महाभारतम्-12-शांतिपर्व-149
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युधिष्ठिरेण भीष्मंप्रति अबुद्धिपूर्वकब्रह्महत्याप्रायश्चित्तप्रश्नः।। 1।। भीष्मेण जनमेजयस्याबुद्धिपूर्वकब्रह्महत्याप्राप्तिकथनपूर्वकं तत्कथाकथनारम्भः।। 2।। शौनकेन स्वपादयोः प्रणमतो जनमेजयस्य गर्हणम्।। 3।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-149-1x |
अबुद्धिपूर्वं यत्पापं कुर्याद्भरतसत्तम। मुच्यते स कथं तस्मादेनसस्तद्ब्रवीहि मे।। | 12-149-1a 12-149-1b |
भीष्म उवाच। | 12-149-2x |
अत्र ते वर्तयिष्यामि पुराणमृषिसंस्तुतम्। इन्द्रोतः शौनको विप्रो यदाह जनमेजयम्।। | 12-149-2a 12-149-2b |
आसीद्राजा महावीर्यः पारिक्षिज्जनमेजयः। अबुद्धिजा ब्रह्महत्या तमागच्छन्महीपतिम्।। | 12-149-3a 12-149-3b |
ब्राह्मणाः सर्व एवैनं तत्यजुः सपुरोहिताः। स जगाम वनं राजा दह्यमानो दिवानिशम्।। | 12-149-4a 12-149-4b |
प्रजाभिः स परित्यक्तश्चकार कुशलं महत्। अतिवेलं तपस्तेपे दह्यमानः स मन्युना।। | 12-149-5a 12-149-5b |
ब्रह्महत्यापनोदार्थमपृच्छद्ब्राह्मणान्बहून्। पर्यटन्पृथिवीं कृत्स्नां देशेदेशे नराधिपः।। | 12-149-6a 12-149-6b |
तत्रेतिहासं वक्ष्यामि धर्मस्यास्योपवृंहणम्। दह्यमानः पापकृत्या जगाम जनमेजयः।। | 12-149-7a 12-149-7b |
चरिष्यमाण इन्द्रोतं शौनकं संशितव्रतम्। समासाद्योपजग्राह पादयोः परिपीडयन्।। | 12-149-8a 12-149-8b |
ततो भीतो महाप्राज्ञो जगर्हे सुभृशं तदा। कर्ता पापस्य महतो भ्रूणहा किमिहागतः।। | 12-149-9a 12-149-9b |
किं तवास्मासु कर्तव्यं मा मां द्राक्षीः कथंचन। गच्छगच्छ न ते स्थानं प्रीणात्यस्मानिति ब्रुवन्।। | 12-149-10a 12-149-10b |
रुधिरस्येव ते गन्धः शवस्येव च दर्शनम्। अशिवः शिवसंकाशो मृतो जीवन्निवाटसि।। | 12-149-11a 12-149-11b |
अन्तर्भृत्युरशुद्धात्मा पापमेवानुचिन्तयन्। प्रबुध्यसे प्रस्वपिपि वर्तसे परमे सुखे।। | 12-149-12a 12-149-12b |
मोघं ते जीवितं राजन्परिक्लिष्टं च जीवसि। पापायैव हि सृष्टोऽसि कर्मणेह यवीयसे।। | 12-149-13a 12-149-13b |
बहुकल्याणमिच्छन्त ईहन्ते पितरः सुतान्। तपसा दैवतेज्याभिर्वन्दनेन तितिक्षया।। | 12-149-14a 12-149-14b |
पितृवंशमिमं पश्य त्वत्कृते निधनं गतम्। निरर्थाः सर्व एवैषामाशाबन्धास्त्वदाश्रयाः।। | 12-149-15a 12-149-15b |
यान्पूजयन्तो विन्दन्ति स्वर्गमायुर्यशः प्रजाः। तेषु ते संततं द्वेषो ब्राह्मणेषु निरर्थकः।। | 12-149-16a 12-149-16b |
इमं लोकं विमुच्य त्वमवाङ्भूर्धा पतिष्यसि। अशाश्वतीः शाश्वतीश्च समाः पापेन कर्मणा।। | 12-149-17a 12-149-17b |
स्वाद्यमानो जन्तुशतैस्तीक्ष्णदंष्ट्रैरयोमुखैः। ततश्च पुनरावृत्तः पापयोनिं गमिष्यसि।। | 12-149-18a 12-149-18b |
यदिदं मन्यसे राजन्नायमस्ति कुतः परः। प्रतिस्मारयितारस्त्वां यमदूता यमक्षये।। | 12-149-19a 12-149-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि आपद्धर्मपर्वणि एकोनपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः।। 149।। |
12-149-3 पारिक्षित् पारिक्षितः।। 12-149-7 पापकृत्या पापक्रियया।। 12-149-10 मा मां स्प्राक्षीः कथंचनेति झ. पाठः।। 12-149-12 ब्रह्ममृत्युरशुद्धात्मेति झ. पाठः।। 12-149-13 यवीयसे हीनाय।। 12-149-15 त्वत्कृते नरकं गतमिति झ. पाठः।। 12-149-17 अशाश्वतीः सर्वस्यापि कर्मणोऽन्तवत्त्वात्। शाश्वतीः बहुत्वात्।।
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