महाभारतम्-12-शांतिपर्व-099
दिखावट
← शांतिपर्व-098 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-099 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-100 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति जनकराजेन स्वयोधानां स्वर्गनरकप्रदर्शनेय युद्धे प्रोत्साहनकथनम्।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-99-1x |
अत्राप्युदाहरन्तीम-तिहासं पुरातनम्। प्रतर्दनो मैथिलश्च संग्रामं यत्र चक्रतुः।। | 12-99-1a 12-99-1b |
यज्ञोपवीती संग्रामे जनको मिथिलाधिपः। योधानुद्धर्षयामास तन्निबोध युधिष्ठिर।। | 12-99-2a 12-99-2b |
जनको मैथिलो राजा महात्मा सर्वतत्त्ववित्। योधानां दर्शयामास स्वर्गं नरकमेव च।। | 12-99-3a 12-99-3b |
अभीरूणामिमे लोका भास्वन्तो हन्त पश्यत। पूर्णा गन्धर्वकन्याभिः सर्वकामदुहोऽक्षयाः।। | 12-99-4a 12-99-4b |
इमे पलायमानानां नरकाः प्रत्युपस्थिताः। अकीर्तिः शाश्वती चैव यतितव्यमनन्तरम्।। | 12-99-5a 12-99-5b |
तान्दृष्ट्वाऽरीन्विजयत भूत्वा संत्यागबुद्धयः। नरकस्याप्रतिष्ठस्य मा भूत वशवर्तिनः।। | 12-99-6a 12-99-6b |
त्यागमूलं हि शूराणां स्वर्गद्वारमनुत्तमम्। इत्युक्तास्ते नृपतिना योधाः परपुरंजय।। | 12-99-7a 12-99-7b |
अजयन्त रणे शत्रून्हर्षयन्तो नरेश्वरम्। तस्मात्त्यक्तात्मना नित्यं स्थातव्यं रणमूर्धनि।। | 12-99-8a 12-99-8b |
गजानां रथिनो मध्ये रथानामनुसादिनः। सादिनामन्तरे स्थाप्यं पादातमपि दंशितम्।। | 12-99-9a 12-99-9b |
य एवं व्यूहते राजा स नित्यं जयते रिपून्। तस्मदितद्विधातव्यं नित्यमेव युधिष्ठिर।। | 12-99-10a 12-99-10b |
स्वर्गे सुकृतमिच्छन्तः सुयुद्धेनातिमन्यवः। क्षोभयेयुरनीकानि सागरं मकरा यथा।। | 12-99-11a 12-99-11b |
हर्षयेयुर्विषण्णांश्च व्यवस्थाप्य परस्परम्। तेषां च भूमिं रक्षेयुर्भग्नान्नात्यनुसारयेत्।। | 12-99-12a 12-99-12b |
पुनरावर्तमानानां निराशानां च जीविते। वेगः सुदुःसहो राजंस्तस्मान्नात्यनुसारयेत्।। | 12-99-13a 12-99-13b |
न हि प्रहर्तुमिच्छन्ति शूराः प्रद्रवतो भयात्। तस्मात्पलायमानानां कुर्यान्नात्यनुसारणम्।। | 12-99-14a 12-99-14b |
चराणामचरा ह्यन्नमदंष्ट्रा दंष्ट्रिणामपि। अपाणयः पाणिमतामन्नं शूरस्य कातराः।। | 12-99-15a 12-99-15b |
समानपृष्ठोदरपाणिपादाः पश्चाच्छरं भीरवोऽनुव्रजन्ति। अतो भयार्ताः प्रणिपत्य भूयः कृत्वाञ्जलीनुपतिष्ठन्ति शूरान्।। | 12-99-16a 12-99-16b 12-99-16c 12-99-16d |
शूरबाहुषु लोकोऽयं लम्बते पुत्रवत्सद। तस्मात्सर्वेषु लोकेषु शूरः संमानमर्हति।। | 12-99-17a 12-99-17b |
न हि शौर्यात्परं किंचिन्त्रिषु लोकेषु विद्यते। शूरः सर्वं पालयति सर्वं शूरे प्रतिष्ठितम्।। | 12-99-18a 12-99-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि एकोनशततमोऽध्यायः।। 99।। |
12-99-1 अत्र शूरप्रोत्साहने विषये।। 12-99-3 दर्शयामास योगबलेन।। 12-99-5 पतितव्यमनन्तरमिति ड. द. पाठः।। 12-99-9 गजानां मध्ये रथिनः स्थाप्याः।। 12-99-12 नात्यनुसारेयातिद्रावयेत् परावृत्तिभयात्।। 12-99-13 तदेवाह पुनरिति।।
शांतिपर्व-098 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-100 |