महाभारतम्-12-शांतिपर्व-240
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति व्यासेन शुकायोक्तब्राह्मणधर्मानुवादः।। 1।। ब्राह्मणेभ्यो दानमहिमानुवादः।। 2।।
व्यास उवाच। | 12-240-1x |
भूतग्रामे नियुक्तं यत्तदेतत्कीर्तितं मया। ब्राह्मणस्य तु यत्कृत्यं तत्ते वक्ष्यामि सांप्रतम्।। | 12-240-1a 12-240-1b |
जातकर्मप्रभृत्यस्य कर्मणां दक्षिणावताम्। क्रिया स्यादासमावृत्तेराचार्ये वेदपारगे।। | 12-240-2a 12-240-2b |
अधीत्य वेदानखिलान्गुरुशुश्रूषणे रतः। गुरूणामनृणो भूत्वा समावर्तेत यज्ञवित्।। | 12-240-3a 12-240-3b |
आचार्येणाभ्यनुज्ञातश्चतुर्णामेकमाश्रमम्। आविमोक्षाच्छरीरस्य सोऽवतिष्ठेद्यथाविधि।। | 12-240-4a 12-240-4b |
प्रजासर्गण दारैश्च ब्रह्मचर्येण वा पुनः। वने गुरुसकाशे वा यतिधर्मेण वा पुनः।। | 12-240-5a 12-240-5b |
गृहस्थस्त्वेष धर्माणां सर्वेषां मूलमुच्यते। यत्र पक्वकषायो हि दान्तः सर्वत्र सिध्यति।। | 12-240-6a 12-240-6b |
प्रजावान्श्रोत्रियो यज्वा मुक्त एव ऋणैस्त्रिभिः। अथान्यानाश्रमान्पश्चात्पूतो गच्छेत कर्मभिः।। | 12-240-7a 12-240-7b |
यत्पृथिव्यां पुण्यतमं विद्यात्स्थानं तदावसेत्। यतेत तस्मिन्प्रामाण्यं गन्तुं यशसि चोत्तमे।। | 12-240-8a 12-240-8b |
तपसा वः सुमहता विद्यानां पारणेन वा। इज्यया वा प्रदानैर्वा विप्राणां वर्धते यशः।। | 12-240-9a 12-240-9b |
यावदस्य भवत्यस्मिन्कीर्तिर्लोके यशस्करी। तावत्पुण्यकृताँल्लोकाननन्तान्पुरुषोऽश्नुते।। | 12-240-10a 12-240-10b |
अध्यापयेदधीयीत याजयेत यजेत वा। न वृथा प्रतिगृह्णीयान्न च दद्यात्कथंचन।। | 12-240-11a 12-240-11b |
याज्यतः शिष्यतो वाऽपि कन्याया वा धनं महत्। यद्यागच्छेद्यजेद्दद्यान्नैकोऽश्नीयात्कथंचन।। | 12-240-12a 12-240-12b |
गृहमावसतो ह्यस्य नान्यत्तीर्थमुदाहृतम्। देवर्षिपितृगुर्वर्थं वृद्धातुरबुभुक्षताम्।। | 12-240-13a 12-240-13b |
अन्तर्हिताभितप्तानां यथाशक्ति बुभूषताम्। द्रव्याणामतिशक्त्याऽपि देयमेषां कृतादपि।। | 12-240-14a 12-240-14b |
अर्हतामनुरूपाणां नादेयं ह्यस्ति किंचन। उच्चैः श्रवसमप्यक्षं काश्यपाय महात्मने। दत्त्वा जगाम प्रह्लादो लोकान्देवैरभिष्टुतान्।। | 12-240-15a 12-240-15b 12-240-15c |
अनुनीय तथा काव्यः सत्यसन्धो महाव्रतः। स्वैः प्राणैर्ब्राह्मणप्राणान्परित्राय दिवं गतः।। | 12-240-16a 12-240-16b |
रन्तिदेवश्च सांकृत्यो वसिष्ठाय महात्मने। अपः प्रदाय शीतोष्णा नाकपृष्ठे महीयते।। | 12-240-17a 12-240-17b |
आत्रेयश्चेन्द्रद्रुमये ह्यर्हते विविधं धनम्। दत्त्वा लोकान्ययौ धीमाननन्तान्स महीपतिः।। | 12-240-18a 12-240-18b |
शिबिरौशीनरोऽङ्गानि सुतं च प्रियमौरसम्। ब्राह्मणार्थमुपाकृत्य नाकपृष्ठमितो गतः।। | 12-240-19a 12-240-19b |
