महाभारतम्-12-शांतिपर्व-276
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति गोकपिलसंवादानुवादः।। 1।।
कपिल उवाच। | 12-276-1x |
वेदाः प्रमाणं लोकानां न वेदाः पृष्ठतः कृताः। द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये शब्दब्रह्म परं च यत्।। | 12-276-1a 12-276-1b |
शब्दब्रह्मणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति। शरीरमेतत्कुरुते यद्वेदे कुरुते तनुम्।। | 12-276-2a 12-276-2b |
कृतशुद्धशरीरो हि पात्रं भवति ब्राह्मणः। आनन्त्यमनुचिन्त्येदं कर्मणां तद्ब्रबीमि ते।। | 12-276-3a 12-276-3b |
निरागममनैतिह्यमत्यक्षं लोकसाक्षिकम्। धर्म इत्येव ये यज्ञान्वितन्वन्ति निराशिषः।। | 12-276-4a 12-276-4b |
उत्पन्नत्यागिनो लुब्धाः कृपासूयाविवर्जिताः। धनिनामेष वै पन्थास्तीर्थेषु प्रतिपादनम्।। | 12-276-5a 12-276-5b |
अनाश्रिताः पापकृत्याः कदाचित्कर्मयोगिनः। मनः संकल्पसंसिद्धा विशुद्धज्ञाननिश्चयाः।। | 12-276-6a 12-276-6b |
अक्रुध्यन्तोऽनसूयन्तो निरहंकारमत्सराः। ज्ञाननिष्ठास्त्रिशुक्लाश्च सर्वभूतहिते रताः।। | 12-276-7a 12-276-7b |
आसन्गृहस्था भूयिष्ठा अपक्रान्ताः स्वकर्मसु। राजानश्च तथा युक्ता ब्राह्मणाश्च यथाविधि।। | 12-276-8a 12-276-8b |
समा ह्यार्जवसंपन्नाः संतुष्टा ज्ञाननिश्चयाः। प्रत्यक्षधर्माः शुचयः श्रद्दधानाः परावरे।। | 12-276-9a 12-276-9b |
पुरस्ताद्भावितात्मानो यथावच्चरितव्रताः। चरन्ति धर्मं कृच्छ्रेऽपि दुर्गे चैवापि संहताः।। | 12-276-10a 12-276-10b |
संहत्य धर्मं चरतां पुराऽऽसीत्सुखमेव तत्। तेषां नासीद्विधातव्यं प्रायश्चित्तं कथंचन।। | 12-276-11a 12-276-11b |
सत्यं हि धर्ममास्थाय दुराधर्षतमा मताः। न मात्रामनुरुध्यन्ते न धर्मच्छलमन्ततः।। | 12-276-12a 12-276-12b |
य एव प्रथमः कल्पस्तमेवात्र चरन्महान्।। | 12-276-13a |
अस्यां स्थितौ स्थितानां हि प्रायश्चित्तं न विद्यते। यदा तु दुर्बलात्मानः प्रायश्चित्तं तदा भवेत्।। | 12-276-14a 12-276-14b |
एत एवंविधाः प्राहुः पुराणा यज्ञवाहनाः। त्रैविद्यवृद्धाः शुचयो वृत्तवन्तो यशस्विनः।। | 12-276-15a 12-276-15b |
यजन्तोऽहरहर्यज्ञैर्निराशीर्बन्धना बुधाः। तेषा यज्ञाश्च वेदाश्च कर्माणि च यथागमम्।। | 12-276-16a 12-276-16b |
आगमाश्च यथाकामं संकल्पाश्च यथाव्रतम्। अपेतकामक्रोधानां दुश्चराचारकर्मणाम्।। | 12-276-17a 12-276-17b |
स्वकर्मभिः शंसितानां प्रकृत्या शंसितात्मनाम्। ऋजूनां शमनित्यानां स्वेषु कर्मसु वर्तताम्।। | 12-276-18a 12-276-18b |
