महाभारतम्-12-शांतिपर्व-025
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व्यासेन युधिष्ठिरं प्रति सेनजिद्वचनानुवादपूर्वकं राजधर्मकथनम्।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-25-1x |
द्वैपायनवचः श्रुत्वा कुपिते च धनञ्जये। व्यासमामन्त्र्य कौन्तेयः प्रत्युवाच युधिष्ठिरः।। | 12-25-1a 12-25-1b |
युधिष्ठिर उवाच। | 12-25-2x |
न पार्थिवमिदं राज्यं न भोगाश्च पृथग्विधाः। प्रीणयन्ति मनो मेऽद्य शोको मां दारयत्ययम्।। | 12-25-2a 12-25-2b |
श्रुत्वा वीरविहीनानामपुत्राणां च योषिताम्। परिदेवयमानानां न शान्तिं मनसा लभे।। | 12-25-3a 12-25-3b |
इत्युक्तः प्रत्युवाचेदं व्यासो योगविदांवरः। युधिष्ठिरं महाप्राज्ञो धर्मज्ञो वेदपारगः।। | 12-25-4a 12-25-4b |
व्यास उवाच। | 12-25-5x |
न कर्मणा लभ्यते चेज्यया वा नाप्यस्ति दाता पुरुषस्य कश्चित्। पर्याययोगाद्विहितं विधात्रा कालेन सर्वं लभते मनुष्यः।। | 12-25-5a 12-25-5b 12-25-5c 12-25-5d |
न बुद्धिशक्त्याऽऽध्ययनेन शक्यं प्राप्तुं विशेषं मनुजैरकाले। मूर्खोऽपि चाप्नोति कदाचिदर्था न्कालो हि सर्वं पुरुषस्य दाता।। | 12-25-6a 12-25-6b 12-25-6c 12-25-6d |
न भूरकालेषु फलं ददाति शिल्पानि मन्त्राश्च तथौषधानि। तान्येव कालेन समाहितानि सिद्ध्यन्ति वर्धन्ति च भूतिकाले।। | 12-25-7a 12-25-7b 12-25-7c 12-25-7d |
कालेन शीघ्राः प्रवहन्ति वाताः कालेन वृष्टिर्जलदानुपैति। कालेन पझोत्पलवञ्जलं च कालेन पुष्यन्ति वनेषु वृक्षाः।। | 12-25-8a 12-25-8b 12-25-8c 12-25-8d |
कालेन कृष्णाश्च सिताश्च रात्र्यः कालेन चन्द्रः परिपूर्णबिम्बः। नाकालतः पुष्पफलं द्रुमाणां नाकालवेगाः सरितो वहन्ति।। | 12-25-9a 12-25-9b 12-25-9c 12-25-9d |
नाकालमत्ताः खगपन्नगाश्च मृगद्विपाः शैलमृगाश्च लोके। नाकालतः स्त्रीषु भवन्ति गर्भा नायन्त्यकाले शिशिरोष्णवर्षाः।। | 12-25-10a 12-25-10b 12-25-10c 12-25-10d |
नाकालतो म्रियते जायते वा नाकालतो व्याहरते च बालः। नाकालतो यौवनमभ्युपैति नाकालतो रोहति बीजमुप्तम्।। | 12-25-11a 12-25-11b 12-25-11c 12-25-11d |
नाकालतो भानुरुपैति योगं नाकालतोऽस्तं गिरिमभ्युपैति। नाकालतो वर्धते हीयते च चन्द्रः समुद्रोऽपि महोर्मिमाली।। | 12-25-12a 12-25-12b 12-25-12c 12-25-12d |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। गीतं राज्ञा सेनजिता दुःखार्तेन युधिष्ठिर।। | 12-25-13a 12-25-13b |
सर्वानेवैष पर्यायो मर्त्यान्स्पृशति दुःसहः। कालेन परिपक्वा हि म्रियन्ते सर्वपार्थिवाः।। | 12-25-14a 12-25-14b |
घ्नन्ति चान्यान्नरान्राजंस्तानप्यन्ये तथा नराः। संज्ञैषा लौकिकी राजन्न हिनस्ति न हन्यते।। | 12-25-15a 12-25-15b |
हन्तीति मन्यते कश्चिन्न हन्तीत्यपि चापरः। स्वभावतस्तु नियतौ भूतानां प्रभवाप्ययौ।। | 12-25-16a 12-25-16b |
नष्टे धने वा दारे वा पुत्रे पितरि वा मृते। अहो दुःखमिति ध्यायन्दुःखस्यापचितिं चरेत्।। | 12-25-17a 12-25-17b |
स किं शोचसि मूढः सञ्शोच्यान्किमनुशोचसि। पश्य दुःखेषु दुःखानि भयेषु च भयान्यपि।। | 12-25-18a 12-25-18b |
आत्माऽपि चायं न मम सर्वाऽपि पथिवी मम। यथा मम तथाऽन्येषामिति पश्यन्न मुह्यति।। | 12-25-19a 12-25-19b |
शोकस्थानसहस्राणि हर्षस्थानशतानि च। दिवसेदिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डितम्।। | 12-25-20a 12-25-20b |
