महाभारतम्-12-शांतिपर्व-097
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति सयुक्तिकं युद्धस्य धर्म्यत्वसमर्थनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-97-1x |
क्षत्रधर्माद्धि पापीयान्न धर्मोऽस्ति नराधिप। अपयाने च युद्धे च राजा हन्ति महाजनम्।। | 12-97-1a 12-97-1b |
अथ स्म कर्मणा केन लोकाञ्जयति पार्थिवः। विद्वञ्जिज्ञासमानाय प्रब्रूहि भरतर्षभ।। | 12-97-2a 12-97-2b |
भीष्म उवाच। | 12-97-3x |
निग्रहेण च पापानां साधूनां संग्रहेण च। यज्ञैर्दानैश्च राजानो भवन्ति शुचयोऽमलाः।। | 12-97-3a 12-97-3b |
उपरुन्धन्ति राजानो भूतानि विजयार्थिनः। त एव विजयं प्राप्य वर्धयन्ति पुनः प्रजाः।। | 12-97-4a 12-97-4b |
अपविध्यन्ति पापानि दानयज्ञतपोबलैः। अनुग्रहेण भूतानां पुण्यमेषां विवर्धते।। | 12-97-5a 12-97-5b |
यथैव क्षेत्रनिर्याता निर्यातं क्षेत्रमेव च। हिनस्ति धान्यकक्षं च न च धान्यं विनश्यति।। | 12-97-6a 12-97-6b |
एवं शस्त्राणि मुञ्चन्तो घ्नन्ति वध्याननेकधा। तस्यैषा निष्कृतिर्दृष्टा भूतानां भावनं पुनः।। | 12-97-7a 12-97-7b |
यो भूतानि सदाऽनर्थाद्वधात्क्लेशाच्च रक्षति। दस्युभ्यः प्राणदानात्स धनदः सुखदो विराट्।। | 12-97-8a 12-97-8b |
स सर्वयज्ञारीजानो राजाऽथाभयदक्षिणैः। अनुभूयेह भद्राणि प्राप्नोतीन्द्रसलोकताम्।। | 12-97-9a 12-97-9b |
ब्राह्मणार्थे समुत्पन्ने योऽभिनिष्पत्य युध्यति। आत्मानं यूपमुत्सृज्य स यज्ञोऽनन्तदक्षिणः।। | 12-97-10a 12-97-10b |
अभीतो विकिरञ्शत्रून्प्रतिगृह्य शरांस्तथा। न तस्मान्त्रिदशाः श्रेयो भुवि पश्यन्ति किंचन।। | 12-97-11a 12-97-11b |
तस्य शस्त्राणि यावन्ति त्वचं भिन्दन्ति संयुगे। तावतः सोऽश्नुते लोकान्सर्वकामदुहोऽक्षयान्।। | 12-97-12a 12-97-12b |
यदस्य रुधिरं गात्रादाहवे संप्रवर्तते। सह तेनैव स्रावेण सर्वपापैः प्रमुच्यते।। | 12-97-13a 12-97-13b |
यानि दुःखानि सहते प्राणानामतिपातने। न तपोऽस्ति ततो भूय इति धर्मविदो विदुः।। | 12-97-14a 12-97-14b |
पृष्ठतो भीरवः सङ्ख्ये वर्तन्ते धर्मपूरुषाः। शूराच्छरणमिच्छन्तः पर्जन्यादिव जीवनम्।। | 12-97-15a 12-97-15b |
यदि शूरं तथा क्षेमे प्रतीक्षेरन्यथा भये। प्रतिरूपं जनाः कुर्युर्न च तद्वर्तते तथा।। | 12-97-16a 12-97-16b |
यदि ते कृतमाज्ञाय नमस्कुर्युः सदैव तम्। युक्तं न्याय्यं च कुर्युस्ते न च तद्वर्तते तथा।। | 12-97-17a 12-97-17b |
पुरुषाणां समानानां दृश्यते महदन्तरम्। संग्रामेऽनीकवेलायामुत्कृष्टेषु पतत्सु च।। | 12-97-18a 12-97-18b |
पतत्यभिमुखं शूरः परान्भीरुः पलायते। आस्थाय स्वर्ग्यमध्वानं सहायान्विषमे त्यजन्।। | 12-97-19a 12-97-19b |
