयुक्तो वृत्तेनानवरेण च।। | 12-365-9a 12-365-9b |
यज्वा दानपतिः क्षान्तो वृत्ते च परमे स्थितः। सत्यवागनसूयुश्च शीलवान्नियतेन्द्रियः।। | 12-365-10a 12-365-10b |
शेषान्नभोक्ता वचनानुकूलो हितार्जवोत्कृष्टकृताकृतज्ञः। अवैरकृद्भूतहिते नियुक्तो गङ्गाह्रदाम्भोभिजनोपपन्नः।। | 12-365-11a 12-365-11b 12-365-11c 12-365-11d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि पञ्चषष्ट्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 365।। |
12-365-4 चक्षुःश्रवाः सर्पः।। 12-365-5 त्रिविधे कर्मज्ञानोपास्त्यात्मके।। 13-365-6 चतुर्विधं यथा स्यात्तया। चक्षुः चक्षुरादि। ध्यानेन वस्तुतत्त्वानुसंधानेन।। 13-365-7 अतिक्रम्योपगम्य।। 12-365-8 आभिकामिकैरभीप्सितैः।।
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