महाभारतम्-12-शांतिपर्व-264
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नारदेन मृत्युब्रह्मसंवादानुवादपूर्वकमकम्पनस्य पुत्रशोकापनोदनम्।। 1।।
नारद उवाच। | 12-264-1x |
विनीय दुःखमबला साऽऽत्मनैवायतेक्षणा। उवाच प्राञ्जलिर्भूत्वा तमेवावर्जिता तदा।। | 12-264-1a 12-264-1b |
त्वया सृष्टा कथं नारी मादृशी वदतां वर। रौद्रकर्माभिजायेत सर्वप्राणिभयंकरी।। | 12-264-2a 12-264-2b |
विभेम्यहमधर्मस्य धर्म्यमादिश कर्म मे। त्वं मां भीतामवेक्षस्व शिवेनेश्वरचक्षुषा।। | 12-264-3a 12-264-3b |
बालान्वृद्धान्वयस्थांश्च न हरेयमनागसः। प्राणिनः प्राणिनामीश नमस्तेऽस्तु प्रसीद मे।। | 12-264-4a 12-264-4b |
प्रियान्पुत्रान्वयस्यांश्च भ्रातॄन्मातॄः पितृनपि। अपध्यास्यन्ति यद्येवं मृतास्तेभ्यो विभेम्यहम्।। | 12-264-5a 12-264-5b |
कृपणाश्रुपरिक्लेदो दहेन्मां शाश्वतीः समाः। तेभ्योऽहं बलवद्भीता शरणं त्वामुपागता।। | 12-264-6a 12-264-6b |
यमस्य भवने देव पात्यन्ते पापकर्मिणः। प्रसादये त्वां वरद प्रसादं कुरु मे प्रभो।। | 12-264-7a 12-264-7b |
एतदिच्छाम्यहं कामं त्वत्तो लोकपितामह। इच्छेयं त्वत्प्रसादाच्च तपस्तप्तुं महेश्वर।। | 12-264-8a 12-264-8b |
पितामह उवाच। | 12-264-9x |
त्वं हिं संहारबुद्ध्या मे चिन्तिता रुषितेन च। तस्मात्संहर सर्वास्त्वं प्रजा मा च विचारय।। | 12-264-9a 12-264-9b |
एतदेवमवश्यं हि भविता नैतदन्यथा। क्रियतामनवद्याङ्गि यथोक्तं मद्वचोऽनघे।। | 12-264-10a 12-264-10b |
एवमुक्ता महाबाहो मृत्युः परपुरंजय। न व्याजहार तस्थौ च प्रह्वा भगवदुन्मुखी।। | 12-264-11a 12-264-11b |
पुनः पुनरथोक्ता सा गतसत्त्वेव भामिनी। तूष्णीमासीत्ततो देवो लोकानामीश्वरेश्वरः।। | 12-264-12a 12-264-12b |
प्रससाद किल ब्रह्मा स्वयमेवात्मनाऽऽत्मनि। स्मयमानश्च लोकेशो लोकान्सर्वानवैक्षत।। | 12-264-13a 12-264-13b |
निवृत्तरोषे तस्मिंस्तु भगवत्यपराजिते। सा कन्याऽथ जगामास्य समीपादिति नःश्रुतम्।। | 12-264-14a 12-264-14b |
अपसृत्याप्रतिश्रुत्य प्रजासंहरणं तदा। त्वरमाणेव राजेन्द्र मृत्युर्धेनुकमभ्यगात्।। | 12-264-15a 12-264-15b |
सा तत्र परमं देवी तपोऽचरत दुश्चरम्। समा ह्येकपदे तस्थौ दशपद्मानि पञ्च च।। | 12-264-16a 12-264-16b |
तां तथा कुर्वतीं तत्र तपः परमदुश्चरम्। पुनरेव महातेजा ब्रह्मा वचनमब्रवीत्।। | 12-264-17a 12-264-17b |
कुरुष्व मे वचो मृत्यो तदनादृत्य सत्वरा। तथैवैकपदे तात पुनरन्यानि सप्त सा।। | 12-264-18a 12-264-18b |
