महाभारतम्-12-शांतिपर्व-202
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति भनुबृहस्पतिसंवादानुवादः।। 1।
मनुरुवाच। | 12-202-1x |
यथा व्यक्तमिदं शेते स्वप्ने चरति चेतनम्। ज्ञानमिन्द्रियसंयुक्तं तद्वत्प्रेत्य भवाभवौ।। | 12-202-1a 12-202-1b |
यथाऽम्भसि प्रसन्ने तु रूपं पश्यति चक्षुषा। तद्वत्प्रसन्नेन्द्रियवाञ्ज्ञेयं ज्ञानेन पश्यति।। | 12-202-2a 12-202-2b |
स एव लुलिते तस्मिन्यथा रूपं न पश्यति। तथेन्द्रियाकुलीभावे ज्ञेयं ज्ञाने न पश्यति।। | 12-202-3a 12-202-3b |
अबुद्धिरज्ञानकृता अबुद्ध्या दूष्यते मनः। दुष्टस्य मनसः पञ्च संप्रदुष्यन्ति मानसाः।। | 12-202-4a 12-202-4b |
अज्ञानतृप्तो विषयेष्ववगाढो न पश्यति। स दृष्ट्वैव तु पूतात्मा विषयेभ्यो निवर्तते।। | 12-202-5a 12-202-5b |
तर्षच्छेदो न भवति पुरुषस्येह कल्मषात्। निवर्तते तदा तर्षः पापमन्तर्गतं यदा।। | 12-202-6a 12-202-6b |
`अन्तर्गतेन पापेन दह्यमानेन चेतसा। शुभाशुभविकारेण न स भूयोऽभिजायते।।' | 12-202-7a 12-202-7b |
विषयेषु तु संसर्गाच्छाश्वतस्य तु संश्रयात्। मनसा चान्यथा काड्क्षन्परं न प्रतिपद्यते।। | 12-202-8a 12-202-8b |
ज्ञानमुत्पद्यते पुंसां क्षयात्पापस्य कर्मणः। अथादर्शतलप्रख्ये पश्यत्यात्मानमात्मनि।। | 12-202-9a 12-202-9b |
प्रसृतैरिन्द्रियैर्दुःखी तैरेव नियतैः सुखी। तस्मादिन्द्रियचोरेभ्यो यच्छेदात्मानमात्मना।। | 12-202-10a 12-202-10b |
इन्द्रियेभ्यो मनः पूर्वं बुद्धिः परतरा ततः। बुद्धेः परतरं ज्ञानं ज्ञानात्परतरं परम्।। | 12-202-11a 12-202-11b |
अव्यक्तात्प्रसृतं ज्ञानं ततो बुद्धिस्ततो मनः। मनः श्रोत्रादिभिर्युक्तं शब्दादीन्साधु पश्यति।। | 12-202-12a 12-202-12b |
यस्तांस्त्यजति शब्दादीन्सर्वाश्च व्यक्तयस्तथा। `प्रसृतानीन्द्रियाण्येव प्रतिसंहरति कूर्मवत्।' विमुञ्चत्याकृतिग्रामांस्तान्मुक्त्वाऽमृतमश्नुते।। | 12-202-13a 12-202-13b 12-202-13c |
उद्यन्हि सविता यद्वत्सृजते रश्मिमण्डलम्। `दृश्यते मण्डलं तस्य न च दृश्येत मण्डली। तद्वद्देहस्तु संदृश्य आत्माऽदृश्यः परः सदा।। | 12-202-14a 12-202-14b 12-202-14c |
ग्रस्तं ह्युद्गिरते नित्यमुद्गीथं वेत्ति नित्यशः। बाल्ये रथाभ्यां योगेन तत्वज्ञानं तु संमतम्।।' | 12-202-15a 12-202-15b |
स एवास्तमुपागच्छंस्तदेवात्मनि यच्छति। `आदत्ते सर्वभूतानां रसभूतं विकासवान्।।' | 12-202-16a 12-202-16b |
अन्तरात्मा तथा देहमाविश्येन्द्रियरश्मिभिः। प्राप्येन्द्रि गुणान्पञ्च सोऽस्तमावृत्त्य गच्छति। `रश्मिमण्ड हीनस्तु न चासौ नास्ति तावता।।' | 12-202-17a 12-202-17b 12-202-17c |
प्रणीतं कर्मणा मार्गं नीयमानः पुनः पुनः। प्राप्नोत्ययं कर्मफलं प्रवृत्तं धर्ममाप्तवान्।। | 12-202-18a 12-202-18b |
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः। रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।। | 12-202-19a 12-202-19b |
बुद्धिः कर्मगुणैर्हीना यदा मनसि वर्तते। तदा संपद्यते ब्रह्म तत्रैव प्रलयं गतम्।। | 12-202-20a 12-202-20b |
अस्पर्शनमशृण्वानमनास्वादमदर्शनम्। अघ्राणमवितर्कं च सत्वं प्रविशते परम्।। | 12-202-21a 12-202-21b |
`अव्यक्तात्प्रसृतं ज्ञानं ततो बुद्धिस्ततो मनः। आत्मनः प्रसृता बुद्धिरव्यक्तं ज्ञानमुच्यते।। | 12-202-22a 12-202-22b |
तस्माद्बुद्धिः स्मृता तज्ज्ञैर्मनस्तस्मात्ततः स्मृतम्। तस्मादाकृतयः पञ्च मनः परममुच्यते।। | 12-202-23a 12-202-23b |
तस्मात्परतरा बुद्धिर्ज्ञानं तस्मात्परं स्मृतम्। ततः सूक्ष्मस्ततो ह्यात्मा तस्मात्परतरं न च। इन्द्रियाणि निरीक्षन्ते मनसैतानि सर्वशः।।' | 12-202-24a 12-202-24b 12-202-24c |
मनस्याकृतयो मग्ना मनस्त्वभिगतं मतिम्। मतिस्त्वभिगता ज्ञानं ज्ञानं चाभिगतं महत्।। | 12-202-25a 12-202-25b |
नेन्द्रियैर्मनसः सिद्धिर्न बुद्धिं बुध्यते मनः। न बुद्धिर्बुध्यतेऽव्यक्तं सूक्ष्मं त्वेतानि पश्यति।। | 12-202-26a 12-202-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि द्व्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 202।। |
12-202-5 अज्ञानदुष्टो विषयेष्ववगाढो न दृश्यते इति ध. पाठः।। 12-202-21 अघ्राणमवितर्षं चेति थ. पाठः।।
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