महाभारतम्-12-शांतिपर्व-006
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कुन्त्या कर्णवधानुशोचिनो युधिष्टिरस्याश्वासनम्।। 1।। युधिष्ठिरेण कुन्तींप्रति स्त्रीणां मन्त्रगोपनं माभूदिति शापदानम्।। 2।।
वैशंपायन उवाच। | 12-6-1x |
एतावदुक्त्वा देवर्षिर्विरराम स नारदः। युधिष्ठिरस्तु राजर्षिर्दध्यौ शोकपरिप्लुतः।। | 12-6-1a 12-6-1b |
तं दीनमनसं वीरमधोवदनमातुरम्। निःश्वसन्तं यथा नागं पर्यश्रुनयनं तथा।। | 12-6-2a 12-6-2b |
कुन्ती शोकपरीताङ्गी दुःखोपहतचेतना। अब्रवीन्मधुराभाषा काले वचनमर्थवत्।। | 12-6-3a 12-6-3b |
युधिष्ठिर महाबाहो नैनं शोचितुमर्हसि। जहि शोकं महाप्राज्ञ श्रृणु चेदं वचो मम।। | 12-6-4a 12-6-4b |
याचितः स मया पूर्वं भ्राता ज्ञापयितुं तव। भास्करेण च देवेन पित्रा धर्मभृतां वरः।। | 12-6-5a 12-6-5b |
यद्वाच्यं हितकामेन सुहृदां भूतिमिच्छता। तथा दिवाकरेणोक्तः स्वप्नान्ते मम चाग्रतः।। | 12-6-6a 12-6-6b |
न चैनमशकद्भानुरहं वा स्नेहकारणैः। पुरा प्रत्यनुनेतुं वा नेतुं वाऽप्येकतां त्वया।। | 12-6-7a 12-6-7b |
ततः कालपरीतः स वैरस्योद्धरणे रतः। प्रतीपकारी युष्माकमिति चोपेक्षितो मया।। | 12-6-8a 12-6-8b |
इत्युक्तो धर्मराजस्तु मात्रा बाष्पाकुलेक्षणः। उवाच वाक्यं धर्मात्मा शोकव्याकुललोचनः।। | 12-6-9a 12-6-9b |
भवत्या गूढमन्त्रत्वाद्वञ्चिताः स्म तदा भृशम्।। | 12-6-10a |
शशाप च महातेजाः सर्वलोकेषु योषितः। न गुह्यं धारयिष्यन्तीत्येवं दुःखसमन्वितः।। | 12-6-11a 12-6-11b |
स राजा पुत्रपौत्राणां संबन्धिसुहृदां तदा। स्मरन्नुद्विग्नहृदयो बभूवोद्विग्नचेतनः।। | 12-6-12a 12-6-12b |
ततः शोकपरीतात्मा सधूम इव पावकः। निर्वेदमगमद्धीमान्राज्ये संतापपीडितः।। | 12-6-13a 12-6-13b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि षष्ठोऽध्यायः।। 6।। |
12-6-1 दध्यौ भ्रातृवधजं दोषं चिन्तितवान्।। 12-6-5 यातितः स मया पूर्वं भ्रात्र्यमिति झ. पाठः। तत्र यातितः प्रवर्तितस्तवतुभ्यं भ्रात्र्यं भ्रातुः कर्म कनिष्ठानां परिपालनं ज्ञःपयितुं त्वया सौभ्रात्रं युधिष्ठिरादिभ्यः प्रदर्शनीयमित्यभ्यर्थित इत्यर्थः।। 12-6-7 प्रत्यनुनेतुं शययितुम्।। 12-6-8 कालपरीतो मृत्युग्रस्तः। उद्धरणे शत्रूणां निःशेषनाशेनोन्मूलने।। 12-6-12 कर्मणिषष्ठ्यौ।। 12-6-13 निर्वेदं राज्यादौ वैराग्यम्।।
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