महाभारतम्-12-शांतिपर्व-333
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शुकेन व्यासाज्ञया तत्वजिज्ञासया मिथिलास्थं जनकंप्रत्यग्गभनम्।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-333-1x |
स मोक्षमनुचिन्त्यैव शुकः पितरमभ्यगात्। प्राहाभिवाद्य च गुरुं श्रेयोर्थी विनयान्वितः।। | 12-333-1a 12-333-1b |
मोक्षधर्मेषु कुशलो भगवान्प्रब्रवीतु मे। यथा मे मनसः शान्तिः परमा संभवेत्प्रभो।। | 12-333-2a 12-333-2b |
श्रुत्वा पुत्रस्य तु वचः परमर्षिरुवाच तम्। अधीहि पुत्र मोक्षं वै धर्मांश्च विविधानपि।। | 12-333-3a 12-333-3b |
पितुर्नियोगाज्जग्राह शुको धर्मभृतां वरः। योगशास्त्रं च निखिलं कापिलं चैव भारत।। | 12-333-4a 12-333-4b |
स तं ब्राह्नया श्रियः युक्तं ब्रह्मतुल्यपराक्रमम्। मेने पुत्रं यदा व्यासो मोक्षधर्मविशारदम्।। | 12-333-5a 12-333-5b |
उवाच गच्छेति तदा जनकं मिथिलेश्वरम्। स ते वक्ष्यति मोक्षार्थं निखिलं मिथिलेश्वरः।। | 12-333-6a 12-333-6b |
पितुर्नियोगादगमन्मैथिलं जनकं नृपम्। प्रष्टुं धर्मस्य निष्ठां वै मोक्षस्य च परायणम्।। | 12-333-7a 12-333-7b |
उक्तश्च मानुषेण त्वं पथा गच्छेत्यविस्मितः। न प्रभावेण गन्तव्यमन्तरिक्षचरेण वै।। | 12-333-8a 12-333-8b |
आर्जवेनैव गन्तव्यं न सुखान्वेषिणा तथा। नान्वेष्टव्या विशेषास्तु विशेषा हि प्रसङ्गिनः।। | 12-333-9a 12-333-9b |
अहंकारो न कर्तव्यो याज्ये तस्मिन्नराधिपे। स्यातव्यं च वशे तस्य स ते छेत्स्यति संशयम्।। | 12-333-10a 12-333-10b |
स धर्मकुशलो राजा मोक्षशास्त्रविशारदः। याज्यो मम स यद्ब्रूयात्तत्कार्यमविशङ्कया।। | 12-333-11a 12-333-11b |
एवमुक्तः स धर्मात्मा जगाम मिथिलां मुनिः। पद्भ्यां शक्तोन्तरिक्षेण क्रान्तुं पृथ्वीं ससागराम्।। | 12-333-12a 12-333-12b |
स गिरींश्चाप्यतिक्रम्य नदीतीर्थसरांसि च। बहुव्यालमृगाकीर्णा ह्यटवीश्च वनानि च।। | 12-333-13a 12-333-13b |
मेहोर्हरेश्च द्वे वर्षे वर्षं हैमवतं ततः। क्रमेणैवं व्यतिक्रम्य भारतं वर्षमासदत्।। | 12-333-14a 12-333-14b |
स देशान्विविधान्पश्यंश्चीनहूणनिषेवितान्। आर्यावर्तमिमं देशमाजगाम महामुनिः।। | 12-333-15a 12-333-15b |
पितुर्वचनमाज्ञाय तमेवार्थं विचिन्तयन्। अध्वानं सोऽतिचक्राम खचरः खे पतविव।। | 12-333-16a 12-333-16b |
पत्तनानि च रम्याणि स्फीतानि नगराणि च। रत्नानि च विचित्राणि पश्यन्नपि न पश्यति।। | 12-333-17a 12-333-17b |
उद्यावानि च रम्याणि तथैवायतनानि च। पुण्यानि चैव तीर्थानि सोत्यक्रामदथाध्वगः।। | 12-333-18a 12-333-18b |
सोचिरेणैव कालेन विदेहानाससाद ह। रक्षितान्धर्मराजेन जनकेन महात्मना।। | 12-333-19a 12-333-19b |
तत्र ग्रामान्बहून्पश्यन्बह्वन्नरसभोजनान्। पल्लीघोषान्समृद्धांश्च बहुगोकुलसंकुलान्।। | 12-333-20a 12-333-20b |
स्फीतांश्च शालियवसर्हंससारससेवितान्। पद्मिनीभिश्च शतशः श्रीमतीभिरलकृतान्।। | 12-333-21a 12-333-21b |
स विदेहानतिक्रम्य समृद्धजनसेवितान्। मिथिलोपवनं रम्यमाससाद समृद्धिमत्।। | 12-333-22a 12-333-22b |
हस्त्यश्वरथसंकीर्णं नरनारीसमाकुलम्। पश्यन्नपश्यन्निव तत्समतिक्रामदच्युतः।। | 12-333-23a 12-333-23b |
मनसा तं बहन्भारं तमेवार्थं विचिन्तयन्। आत्मारामः प्रसन्नात्मा मिथिलामाससाद ह।। | 12-333-24a 12-333-24b |
तस्या द्वारं समासाद्य द्वारपालैर्निवारितः। स्थितो ध्यानपरो मुक्तो विदितः प्रविवेश ह।। | 12-333-25a 12-333-25b |
स राजमार्गमासाद्य समृद्धजनकसंकुलम्। पार्थिवक्षयमासाद्य निःशङ्कः प्रविवेश ह।। | 12-333-26a 12-333-26b |
तत्रापि द्वारपलास्तमुग्रवाचा न्यषेधयन्। तथैव च शुक्रस्तत्र निर्मन्युः समतिष्ठत।। | 12-333-27a 12-333-27b |
