महाभारतम्-12-शांतिपर्व-259
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति योगिप्रशंसादिपरव्यासवाक्यानुवादः।। 1।।
व्यास उवाच। | 12-259-1x |
शरीराद्विप्रमुक्तं हि सूक्ष्मभूतं शरीरिणम्। कर्मभिः परिपश्यन्ति शास्त्रोक्तैः शास्त्रचेतसः।। | 12-259-1a 12-259-1b |
यथा मरीच्यः सहिताश्चरन्ति गच्छन्ति तिष्ठन्ति च दृश्यमानाः। देहैर्विमुक्तानि वरन्ति लोकां स्तथैव सत्वान्यतिमानुषाणि।। | 12-259-2a 12-259-2b 12-259-2c 12-259-2d |
प्रतिरूपं यथैवाप्सु तावत्सूर्यस्य लक्ष्यते। सत्ववांस्तु तथा सत्वं प्रतिरूपं स पश्यति।। | 12-259-3a 12-259-3b |
तानि सूक्ष्माणि सत्वानि विमुक्तानि शरीरतः। तेन तत्वेन तत्वज्ञाः पश्यन्ति नियतेन्द्रियाः।। | 12-259-4a 12-259-4b |
स्वपतां जाग्रतां चैष सर्वेषामात्मचिन्तितम्। प्रधानाद्वैधयुक्तानां दह्यते कर्मजं रजः।। | 12-259-5a 12-259-5b |
यथाऽहनि तथा रात्रौ यथा रात्रौ तथाऽहनि। वशे तिष्ठति सत्वात्मा सततं योगयोगिनाम्।। | 12-259-6a 12-259-6b |
तेषां नित्यं सदा नित्यो भूतात्मा सततं गुणैः। सप्तभिस्त्वन्वितः सूक्ष्मैश्चरिष्णुरजरामरः।। | 12-259-7a 12-259-7b |
मनोवुद्धिपराभूतः स्वदेहपरदेहवित्। स्वप्नेष्वपि भवत्येष विज्ञाता सुखदुःखयोः।। | 12-259-8a 12-259-8b |
तत्रापि लभते दुःखं तत्रापि लभते सुखम्। कामं क्रोधं च तत्रापि कृत्वा व्यसनमृच्छति।। | 12-259-9a 12-259-9b |
प्रीणितश्चापि भवति महतोऽर्थानवाप्य हि। करोति पुण्यं तत्रापि जाग्रन्निव च पश्यति।। | 12-259-10a 12-259-10b |
सदोष्मान्तर्गतश्चापि गर्भत्वं समुपेयिवान्। दश मासान्वसन्कुक्षौ नैषोऽन्नमिव जीर्यते।। | 12-259-11a 12-259-11b |
तमेतमतितेजोंशं भूतात्मानं हृदि स्थितम्। तमोरजोभ्यामाविष्टा नानुपश्यन्ति मूर्तिषु।। | 12-259-12a 12-259-12b |
योगशास्त्रपरा भूत्वा स्वमात्मानं परीप्सवः। `तमोरजोभ्यां निर्मुक्तास्तं प्रपश्यन्ति मूर्तिषु।' अनुच्छ्वासान्यमूर्तानि यानि वज्रोपमान्यपि।। | 12-259-13a 12-259-13b 12-259-13c |
पृथग्भूतेषु सृष्टेषु चतुर्ष्वाश्रमकर्मसु। समाधौ योगमेवैतच्छाण्डिल्यः सममब्रवीत्।। | 12-259-14a 12-259-14b |
विदित्वा सप्तसूक्ष्माणि षडङ्गं च महेश्वरम्। प्रधानविनियोगज्ञः परं ब्रह्मानुपश्यति।। | 12-259-15a 12-259-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि एकोनषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 259।। |
12-259-8 स्वप्नेष्वपि स्वदेहं परदेहं च स्थूलादन्यं वेत्तीति तथा।। 12-259-13 वज्रोपमानि ब्राह्मप्रलयेऽप्यविनाशीनि।।
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