महाभारतम्-12-शांतिपर्व-289
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दक्षयज्ञे भागालाभेन रुष्टस्य रुद्रस्य ललाटतटोद्गतस्वेदादग्निरूपज्वरोत्पत्तिः।। 1।। ब्रह्मवचनाद्रुद्गेण ज्वरस्य पृथिव्यादिषु विभजनम्।। 2।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-289-1x |
पितामह महाप्राज्ञ सर्वशास्त्रविशारद। अस्मिन्वृत्रवधे तात विवक्षा मम जायते।। | 12-289-1a 12-289-1b |
ज्वरेण मोहितो वृत्रः कथितस्ते जनाधिप। निहतो वासवेनेह वज्रेणेति ममानघ।। | 12-289-2a 12-289-2b |
कथमेष महाप्राज्ञ ज्वरः प्रादुर्बभूव ह। ज्वरोत्पत्तिं निपुणतः श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।। | 12-289-3a 12-289-3b |
भीष्म उवाच। | 12-289-4x |
शृणु राजञ्ज्वरस्येमं संभवं लोकविश्रुतम्। विस्तरं चास्य वक्ष्यामि यादृशश्चैव भारत।। | 12-289-4a 12-289-4b |
पुरा मेरोर्महाराज शृङ्गं त्रैलोक्यविश्रुतम्। ज्योतिष्कं नाम सावित्रं सर्वरत्नविभूषितम्।। | 12-289-5a 12-289-5b |
अप्रमेयमनाधृष्यं सर्वलोकेषु भारत। तत्र देवो गिरितटे हेमधातुविभूषिते।। | 12-289-6a 12-289-6b |
पर्यङ्क इव विभ्राजन्नुपविष्टो बभूव ह। शैलराजसुता चास्य नित्यं पार्श्वे स्थिता बभौ। तथा देवा महात्मानो वसवश्चामितौजसः।। | 12-289-7a 12-289-7b 12-289-7c |
तथैव च महात्मानावश्विनौ भिषजां वरौ। तथा वैश्रवणो राजा गुह्यकैरभिसंवृतः।। | 12-289-8a 12-289-8b |
यक्षाणामीश्वरः श्रीमान्कैलासनिलयः प्रभुः। `शङ्खपद्मनिधिभ्यां च लक्ष्म्या परमया सह।' उपासन्त महात्मानमुशना च महाकविः।। | 12-289-9a 12-289-9b 12-289-9c |
सनत्कुमारप्रमुखास्तथैव च महर्षयः। अङ्गिरः प्रमुखाश्चैव तथा देवर्षयोऽपरे।। | 12-289-10a 12-289-10b |
विश्वावसुश्च गन्धर्वस्तथा नारदपर्वतौ। अप्सरोगणसङ्घाश्च समाजग्मुरनेकशः।। | 12-289-11a 12-289-11b |
ववौ सुखः शिवो वायुर्नानागन्धवहः शुचिः। सर्वर्तुकुसुमोपेताः पुष्पवन्तो द्रुमास्तथा।। | 12-289-12a 12-289-12b |
तथा विद्याधराश्चैव सिद्धाश्चैव तपोधनाः। महादेवं पशुपतिं पर्युपासन्त भारत।। | 12-289-13a 12-289-13b |
भूतानि च महाराज नानारूपधराण्यथ। राक्षसाश्च महारौद्राः पिशाचाश्च महाबलाः।। | 12-289-14a 12-289-14b |
बहुरूपधरा हृष्टा नानाप्रहरणोद्यताः। देवस्यानुचरास्तत्र तस्थिरे चानलोपमाः।। | 12-289-15a 12-289-15b |
नन्दी च भगवांस्तत्र देवस्यानुमते स्थितः। प्रगृह्य ज्वलितं शूलं दीप्यमानं स्वतेजसा।। | 12-289-16a 12-289-16b |
