महाभारतम्-12-शांतिपर्व-324
दिखावट
← शांतिपर्व-323 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-324 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-325 → |
भीष्मण युधिष्ठिरंप्रति दारापत्यादिषु स्नेहत्यागपूर्वकं धर्माचरणचोदकजनकपञ्चशिखसंवादानुवादः।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-324-1x |
ऐश्वर्यं वा महत्प्राप्य धनं वा भरतर्षभ। दीर्घमायुरवाप्याथ कथं मृत्युमतिक्रमेत्।। | 12-324-1a 12-324-1b |
तपसा वा सुमहता कर्मणा वा श्रुतेन वा। रसायनप्रयोगैर्वा कैर्नाप्नोति जरान्तकौ।। | 12-324-2a 12-324-2b |
भीष्म उवाच। | 12-324-3x |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। भिक्षोः पञ्चशिखस्येह संवादं जनकस्य च।। | 12-324-3a 12-324-3b |
वैदेहो जनको राजा महर्षि वेदवित्तमम्। यर्यपृच्छत्पञ्चशिखं छिन्नधर्मार्थसंशयम्।। | 12-324-4a 12-324-4b |
केन वृत्तेन भगवन्नतिक्रामेज्जरान्तकौ। तपसा वाऽथवा बुद्ध्या कर्मणा वा श्रुतेन वा।। | 12-324-5a 12-324-5b |
एवमुक्तः स वैदेहं प्रत्युवाचापरेक्षवित्। निवृत्तिर्नैतयोरस्ति नातिवृत्तिः कथंचन।। | 12-324-6a 12-324-6b |
न ह्यहानि निवर्तन्ते न मासा न पुनः क्षपाः। सोयं प्रपद्यतेऽध्वानं चिराय ध्रुवमध्रुवः।। | 12-324-7a 12-324-7b |
सर्वभूतसमुच्छेदः स्रोतसेवोह्यते सदा। ऊह्यमानं निमज्जन्तमप्लवे कालसागरे।। | 12-324-8a 12-324-8b |
जरामृत्युमहाग्राहे न कश्चिदतिवर्तते। नैवास्य कश्चिद्भवति नासौ भवति कस्यचित्।। | 12-324-9a 12-324-9b |
पथि संगतमेवेदं दारैरन्यैश्च बन्धुभिः। नायमत्यन्तसंवासो लब्धपूर्वो हि केनचित्।। | 12-324-10a 12-324-10b |
क्षिप्यन्ते तेनतेनैव निष्टनन्तः पुनः पुनः। कालेन जाता याता हि वायुनेवाभ्रसंचयाः।। | 12-324-11a 12-324-11b |
जरामृत्यू हि भूतानां खादितारौ वृकाविव। बलिनां दुर्बलानां च ह्रस्वानां महतामपि।। | 12-324-12a 12-324-12b |
एवंभूतेषु भूतेषु नित्यभूताध्रवेषु च। कथं हि हृष्येज्जातेषु मृतेषु च न संज्वरेत्।। | 12-324-13a 12-324-13b |
कुतोऽहमागतः कोऽस्मि क्व गमिष्यामि कस्य वा। कस्मिन्स्थितः क्व भविता कस्मात्किमनुशोचसि।। | 12-324-14a 12-324-14b |
द्रष्टा स्वर्गस्य न ह्यस्ति तथैव नरकस्य च। आगमास्त्वनतिक्रम्य दद्याच्चैव यजेत च।। | 12-324-15a 12-324-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि चतुविंशत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 324।। |
12-324-14 कुतस्त्वमागतः क्वासि त्वं गमिष्यसि कस्यवेति ड. पाठः।।
शांतिपर्व-323 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-325 |