महाभारतम्-12-शांतिपर्व-250
← शांतिपर्व-249 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-250 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-251 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति वनस्थधर्मप्रतिपादकव्यासवाक्यानुवादः।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-250-1x |
प्रोक्ता गृहस्थवृत्तिस्ते विहिता या मनीषिभिः। तदनन्तरमुक्तं यत्तन्निबोध युधिष्ठिर।। `व्यासेन कथितं पूर्वं पुत्राय सुमहात्मने।' | 12-250-1a 12-250-1b 12-250-1c |
व्यास उवाच। | 12-250-2x |
क्रय----त्ववधृयैनां तृतीयां वृत्तिमुत्तमाम्। संयोगव्रत----वानप्रस्थाश्रमौकसाम्।। | 12-250-2a 12-250-2b |
श्रूयतां पुत्र भद्रं ते सर्वलोकाश्रमात्मनाम्। प्रेक्षापूर्वं यदा पत्त्येद्वलीपलितमात्मना।। | 12-250-3a 12-250-3b |
अपत्यस्यैव चापण्यं वनमेव तदाऽऽश्रयेत्।। | 12-250-4a |
तृतीयमायुषो भागं वानप्रस्थाश्रमे वसेत्। तानेवाग्नीन्पस्त्विरेद्यजमानो दि--कसः।। | 12-250-5a 12-250-5b |
निय------नियताराहः षष्ठभक्तो ---त्तवान। तदाग्रहात्रं तो --- यज्ञाङ्गां व सर्वशः।। | 12-250-6a 12-250-6b |
अवैकृष्टं व्रीहियव नीवारे विघसानि च। हवींषि संप्रयच्छेत मखेष्वत्रापि पञ्चसु।। | 12-250-7a 12-250-7b |
वानप्रस्खाश्रमेऽप्येताश्चतस्रो वृत्तयः स्मृताः। सद्यः प्रक्षालकाः केचित्केचिन्मासिकसंचयाः।। | 12-250-8a 12-250-8b |
वार्षिकं संचयं केचित्केतिद्द्वादशवार्षिकम्। कुर्वन्त्यतिथिपूजार्थं यज्ञतन्त्रार्थमेव वा।। | 12-250-9a 12-250-9b |
अभ्रावकाशा वर्षासु हेमन्ते जलसंश्रयाः। ग्रीष्मे च पञ्चतपसः शश्वच्च मितभोजनाः।। | 12-250-10a 12-250-10b |
भूमौ विपरिवर्तन्ते तिष्ठन्ति प्रपदैरपि। स्थानासनैर्वर्तयन्ति स वनेष्वभिषिञ्चते।। | 12-250-11a 12-250-11b |
दन्तोलूखलिकाः केचिदश्मकुट्टास्तथा परे। शुक्लपक्षे पिबन्त्येके यवागूं क्वथितां सकृत्।। | 12-250-12a 12-250-12b |
कृष्णपक्षे पिबन्त्यन्ये भुञ्जते वा यथागतम्। मूलैरेके फलैरेके पुष्पैरेके दृढव्रताः।। | 12-250-13a 12-250-13b |
वर्तयन्ति यथान्यायं वैखानसमतं श्रिताः। एताश्चान्याश्च विविधा दीक्षास्तेषां मनीषिणाम्।। | 12-250-14a 12-250-14b |
चतुर्थश्चौपनिषदो धर्मः साधारणः स्मृतः। वानप्रस्थाद्गृहस्थाच्च ततोऽन्यः संप्रवर्तते। अस्मिन्नेव युगे तात वितैस्तत्वार्थदर्शिभिः।। | 12-250-15a 12-250-15b 12-250-15c |
अगस्त्यः सप्तऋषयो मधुच्छन्दोऽधमर्षणः। सांकृतिः सुदिवातण्डिर्यथावासो कृतश्रमः।। | 12-250-16a 12-250-16b |
अहोवीर्यस्तथा काव्यस्ताण्ड्यो मेधातिथिदुऽ। बलवान्कर्णनिर्वाकः शून्यपालः कृतश्रम-----। एते धर्मे सुविद्वांसस्ततः स्वर्गमुसागमन।। | 12-250-17a 12-250-17b 12-250-17c |
तात प्रत्यक्षधर्माणस्तथा काथवारा गणाः। ऋषीणामुग्रतपसां धर्मनैपुणेदर्शिनाम्।। | 12-250-18a 12-250-18b |
अन्ये चापरिमेयाश्च ब्राह्मणा वनमश्रितताः। वैखातसा वालखिल्याः सैकताच्च तथा परे।। | 12-250-19a 12-250-19b |
कर्मभिस्ते निरानन्दा धर्मनित्या जितेन्द्रियाः। गताः प्रत्यक्षधर्माणस्ते सर्वे वनमाश्रिताः।। | 12-250-20a 12-250-20b |
अनक्षत्रास्त्वनाधृष्या दृश्यते ज्योतिषां गणाः। जरया च परिद्यूना व्याधिना च प्रपीडिताः।। | 12-250-21a 12-250-21b |
