महाभारतम्-12-शांतिपर्व-078
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति ब्राह्मणादीनामापद्धर्मकथनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-78-1x |
व्याख्याता राजधर्मेण वृत्तिरापत्सु भारत। कथंचिद्वैश्यधर्मेण जीवेद्वा ब्राह्मणो न वा।। | 12-78-1a 12-78-1b |
भीष्म उवाच। | 12-78-2x |
अशक्तः क्षत्रधर्मेण वैश्यधर्मेण वर्तयेत्। कृषिं गोरक्ष्यमास्थाय व्यसने वृत्तिसंक्षये।। | 12-78-2a 12-78-2b |
युधिष्ठिर उवाच। | 12-78-3x |
कानि पण्यानि विक्रीणन्स्वर्गलोकान्न हीयते। ब्राह्मणो वैश्यधर्मेण वर्तयन्भरतर्षभ।। | 12-78-3a 12-78-3b |
भीष्म उवाच। | 12-78-4x |
सुरालवणमित्येतत्तिलान्केसरिणः पशून्। वृषभान्मधु मांसं च कृतान्नं च युधिष्ठिर।। | 12-78-4a 12-78-4b |
सर्वास्ववस्थास्वेतानि ब्राह्मणः परिवर्जयेत्। एतेषां विक्रयात्तात ब्राह्मणो नरके पतेत्।। | 12-78-5a 12-78-5b |
अजोऽग्निर्वरुणो मेषः सूर्योऽश्वः पृथिवी विराट्। धेनुर्यज्ञश्च सोमश्च न विक्रेयाः कथंचन।। | 12-78-6a 12-78-6b |
पक्वेनामस्य निमयं न प्रशंसन्ति साधवः। निमयेत्पक्वमामेन भोजनार्थाय भारत।। | 12-78-7a 12-78-7b |
वयं सिद्धमशिष्यामो भवान्साधयतामिदम्। एवं संवीक्ष्य समयं नाधर्मोऽस्ति कथंचन।। | 12-78-8a 12-78-8b |
अत्र ते वर्तयिष्यामि यथा कर्मः सनातनः। व्यवहारप्रवृत्तानां तन्निबोध युधिष्ठिर।। | 12-78-9a 12-78-9b |
भवतेऽहं ददानीदं भवानेतत्प्रयच्छतु। उचितो वर्तते धर्मो न बलात्संप्रवर्तते।। | 12-78-10a 12-78-10b |
इत्येवं संप्रवर्तन्ते व्यवहाराः पुरातनः। ऋषीणामितरेषां च साधु चैतदसंशयम्।। | 12-78-11a 12-78-11b |
युधिष्ठिर उवाच। | 12-78-12x |
अथ तात यदा सर्वाः शस्त्रमाददते प्रजाः। व्युत्क्रमन्ते स्वधर्मेभ्यः क्षत्रस्य क्षीयते बलम्।। | 12-78-12a 12-78-12b |
तदा त्राता तु को नु स्यात्को धर्मः किं परायणम्। एतं मे संशयं ब्रूहि विस्तरेण पितामह।। | 12-78-13a 12-78-13b |
भीष्म उवाच। | 12-78-14x |
दानेन तपसा यज्ञैदद्रोहेण दमेन च। ब्राह्मणप्रमुखा वर्णाः क्षेममिच्छेयुरात्मनः।। | 12-78-14a 12-78-14b |
तेषां ये वेदबलिनस्त उत्थाय समन्ततः। राज्ञो बलं वर्धयेयुर्महेन्द्रस्येव देवताः।। | 12-78-15a 12-78-15b |
राज्ञो हि क्षीयमाणस्य ब्रह्मैवाहुः परायणम्। तस्माद्ब्राह्मबलेनैव समुत्थेयं विजानता।। | 12-78-16a 12-78-16b |
यदा तु विजयी राजा क्षेमं राष्ट्रेऽभिसन्दधेत्। तदा वर्णा यथाधर्मं निविशेयुः स्वकर्मसु।। | 12-78-17a 12-78-17b |
