महाभारतम्-12-शांतिपर्व-332
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति शुकोत्पत्तिप्रकारकथनम्।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-332-1x |
स लब्ध्वा परमं देवाद्वरं सत्यवतीसुतः। अरणीं तु ततो गृह्य ममन्थाग्निचिकीर्षया।। | 12-332-1a 12-332-1b |
अथ रूपं परं राजन्बिभ्रतीं स्वेन तेजसा। घृताचीं नामाप्सरसमपश्यद्भगवानृषिः।। | 12-332-2a 12-332-2b |
ऋषिरप्सरसं दृष्ट्वा सहसा काममोहितः। अभवद्भगवान्व्यासो वने तस्मिन्युधिष्ठिर।। | 12-332-3a 12-332-3b |
सा च दृष्ट्वा तदा व्यासं कामसंविग्नमानसम्। शुकी भूत्वा महाराज घृताची समुपागमत्।। | 12-332-4a 12-332-4b |
स तामप्सरसं दृष्ट्वा रूपेणान्येन संवृताम्। शरीरजेनानुगतः सर्वगात्रातिगेन ह।। | 12-332-5a 12-332-5b |
स तु धैर्येण महता निगृह्णन्हृच्छयं मुनिः। न शशाक नियन्तुं तद्व्यासः प्रविसृतं मनः। भावित्वाच्चैव भावस्य घृताच्या वपुषा हृतः।। | 12-332-6a 12-332-6b 12-332-6c |
यत्नान्नियच्छतस्तस्य मुनेरग्निचिकीर्षया। अरण्यामेव सहसा तस्य शुक्रमवापतत्।। | 12-332-7a 12-332-7b |
सोऽविशङ्केन मनसा तथैव द्विजसत्तमः। अरणीं ममन्थ ब्रह्मर्षिस्तस्यां जज्ञे शुको नृप।। | 12-332-8a 12-332-8b |
शुक्रे निर्मथ्यमाने स शुको जज्ञे महातपाः। परमर्षिर्महायोगी अरणीगर्भसंभवः।। | 12-332-9a 12-332-9b |
यथाऽध्वरे समिद्धोऽग्निर्भाति हव्यमुदावहन्। तथारूपः शुको जज्ञे प्रज्वलन्निव तेजसा।। | 12-332-10a 12-332-10b |
विभ्रत्पितुश्च कौरव्य रूपवर्णमनुत्तमम्। बभौ तदा भावितात्मा विधूमोऽग्निरिवज्वलन्।। | 12-332-11a 12-332-11b |
तं गङ्गा सरितां श्रेष्ठा मेरुपृष्ठे जनेश्वर। स्वरूपिणी तदाऽभ्येत्य स्नापयामास वारिणा।। | 12-332-12a 12-332-12b |
अन्तरिक्षाच्च कौरव्य दण्डः कृष्णाजिनं च ह। पपात भुवि राजेन्द्र शुकस्थार्थे महात्मनः।। | 12-332-13a 12-332-13b |
जेगीयन्ते स्म गन्धर्वा ननृतुश्चाप्सरोगणाः। देवदुन्दुभयश्चैव प्रावाद्यन्त सहस्रशः।। | 12-332-14a 12-332-14b |
विश्वासुश्च गन्धर्वस्तथा तुम्बुरुनारदौ। हाहा हूहूश्च गन्धर्वौ तुष्टुवुः शुकसंभवम्।। | 12-332-15a 12-332-15b |
तत्र शक्रपुरोगाश्च लोकपालाः समागताः। देवा देवर्षयश्चैव तथा ब्रह्मर्षयोऽपि च।। | 12-332-16a 12-332-16b |
दिव्यानि सर्वपुष्पाणि प्रववर्ष च मारुतः। जङ्गमं स्थावरं चैव प्रहृष्टमभवज्जगत्।। | 12-332-17a 12-332-17b |
तं महात्मा स्वयं प्रीत्या देव्या सह महाद्युतिः। जतामात्रं मुनेः पुत्रं विधिनोपानयत्तदा।। | 12-332-18a 12-332-18b |
तस्य देवेश्वरः शक्रो दिव्यमद्भुतदर्शनम्। ददौ कमण्डलुं प्रीत्या देववासांसि चाभिभो।। | 12-332-19a 12-332-19b |
हंसाश्च शतपत्राश्च सारसाश्च सहस्रशः। प्रदक्षिणमवर्तन्त शुकाश्चाषाश्च भारत।। | 12-332-20a 12-332-20b |
आरणेयस्ततो दिव्यं प्राप्य जन्म महाद्युतिः। तत्रैवोवास मेधावी ब्रह्मचारी समाहितः।। | 12-332-21a 12-332-21b |
उत्पन्नमात्रं तं वेदाः सरहस्याः ससंग्रहाः। उपतस्थुर्महाराज यथाऽस्य पितरं तथा।। | 12-332-22a 12-332-22b |
बृहस्पतिं च वव्रे स वेदवेदाङ्गभाष्यवित्। उपाध्यायं महाराज धर्ममेवानुचिन्तयन्।। | 12-332-23a 12-332-23b |
सोऽधीत्य निखिलान्वेदान्सरहस्यान्ससंग्रहान्। इतिहासं च कार्त्स्न्येन धर्मशास्त्राणि चाभिभो।। | 12-332-24a 12-332-24b |
गुरवे दक्षिणां दत्त्वा समावृत्तो महामुनिः। उग्रं तपः समारेभे ब्रह्मचारी समाहितः।। | 12-332-25a 12-332-25b |
देवतानामृषीणां च बाल्येऽपि स महातपाः। संमन्त्रणीयो मान्यश्च ज्ञानेन तपसा तथा।। | 12-332-26a 12-332-26b |
न त्वस्य रमते बुद्धिराश्रमेषु नराधिप। त्रिषु गार्हस्थ्यमूलेषु मोक्षधर्मानुदर्शिनः।। | 12-332-27a 12-332-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि द्वात्रिंशदधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 332।। |
12-332-1 अरणी सहिते गृह्येति झ. पाठः। तत्र अरणी द्वे अधरोत्तरे सहिते मिथुनरूपे इत्यर्थः।। 12-332-4 सा च कृत्वा तदा व्यासमिति ड. ध. पाठः।। 12-332-9 शुके निर्मथ्यमाने जातत्वात् शुक इति रेफलोपेनास्य नाम कृतम्।। 12-332-12 तर्पयामास वारिणेति झ. पाठः।। 12-332-14 खे गायन्ति स्म गन्धर्वा इति ट. पाठः।। 12-332-18 महात्मा महादेवः उपानयत् स्वशिष्यं कृतवानिति संबन्धः।।
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