सर्वमानन्त्यमेवासीदिति नः शाश्वताश्चुतिः। तेषामदीनसत्वानां दुश्चराचारकर्मणाम्।। | 12-276-19a 12-276-19b |
स्वकर्मभिः संसितानां तपो घोरत्वमागतम्। सं सदाचारमाश्चर्यं पुराणं शाश्वतं ध्रुवम्।। | 12-276-20a 12-276-20b |
अशक्नुवद्भिश्चरितुं किंचिद्धर्मेषु सूचितम्। निरापद्धर्म आचारो ह्यप्रमादोऽपराभवः।। | 12-276-21a 12-276-21b |
सर्ववर्णेषु यत्तेषु नासीत्कश्चिद्व्यतिक्रमः। धर्ममेकं चतुष्पादमाश्रितास्ते नरा विभो।। | 12-276-22a 12-276-22b |
तं सन्तो विधिवत्प्राप्य गच्छन्ति परमां गतिम्। गृहेभ्य एव निष्क्रम्य वनमन्ये समाश्रिताः।। | 12-276-23a 12-276-23b |
गृहमेवाभिसंश्रित्य ततोऽन्ये ब्रह्मचारिणः। `व्यस्तमेकं चतुर्धा तु ब्राह्मणा आश्रमं विदुः।। | 12-276-24a 12-276-24b |
सर्वे सर्वत्र तिष्ठन्तो गच्छन्ति परमां गतिम्। एव एवंविधाः प्राहुः पुराणा ब्रह्मचारिणः।।' | 12-276-25a 12-276-25b |
त एते दिवि दृश्यन्ते ज्योतिर्भूता द्विजातयः। नक्षत्राणीव धिष्ण्येषु बहवस्तारकागणाः। आनन्त्यमुपसंप्राप्ताः संतोषादिति वैदिकम्।। | 12-276-26a 12-276-26b 12-276-26c |
यद्यागच्छन्ति संसारं पुनर्योनिषु तादृशाः। न लिप्यन्ते पारकृत्यैः कदाचित्कर्मयोनितः।। | 12-276-27a 12-276-27b |
एवमेव ब्रह्मचारी शुश्रूषुर्घोरनिश्चयः। एवंयुक्तो ब्राह्मणः स्यादन्यो ब्राह्मणको भवेत्।। | 12-276-28a 12-276-28b |
कर्मैव पुरुषस्याह शुभं वा यदि वाऽशुभम्। एवं पक्वकषायाणामानन्त्येन श्रुतेन च।। | 12-276-29a 12-276-29b |
सर्वमानन्त्यमेवासीदिति नः शाश्वती श्रुतिः। तेषामपेततृष्णानां निर्णिक्तानां शुभात्मनाम्।। | 12-276-30a 12-276-30b |
चतुर्थ औपनिषदो धर्मः साधारणः स्मृतः। संसिद्धैः सेव्यते नित्यं ब्राह्मणैर्नियतात्मभिः।। | 12-276-31a 12-276-31b |
संतोषमूलस्त्यागात्मा ज्ञानाधिष्ठानमुच्यते। अपवर्गमतिर्नित्यो यतिधर्मः सनातनः।। | 12-276-32a 12-276-32b |
साधारणः केवलो वा यथाबलमुपास्यते। गच्छन्ते बलिनः क्षेमं दुर्बलोऽत्रावसीदति। ब्राह्मणः पदमन्विच्छन्संसारान्मुच्यते शुचिः।। | 12-276-33a 12-276-33b 12-276-33c |
स्यूमरश्मिरुवाच। | 12-276-34x |
ये भुञ्जते ये ददते यजन्तेऽधीयते च ये। मात्राभिर्धर्मलुब्धाभिर्ये वा त्यागं समाश्रिताः।। | 12-276-34a 12-276-34b |
एतेषां प्रेत्यभावे तु कतमः स्वर्गजित्तमः। एतदाचक्ष्व मे ब्रह्मन्याथातथ्येन पृच्छतः।। | 12-276-35a 12-276-35b |
कपिल उवाच। | 12-276-36x |