न चातपाध्वसंतप्तः क्षुत्पिपासाश्रमान्वितः। प्रताम्यति ग्लायति वा नापैति च तथाऽऽतपात्।। | 12-333-28a 12-333-28b |
तेषां तु द्वारपालानामेकः शोकसमन्वितः। मध्यंगतमिवादित्यं दृष्ट्वा शुकमवस्थितम्।। | 12-333-29a 12-333-29b |
पूजयित्वा यथान्यायमभिवाद्य कृताञ्जलिः। प्रावेशयत्ततः कक्ष्यां प्रथमां राजवेश्मनः।। | 12-333-30a 12-333-30b |
तत्रासीनः शुकस्तात मोक्षमेवान्वचिन्तयत्। छायायामातपे चैव समदर्शी समद्युतिः।। | 12-333-31a 12-333-31b |
तं मुहूर्तादिवागम्य राज्ञो मन्त्री कृताञ्जलिः। प्रावेशयत्ततः कक्ष्यां द्वितीयां राजवेश्मनः।। | 12-333-32a 12-333-32b |
तत्रान्तः पुरसंबद्धं महच्चैत्ररथोपमम्। सुविभक्तजलाक्रीडं रम्यं पुष्पितपादपम्।। | 12-333-33a 12-333-33b |
तं दर्शयित्वा स शुकं मन्त्री जनकमुत्तमम्। अर्हमासनमादिश्य निश्चक्रामः ततः पुनः।। | 12-333-34a 12-333-34b |
तं चारुवेषाः सुश्रोण्यस्तरुण्यः प्रियदर्शनाः। सूक्ष्मरक्ताम्बरधरास्तप्तकाञ्चनभूषणाः।। | 12-333-35a 12-333-35b |
संलापालापकुशला नृत्तगीतविशारदाः। स्मितपूर्वाभिभाषिण्यो रूपेणाप्सरसां समाः।। | 12-333-36a 12-333-36b |
भावोपचारकुशला भावज्ञाः सत्वकोविदाः। परं पञ्चाशतं नार्यो वारमुख्याः समाद्रवन्।। | 12-333-37a 12-333-37b |
पाद्यादीनि प्रतिग्राह्य पूजया परयाऽर्चयन्। कालोपपन्नेन तदा स्वाद्वन्नेनाभ्यतर्पयन्।। | 12-333-38a 12-333-38b |
तस्य भुक्तवतस्तात तदन्तः पुरकाननम्। सुरम्यं दर्शयामासुरेकैकश्येन भारत।। | 12-333-39a 12-333-39b |
क्रीडन्त्यश्च हसन्त्यश्च गायन्त्यश्चापि ताः शुभम्। उदारसत्वं सत्वज्ञाः स्त्रियः पर्यचरंस्तथा।। | 12-333-40a 12-333-40b |
आरणेयस्तु शुद्धात्मा निःसंदेहस्त्रिकर्मकृत्। वश्येन्द्रियो जितक्रोधो न हृष्यति न कुप्यति।। | 12-333-41a 12-333-41b |
तस्मै शय्यासनं दिव्यं वरार्हः रत्नभूषितम्। स्पर्ध्यास्तरणसंकीर्णं ददुस्ताः परमस्त्रियः।। | 12-333-42a 12-333-42b |
पादशौचं तु कृत्वैव शुक्रः संध्यामुपास्य च। निषसादासने पुण्ये तमेवार्थं विचिन्तयन्।। | 12-333-43a 12-333-43b |
पूर्वरात्रे तु तत्रासौ हुत्वा ध्यानपरायणः। मध्यरात्रे यथान्यायं निद्रामाहारयत्प्रभुः। | 12-333-44a 12-333-44b |
ततो मुहूर्तादुत्थाय कृत्वा शौचमनन्तरम्। स्त्रीभिः परिवृतो धीमान्ध्यानमेवान्वपद्यत।। | 12-333-45a 12-333-45b |
अनेन विधिना कर्ष्णिस्तदहः शेषमच्युतः। तां च रात्रिं नृपकुले वर्तयामास भारत।। | 12-333-46a 12-333-46b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिप्रवणि मोक्षधर्मपर्वणि त्रयस्त्रिंशदधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 333।। |
12-333-1 मोक्षं मोक्षशास्त्रम्। अनुचिन्त्य उपादेयत्वेन ज्ञात्वा।। 12-333-3 धर्मांश्च त्रिविधानपीति ध. पाठः।। 12-333-4 शुको वेदविदांवर इति ट. ड. पाठः।। 12-333-5 मोक्षविद्याविशारदमिति ट. पाठः।। 12-333-6 मोक्षार्थं मोक्षशास्त्रार्थं। मोक्षार्थं निखिलेन विशेषत इति ट. ड. थ. पाठः।। 12-333-14 मेरोर्वर्षमिलावृतम्। हरेवंर्षं हरिवर्षाख्यम्। हैमवन्तं वर्षं किंपुरुषाख्यम्।। 12-333-24 तं भारं जिज्ञासाख्यम्। अर्थं मोक्षम्।। 12-333-28 नोपैति च तथा रुषमिति ड. ध. पाठः।। 12-333-37 कालोपचारकुशला इति ड. पाठः।। 12-333-41 आरणेयः अरणिजः शुकः।। 12-333-42 हेवार्हं रत्नभूषितमिति झ. पाठः।। 12-333-44 भूत्वा ध्यानपरायण इति झ. पाठः। अर्धरात्रे यथान्यायमिति ध. पाठः।। 12-333-46 कार्ष्णिः शुकः। अच्युतो धैर्यादिति शेषः।।
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