तस्थौ पद्मानि षट् चैव पञ्च द्वे चैव मानद। भूयः पद्मायुतं तात मृगैः सह चचार सा।। | 12-264-19a 12-264-19b |
द्वे चायुते नरश्रेष्ठ वाय्वाहारा महामते। पुनरेव ततो राजन्मौनमातिष्ठदुत्तमम्।। | 12-264-20a 12-264-20b |
अप्सु वर्षसहस्राणि सप्त चैकं च पार्थिव। ततो जगाम सा कन्या कौशिकीं नृपसत्तम।। | 12-264-21a 12-264-21b |
तत्र वायुजलाहारा चचार नियमं पुनः। ततो ययौ महाभागा गङ्गां मेरुं च केवलम्।। | 12-264-22a 12-264-22b |
तस्थौ दार्विव निश्चेष्टा प्रजानां हितकाम्यया। ततो हिमवतो मूर्ध्निं यत्र देवाः समीजिरे।। | 12-264-23a 12-264-23b |
तत्राङ्गुष्ठेन राजेन्द्र निखर्वमचरत्तपः। तस्थौ पितामहं चैव तोषयामास यत्नतः।। | 12-264-24a 12-264-24b |
ततस्तामब्रवीत्तत्र लोकानां प्रपितामहः। किमिदं वर्तसे पुत्रि क्रियतां मम तद्वचः।। | 12-264-25a 12-264-25b |
ततोऽब्रवीत्पुनर्मृत्युर्भगवन्तं पितामहम्। न हरेयं प्रजा देव पुनस्त्वाऽहं प्रसादये।। | 12-264-26a 12-264-26b |
तामधर्मभयाद्भीतां पुनरेव प्रयाचतीम्। तदाऽब्रवीद्देवदेवो निगृह्येदं वचस्ततः।। | 12-264-27a 12-264-27b |
अधर्मो नास्ति ते मृत्यो संयच्छेमाः प्रजाः शुभे। मयाऽप्युक्तं मृषा भद्रे भविता नेह किंचन।। | 12-264-28a 12-264-28b |
धर्मः सनातनश्च त्वामिहैवानुप्रवेक्ष्यति। अहं च विबुधाश्चैव त्वद्धिते निरताः सदा।। | 12-264-29a 12-264-29b |
इमन्यं च ते कामं ददानि मनसेप्सितम्। न त्वां दोषेण यास्यन्ति व्याधिसंपीडिताः प्रजाः।। | 12-264-30a 12-264-30b |
पुरुषेषु च रूपेण पुरुषस्त्वं भविष्यसि। स्त्रीषु स्त्रीरूपिणी चैव तृतीयेषु नपुंसकम्।। | 12-264-31a 12-264-31b |
सैवमुक्ता महाराज कृताञ्जलिरुवाच ह। पुनरेव महात्मानं नेति देवेशमव्ययम्।। | 12-264-32a 12-264-32b |
तामब्रवीत्तदा देवो मृत्यो संहर मानवान्। अधर्मस्ते न भविता यथा ध्यास्याम्यहं शुभे।। | 12-264-33a 12-264-33b |
`त्वं हि शक्ता च युक्ता च पूर्वोत्पन्ना च भामिनि। अनुशिष्टा च निर्दोषा तस्मात्त्वं कुरु मे मतम्'।। | 12-264-34a 12-264-34b |
यानश्रुबिन्दून्पतितानपश्यं ये पाणिभ्यां धारितास्ते पुरस्तात्। ते व्याधयो मानवान्घोररूपाः प्राप्ते काले पीडयिष्यन्ति मृत्यो।। | 12-264-35a 12-264-35b 12-264-35c 12-264-35d |
सर्वेषां त्वं प्राणिनामन्तकाले कामक्रोधौ सहितौ योजयेथाः। एवं धर्मस्त्वामुपैष्यत्यमोघो न चाधर्मं लप्स्यसे तुल्यवृत्तिः।। | 12-264-36a 12-264-36b 12-264-36c 12-264-36d |
एवं धर्मं पालयिष्यस्यथो त्वं न चात्मानं मञ्जयिष्यस्यधर्मे। तस्मात्कामं रोचयाभ्यागतं त्वं सा त्वं साधो संहरस्वेह जन्तून्।। | 12-264-37a 12-264-37b 12-264-37c 12-264-37d |
