महाभारतम्-12-शांतिपर्व-248
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शुकप्रति व्यासेन ब्रह्मचर्याश्रमधर्मनिरूपणम्।। 1।।
शुक उवाच। | 12-248-1x |
क्षरात्प्रभृति यः सर्गः सगुणानीन्द्रियाणि च। बुद्ध्यैश्वर्यातिसर्गोऽयं प्रधानश्चात्मनः श्रुतम्।। | 12-248-1a 12-248-1b |
भूय एव तु लोकेऽस्मिन्सद्वृतिं कालहेतुकीम्। यया सन्तः प्रवर्तन्ते तदिच्छाम्यनुवर्तितुम्।। | 12-248-2a 12-248-2b |
वेदे वचनमुक्तं तु कुरु कर्म त्यजेति च। कथमेतद्विजानीयां तच्च व्याख्यातुमर्हसि।। | 12-248-3a 12-248-3b |
लोकवृत्तान्ततत्वज्ञः पूतोऽहं गुरुशासनात्। कृत्वा बुद्धिं विमुक्तात्मा द्रक्ष्याम्यात्मानमव्ययं।। | 12-248-4a 12-248-4b |
व्यास उवाच। | 12-248-5x |
एषा वै विहिता वृत्तिः पुरस्ताद्ब्रह्मणा स्वयम्। एषा पूर्वतरैः सद्भिराचीर्णा परमर्षिभिः।। | 12-248-5a 12-248-5b |
ब्रह्मचर्येण वै लोकाञ्जयन्ति परमर्षयः। आत्मनश्च हृदि श्रेयो ह्यन्विच्छन्मनसाऽऽत्मनि।। | 12-248-6a 12-248-6b |
वने मूलफलाशी च तप्यन्सुविपुलं तपः। पुण्यायतनचारी च भूतानामविहिंसक।। | 12-248-7a 12-248-7b |
विधूमे सन्नमुसले वानप्रस्थप्रतिश्रये। काले प्राप्ते चरन्भैक्षं कल्पते ब्रह्मभूयसे।। | 12-248-8a 12-248-8b |
निस्तुतिर्निर्नमस्कारः परित्यज्य शुभाशुभे। अरण्ये विचरैकाकी येनकेनचिदाशितः।। | 12-248-9a 12-248-9b |
शुक उवाच। | 12-248-10x |
यदिदं वेदवचनं लोकवादे विरुध्यते। प्रमाणे चाप्रमाणे च विरुद्धे शास्त्रतः कुतः।। | 12-248-10a 12-248-10b |
इत्येतच्छ्रोतुमिच्छामि प्रमाणं तूभयं कथम्। कर्मणामविरोधेन कथमेतत्प्रवर्तते।। | 12-248-11a 12-248-11b |
भीष्म उवाच। | 12-248-12x |
इत्युक्तः प्रत्युवाचेदं गन्धवत्याः सुतः सुतम्। ऋषिस्तत्पूजयन्वाक्यं पुत्रस्यामिततेजसः।। | 12-248-12a 12-248-12b |
व्यास उवाच। | 12-248-13x |
ब्रह्मचारी गृहस्थश्च वानप्रस्थोऽथ भिक्षुकः। यथोक्तकारिणः सर्वे गच्छन्ति परमां गतिम्।। | 12-248-13a 12-248-13b |
एको वाऽप्याश्रमानेतान्योऽनुतिष्ठेद्यथाविधि। अकामद्वेषसंयुक्तः स परत्र महीयते।। | 12-248-14a 12-248-14b |
चतुष्पदी हि निःश्रेयणी ब्रह्मण्येषा प्रतिष्ठिता। एतामाश्रित्य निःश्रेणीं ब्रह्मलोके महीयते।। | 12-248-15a 12-248-15b |
आयुषस्तु चतुर्भागं ब्रह्मचार्यनसूयकः। गुरौ वा गुरुपुत्रे वा वसेद्धर्मार्थकोविदः।। | 12-248-16a 12-248-16b |
जघन्यशायी पूर्वं स्यादुत्थाय गुरुवेश्मनि। यच्च शिष्येण कर्तव्यं कार्यं दासेन वा पुनः।। | 12-248-17a 12-248-17b |
कृतमित्येव तत्सर्वं कृत्वा तिष्ठेत पार्श्वतः। किंकरः सर्वकारी स्यात्सर्वकर्मसु कोविदः।। | 12-248-18a 12-248-18b |