उन्मर्यादे प्रवृत्ते तु दस्युभिः संकरे कृते। सर्वे वर्णा न दुष्येयुः शस्त्रवन्तो युधिष्ठिर।। | 12-78-18a 12-78-18b |
युधिष्ठिर उवाच। | 12-78-19x |
अथ चेत्सर्वतः क्षत्रं प्रदुष्येद्ब्राह्मणं प्रति। कस्तत्र ब्राह्मणांस्त्राता को धर्मः किं परायणम्।। | 12-78-19a 12-78-19b |
भीष्म उवाच। | 12-78-20x |
तपसा ब्रह्मचर्येण शस्त्रेण च बलेन च। अमायया मायया च नियन्तव्यं तदा भवेत्।। | 12-78-20a 12-78-20b |
क्षत्रियस्यातिवृत्तस्य ब्राह्मणेषु विशेषतः। ब्रह्मैव संनियन्तृ स्यात्क्षत्रं हि ब्रह्मसंभवम्।। | 12-78-21a 12-78-21b |
अभ्द्योऽग्निर्ब्रह्मतः क्षत्रमश्मनो लोहमुत्थितम्। तेषां सर्वत्रगं तेजः स्वस्वयोनिषु शाम्यति।। | 12-78-22a 12-78-22b |
यदा छिनत्त्ययोऽश्मानमग्निश्चापोऽभिहन्ति च। क्षत्रं च ब्राह्मणं द्वेष्टि तदा शाम्यन्ति ते त्रयः।। | 12-78-23a 12-78-23b |
तस्माद्ब्रह्मणि शाम्यन्ति क्षत्रियाणां युधिष्ठिर। समुदीर्णान्यजेयानि तेजांसि च बलानि च।। | 12-78-24a 12-78-24b |
युधिष्ठिर उवाच। | 12-78-25x |
ब्रह्मवीर्ये मृदूभूते क्षत्रवीर्ये च दुर्बले। दुष्टेषु सर्ववर्णेषु ब्राह्मणान्प्रति भारत।। | 12-78-25a 12-78-25b |
ये तत्र युद्धं कुर्वन्ति त्यक्त्वा जीवितमात्मनः। `ब्राह्मणान्परिरक्षन्ति तेषां लोका भवन्ति के।। | 12-78-26a 12-78-26b |
भीष्म उवाच। | 12-78-27x |
ब्राह्मणान्परिरक्षन्तो धर्ममात्मानमेव च। मनस्विनो मन्युमन्तः पुण्याँल्लोकान्व्रजन्त्यमी। ब्राह्मणार्थं हि सर्वेषां शस्त्रग्रहणभिष्यते।। | 12-78-27a 12-78-27b 12-78-27c |
अतिस्विष्टमधीतानां लोकानतितपस्विनाम्। अनाशकाग्न्याहितानां शूरा यान्ति परां गतिम्।। | 12-78-28a 12-78-28b |
ब्राह्मणस्त्रिषु वर्णेषु शस्त्रं गृह्णन्न दुष्यति। एष एवात्मनस्त्यागो नान्यं धर्मं विदुर्जना।। | 12-78-29a 12-78-29b |
तेभ्यो नमश्च भद्रं च ये शरीराणि जुह्वति। ब्रह्मद्विपो जिघांसन्तस्तेषां नोऽस्तु सलोकता।। | 12-78-30a 12-78-30b |
ब्रह्मलोकजितः स्वर्ग्यान्वीरांस्तान्मनुरव्रवीत्। यथाऽश्वमेधावभृथे स्नाताः पूता भवन्त्युत। दुष्कृतः सुकृतश्चैव तथा शस्त्रहता रणे।। | 12-78-31a 12-78-31b 12-78-31c |
भवत्यधर्मो धर्मो हि धर्मोऽधर्मो भवत्युत। कारणाद्देशकालस्य देशः कालः स तादृशः।। | 12-78-32a 12-78-32b |
मैत्राः क्रूराणि कुर्वन्तो जयन्ति स्वर्गमुत्तमम्। धर्म्याः पापानि कुर्वाणा गच्छन्ति परमां गतिम्।। | 12-78-33a 12-78-33b |