चतुर्थे चायुषः शेषे वानप्रस्थाश्रमं त्यजेत्। साद्यस्कां संनिरुप्येष्टिं सर्ववेदसदक्षिणाम्।। | 12-250-22a 12-250-22b |
आत्मयाजी सोऽत्मरतिरात्मक्रीडात्मसंश्रयः। आत्मन्यग्नीन्समारोप्य त्यक्त्वा सर्वपरिग्रहान्।। | 12-250-23a 12-250-23b |
साद्यस्कांश्च यजेद्यज्ञानिष्टीश्चैवेह सर्वदा। यदैव याजिनां यज्ञादात्मनीज्या प्रवर्तते।। | 12-250-24a 12-250-24b |
त्रींश्चैवाग्नींस्त्यजेत्सम्यगात्मन्येवात्ममोक्षणात्। प्राणेभ्यो यजुषां पञ्च षट् प्राश्नीयादकुत्सयन्।। | 12-250-25a 12-250-25b |
केशलोमनखान्वाप्य वानप्रस्थो मुनिस्ततः। आश्रमादाश्रमं पुण्यं पूतो गच्छति कर्मभिः।। | 12-250-26a 12-250-26b |
अभयं सर्वभूतेभ्यो दत्त्वा यः प्रव्रजेद्द्विजः। लोकास्तेजोमयास्तस्य प्रेत्य चानन्त्यमश्नुते।। | 12-250-27a 12-250-27b |
सुशीलवृत्तो व्यपनीतकल्मषो नचेह नामुत्र च कर्तुमीहते। अरोपमोहो गतसन्धिविग्रहो भवेदुदासीनवदात्मविन्नरः।। | 12-250-28a 12-250-28b 12-250-28c 12-250-28d |
यमेषु चैवानुगतेषु न व्यथे त्स्वशास्त्रमूत्राहुतिमन्त्रविक्रमः। भवेद्यथेष्टा गतिरात्मयाजिनो न संशयो धर्मपरे जितेन्द्रिये।। | 12-250-29a 12-250-29b 12-250-29c 12-250-29d |
ततः परं श्रेष्ठमतीव सद्गुणै रधिष्ठितं त्रीनधिवृत्तिमुत्तमम्। चतुर्थमुक्तं परमाश्रमं शृणु प्रकीर्त्यमानं परमं परायणम्।। | 12-250-30a 12-250-30b 12-250-30c 12-250-30d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोश्रधर्मपर्वणि पञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 250।। |
12-250-2 एवां गृहस्थवृत्तिमवधूय तिरस्कृत्य कां तृतीयां कापोतीं वृत्तिमपि। संयोगः सहधर्मचारिणीसंयोगस्तत्र यद्व्रतं तेन खिन्नानाम्। वानप्रस्थाश्रम ओक व्याश्रयो येषां तेषां वृत्तिः श्रूयतामिति द्वयोः संबन्धः।। 12-250-3 सर्वे लोका आश्रमाश्चाऽऽत्मायेषाम्। संविभागशमादिमयत्वात् सर्वाश्रमफलमत्रैवान्तर्भूतामित्यर्थः।। 12-250-4 विग्रहं तु यदा पश्येदिति ध. पाठः।। 12-250-6 षष्ठभुक्त इति ध. पाठः।। 12-250-7 अत्रापि वनेपि।। 12-250-10 शाश्वतामृतभोजिन इति ध. पाठः।। 12-250-15 चतुर्थश्चतुर्थाश्रमे विहित औपनिषदः शान्त्यादिर्धर्मः साधारणः सर्वेष्वाश्रमेषु। अन्योऽसाधारणः। सर्वार्थदर्शिभिरिति ध. पाठः।। 12-250-16 सांकृतिश्च सुदीप्तार्चिर्यवक्रीतः सुतश्रमः इति ध. पाठः।। 12-250-17 चले वाकश्च निर्वाक इति ट.ध. पाठः।। 12-250-21 अनक्षत्राः नक्षत्रग्रहताराभ्योऽन्ये।। 12-250-22 सर्ववेदसदक्षिणां सर्वस्वदक्षिणाम्।। 12-250-23 आत्मयाजी जीवच्छ्राद्धादिकृत्। आत्मक्रीडश्चाऽऽत्मसंश्रयश्च नतु स्त्र्यादिक्रीडो राजाद्याश्रयः।। 12-250-24 साद्यस्कान् सद्यएव क्रियन्ते तान् ब्रह्मयज्ञादीन् तावद्यजेत्। यदैव यस्मिन्नेव काले याजिनां यज्वनां यज्ञात् कर्ममयादन्या आत्मनीज्या आत्मयज्ञ प्रवर्तते तावदेव तान् कुर्यादित्यर्थः।। 12-250-25 यज्ञः सदैवात्मनि वर्तत ट. ध. पाठः।। 12-250-26 वाप्य वापयित्वा।। 12-250-29 स्वस्य संन्यासविधेः शास्त्रं तत्रस्थं सूत्रं आहुतिमन्त्रश्च तत्रोभयात्रापि विक्रमः पराक्रमो यस्य स तथा।। 12-250-30 त्रीनाश्रमानपेक्ष्याधिष्ठितमधिकत्वेन स्थितम्। यतोऽधिवृत्तिमधिका शमाद्यात्मिका वृत्तिर्यस्मिंस्तम्।।
शांतिपर्व-249 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-251 |