महाभारतम्-12-शांतिपर्व-091
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति उचथ्यमान्धातृसंवादानुवादः।। 1।।
उचथ्य उवाच। | 12-91-1x |
कालवर्षी च पर्जन्यो धर्मचारी च पार्थिवः। संपद्यदेषा भवति सा बिभर्ति सुखं प्रजाः।। | 12-91-1a 12-91-1b |
यो न जानाति निर्हर्तुं वस्त्राणां रजको मलम्। रत्नानि वा शोधयितुं यथा नास्ति तथैव सः।। | 12-91-2a 12-91-2b |
एवमेतद्द्विजेन्द्राणां क्षत्रियाणां विशां तथा। शूद्रश्चतुर्थो वर्णानां नानाकर्मस्ववस्थितः।। | 12-91-3a 12-91-3b |
कर्म शूद्रे कृषिर्वैश्ये दण्डनीतिश्च राजनि। ब्रह्मचर्यं तपो मन्त्राः सत्यं चापि द्विजातिषु।। | 12-91-4a 12-91-4b |
तेषां यः क्षत्रियो वेद पात्राणामिव शोधनम्। शीलदोषान्विनिर्हर्तुं स पिता स प्रजापतिः।। | 12-91-5a 12-91-5b |
कृतं त्रेता द्वापरश्च कलिश्च भरतर्षभ। राजवृत्तानि सर्वाणि राजैव युगमुच्यते।। | 12-91-6a 12-91-6b |
चातुर्वर्ण्यं तथा वेदाश्चातुराश्रम्यमेव च। सर्वमेतत्प्रमुह्येत यदा राजा प्रमाद्यति।। | 12-91-7a 12-91-7b |
अग्नित्रेता त्रयी विद्या यज्ञाश्च सहदक्षिणाः। सर्व एव प्रमुह्यन्ते यदा राजा प्रमाद्यति।। | 12-91-8a 12-91-8b |
राजैव कर्ता भूतानां राजैव च विनाशकः। धर्मात्मा यः स कर्ता स्यादधर्मात्मा विनाशकः।। | 12-91-9a 12-91-9b |
राज्ञो भार्याश्च पुत्राश्च बान्धवाः सुहृदस्तथा। समेत्य सर्वे शोचन्ति यदा राजा प्रमाद्यति।। | 12-91-10a 12-91-10b |
हस्तिनोऽश्वाश्च गावश्चाप्युष्ट्राश्वतरगर्दभाः। अधर्मवृत्ते नृपतौ सर्वे सीदन्ति जन्तवः।। | 12-91-11a 12-91-11b |
[दुर्बलार्थं बलं सृष्टं धात्रा मान्धातरुच्यते। अबलं तु महद्भूतं यस्मिन्सर्वं प्रतिष्ठितम्।। | 12-91-12a 12-91-12b |
यश्च भूतं संभजते ये च भूतास्तदन्वयाः। अधर्मस्थे हि नृपतौ सर्वे शोचन्ति पार्थिव।।] | 12-91-13a 12-91-13b |
दुर्बलस्य च यच्चक्षुर्मुनेराशीविषस्य च। अविषह्यतमं मन्ये मा स्म दुर्बलमासदः।। | 12-91-14a 12-91-14b |
दुर्बलांस्तात मन्येथा नित्यमेवाविमानि तान्। मा त्वां दुर्बलचक्षूंषि प्रदहेयुः सबान्धवम्।। | 12-91-15a 12-91-15b |
न हि दुर्बलदग्धस्य कुले किंचित्प्ररोहति। आमूलं निर्दहन्त्येव मा स्म दुर्बलमासद।। | 12-91-16a 12-91-16b |
अबलं वै बलाच्छ्रेयो यच्चातिबलवद्बलम्। बलस्याबलदग्धस्य न किंचितवशिष्यते।। | 12-91-17a 12-91-17b |
विमानितो हतः क्लिष्टस्त्रातारं चेन्न विन्दन्ते। अमानुषकृतस्तत्र दण्डो हन्ति नराधिपम्।। | 12-91-18a 12-91-18b |
मा स्म तात बलस्थस्त्वं भुञ्जीथा दुर्बलं जनम्। मा त्वां दुर्बलचक्षूंषि दहन्त्वग्निरिवाशयम्।। | 12-91-19a 12-91-19b |
यानि मिथ्याभिशस्तानां पतन्त्यश्रूणि रोदताम्। तानि पुत्रान्पशून्घ्नन्ति तेषां मिथ्याभिशंसिनां।। | 12-91-20a 12-91-20b |
यदि नात्मनि पुत्रेषु न चेत्पौत्रेषु नप्नृषु। न हि पापं कृतं कर्म सद्यः फलति गौरिब।। | 12-91-21a 12-91-21b |
यत्राबलो वध्यमानस्त्रातारं नाधिगच्छति। महान्दैवकृतस्तत्र दण्डः पतति दारुणः।। | 12-91-22a 12-91-22b |
युक्ता यदा जानपदा भिक्षन्ते ब्राह्मणा इव। अभीक्ष्णं भिक्षुरूपेण राजानं घ्नन्ति तादृशाः।। | 12-91-23a 12-91-23b |
राज्ञो यदा जनपदे बहवो राजपूरुषाः। अनयेनोपवर्तन्ते तद्राज्ञः किल्बिषं महत्।। | 12-91-24a 12-91-24b |