सा वै तदा मृत्युसंज्ञा कृतास्त्री शापाद्भीता बाढमित्यब्रवीत्तम्। अथो प्राणान्प्राणिनामन्तकाले कामक्रोधौ प्राप्य नित्यं निहन्ति।। | 12-264-38a 12-264-38b 12-264-38c 12-264-38d |
मृत्योर्ये ते व्याधयश्चाश्चुपाता मनुष्याणां युज्यते यैः शरीरम्। सर्वेषां वै प्राणिनां प्राणनान्ते तस्माच्छोकं मा कृथा बुद्ध्य बुद्ध्या।। | 12-264-39a 12-264-39b 12-264-39c 12-264-39d |
सर्वे देवाः प्राणिनां प्राणनान्ते गत्वा वृत्ताः सन्निवृत्तास्तथैव। एवं सर्वे मानवाः प्राणनान्ते गत्वा वृत्ता देववद्राजसिंह।। | 12-264-40a 12-264-40b 12-264-40c 12-264-40d |
वायुर्भीमो भीमनादो महौजाः सर्वेषां च प्राणिनां प्राणभूतः। अनावृत्तिर्देहिनां देहपाते तस्माद्वायुर्देवदेवो विशिष्टः।। | 12-264-41a 12-264-41b 12-264-41c 12-264-41d |
सर्वे देवा मर्त्यसंज्ञाविशिष्टाः सर्वे मर्त्या देवसंज्ञाविशिष्टाः। तस्मात्पुत्रं मा शुचो राजसिंह पुत्रः स्वर्गं प्राप्यते मोदते हे।। | 12-264-42a 12-264-42b 12-264-42c 12-264-42d |
एवं मृत्युर्देवसृष्टा प्रजानां प्राप्ते काले संहरन्ती यथावत्। तस्याश्चैव व्याधयस्तेऽश्रुपाताः प्राप्ते काले संहरन्तीह जन्तून्।। | 12-264-43a 12-264-43b 12-264-43c 12-264-43d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि चतुष्षष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 264।। |
12-264-1 विनीय प्रमार्ज्य। आवर्जिता ऋजुभूता। सात्वतीवायते क्षणेति ट. ड. पाठः।। 12-264-5 प्रियान् पुत्रानित्यस्य न हरेयमिति पूर्वेणान्वयः। तत्र हेतुः। येषां संबन्धिनो मृतास्ते यद्यपध्यास्यन्ति शप्स्यन्ते तर्हि तेषां तेभ्यो बिभेम्यहम्। अपध्यास्यन्ति ये देवमिति थ. पाठः।। 12-264-6 बलवदत्यन्तम्।। 12-264-7 निवेदये त्वा वरदेति ट. ड. पाठः।। 12-264-9 मृत्यो संकल्पिता मे त्वं प्रजासंहारहेतुना। गच्छ संहरेति झ. पाठः।। 12-264-15 अप्रतिश्रुत्याऽनङ्गीकृत्य। धेनुकं गोतीर्थं मायान्तर्वर्ति।। 12-264-21 कौशिकी गण्डकी नदीम्।। 12-264-23 दार्विव स्थाणुरिव।। 12-264-27 नेगृह्य हठं कृत्वा।। 12-264-35 कालयिष्यन्ति मृत्यो इति झ. पाठः।। 12-264-38 प्राप्य प्रापय्य।। 12-264-39 प्राणनान्ते जीवनान्ते। बुद्ध्य जानीहि। प्राणिनां प्रायणान्ते इति ध. पाठः।। 12-264-41 नानावृत्तिर्देहिनां देहभेदे इति झ. पाठः।। 12-264-42 देवाः क्षीणपुण्या मर्त्यत्वं मर्त्याश्च कृतपुण्या देवत्वं प्राप्नुवन्तीत्यर्थः।।
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