ब्राह्मणस्त्रिषु कालेषु शस्त्रं गृह्णन्न दुष्यति। आत्मत्राणे दस्युदोषे सर्वस्वहरणे तथा।। | 12-78-34a 12-78-34b |
युधिष्ठिर उवाच। | 12-78-35x |
अभ्युत्थिते दस्युबले क्षत्रार्थे वर्णसङ्करे। संप्रमूढेषु वर्णेषु यदन्योऽभिभवेद्वली।। | 12-78-35a 12-78-35b |
ब्राह्मणो यदि वा वैश्यः शूद्रो वा राजसत्तम। दस्युभ्यो यः प्रजा रक्षेद्दण्डं धर्मेण धारयेत्।। | 12-78-36a 12-78-36b |
भीष्म उवाच। | 12-78-37x |
कार्यं कुर्यान्न वा कुर्यात्स वार्यो वा भवेन्न वा। न स्म शस्त्रं गृहीतव्यमन्यत्र क्षत्रबन्धुतः।। | 12-78-37a 12-78-37b |
अपारे यो भवेत्पारमप्लवेः यः प्लवो भवेत्। शूद्रो वा यदि वाऽप्यन्यः सर्वथा मानमर्हति।। | 12-78-38a 12-78-38b |
यमाश्रित्य नरा राजन्वर्तयेयुर्यथासुखम्। अनाथास्तप्यमानाश्च दस्युभिः परिपीडिताः।। | 12-78-39a 12-78-39b |
तमेव पूजयेयुस्ते प्रीत्या स्वमिव बान्धवम्। यहद्ध्यभीष्टं कौरव्य कर्ता सन्मानमर्हति।। | 12-78-40a 12-78-40b |
किमनडुहा यो न वहेत्किं धेन्वा वाऽप्यदुग्धया। बन्ध्यया भार्यया कोऽर्थः कोऽर्थो राज्ञाऽप्यरक्षता।। | 12-78-41a 12-78-41b |
यथा दारुमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृगः। यथा ह्यदक्षः पुरुषः पथि क्षेत्रं यथोपरम्।। | 12-78-42a 12-78-42b |
यथा विप्रोऽनधीयानो राजा यश्च न रक्षिता। मेघो न वर्षते यश्च सर्व एव निरर्थकाः।। | 12-78-43a 12-78-43b |
नित्यं यस्तु सतो रक्षेदसतश्च निवर्तयेत्। स एव राजा कर्तव्यस्तेन सर्वमिदं धृतम्।। | 12-78-44a 12-78-44b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि अष्टसप्ततितमोऽध्यायः।। 78।। |
12-78-4 केसरिणः अश्वान्। पशून्गोजाविमहिषादीन्। कृतान्नं पक्वमन्नम्।। 12-78-6 विराट् अन्नम्।। 12-78-7 पक्वेनामस्य विनिमये पक्वदो दुष्यति नत्वामद इत्यर्थः।। 12-78-8 इदमप्यपवदति वयमिति। निमयम् इति झ. पाठः।। 12-78-19 कस्तस्य ब्राह्मणस्त्रातेति झ. पाठः।। 12-78-29 एवमेवात्मनस्त्यागान्नान्यं इति झ. पाठः।। 12-78-30 नोऽस्माकम्।। 12-78-33 मैत्रा उत्तङ्कपराशरादयः। क्रूराणि सर्पराक्षससत्रादीनि। धर्म्या धर्मादनपेताः क्षत्रियाः। पापानि परराष्ट्रावमर्दादीनि। अधर्मस्य धर्मत्वेन उदाहरणद्वयमुक्तम्। इदमेवाऽर्हिसाख्यधर्माश्रयेऽधर्मरूपमपि भवतीति ज्ञेयम्।। 12-78-41 किं तैर्येऽनडुहो नोह्याः इति झ. पाठः।। 12-78-42 यदाह्यनर्थः षण्ढो वा पार्थ क्षेत्रं इति झ. पाठः।।
शांतिपर्व-077 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-079 |