यदा युक्त्या नयेदर्थान्कामादर्थवशेन वा। कृपणं याचमानानां तद्राज्ञो वैशसं महत्।। | 12-91-25a 12-91-25b |
महान्वृक्षो जायते वर्धते च तं चैव भूतानि समाश्रयन्ति। यदा वृक्षश्छिद्यते दह्यते च तदाश्रया अनिकेता भवन्ति।। | 12-91-26a 12-91-26b 12-91-26c 12-91-26d |
यदा राष्ट्रे धर्ममग्र्यं चरन्ति संस्कारं का राजगुणं ब्रुवाणाः। तैश्चाधर्मश्चरितो धर्ममोहा त्तूप जह्यात्सुकृतं दुष्कृतं च।। | 12-91-27a 12-91-27b 12-91-27c 12-91-27d |
यत्र पापा ज्ञायमानाश्चरन्ति सभां कलिर्विन्दते तत्र राज्ञः। यत्र राजा शास्ति नरान्न शक्त्या न तद्राज्यं वर्धते भूमिपस्य।। | 12-91-28a 12-91-28b 12-91-28c 12-91-28d |
यश्चामात्यान्मानयित्वा यथा हि मन्त्रे च युद्धे च नृपोऽनुयुञ्ज्यात्। बिबर्धते तस्य राष्ट्रं नृपस्य भुङ्क्ते महीं चाप्यखिलां चिराय।। | 12-91-29a 12-91-29b 12-91-29c 12-91-29d |
अत्रापि सुकृतं कर्म वाचं चैव सुभाषिताम्। समीक्ष्य पूजयन्राजा धर्मं प्राप्नोत्यनुत्तमम्।। | 12-91-30a 12-91-30b |
संविभज्य यदा भुङ्क्ते नचान्यानवमन्यते। निहन्ति बलिनं दृप्तं स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-31a 12-91-31b |
त्रायते हि यदा सर्वं वाचा कायेन कर्मणा। पुत्रस्यापि न मृष्येच्च स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-32a 12-91-32b |
संविभज्य यदा भुङ्क्ते नृपतिर्दुर्बलान्नरान्। तदा भवन्ति बलिनः स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-33a 12-91-33b |
यदा रक्षति राष्ट्राणि यदा दस्यूनपोहति। यदा जयति संग्रामे स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-34a 12-91-34b |
पापमाचरतो यत्र कर्मणा व्याहृतेन वा। प्रियस्यापि न मृष्येत स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-35a 12-91-35b |
यदा सारणिकान्राजा पुत्रवत्परिरक्षति। भिनत्ति न च मर्यादां स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-36a 12-91-36b |
यदाप्तदक्षिणैर्यज्ञैर्यजते श्रद्धयाऽन्वितः। कामद्वेषावनादृत्य स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-37a 12-91-37b |
कृपणानाथवृद्धानां यदाऽश्रु परिमार्जति। हर्षं संजनयन्नॄणां स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-38a 12-91-38b |
विवर्धयति मित्राणि तथाऽरींश्चापि कर्षति। संपूजयति साधूंश्च स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-39a 12-91-39b |
सत्यं पालयति प्रीत्या नित्यं भूमिं प्रयच्छति। पूजयेदतिथीन्भृत्यान्स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-40a 12-91-40b |
निग्रहानुग्रहौ चोभौ यत्र स्यातां प्रतिष्ठितौ। अस्मिँल्लोके परे चैव राजा स प्राप्नुते फलम्।। | 12-91-41a 12-91-41b |
यमो राजा धार्मिकाणां मान्धातः परमेश्वरः। संयच्छन्यमवत्प्राणानसंयच्छंस्तु पावकः।। | 12-91-42a 12-91-42b |
ऋत्विक्पुरोहिताचार्यान्सत्कृत्यानवमत्य च। यदा सम्यक्प्रगृह्णाति स राज्ञो धर्म उच्यते।। | 12-91-43a 12-91-43b |
यमो यच्छति भूतानि सर्वाण्येवाविशेषतः। तथा राज्ञाऽनुकर्तव्यं यन्तव्या विधिवत्प्रजाः।। | 12-91-44a 12-91-44b |
सहस्राक्षेण राजा हि सर्वथैवोपमीयते। स पश्यति च यं धर्म स धर्मः पुरुषर्षभ।। | 12-91-45a 12-91-45b |
अप्रमादेन शिक्षेथाः क्षमां बुद्धिं धृतिं मतिम्। भूतानां तत्त्वजिज्ञासा साध्वसाधु च सर्वदा।। | 12-91-46a 12-91-46b |