गङ्गा च सरितां श्रेष्ठा सर्वतीर्थजलोद्भवा। पर्युपासत तं देव रूपिणी कुरुनन्दन।। | 12-289-17a 12-289-17b |
स एवं भगवांस्तत्र पूज्यमानः सुरर्षिभिः। देवैश्च सुमहातेजा महादेवो व्यतिष्ठत।। | 12-289-18a 12-289-18b |
कस्यचित्त्वथ कालस्य दक्षो नाम प्रजापतिः। पूर्वोक्तेन विधानेन यक्ष्यमाणोऽन्वपद्यत।। | 12-289-19a 12-289-19b |
ततस्तस्य मखं देवाः सर्वे शक्रपुरोगमाः। गमनाय समागम्य बुद्धिमापेदिरे तदा।। | 12-289-20a 12-289-20b |
ते विमानैर्महात्मानो ज्वलनार्कसमप्रभैः। देवस्यानुमतेऽगच्छन्गङ्गाद्वारमिति श्रुतिः।। | 12-289-21a 12-289-21b |
प्रस्थिता देवता दृष्ट्वा शैलराजसुता तदा। उवाच वचनं साध्वी देवं पशुपतिं पतिम्।। | 12-289-22a 12-289-22b |
भगवन्क्वनु यान्त्येते देवाः शक्रपुरोगमाः। ब्रूहि तत्त्वेन तत्त्वज्ञ संशयो मे महानयम्।। | 12-289-23a 12-289-23b |
महेश्वर उवाच। | 12-289-24x |
दक्षो नाम महाभागे प्रजानां पतिरुत्तमः। हयमेधेन जयते तत्र यान्ति दिवौकसः।। | 12-289-24a 12-289-24b |
उमोवाच। | 12-289-25x |
यज्ञमेतं महादेव किमर्थं नाधिगच्छति। केन वा प्रतिषेधेन गमनं ते न विद्यते।। | 12-289-25a 12-289-25b |
महेश्वर उवाच। | 12-289-26x |
सुरैरेव महाभागे पूर्वमेतदनुष्ठितम्। यज्ञेषु सर्वेषु मम न भाग उपकल्पितः।। | 12-289-26a 12-289-26b |
पूर्वोपायोपपन्नेन मार्गेण वरवर्णिनि। न मे सुराः प्रयच्छन्ति भागं यज्ञस्य धर्मतः।। | 12-289-27a 12-289-27b |
उमोवाच। | 12-289-28x |
भगवन्सर्वभूतेषु प्रभावाभ्यधिको गुणैः। अजय्यश्चाप्यधृष्यश्च तेजसा यशसा श्रिया।। | 12-289-28a 12-289-28b |
अनेन ते महाभाग प्रतिषेधेन भागतः। अतीव दुःखमुत्पन्नं वेपथुश्च ममानघ।। | 12-289-29a 12-289-29b |
भीष्म उवाच। | 12-289-30x |
एवमुक्त्वा तु सा देवी देवं पशुपतिं पतिम्। तुष्णींभूताऽभवद्राजन्दह्यमानेन चेतसा।। | 12-289-30a 12-289-30b |
अथ देव्या मतं ज्ञात्वा हृद्गतं यच्चिकीर्षितम्। स समाज्ञापयामास तिष्ठ त्वमिति नन्दिनम्।। | 12-289-31a 12-289-31b |
ततो योगबलं कृत्वा सर्वयोगेश्वरेश्वरः। तं यज्ञं स महातेजा भीमैरनुचरैस्तदा।। | 12-289-32a 12-289-32b |
सहसा घातयामास देवदेवः पिनाकधृत्। केचिन्नादानमुञ्चन्त केचिद्धासांश्च चक्रिरे।। | 12-289-33a 12-289-33b |
रुधिरेणापरे राजंस्तत्राग्निं समवाकिरन्। केचिद्यूपान्समुत्पाट्य व्याक्षिपन्विकृताननाः।। | 12-289-34a 12-289-34b |
