महाभारतम्-12-शांतिपर्व-318
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याज्ञवल्क्येन जनकंप्रति इन्द्रियतद्विषयतदभिमानिदेवताकथनम्।। 1।।
तथा सत्वादिगुणत्रयकार्यधर्मप्रतिपादनम्।। 2।।
याज्ञवल्क्य उवाच। | 12-318-1x |
पादावध्यात्ममित्याहुर्ब्राह्मणास्तत्त्वदर्शिनः। गन्तव्यमधिभूतं च विष्णुस्तत्राधिदैवतम्।। | 12-318-1a 12-318-1b |
पायुरध्यात्ममित्याहुर्यथातत्त्वार्थदर्शिनः। विसर्गमधिभूतं च मित्रस्तत्राधिदैवतम्।। | 12-318-2a 12-318-2b |
उपस्थोऽध्यात्ममित्याहुर्यथायोगप्रदर्शिनः। अधिभूतं तथाऽऽनन्दो दैवतं च प्रजापतिः।। | 12-318-3a 12-318-3b |
हस्तावध्यात्ममित्याहुर्यथासङ्ख्यानदर्शिनः। कर्तव्यमधिभूतं तु इन्द्रस्तत्राधिदैवतम्।। | 12-318-4a 12-318-4b |
वागध्यात्ममिति प्राहुर्यथाश्रुतिनिदर्शिनः। वक्तव्यमधिभूतं तु वह्निस्तत्राधिदैवतम्।। | 12-318-5a 12-318-5b |
चक्षुरध्यात्ममित्याहुर्यथाश्रुतिनिदर्शिनः। रूपमत्राधिभूतं तु सूर्यश्चाप्यधिदैवतम्।। | 12-318-6a 12-318-6b |
श्रोत्रमध्यात्ममित्याहुर्यथाश्रुतिनिदर्शिनः। शब्दस्तत्राधिभूतं तु दिशश्चात्राधिदैवतम्।। | 12-318-7a 12-318-7b |
जिह्वामध्यात्ममित्याहुर्यथाश्रुतिनिदर्शिनः। रस एवाधिभूतं तु आपस्तत्राधिदैवतम्।। | 12-318-8a 12-318-8b |
घ्राणमध्यात्ममित्याहुर्थथाश्रुतिनिदर्शिनः। गन्ध एवाधिभूतं तु पृथिवी चाधिदैवतम्।। | 12-318-9a 12-318-9b |
त्वगध्यात्ममिति प्राहुस्तत्त्वबुद्धिविशारदाः। स्पर्शमेवाधिभूतं तु पवनश्चाधिदैवतम्।। | 12-318-10a 12-318-10b |
मनोऽध्यात्ममिति प्राहुर्यथा शास्त्रविशारदाः। मन्तव्यमधिभूतं तु चन्द्रमाश्चाधिदैवतम्।। | 12-318-11a 12-318-11b |
आहंकारिकमध्यात्ममाहुस्तत्त्वनिदर्शिनः। अभिमानोऽधिभूतं तु बुद्धिश्चात्राधिदैवतम्।। | 12-318-12a 12-318-12b |
बुद्धिरध्यात्ममित्याहुर्यथावदभिदर्शिनः। बोद्धव्यमधिभूतं तु क्षेत्रज्ञश्चाधिदैवतम्।। | 12-318-13a 12-318-13b |
एषा ते व्यक्तितो राजन्विभूतिरनुदर्शिता। आदौ मध्ये तथाऽन्ते च यथा तत्त्वेन तत्त्ववित्।। | 12-318-14a 12-318-14b |
प्रकृतिर्गुणान्विकुरुते स्वच्छन्देनात्मकाम्यया। क्रीडार्थे तु महाराज शतशोऽथ सहस्रशः।। | 12-318-15a 12-318-15b |
यथा दीपसहस्राणि दीपान्मर्त्याः प्रकुर्वते। प्रकृतिस्तथा विकुरुते पुरुषस्य गुणान्बहून्।। | 12-318-16a 12-318-16b |
सत्वमानन्द उद्रेकः प्रीतिः प्राकाम्यमेव च। सुखं शुद्धत्वमारोग्यं संतोषः श्रद्दधानता।। | 12-318-17a 12-318-17b |
अकार्पण्यमसंरम्भः क्षमा धृतिरहिंसता। समता सत्यमानृण्यमार्जवं ह्रीरचापलम्।। | 12-318-18a 12-318-18b |
शौचमार्दवमाचारमलौल्यं हृद्यसंभ्रमः। इष्टानिष्टवियोगानां कृतानामविकत्थना।। | 12-318-19a 12-318-19b |
दानेन चात्मग्रहणमस्पृहत्वं परार्थता। सर्वभूतदया चैव सत्वस्यैते गुणाः स्मृताः।। | 12-318-20a 12-318-20b |
रजोगुणानां संघातो रूपमैश्वर्यविग्रहौ। अत्यागित्वमकारुण्यं सुखदुःखोपसेवनम्।। | 12-318-21a 12-318-21b |
परापवादेषु रतिर्विवादानां च सेवनम्। अहंकारस्त्वसत्कारश्चिन्ता वैरोपसेवनम्।। | 12-318-22a 12-318-22b |
परितापोऽभिहरणं ह्रीनाशोऽनार्जवं तथा। भेदः परुषता चैव कामक्रोधो मदस्तथा।। | 12-318-23a 12-318-23b |
दर्पो द्वेषोऽतिमानश्च एते प्रोक्ता रजोगुणाः। तामसानां तुं संघातान्प्रवक्ष्याम्युपधार्यताम्।। | 12-318-24a 12-318-24b |
मोहोऽप्रकाशस्तामिस्रमन्धतामिस्रसंज्ञितम्। मरणं चान्धतामिस्रं तामिस्रं क्रोध उज्यते।। | 12-318-25a 12-318-25b |
तमसो लक्षणानीह भक्षणाद्यभिरोचनम्। भोजनानामपर्याप्तिस्तथा पेयेष्वतृप्तता।। | 12-318-26a 12-318-26b |
गन्धवासो विहारेषु शयनेष्वासनेषु च। दिवास्वप्ने विवादे च प्रमादेषु च वै रतिः।। | 12-318-27a 12-318-27b |
नृत्यवादित्रगीतानामज्ञानाच्छ्रद्दधानता। द्वेषो धर्मविशेषाणामेते वै तामसा गुणाः।। | 12-318-28a 12-318-28b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि अष्टादशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 318।। |
12-318-4 यथा तत्वनिदर्शिनः इति थ. पाठः।। 12-318-19 शौचतारमपारुप्यमपैशुनमिति ड. पाठः। इष्टापूर्वविशेषाणामिति ट. ड. पाठः।।
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