कर्मातिशेषेण गुरावध्येतव्यं बुभूषता। दक्षिणेनोपसादी स्यादाकूतो नुल्माश्रयेत्।। | 12-248-19a 12-248-19b |
शुचिर्दक्षो गुणोपेतो ब्रूयादिष्टमिवान्तरा। चक्षुष गुरुमव्यग्रो निरीक्षेत जितेन्द्रियः।। | 12-248-20a 12-248-20b |
नाभुक्तवति चाश्नीयादपीतवति नो पिबेत्। नातिष्ठति तथासीत नासुप्ते प्रस्वपेत च।। | 12-248-21a 12-248-21b |
उत्तानाभ्यां च पाणिभ्यां पादावस्य मृदु स्पृशेत्। दक्षिणं दक्षिणेनैव सव्यं सव्येन पीडयेत्।। | 12-248-22a 12-248-22b |
अभिवाद्य गुरुं ब्रूयादधीष्व भगवन्निति। इदं करिष्ये भगवन्निदं चापि कृतं मया।। | 12-248-23a 12-248-23b |
ब्रह्मंस्तदपि कर्ताऽस्मि यद्भावन्वक्ष्यते पुनः। इति सर्वमनुज्ञाप्य निवेद्य गुरवे पुनः। | 12-248-24a 12-248-24b |
कुर्यात्कृत्वा च तत्सर्वमाख्येयं गुरवे पुनः। यांस्तु गन्धान्रसान्वाऽपि ब्रह्मचारी न सेवते।। | 12-248-25a 12-248-25b |
सेवेत तान्समावृत्त इति धर्मेषु निश्चयः। ये केचिन्नियमेनोक्ता नियमा ब्रह्मचारिणः।। | 12-248-26a 12-248-26b |
तान्सर्वाननुगृह्णीयाद्भवेच्चानपगो गुरोः। स एवं गुरवे प्रीतिमुपहृत्य यथाबलम्।। | 12-248-27a 12-248-27b |
अग्राम्येणा मेष्वेवं शिष्यो वर्तते कर्मणा। वदव्रतोपवासेन चतुर्थे च-------। गुरवे दक्षिणां दत्त्वा समावतेद्यथातिधि----।। | 12-248-28a 12-248-28b 12-248-28c |
धर्मलब्धैर्युतो दारैरग्नीनुत्पाद्य यनतः। द्वितीयमायुषो भागं गृहमेधी भवेद्व्रती।। | 12-248-29a 12-248-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि अष्टचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 248।। |
12-248-2 सद्वृत्तिं सतामाचारम्। कालहैतुकीं युगानुसारिणीम्। अनुवर्तितुं पुनः श्रोतुम्। हैतुकीं क्रियाम् इति ट. थ. पाठः।। 12-248-3 कुरु कर्म त्यजेति श्रुत्योरेतदेतमविरोधं च कथं विजानीयां विषयविभागेन विविच्य कथं जानीयाम्।। 12-248-4 लोकवृत्तान्तो लोकरीतिः तस्य तत्त्वं धर्माधर्ममूलकत्वं तज्ज्ञः। पूतो धर्मानुष्ठानेन। बुद्धिं कृत्वा संस्कृत्य। विमुक्तात्मा त्यक्तदेहः।। 12-248-5 एषा कर्मभिर्बुद्धिं संस्कृत्य तयात्मदर्शनमित्येवंरूपा।। 12-248-12 गन्धवत्याः योजनगन्धायाः सुतो व्यासः।। 12-248-15 चतुष्पदी चातुराश्रम्यरूपा।। 12-248-19 कर्मातिशेषेण निःशेषं कर्म कृत्वेत्यर्थः।। 12-248-21 अभुक्तवति गुराविति शेषः।। 12-248-23 अधीष्वाध्यापय।। 12-248-26 समावृत्तः समापितब्रह्मचर्यकृत्यः। विस्तरेणोक्ता इति झ. पाठः।। 12-248-27 अनपगः समीपस्थः।। 12-248-28 आश्रमादाश्रमेष्वेवमिति झ. पाठः।।
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