मा स्म तांस्तादृशांस्तात जनिष्टाऽधर्मपूरुषान्।। | 12-97-20a |
ये सहायान्रणे हित्वा स्वस्तिमन्तो गृहान्ययुः। अस्वस्ति तेभ्यः कुर्वन्ति देवा इन्द्रपुरोगमाः।। | 12-97-21a 12-97-21b |
त्यागेन यः सहायानां स्वान्प्राणांस्त्रातुमिच्छति। तं हन्युः काष्ठलोहैर्वा दहेयुर्वा कटाग्निना। पशुवन्मारयेयुर्वा क्षत्रिया ये स्युरीदृशाः।। | 12-97-22a 12-97-22b 12-97-22c |
अधर्मः क्षत्रियस्यैष यच्छय्यामरणं भवेत्। विसृजञ्श्लेष्मपित्तानि कृपणं परिदेवयन्।। | 12-97-23a 12-97-23b |
अविक्षतेन देहेन प्रलयं योऽधिगच्छति। क्षत्रियो नास्य तत्कर्म प्रशंसन्ति पुराविदः।। | 12-97-24a 12-97-24b |
न गृहे मरणं तात क्षत्रियाणां प्रशस्यते। शौण्डीराणामशौण्डीर्यमधर्मं कृपणं च तत्।। | 12-97-25a 12-97-25b |
इदं कृच्छ्रमहो दुःखं पापीय इति निष्टनन्। प्रतिध्वस्तमुखः पूतिरमात्याननुशोचयन्।। | 12-97-26a 12-97-26b |
अरोगाणां स्पृहयते मुहुर्मृत्युमपीच्छति। वीरो दृप्तो मनस्वी च नेदृशं मृत्युमर्हति।। | 12-97-27a 12-97-27b |
रणेषु कदनं कृत्वा सुहृद्भिः प्रतिपूजित। तीक्ष्णैः शस्त्रैरभिक्लिष्टः क्षत्रियो मुत्युमर्हति।। | 12-97-28a 12-97-28b |
शूरो हि सत्वमन्युभ्यामाविष्टो युध्यते मशम्। कृत्यमानानि गात्राणि परैर्नैवावबुध्यते।। | 12-97-29a 12-97-29b |
स सङ्ख्ये निधनं प्राप्य प्रशस्तं लोकपूजितम्। स्वधर्मं विपुलं प्राप्य शक्रस्यैति सलोकताम्।। | 12-97-30a 12-97-30b |
सर्वोपायै रणमुखमातिष्ठंस्त्यक्तजीवितः। प्राप्नोतीन्द्रस्य सालोक्यं शूरः पृष्ठमदर्शयन्।। | 12-97-31a 12-97-31b |
यत्रयत्र हतः शूरः शत्रुभिः परिवारितः। अक्षयांल्लभते लोकान्यदि दैन्यं न सेवते।। | 12-97-32a 12-97-32b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि सप्तनवतितमोऽध्यायः।। 97।। |
12-97-1 महाजनं कटकाश्रितं वैश्यादिजनम्।। 12-97-2 केन तद्वधप्रायश्चित्तं कृत्वा पुण्यफलमाप्नोतीत्यर्थः।। 12-97-4 उपरुन्धन्ति पीडयन्ति।। 12-97-5 अपविध्यन्ति दूरीकुर्वन्ति।। 12-97-6 निर्याता तृणाद्यपनयेन शोधकः। कक्षं तृणं। क्षेत्रनिर्वाहो निर्दहेत्क्षेत्रमेकदा इति द. पाठः।। 12-97-7 भावनं वर्धनम्। पावनं महदिति द. पाठः।। 12-97-10 आत्मानं देहयूपं यज्ञस्तम्भं उत्सृज्य उच्छ्रित्य। यज्ञो युद्धयज्ञः।। 12-97-18 अनीकवेलायां अनीकानां संघट्टकाले।। 12-97-19 विषमे प्राणसंकटे त्यजन् भीरुरिति संबन्धः।। 12-97-22 ते तृणमये कटे बद्ध्वा दहनं कटाग्निना दाहः।। 12-97-25 शौण्डीराणां शूरत्वाभिमानवताम्।। 12-97-26 निष्टनञ्शब्दं कुर्वन्। पूतिः दुर्गन्धिः। अमात्यान्पुत्रान्।।
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