महाभारतम्-12-शांतिपर्व-113
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति बलवच्छत्रुवशीकरणे विनयस्योपायतायां दृष्टान्ततया सरित्सागरसंवादानुवादः।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-113-1x |
राजा राज्यमनुप्राप्य दुर्बलो भरतर्षभ। अमित्रस्यातिवृद्धस्य कथं तिष्ठेदसाधनः।। | 12-113-1a 12-113-1b |
भीष्म उवाच। | 12-113-2x |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। सरितां चैव संवादं सागरस्य च भारत।। | 12-113-2a 12-113-2b |
सुरारिनिलयः शश्वत्सागरः सरितां पतिः। पप्रच्छ सरितः सर्वाः संशयं जातमात्मनः।। | 12-113-3a 12-113-3b |
सागर उवाच। | 12-113-4x |
समूलशाखान्पश्यामि निहतान्क्वापि नो द्रुमान्। युष्माभिरिह पूर्णाभिरन्यांस्तत्र न वेतसान्।। | 12-113-4a 12-113-4b |
अ-पकायश्चाल्पसारो वेतसः कूलजश्च यः। अज्ञया वा नानीतः किं च वा तेन वः कृतम्।। | 12-113-5a 12-113-5b |
तदहं श्रोतुमिच्छामि सर्वासामेव वो मतम्। यथा चेमानि कूलानि हित्वा नायाति वेतसः।। | 12-113-6a 12-113-6b |
तत्र प्राह नदी गङ्गा वाक्यमुत्तरमर्थवत्। हेतुमद्ग्राहकं चैव सागरं सरितां पतिम्।। | 12-113-7a 12-113-7b |
गङ्गोवाच। | 12-113-8x |
तिष्ठन्त्येते यथास्थानं नगा ह्येकनिकेतनाः। ततस्त्यजन्ति तत्स्थानं प्रातिलोम्यान्न वेतसः।। | 12-113-8a 12-113-8b |
वेतसो वेगमायान्तं दृष्ट्वा नमति नापरे। स च वेगे ह्यतिक्रान्ते स्थानमापद्यते पुनः।। | 12-113-9a 12-113-9b |
कालज्ञः समयज्ञश्च सदावश्यश्च नो द्रुमः। अनुलोमवृत्तितस्तब्धस्तेन त्वां नैति वेतसः।। | 12-113-10a 12-113-10b |
मारुतोदकवेगेन ये नमन्त्युन्नमन्ति च। ओषध्यः पादपा गुल्मा न ते यान्ति पराभवम्।। | 12-113-11a 12-113-11b |
भीष्म उवाच। | 12-113-12x |
यो हि शत्रोर्विवृद्धस्य प्रभोर्बन्धविनाशने। पूर्वं न सहते वेगं क्षिप्रमेव विनश्यति।। | 12-113-12a 12-113-12b |
सारासारं बलं वीर्यमात्मनो द्विषतश्च यः। जानन्विचरति प्राज्ञो न स याति पराभवम्।। | 12-113-13a 12-113-13b |
एवमेव यदा विद्वान्मन्यते विपुलं बलम्। संश्रयेद्वैतसीं वृत्तिमेतत्प्रज्ञानलक्षणम्।। | 12-113-14a 12-113-14b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः।। 113।। |
[सम्पाद्यताम्]
12-113-4 निहतानुन्मूलितान्। कायिन इति पाठे महाशरीरान्। अन्यानल्पशरीरान्वेतसान् न हतान्पश्यामि।। 12-113-5 अवज्ञाय न शक्यो वा इति द. पाठः।। 12-113-8 एकनिकेतनाः स्तब्धा इत्यर्थः। प्रातिलोम्यादस्माकं प्रातिकूल्यात्।। 12-113-14 वैतसीं वृत्तिमस्तब्धत्वम्।।
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