महाभारतम्-12-शांतिपर्व-266
दिखावट
← शांतिपर्व-265 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-266 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-267 → |
युधिष्ठिरेण भीष्मंप्रति धर्मप्रामाण्याक्षेपः।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-266-1x |
सूक्ष्मं साधु समादिष्टं भवता धर्मलक्षणम्। प्रतिभा त्यस्ति मे काचित्तां ब्रूयामनुमानतः।। | 12-266-1a 12-266-1b |
भूयांसो हृदये ये मे प्रश्नास्ते व्याहृतास्त्वया। इदं त्वन्यत्प्रवक्ष्यामि न राजन्निग्रहादिव।। | 12-266-2a 12-266-2b |
इमानि हि प्राणयन्ति सृदन्त्युत्तारयन्ति च। न धर्मः परिपाठेन शक्यो भारत वेदितुम्।। | 12-266-3a 12-266-3b |
अन्यो धर्मः समस्थस्य विषमस्थस्य चापरः। आपदस्तु कथं शक्याः परिपाठेन वेदितुम्।। | 12-266-4a 12-266-4b |
सदाचारो मचो धर्मः संतस्त्वाचारलक्षणाः। साध्यासाध्यं कथं शक्यं सदाचारो ह्यलक्षणः।। | 12-266-5a 12-266-5b |
दृश्यते धर्मरूपेण ह्यधर्मं प्राकृतश्चरन्। धर्मं चाधर्मरूपेण कश्चिदप्राकृतश्चरन्।। | 12-266-6a 12-266-6b |
पुनरस्य प्रमाणं हि निर्दिष्टं शास्त्रकोविदैः। वेदवादाश्चानुयुगं ह्रसन्तीतीह नः श्रुतम्।। | 12-266-7a 12-266-7b |
अन्ये कृतयुगे धर्मास्त्रेतायां द्वापरे परे। अन्ये कलियुगे धर्मा यथाशक्ति कृता इव।। | 12-266-8a 12-266-8b |
आम्नायवचनं सत्यमित्ययं लोकसंग्रहः। आम्नायेभ्यः पुनर्वेदाः प्रसृताः सर्वतोमुखाः।। | 12-266-9a 12-266-9b |
ते चेत्सर्वप्रमाणं वै प्रमाणं ह्यत्र विद्यते। प्रमाणं च प्रमाणेन विरुद्ध्येच्छास्त्रता कुतः।। | 12-266-10a 12-266-10b |
धर्मस्य क्रियमाणस्य बलवद्भिर्दुरात्मभिः। यदा विक्रियते संस्था ततः साऽपि प्रणश्यति।। | 12-266-11a 12-266-11b |
विद्मश्चैनं न वा विद्मः शक्यं वा वेदितुं न वा। अणीयान्क्षुरधाराया गरीयानपि पर्वतात्।। | 12-266-12a 12-266-12b |
गन्धर्वनगराकारः प्रथमं संप्रदृश्यते। अन्वीक्ष्यमाणः कविभिः पुनर्गच्छत्यदर्शनम्।। | 12-266-13a 12-266-13b |
निपानानीव गोभ्याशे क्षेत्रे कुल्ये च भारत। स्मृतो हि शाश्वतो धर्मो विप्रहीणो न दृश्यते।। | 12-266-14a 12-266-14b |
कामादन्ये भयादन्ये कारणैरपरैस्तथा। असन्तोऽपि वृथाचारं भजन्ते बहवोऽपरे।। | 12-266-15a 12-266-15b |
धर्मो भवति स क्षिप्रं विलोमस्तेष्वसाधुषु। अथैतानाहुरुन्मत्तानपि चावहसन्त्युत।। | 12-266-16a 12-266-16b |
महाजना ह्युपावृत्ता राजधर्मं समाश्रिताः। न हि सर्वहितः कश्चिदाचारः संप्रवर्तते।। | 12-266-17a 12-266-17b |
तेनैवान्यः प्रभवति सोऽपरं बाधते पुनः। दृश्यते चैव स पुनस्तुल्यरूपो यदृच्छया।। | 12-266-18a 12-266-18b |
येनैवान्यः प्रभवति सोऽपरानपि बाधते। आचाराणामनैकाग्र्यं सर्वेषामेव लक्षयेत्।। | 12-266-19a 12-266-19b |
चिराभिपन्नः कविभिः पूर्वं धर्म उदाहृतः। तेनाचारेण पूर्वेण संस्था भवति शाश्वती।। | 12-266-20a 12-266-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि षट्षष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 266।। |
12-266-2 निग्रहात् कुतर्काग्रहेण।। 12-266-9 प्रसूताः सर्वतोमुखा इति ध. पाठः।। 12-266-16 अपि वाचं हसन्त्युतेति ध. पाठः।। 12-266-20 संस्था मर्यादा।।
शांतिपर्व-265 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-267 |