एवमेतानि कालेन प्रियद्वेष्याणि भागशः। जीवेषु परिवर्तन्ते दुःखानि च सुखानि च।। | 12-25-21a 12-25-21b |
दुःखमेवास्ति न सुखं तस्मात्तदुपलभ्यते। तृष्णार्तिप्रभवं दुःखं दुःखार्तिप्रभवं सुखम्।। | 12-25-22a 12-25-22b |
सुखस्यानन्तरं दुःखं दुःखस्यानन्तरं सुखम्। न नित्यं लभते दुःखं न नित्यं लभते सुखम्।। | 12-25-23a 12-25-23b |
सुखमेव हि दुःखान्तं कदाचिद्दुःखतः सुखम्। तस्मादेतद्द्वयं जह्याद्य इच्छेच्छाश्वतं सुखम्।। | 12-25-24a 12-25-24b |
सुखान्तप्रभवं दुःखं दुःखान्तप्रभवं सुखम्। यन्निमित्तो भवेच्छोकस्तापो वा दुःखमूर्च्छितः। आयासो वाऽपि यन्मूलस्तदेकाङ्गमपि त्यजेत्।। | 12-25-25a 12-25-25b 12-25-25c |
सुखं वा यदि वा दुःखं प्रियं वा यदि वाऽप्रियम्। प्राप्तं प्राप्तमुपासीत हृदयेनापराजितः।। | 12-25-26a 12-25-26b |
ईषदप्यङ्ग दाराणां पुत्राणामाचरन्प्रियम्। ततो ज्ञास्यसि कः कस्य केन वा कथमेव च।। | 12-25-27a 12-25-27b |
ये च मूढतमा लोके ये च बुद्धेः परं गताः। त एव सुखमेधन्ते मध्यमः क्लिश्यते जनः।। | 12-25-28a 12-25-28b |
इत्यन्नवीन्महाप्राज्ञो युधिष्ठिर स सेनजित्। परावरज्ञो लोकस्य धर्मवित्सुखदुःखवित्।। | 12-25-29a 12-25-29b |
परदुःखेन दुःखी यो न स जातु सुखी भवेत्। दुःखानां हि क्षयो नास्ति जायते ह्यपरात्परम्।। | 12-25-30a 12-25-30b |
सुखं च दुःखं च भवाभवौ च लाभालाभौ मरणं जीवितं च। पर्यायतः सर्वमवाप्तुवन्ति तस्मान्न मुह्येन्न च संप्रहृष्येत्।। | 12-25-31a 12-25-31b 12-25-31c 12-25-31d |
दीक्षां राज्ञां संयुगे धर्ममाहु र्योगं राज्ये दण्डनीतिं च सम्यक्। वित्तत्यागं दक्षिणां चैव यज्ञे सम्यग्दानं पावनानीति विद्यात्।। | 12-25-32a 12-25-32b 12-25-32c 12-25-32d |
रक्षन्राज्यं बुद्धिपूर्वं नयेन संत्यक्तात्मा यज्ञशीलो महात्मा। सर्वाल्लोकान्धर्मदृष्ट्यावलोक न्नूध्वं देहान्मोदते देवलोके।। | 12-25-33a 12-25-33b 12-25-33c 12-25-33d |
जित्वा संग्रामान्पालयित्वा च राष्ट्रं सोमं पीत्वा वर्धयित्वा प्रजाश्च। युक्त्या दण्डं धारयित्वा प्रजानां पश्चात्क्षीणायुर्मोदते देवलोके।। | 12-25-34a 12-25-34b 12-25-34c 12-25-34d |
पूतात्मा वै मोदते देवलोके।। | 12-25-35f |
यस्य वृत्तं नमस्यन्ति स्वर्गस्थस्यापि मानवाः। पौरजानपदामात्याः स राजा राजसत्तमः।। | 12-25-36a 12-25-36b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि पञ्चविंशोऽध्यायः (*)।। 25।। |
12-25-1 कुपिते राज्यकारणात्।।
12-25-3 वीरविहीनानां पतिहीनानाम्।।
12-25-5 नलभ्यते वीरो हतवीराभिर्वीरपत्नीभिरित्यर्थः। नापि ताभ्यः कश्चित्पतिं दातुं समर्थोऽस्तीत्यर्थः।।
12-25-7 नाभूतिकालेष्विति झ.पाठः।।
12-25-8 पुष्प्यन्तीति ड. पाठः।।
12-25-14 पर्यायः कालगतिः।।
12-25-17 अपचितिं प्रतीकारम्।।
12-25-18 दुःखेषु शोकजेषु मनस्तापेषु। दुःखानि शिरस्ताडनादीनि। दुःखादेर्द्विगुणीकरणं मूढकार्यमित्यर्थः।।
12-25-21 यानि प्रियाणि तान्येव काले दुःखानि भवन्ति। यानि द्वेष्याणि तान्येव सुखानि।।
12-25-22 तृष्णया याऽऽर्तिरनवस्थितचित्तता तज्जं दुःखम्। दुःखस्यार्तिर्विनाशस्तज्जं सुखम्।।
12-25-25 दुःखमूर्छितः दुःखेन वर्धितः। एकाङ्गमपि सर्पदष्टाङ्गुष्ठवत् त्यजेत्।।
12-25-27 केन हेतुना कथं केन प्रकारेण कस्य संबन्धीति ज्ञास्यति।।
12-25-31 भवाभवौ ऐश्वर्यानैश्वर्ये।।
12-25-33 संत्यक्तात्मा निरहंकारः।।
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