महाभारतम्-12-शांतिपर्व-004
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दुर्योधनेन स्वयंवरमण्टपे कलिङ्गराजकन्याहरणम्।। 1।। कर्णेन तमनुद्रुतवतो राज्ञां पराजयः।। 2।।
नारद उवाच। | 12-4-1x |
कर्णस्तु समवाप्यैवमस्त्रं भार्गवनन्दनात्। दुर्योधनेन सहितो मुमुदे भरतर्षभ।। | 12-4-1a 12-4-1b |
ततः कदाचिदाजातः समाजग्मुः स्वयंवरे। कलिङ्गविषये राजन्राज्ञश्चित्राङ्गदस्य च।। | 12-4-2a 12-4-2b |
श्रीमद्राजपुरं नाम नगरं तत्र भारत। राजानः शतशस्तत्र कन्यार्थे समुपागमन्।। | 12-4-3a 12-4-3b |
श्रुत्वा दुर्योधनस्तत्र समेतान्सर्वपार्थिवान्। रथेन काञ्चनाङ्गेन कर्णेन सहितो ययौ।। | 12-4-4a 12-4-4b |
ततः स्वयंवरे तस्मिन्नानादेश्या महारथाः। समाजग्मुर्नृपतयः कन्यार्थे नृपसत्तम।। | 12-4-5a 12-4-5b |
शिशुपालो जरासन्धो भीष्मको वक्र एव च। कपोतरोमा नीलश्च रुक्मी च दृढविक्रमः।। | 12-4-6a 12-4-6b |
सृगालश्च महाराजः स्त्रीराज्याधिपतिश्च यः। विशोकः शतधन्वा च भोजो वीरश्च नामतः।। | 12-4-7a 12-4-7b |
एते चान्ये च बहवो दक्षिणां दिशमाश्रिताः। म्लेच्छाश्चार्याश्च राजानः प्राच्योदीच्यास्तथैव च।। | 12-4-8a 12-4-8b |
काञ्चनाङ्गदिनः सर्वे शुद्धजाम्बूनदप्रभाः। सर्वे भास्वरदेहाश्च व्याघ्रा इव बलोत्कटाः।। | 12-4-9a 12-4-9b |
ततः समुपविष्टेषु तेषु राजसु भारत। विवेश रङ्गं सा कन्या धात्रीवर्षवरान्विता।। | 12-4-10a 12-4-10b |
ततः संश्राव्यमाणेषु राज्ञां नामसु भारत। अत्यक्रामद्धार्तराष्ट्रं सा कन्या वरवर्णिनी।। | 12-4-11a 12-4-11b |
दुर्योधनस्तु कौरव्यो नामर्षयत लङ्घनम्। प्रत्यपेधच्च तां कन्यामसत्कृत्य नराधिपान्।। | 12-4-12a 12-4-12b |
स वीर्यमदमत्तत्वाद्भीष्मद्रोणावुपाश्रितः। रथमारोप्य तां कन्यामाजुहाव नराधिपान्।। | 12-4-13a 12-4-13b |
तमन्वगाद्रथी खङ्गी बद्धगोधाङ्गुलित्रवान्। कर्णः शस्त्रभृतां श्रेष्ठः पृष्ठतः पुरुषर्षभ।। | 12-4-14a 12-4-14b |
ततो विमर्दः सुमहान्राज्ञामासीद्युयुत्सताम्। सन्नह्यतां तनुत्राणि रथान्योजयतामपि। | 12-4-15a 12-4-15b |
तेऽभ्यधावन्त संक्रुद्धाः कर्णदुर्योधनावुभौ। शरवर्षाणि मुञ्चन्तो मेघाः पर्वतयोरिव।। | 12-4-16a 12-4-16b |
कर्णस्तेषामापततामेकैकेन शरेण ह। धनूंषि च शरव्रातान्पातयामास भूतले।। | 12-4-17a 12-4-17b |
ततो विधनुषः कांश्चित्कांश्चिदुद्यतकार्मुकान्। कांश्चिदुत्सृजतो बाणान्रथशक्तिगदास्तथा।। | 12-4-18a 12-4-18b |
लाघवाव्द्याकुलीकृत्य कर्णः प्रहरतां वरः। हतसूतांश्च भूयिष्ठान्स विजिग्ये नराधिपान्।। | 12-4-19a 12-4-19b |
ते स्वयं वाहयन्तोऽश्वान्याहि याहीति वादिनः। व्यपेयुस्ते रणं हित्वा राजानो भग्नमानसाः।। | 12-4-20a 12-4-20b |
दुर्योधनस्तु कर्णेन पाल्यमानोऽभ्ययात्तदा। हृष्टः कन्यामुपादाय नगरं नागसाह्वयम्।। | 12-4-21a 12-4-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि चतुर्थोऽध्यायः।। 4।। |
12-4-2 विषये देशे।। 12-4-6 भीष्मको बक एव चेति थ. पाठः।। 12-4-7 त्रैलोक्याधिपतिश्च य इति ट. ड. पाठः। त्रैराज्येति थ. पाठ।। 12-4-10 वर्षवरः षण्ढः।। 12-4-17 शिरांसि सशरांश्चापानिति ट. ड. थ. पाठः।। 12-4-20 व्यपेयुः व्यपगताः।।
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