संग्रहः सर्वभूतानां दानं च मधुरा च वाक्। पौरजानपदाश्चैव गोप्तव्याः स्वप्रजा यथा।। | 12-91-47a 12-91-47b |
न जात्वदक्षो नृपतिः प्रजाः शक्नोति रक्षितुम्। भारो हि सुमहांस्तात राज्यं नाम सुदुर्वहम्।। | 12-91-48a 12-91-48b |
तद्दण्डविन्नृपः प्राज्ञः शूरः शक्नोति रक्षितुम्। न हि शक्यमदण्डेन क्लीबेनाबुद्धिनाऽपि वा।। | 12-91-49a 12-91-49b |
अभिरूपैः कुले जातैर्दक्षैर्भक्तैर्बहुश्रुतैः। सर्वं बुद्ध्या परीक्षेथास्तापसाश्रमिणामपि।। | 12-91-50a 12-91-50b |
अतस्त्वं सर्वभूतानां धर्मं वेत्स्यसि वै परम्। स्वदेशे परदेशे वा न ते धर्मो विनङ्क्ष्यति।। | 12-91-51a 12-91-51b |
धर्मेचार्थे च कामे च धर्म एवोत्तरो भवेत्। अस्मिंल्लोके परे चैव धर्मात्मा सुखमेधते।। | 12-91-52a 12-91-52b |
त्यजन्ति दारान्पुत्रांश्च मनुष्याः परिपूजिताः। संग्रहश्चैव भूतानां दानं च मधुरा च वाक्।। | 12-91-53a 12-91-53b |
अप्रमादश्च शौचं च राज्ञो भूतिकरं महत्। एतेभ्यश्चैव मान्धातः सततं मा प्रमादिथाः।। | 12-91-54a 12-91-54b |
अप्रमत्तो भवेद्राजा छिद्रदर्शी परात्मनोः। नास्य च्छिद्रं परः पश्येच्छिद्रेषु परमन्वियात्।। | 12-91-55a 12-91-55b |
एतद्वॄत्तं वासवस्य यमस्य वरुणस्य च। राजर्षीणां च सर्वेषां तत्त्वमप्यनुपालय।। | 12-91-56a 12-91-56b |
तत्कुरुष्व महाराज वृत्तं राजर्षिसेवितम्। आतिष्ठ दिव्यं पन्थानमह्नाय पुरुषर्षभ।। | 12-91-57a 12-91-57b |
धर्मवृत्तं हि राजानं प्रेत्य चेह च भारत। देवर्षिपितृगन्धर्वाः कीर्तयन्ति महौजसः।। | 12-91-58a 12-91-58b |
भीष्म उवाच। | 12-91-59x |
स एवमुक्तो मान्धाता तेनोचथ्येन भारत। कृतवानविशङ्कश्च एकः प्राप च मेदिनीम्।। | 12-91-59a 12-91-59b |
भवानपि तथा सम्यङ्भान्धातेव महीपते। धर्मं कृत्वा महीं रक्ष स्वर्गे स्थानमवाप्स्यसि।। | 12-91-60a 12-91-60b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि एकनवतितमोऽध्यायः।। 91।। |
[सम्पाद्यताम्]
12-91-3 द्विजादीनां मध्ये यः कश्चिन्छूद्रो वा नानाकर्मस्ववस्थितः स्वकर्मच्युतो मूढः एवं रजकतुल्य इत्यर्थः।। 12-91-8 अग्नित्रेता वह्नित्रयम्।। 12-91-12 अबलस्य पालनान्महत्पुण्यमपालनाच्च महत्पापमित्यर्थः। 12-91-13 भूतं दुर्बलं संभजतेऽन्नादिना सेवते। तदन्वयाः दातृसंबन्धिनः।। 12-91-21 यदि आत्मनि फलं पाप न फलति तर्हि पुत्रादिषु फलति नतु सद्यः फलतीत्यर्थः।। 12-91-22 मोहाद्दैवकृत इति ड. थ. पाठः।। 12-91-25 नयेत् अपहरेत्।। 12-91-27 महानिति दृष्टान्तमुक्त्वा दार्ष्टान्तिकमाह यदेति। यदा धर्मं चरति तदा राजा वर्धत इति भावः। दुष्कृतं चापयातीत्यर्थः। राजपुत्रं ब्रुवाणा इति ट. ड. थ. पाठः।। 12-91-28 यदा राज्रा शास्ति नरानशिष्टांस्तदा राज्यं वर्धते भूमिपस्येति झ. पाठः।। 12-91-31 नामात्यानवमन्यत इति झ. पाठः।। 12-91-33 संविभज्य यदा भुङ्क्ते नृपतिर्यदि पार्थिव। दुर्बलानां बलं चैवेति ट. ड.छ. पाठः।। 12-91-36 सारणिकान् प्रसारिणीप्रधानान्वणिजः।। 12-91-42 धार्मिकाणं परमेश्वरोऽनुग्राहकः। प्राणान् इन्द्रियाणि संयच्छन्भवेत्। अनियच्छंस्तु पावकः स्वाश्रयदाही भवतीत्यर्थः।। 12-91-50 अमिरूपैरमात्यैः सहेति शेषः।। 12-91-54 प्रमादिथाः प्रमाद्येषाः।।
शांतिपर्व-090 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-092 |