आस्यैरन्ये चाग्रसन्त तथैव परिचारकान्। ततः स यज्ञो नृपतेर्वध्यमानः समन्ततः।। | 12-289-35a 12-289-35b |
आस्थाय मृगरूपं वै स्वमेवाभ्यगमत्तदा। तं तु यज्ञं तथारूपं गच्छन्तमुपलभ्य सः।। | 12-289-36a 12-289-36b |
धनुरादाय बाणेन तदान्वसरत प्रभुः। ततस्तस्य सुरेशस्य क्रोधादमिततेजसः।। | 12-289-37a 12-289-37b |
ललाटात्प्रसृतो घोरः स्वेदबिन्दुर्बभूव ह। तस्मिन्यतितमात्रे च स्वेदबिन्दौ तदा भुवि।। | 12-289-38a 12-289-38b |
प्रादुर्बभूव सुमहानग्निः कालानलोपमः। तत्र चाजायत तदा पुरुषः पुरुषर्षभ।। | 12-289-39a 12-289-39b |
ह्रस्वोऽतिमात्रं रक्ताक्षो हरिश्मश्रुर्विभीषणः। ऊर्ध्वकेशोऽतिरोमाङ्गः श्येनोलूकस्तथैव च।। | 12-289-40a 12-289-40b |
करालकृष्णवर्णश्च रक्तवासास्तथैव च। तं यज्ञं सुमहासत्वोऽदहत्कक्षमिवानलः।। | 12-289-41a 12-289-41b |
व्यचरत्सर्वतो देवान्प्राद्रवत्स ऋषींस्तथा। देवाश्चाप्याद्रवन्सर्वे ततो भीता दिशो दश।। | 12-289-42a 12-289-42b |
तेन तस्मिन्विचरता पुरुषेण विशांपते। पृथिवी ह्यचलद्राजन्नतीव भरतर्षभ।। | 12-289-43a 12-289-43b |
हाहाभूतं जगत्सर्वमुपलक्ष्य तदा प्रभुः। पितामहो महादेवं दर्शयन्प्रत्यभाषत।। | 12-289-44a 12-289-44b |
ब्रह्मोवाच। | 12-289-45x |
भवतोपि सुराः सर्वे भागं दास्यन्ति वै प्रभो। क्रियतां प्रतिसंहारः सर्वदेवेश्वर त्वया।। | 12-289-45a 12-289-45b |
इमा हि देवताः सर्वा ऋषयश्च परंतप। तव क्रोधान्महादेव न शान्तिमुपलेभिरे।। | 12-289-46a 12-289-46b |
यश्चैष पुरुषो जातः स्वेदात्ते विबुधोत्तम। ज्वरो नामैष धर्मज्ञ लोकेषु प्रचरिष्यति।। | 12-289-47a 12-289-47b |
एकीभूतस्य न त्वस्य धारणे तेजसः प्रभो। समर्था सकला पृथ्वी बहुधा सृज्यतामयम्।। | 12-289-48a 12-289-48b |
इत्युक्तो ब्रह्मणा देवो भागे चापि प्रकल्पिते। भगवन्तं तथेत्याह ब्रह्माणममितौजसम्।। | 12-289-49a 12-289-49b |
परां च प्रीतिमगमदुत्स्मयंश्च पिनाकधृत्। अवाप च तदा भागं यथोक्तं ब्रह्मणा भवः।। | 12-289-50a 12-289-50b |
ज्वरं च सर्वधर्मज्ञो बहुधा व्यसृजत्तदा। शान्त्यर्थं सर्वभूतानां शृणु तच्चापि पुत्रक।। | 12-289-51a 12-289-51b |
शीर्षाभितापो नागानां पर्वतानां शिलाजतु। अपां तु नीलिकां विद्धि निर्मोकं भुजगेषु च।। | 12-289-52a 12-289-52b |
खोरकः सौरभेयाणामूषरं पृथिवीतले। पशूनामपि धर्मज्ञ दृष्टिप्रत्यवरोधनम्।। | 12-289-53a 12-289-53b |