प्रतर्दनः काशिपतिः प्रदाय नयने स्वके। ब्राह्मणायातुलां कीर्तिमिह चामुत्र चाश्नुते।। | 12-240-20a 12-240-20b |
दिव्यमष्टशलाकं तु सौवर्णं परमर्द्धिमत्। छत्रं देवावृधो दत्त्वा सराष्ट्रोऽभ्यगमद्दिवम्।। | 12-240-21a 12-240-21b |
सांकृतिश्च तथाऽऽत्रेयः शिष्येभ्यो ब्रह्म निर्गुणम्। उपदिश्य महातेजा गतो लोकाननुत्तमान्।। | 12-240-22a 12-240-22b |
अम्बरीषो गवां दत्त्वा ब्राह्मणेभ्यः प्रतापवान्। अर्बुदानि दशैकं च सराष्ट्रोऽभ्यगमद्दिवम्।। | 12-240-23a 12-240-23b |
सावित्री कुण्डले दिव्ये शरीरं जनमेजयः। ब्राह्मणार्थे परित्यज्य जग्मतुर्लोकमुत्तमम्।। | 12-240-24a 12-240-24b |
सर्वरत्नं वृषादर्विर्युवनाश्वः प्रियाः स्त्रियः। रम्यमावसथं चैव दत्त्वामुं लोकमास्थितः।। | 12-240-25a 12-240-25b |
निमी राष्ट्रं च वैदेहो जामदग्न्यो वसुंधराम्। ब्राह्मणेभ्यो ददौ चापि गयश्चोर्वी सपत्तनाम्।। | 12-240-26a 12-240-26b |
अवर्षति च पर्जन्ये सर्वभूतानि भूतकृत। वसिष्ठो जीवयामास प्रजापतिरिव प्रजाः।। | 12-240-27a 12-240-27b |
करंधमस्य पुत्रस्तु मरुतो नृपतिस्तथा। कन्यामङ्गिरसे दत्त्वा दिवमाशु जगाम ह।। | 12-240-28a 12-240-28b |
ब्रह्मदत्तश्च पाञ्चाल्यो राजा बुद्धिमतां वरः। निधिं शङ्खं द्विजाग्र्येभ्यो दत्त्वा लोकानवाप्तवान्।। | 12-240-29a 12-240-29b |
राजा मित्रसहश्चापि वसिष्ठाय महात्मने। मदयन्तीं प्रियां दत्त्वा तया सह दिवं गतः।। | 12-240-30a 12-240-30b |
सहस्रजिच्च राजर्षिः प्राणानिंष्टान्महायशाः। ब्राह्मणार्थं परित्यज्य गतो लोकाननुत्तमान्।। | 12-240-31a 12-240-31b |
सर्वकामैश्च संपूर्णं दत्त्वा वेश्म हिरण्मयम्। मुद्गलाय गतः स्वर्गं शतद्युम्नो महीपतिः।। | 12-240-32a 12-240-32b |
नाम्ना च द्युतिमान्नाम साल्वराजः प्रतापवान्। दत्त्वा राज्यमृचीकाय गतो लोकाननुत्तमान्।। | 12-240-33a 12-240-33b |
लोमपादश्च राजर्षिः शान्तां दत्त्वा सुतां प्रभुः। ऋश्यशृङ्गाय विपुलैः सर्वकामैरयुज्यत।। | 12-240-34a 12-240-34b |
मदिराश्वश्च राजर्षिर्दत्त्वा कन्यां सुमध्यमाम्। हिरण्यहस्ताय गतो लोकान्देवैरभिष्टुतान्।। | 12-240-35a 12-240-35b |
दत्त्वा शतसहस्रं तु गवां राजा प्रसेनजित्। सवत्सानां महातेजा गतो लोकाननुत्तमान्।। | 12-240-36a 12-240-36b |
एते चान्ये च बहवो दानेन तपसैव च। महात्मानो गताः स्वर्गं शिष्टात्मानो जितेन्द्रियाः।। | 12-240-37a 12-240-37b |
तेषां प्रतिष्ठिता कीर्तिर्यावत्स्थास्यति मेदिनी। दानयज्ञप्रजासर्गैरेते हि दिवमाप्नुवन्।। | 12-240-38a 12-240-38b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि चत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 240।। |
12-240-14 कृतात्पक्वान्नादपि।।
शांतिपर्व-239 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-241 |