परिग्रहाः शुभाः सर्वे गुणतोऽभ्युदयाश्च ते। न तु त्यागसुखं प्राप्ता एतत्त्वमपि पश्यसि।। | 12-276-36a 12-276-36b |
स्यूमरश्मिरुवाच। | 12-276-37x |
भवन्तो ज्ञाननिष्ठा वै गृहस्थाः कर्मनिश्चयाः। आश्रमाणां च सर्वेषां निष्ठायामैक्यमुच्यते।। | 12-276-37a 12-276-37b |
एकत्वेन पृथक्त्वेन विशेषो नान्य उच्यते। तद्यथावद्यथान्यायं भगवान्प्रब्रवीतु मे।। | 12-276-38a 12-276-38b |
कपिल उवाच। | 12-276-39x |
शरीरपक्तिः कर्माणि ज्ञानं तु परमा गतिः। पक्वे कषायविज्ञानं यथा ज्ञानं च तिष्ठति।। | 12-276-39a 12-276-39b |
आनृशंस्यं क्षमा शान्तिरहिंसा सत्यमार्जवम्। अद्रोहोऽनभिमानश्च ह्रीस्तितिक्षा शमस्तथा।। | 12-276-40a 12-276-40b |
पन्थानो ब्रह्मणस्त्वेत एतैः प्राप्नोति यत्परम्। तद्विद्वाननुबुद्ध्येत मनसा कर्मनिश्चयम्।। | 12-276-41a 12-276-41b |
यां विप्राः सर्वतः शान्ता विशुद्धा ज्ञाननिश्चयाः। गतिं गच्छन्ति संतुष्टास्तामाहुः परमां गतिम्।। | 12-276-42a 12-276-42b |
वेदांश्च वेदितव्यं च विदित्वा च यथास्थितिम्। एवं वेदविदित्याहुरतोऽन्यो वातरेचकः।। | 12-276-43a 12-276-43b |
सर्वं विदुर्वेदविदो वेदे सर्वं प्रतिष्ठितम्। वेदे हि निष्ठा सर्वस्य यद्यदस्ति च नास्ति च।। | 12-276-44a 12-276-44b |
एषैव निष्ठा सर्वत्र यत्तदस्ति च नास्ति च। एतदन्तं च मध्यं च सच्चाऽसच्च विजानतः।। | 12-276-45a 12-276-45b |
समाप्तं त्याग इत्येव शम इत्येव निश्चितम्। संतोष इत्यनुगतमपवर्गे प्रतिष्ठितम्।। | 12-276-46a 12-276-46b |
ऋतं सत्यं विदितं वेदितव्यं सर्वस्यात्मा स्थावरं जङ्गमं च। सर्वं सुखं यच्छिवमुत्तरं च ब्रह्माव्यक्तं प्रभवश्चाव्ययं च।। | 12-276-47a 12-276-47b 12-276-47c 12-276-47d |
तेजः क्षमा शान्तिरनामयं शुभं तथाविधं व्योम सनातनं ध्रुवम्। एतैः शब्दैर्गम्यते बुद्धिनेत्रै स्तस्मै नमो ब्रह्मणे ब्राह्मणाय।। | 12-276-48a 12-276-48b 12-276-48c 12-276-48d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि षट्सप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 276।। |
[सम्पाद्यताम्]
12-276-5 धनानामेष वै पन्था इति झ.ट. थ. पाठः।। 12-276-14 दुर्बलात्मन उत्पन्नं प्रायश्चित्तमिति श्रुतिः इति झ. पाठः।। 12-276-39 कषायपङ्क्ति कर्माणीति ट. थ. पाठः।। 12-276-41 मनसा धर्मनिश्चयमिति ध. पाठः।। 12-276-43 रतोन्यो वेदवादक इति ट. थ. पाठः। वेदपातक इति ध. पाठः।। 12-276-46 इत्येव सर्ववेदेषु निष्ठितमिति झ. पाठः।।
शांतिपर्व-275 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-277 |