महाभारतम्-12-शांतिपर्व-330
पठन सेटिंग्स
← शांतिपर्व-329 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-330 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-331 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति सर्वथा धर्मस्य कर्तव्यताकथनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-330-1x |
यद्यस्ति दत्तमिष्टं वा तपस्तप्तं तथैव च। गुरूणां वाऽपि शुश्रूषा तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 12-330-1a 12-330-1b |
भीष्म उवाच। | 12-330-2x |
आत्मनाऽनर्थयुक्तेन पापे निविशते मनः। स कर्म कलुषं कृत्वा क्लेशे महति धीयते।। | 12-330-2a 12-330-2b |
दुर्भिक्षादेव दुर्भिक्षं क्लेशात्क्लेशं भयाद्भयम्। मृतेभ्यः प्रमृता यान्ति दरिद्राः पापकर्मिणः।। | 12-330-3a 12-330-3b |
उत्सवादुत्सवं यान्ति स्वर्गात्स्वर्गं सुखात्सुखम्। श्रद्दधानाश्च दान्ताश्च धनस्याः शुभकारिणः।। | 12-330-4a 12-330-4b |
व्यालकुञ्जरदुर्गेषु सर्पचोरभयेषु च। हस्तावापेन गच्छन्ति नास्तिकाः किमतः परम्।। | 12-330-5a 12-330-5b |
प्रियदेवातिथेयाश्च वदान्याः प्रियसाधवः। क्षेम्यमात्मवता मार्गमास्थिता हस्तदक्षिणाः।। | 12-330-6a 12-330-6b |
पुलाका इव धान्येषु पूत्यण्डा इव पक्षिषु। तद्विधास्ते मनुष्येषु येषां धर्मो न कारणम्।। | 12-330-7a 12-330-7b |
सुशीघ्रमपि धावन्तं विधानमनुधावति। शेते सह शयानेन येनयेन यथाकृतम्।। | 12-330-8a 12-330-8b |
पापं तिष्ठति तिष्ठन्तं धावन्तमनुधावति। करोति कुर्वतः कर्म च्छायेवानुविधीयते।। | 12-330-9a 12-330-9b |
येनयेन यथा यद्यत्पुरा कर्म सुनिश्चितम्। तत्तदेव नरो भुङ्क्ते नित्यं विहितमात्मना।। | 12-330-10a 12-330-10b |
समानकर्मनिक्षेपं विधानपरिरक्षणम्। भूतग्राममिमं कालः समन्तादपकर्षति।। | 12-330-11a 12-330-11b |
अचोद्यमानानि यथा पुष्पाणि च फलानि च। स्वं कालं नातिवर्तन्ते तथा कर्म पुराकृतम्।। | 12-330-12a 12-330-12b |
समानश्चावमानश्च लाभालाभौ जयाजयौ। प्रवृत्ता न निवर्तन्ते निधनान्ताः पदेपदे।। | 12-330-13a 12-330-13b |
आत्मना विहितं दुःखमात्मना विहितं सुखम्। गर्भशय्यामुपादाय भजते पूर्वदेहिकम्।। | 12-330-14a 12-330-14b |
बालो युवा वा वृद्धश्च यत्करोति शुभाशुभम्। तस्यांतस्यामवस्थायां भुङ्क्ते जन्मनिजन्मनि।। | 12-330-15a 12-330-15b |
यथा धेनुसहस्रेषु वत्सो विन्दति मातरम्। तथा पूर्वकृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति।। | 12-330-16a 12-330-16b |
मलिनं हि यथा वस्त्रं पश्चाच्छुध्यति वारिणा। उपवासैः प्रतप्तानां दीर्घं सुखमनन्तकम्।। | 12-330-17a 12-330-17b |
दीर्घकालेन तपसा सेवितेन तपोवने। धर्मनिर्धूतपापानां संसिध्यन्ते मनोरथाः।। | 12-330-18a 12-330-18b |
शकुनानामिवाकाशे मत्स्यानामिव चोदके। पदं यथा न दृश्येत तथा पुण्यकृतां गतिः।। | 12-330-19a 12-330-19b |
अलमन्यैरुपालब्धैः कीर्तितैश्च व्यतिक्रमैः। पेशलं चानुरूपं च कर्तव्यं हितमात्मनः।। | 12-330-20a 12-330-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि त्रिंशदधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 330।। |
12-330-6 आस्थिता हतदक्षिणा इति ध. पाठः।। 12-330-10 तत्तदेवोत्तरं भुङ्क्ते इति झ. पाठः।। 12-330-13 लाभोऽलाभः क्षयाक्षयाविति झ. पाठः।। 12-330-14 भुज्यते पूर्वदैहिकमिति ध. पाठः।।
शांतिपर्व-329 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-331 |