रन्ध्रागतमथाश्वानां शिखोद्भेदश्च बर्हिणाम्। नेत्ररोगः कोकिलानां ज्वरः प्रोक्तो महात्मना।। | 12-289-54a 12-289-54b |
अवीनां पित्तभेदश्च सर्वेषामिति नः श्रुतम्। शुकानामपि सर्वेषां हिक्किका प्रोच्यते ज्वरः।। | 12-289-55a 12-289-55b |
शार्दूलष्वथ धर्मज्ञ श्रमो ज्वर इहोच्यते। मानुषेषु तु धर्मज्ञ ज्वरो नामैष विश्रुतः।। | 12-289-56a 12-289-56b |
मरणे जन्मनि तथा मध्ये चाविशते नरम्। एतन्माहेश्वरं तेजो ज्वरो नाम सुदारुणः।। | 12-289-57a 12-289-57b |
नमस्यश्चैव मान्यश्च सर्वप्राणिभिरीश्वरः। अनेन हि समाविष्टो वृत्रो धर्मभूतां वरः।। | 12-289-58a 12-289-58b |
व्यजृम्भत ततः शक्रस्तस्मै वज्रमवासृजत्। प्रविश्य बज्रं वृत्रं च दारयामासं भारत।। | 12-289-59a 12-289-59b |
दारितश्च स वज्रेण महायोगी महासुरः। जगाम परमं स्थानं विष्णोरमिततेजसः।। | 12-289-60a 12-289-60b |
विष्णुभक्त्या हि तेनेदं जगद्व्याप्तमभूत्पुरा। तस्माच्च निहतो युद्धे विष्णोः स्थानमवाप्तवान्।। | 12-289-61a 12-289-61b |
इत्येष वृत्रमाश्रित्य ज्वरस्य महतो मया। विस्तरः कथितः पुत्र किमन्यत्प्रब्रवीमि ते।। | 12-289-62a 12-289-62b |
इमां ज्वरोत्पत्तिमदीनमानसः पठेत्सदा यः सुसमाहितो नरः। विमुक्तरोगः स सुखी मुदा युतो लभेत कामान्स यथा मनीषितान्।। | 12-289-63a 12-289-63b 12-289-63c 12-289-63d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि एकोननवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 289।। |
12-289-6 सिद्धं लोकेषु भारतेति ट. थ. पाठः।। 12-289-15 तस्थिरे चाचलोपमा इति ध. पाठः।। 12-289-21 ज्वलितैर्ज्वलनप्रभैरिति ट. थ. ध. पापः।। 12-289-26 सर्वमेतदनुष्ठितमिति ट. ध. पाठः।। 12-289-28 प्रभवस्यधिको गुणैरिति ध. पाठः।। 12-289-32 सर्वलोकमहेश्वर इति ध. पाठः।। 12-289-36 आधाय मृगरूपं इति ध. पाठः।। 12-289-40 ऊर्ध्वकेशोतिरिक्ताङ्ग इति थ. पाठः।। 12-289-44 हाहाभूते प्रवृत्ते तु नादे लोकभयंकरे इति ट. ध. पाठः।। 12-289-52 शिलाजतु धातुविशेषः। नीलिका शैवालम्।। 12-289-53 खोरकः पशूनां पादरोगः।। 12-289-54 रन्ध्रागतं अश्वगलरन्ध्रगतं मांसखण्डम्। रन्ध्रोद्रमनमश्वानामिति ट. थ. पाठः। रन्ध्रोद्भवश्च मत्स्यानामिति ध. पाठः।। 12-289-55 पित्तभेदश्च सर्वेषां प्राणिनामिति नः श्रुतमिति ट. ध. पाठः।।
शांतिपर्व-288 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-290 |